चोर पुराण / विमल कुमार
आलेख, परिकल्पना व निर्देशन: दिलीप गुप्ता
विषय सूची
भूमिका
मंगलाचरण:
सदा भवानी दाहिनी सन्मुख रहे गणेश
पाँच देव मिल रक्षा करें ब्रह्मा विष्णु महेश
चोर ने लिखी एक कहानी, एक कहानी हो एक कहानी में, सबकी कहानी, सबकी कहानी हो चोर ने लिखी एक कहानी, एक कहानी हो झूठ का बस बोलबाला ताकत का सब खेल निराला चोरमेव जयते, चोरमेव जयते साधो, चोरमेव जयते, चोरमेव जयते चोर ने लिखी एक कहानी, एक कहानी हो एक कहानी में, सबकी कहानी, सबकी कहानी हो चोर ने लिखी एक कहानी, एक कहानी हो
सूत्रधार: -नटी: सूत्रधार और नटी की ओर से आप सभी सुधीजनों को चोर भरा चोरवत प्रणाम।
नटी: चोर! चोर! सुनते ही कान खड़े हो जाते हैं। दिमाग अपने आप एलर्ट मोड में आ जाता है। ऊपर से यह चोर पुराण!
सूत्रधार: चोर पुराण... आज के युग के लिए, आज के युग में लिखा एक सटीक और जरूरी ग्रंथ है यह। इस चोर पुराण के बारे में ग्रंथकारों का कहना है कि अगर आप अपने सिरहाने 'चोर पुराण' पुस्तक रख कर सोएँगे तो आप के घर में कभी भी चोरी नहीं होगी।
नटी: और यह भी सुनने में आता है कि इस चोर पुराण का लोकार्पण सब से बड़े चोर ने किया था।
सूत्रधार: मुख्य अतिथि भी चोर था।
नटी: अध्यक्ष भी चोर था और संचालक भी एक चोर था।
सूत्रधार: चोर पुराण की रचना भी एक चोर ने ही की है।
नटी: और चोर पुराण को इस मंच पर लानेवाला भी यानी निर्देशक भी एक चोर है।
सूत्रधार: और हम?
नटी: हम भी चोर हैं।
सूत्रधार: चोर अनंत चोर कथा अनंता...
नटी: और हाँ, लोकार्पण के समय एक मजेदार घटना भी घटी थी।
सूत्रधार: मंच से घोषणा की गई कि सभी लोग अपने-अपने मोबाइल स्विच ऑफ कर लें।
नटी: तभी वहाँ हॉल में बैठे किसी का मोबाइल चोरी हो गया और वह मोबाइल मंच से बजने लगा।
सूत्रधार: यहाँ भी चोर पुराण देखते हुए मोबाइल चोरी की संभावना बनती है।
नटी: इस लिए आप लोगों के लिए एक सलाह है कि आप अपना-अपना मोबाइल स्विच ऑफ न करें, ताकि चोरी होने पर मोबाइल पर रिंग कर सकें।
सूत्रधार: आइए, अब लौटते हैं अपनी बात पर। चौर-विद्या पर हमारे संस्कृत ग्रंथों में बहुत कुछ लिखा गया है। पहले समय के चोर भी उसूलोंवाले हुआ करते थे, मगर आज हालात काफी बदले हैं। इन बदलते हालात से खुद चोर भी हैरान-परेशान हैं। वे भी परेशान हैं कि कौन चोर है और कौन सिपाही?
नटी: इसी माहौल के मद्देनजर, पाटलिपुत्र से एक सौ चालीस किलोमीटर दूर पश्चिम में, एक साधु एयरकंडीशंड पंडाल के बीच बैठा भरी दोपहरी में चोर पुराण की महती आवश्यकता को महसूस करते हुए कथा वाचन कर रहा था।
सूत्रधार: हम भी वहीँ से उस कथा का रसपान कर चले आ रहे हैं। सोचा, इन मौसेरे भाइयों की सीनाजोरी का कुछ राज यानी दर्दे-जिगर आप पर भी जाहिर करते चलें।
नटी: तो देरी किसलिए? चलिए, शुरू करते हैं - चोर पुराण
सूत्रधार: एक मिनट, वंदना क्या मेरा ताऊ गाएगा?
नटी: नहीं। अरे हलकान क्यों हुए जा रहे हो? ये गाएँगे न, जो एक्टर बनने आए हैं।
सूत्रधार: गाओ बे...
कोरस: त्वमेव माता च पिता त्वमेव...
सूत्रधार: चुप्प...
कोरस: क्या हुआ...
सूत्रधार: -नटी: अबे चोर वंदना गाओ बे।
कोरस: जी ई ई ई ई...
