चॉकोबार / एक्वेरियम / ममता व्यास
वह हमेशा खामोश रहता था। ऊपर से सख्त बना रहता, बात-बात पर झगड़ पड़ता या फिर चुप हो जाता। मुझे कभी समझ नहीं आया कि मैं ऐसे चुप रहने वाले का क्या करूं? मैं जानती थी वह ऊपर से जितना खुरदुरा या सख्त दिखाई देता है भीतर से उतना ही संवेदनशील है।
उसे भी पता थी अपनी कमजोरी, अपनी तरलता और सरलता इसलिए उसने अपने ऊपर एक सख्त खोल चढ़ा रखा था। ताकि कोई उसकी कोमलता को, संवेदनशीलता को छू न सके और उसे तोड़ न सके. अपने इस खोल के भीतर उसने अपना एक नन्हा-सा दिल छिपा रखा था जिसमें सारी दुनिया का दु: ख-दर्द सिमटा हुआ था। वैसे दु: ख-दर्द उसके पास परायों के ही नहीं अपने भी कम नहीं थे। लेकिन उसे खुद के बारे में सोचने की फुर्सत कभी नहीं मिली। हमेशा वह गैरों के मसले ही सुलझाता रहता। उसे जब-जब भी मिलती वह किसी न किसी परेशानी में ही घिरा रहता। मैं उसे प्यार से चॉकोबार आइसक्रीम कहती। ऊपर से सख्त और भीतर से एकदम तरल। बस कोई प्यार से एक बाइट करे और एक पल में पिघलकर बिखर जाये। वह बिल्कुल चॉकोबार आइसक्रीम जैसा ही था। दुनिया के सामने कठोरता का कवच लगाये घूमता रहता। जैसे उस पर किसी की बात का असर ही न हुआ हो और फिर उसी बात को दिल में सौ बार याद करके अपनी नींदे उड़ाता।
सोचती हूँ कभी किसी दिन मैंने उसके इस सख्त जिरहबख्तर में सेंध लगा दी तो क्या होगा? क्या उसके भीतर से कोई खौलता हुआ शीशा बह निकलेगा? कोई लावा लिए ज्वालामुखी दिखेगा या कोई शांत सरल, तरल-सी मीठी नदी मिलेगी।
(आज फिर दिल को हमने समझाया)