चोर: मैं चोर जरूर हूँ पर एक मनुष्य भी तो हूँ। मेरे भी दो हाथ, दो आँखें, दो कान हैं। मैं भी हँसता-रोता हूँ। मेरी भी पत्नी है, बाल-बच्चे हैं। मैं ने भी बचपन में कंचे खेले हैं। मैदान में दौड़ें लगाई हैं। मैं ने भी फूल, पत्तियों को छुआ है। फूल मुझे भी अच्छे लगते हैं। उनकी सुगंध ली है। हवा मुझे भी प्यारी लगती है। चाँद-सूरज को मैं ने भी बड़े प्यार से देखा है। मैं ने भी एक लड़की से प्रेम किया है। उस के प्रेम में रात भर जागा हूँ। स्कूल से भाग कर सिनेमा हॉल में फिल्में मैं ने भी देखी हैं। मैं ने भी चुनाव में वोट डाला है। मैं भी इस देश का नागरिक हूँ। लेकिन मैं ने अगर जीवन भर चोरी की है तो उससे क्या मैं मनुष्य नहीं रह गया? चोर का कलंक मेरे माथे पर लग गया। मैं इस कलंक को मिटा नहीं सकता, धो नहीं सकता। मैं चोर हूँ पर इस दुनिया को देखने की मेरी भी एक दृष्टि है। लोकतंत्र में अगर समाज के सारे लोगों की दृष्टियों को मान्यता मिल सकती है, तो मेरी दृष्टि को क्यों नहीं?
अभिनेता: बहुत बोल रहे हो बेट्टा... चुप हो जा।
[एक अभिनेता दस सफेद मुखौटे लगाए प्रवेश करता है और चोर की पीठ पर पैर रख के दबा देता है। तत्पश्चात शंख-ध्वनि के साथ चोर वंदना आरंभ]
चोर वंदना:
हे! राजन! पृथ्वी पर हैं नाना रूप तुम्हारे मुँह खोले और दाँत फाड़े तुम सर्वत्र दहाड़े चोरम शरणम गच्छामि चोरम शरणम गच्छामि चोरम शरणम गच्छामि चोरम शरणम गच्छामि तुम्हारी लीला अपरम्पार तुम तीनों लोकों के स्वामी घोटालों में तुम हो नामी विष्णु के साक्षात अवतार नमन करें हम बारंबार नमन करें हम बारंबार चोरम शरणम गच्छामि
अंक 1
[चोर के जन्म पर चोर के घर में खुशी का माहौल, एक महिला का बच्चा लिए प्रवेश]
महिला: बाबूजी बधाई हो! आपके घर लाल आया है। ये देखो, एकदम चाँद-सा मुखड़ा है, बिलकुल आप पर गया है।
पिताजी: भगवान का लाख-लाख शुक्र है। उस ने मेरी विनती सुन ली। लाओ... जरा मैं अपने बेटे का मुँह देख लूँ। कितनी मन्नतों के बाद खानदान को एक चिराग मिला है।
महिला: अजी इतनी आसानी से कैसे? कुछ नेग तो बनता है।
[पिताजी अपनी जेब से नोट निकाल कर बच्चे के सिर पर फेरते हैं और महिला को देते हैं]
पिताजी: ये लो [बच्चे को गोद में ले लेते हैं] अरे सुनो। हीरालाल हलवाई की दुकान पर जाओ और शुद्ध देसी घी का पेड़ा ले कर पूरे मोहल्ले में बँटवा दो।
[बधाई देते हुए कुछ हिजड़ों का प्रवेश]
हिजड़ा समूह: अरे बधाई हो बधाई! बाबूजी के घर लल्ला हुआ है...
हिजड़ा: 1: घर का चिराग रौशन हुआ है।
हिजड़ा: 2: आज तो पक्का नेग लेंगे, कच्चे से काम नहीं चलेगा।
पिताजी: हाँ हाँ, चिंता मत करो, पक्कावाला ही नेग मिलेगा।
[हिजड़े बच्चे को आशीर्वाद देते हैं और सोहर गाना शुरू करते हैं]
नटी: चोर के माता-पिता को नहीं मालूम था कि उनका बेटा आगे चल कर चोर बन जाएगा। वे तो उसे अपनी नेक संतान समझते रहे।
सूत्रधार: उन्होंने उसे बहुत लाड़-प्यार से पाल-पोस कर बड़ा किया लेकिन बच्चा बड़ा हो कर चोर बन गया।
नटी: आश्चर्य की बात तो यह है कि चोर भी नहीं जानता था कि वो एक दिन बड़ा हो कर चोर बन जाएगा। कहने का लब्बोलुआब ये है कि न तो चोर अपनी चोर बनने की प्रक्रिया को समझ पाया और न ही उसके माता-पिता।
चोर: हद है! इंजीनियर बनने के लिए इंजीनियरिंग की परीक्षा देनी पड़ती है, डॉक्टर के लिए डॉक्टरी की, एमबीए-एमसीए के लिए भी परीक्षा देनी पड़ती है, पर मैं बिना कोई परीक्षा दिए ही चोर बन गया और पता भी नहीं चला कि कब बन गया। मुझे आज तक ये समझ में नहीं आया कि आखिर मैं चोर कैसे बना? मैं चोर नहीं बनना चाहता था। मैं तो चाहता था कि मैं भी पढ़-लिख कर मल्टीनेशनल जॉब पाऊँ, फ्लैट-गाड़ी खरीदूँ, विदेश यात्रा पर जाऊँ। मेरे माता-पिता कह सकें कि मेरे बेटे ने खानदान का नाम रौशन किया है। पर साला सब मिट्टी में मिला कर चोर बन गया। सोचते-सोचते दिमाग का दही बन गया लेकिन अभी तक समझ में नहीं आया कि आखिर मैं चोर कैसे बन गया। कोई बात नहीं, एक बार फिर सिस्टम रीस्टार्ट करता हूँ, क्या पता इस बार वायरस हाथ लग जाए।
[चोर सोचने लगता है, सोचते-सोचते उसे नींद आ जाती है। नींद में एक सपना देखता है। सपने में चोर देखता है कि एक लड़का उसके घर से रोटी चुरा रहा है। वह नींद में उसे पकड़ लेता है।]
चोर: चोरी करते तुम्हें शर्म नहीं आती?
[अचानक उसकी नींद खुलती है और देखता है कि उस ने अपना ही हाथ पकड़ रखा है।]
[सूत्रधार रोमांटिक मूड में प्रवेश करता है]
सूत्रधार: पहला नशा, पहला खुमार... नया प्यार है नया इंतजार...
नटी: आएँ... आएँ... आएँ... बड़ा प्यार सूझ रहा है...कहाँ पींगें लड़ा के आ रहे हो? कहीं दारू-वारू तो नहीं चढ़ा रखी है?
सूत्रधार: अल्ले मेले शोना।। परेशान क्यों हो रही है... तुझे छोड़ के कहाँ ईंगे-पींगें लड़ाउँगा?
नटी: :: तो फिर ये क्या नौटंकी मचा रखी है?
सूत्रधार: :: ये नौटंकी नहीं है प्रिये... ब्रेकिंग न्यूज है
नटी: ब्रेकिंग न्यूज है, मतलब?
सूत्रधार: अरे प्रिये, हमारे चोर को प्यार हो गया है...
नटी: प्यार?
सूत्रधार: हाँ... पहला प्यार। वो कहते हैं ना प्यार किया नहीं जाता हो जाता है और पहला प्यार तो एक ऐसा खूबसूरत जज्बा है जिस को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, एक अनकहा-सा एहसास... जैसे हम ने किया।
नटी: हाँ जान, वो एहसास आज भी दिल के कोने में किसी ताजे भीगे गुलाब की तरह खुशबू बिखेरते रहता है। क्या हमारा चोर वैसा ही फील कर रहा है जैसा हमने किया था?
सूत्रधार: आओ खुद ही देख लो
चोर: ताकते रहते तुझको साँझ सवेरे, नैनों में बसियाँ जैसे नैन ये तेरे...
सूत्रधार: , नटी: नमस्ते
चोर: नमस्ते
सूत्रधार: जी हम एक सवाल पूछें यदि आपको बुरा न लगे।
चोर: :: पूछिए।
सूत्रधार: आपको जब प्यार हुआ तो कैसा महसूस हुआ?
चोर: शुरू में तो समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या है। अचानक बदन गर्म रहने लगा, दिल धक-धक करने लगा और दिन भर गनगनाहट-सी होती थी। इस चक्कर में एक डॉक्टर तक को दिखा दिया जिसने मलेरिया का इंजेक्शन भी ठोंक दिया। पैसे तो गए ही गए... पिछवाड़े में एक गुटका-सा हो जाने के कारण तीन दिन तक अपनी हिरोइन की गली तरफ भी नहीं निकल पाया। एक बार हुआ क्या कि नींद न आने के कारण रात में उठ कर अपने घर में इधर-उधर घूम रहा था कि मेरे सतर्क बाप ने मुझे चोर समझ कर जम के ठोंकाई की और बाद में पता चलने पर कि मैं हूँ और पिटाई की, कि तू अँधरे में क्या हमें डराने की कोशिश कर रहा था? सोता क्यों नहीं [अचानक चोर की नज़र घड़ी पर जाती है] देखिए अब टाइम हो गया है, बाकी बातें बात में कर लेंगे आप लोग चलिए।। अभी मेरी हिरोइन आनेवाली है।
सूत्रधार: , नटी: जी शुक्रिया एन्जॉय योरसेल्फ।
चोर: ताकते रहते तुझको साँझ-सवेरे, नैनो में बसियाँ जैसे नैन ये तेरे...
[अचानक प्रेमिका आकर उसकी आँखों को बंद कर लेती है]
चोर: मुझे तुम से बात नहीं करनी है। इतना इंतजार कराती हो जैसे प्रेमिका न हो कर भारतीय रेल हो गई हो।
प्रेमिका: आज सुबह-सुबह मोहल्ले के कुछ लोग हमारी गली में ही अनशन पर बैठ गए थे। इसलिए देर हो गई।
चोर: तो तुम क्या उन्हें जूस पिलाकर उनका अनशन तोड़वा रही थी?
प्रेमिका: नहीं न, मम्मी घर से आने नहीं दे रही थी।
चोर: तो फिर आई क्यों? जा घर जाओ...
प्रेमिका: अच्छा सॉरी मेरे कुरकुरे... सॉरी... सॉरी...
चोर: अच्छा ठीक है, अब आंख बंद करो...
[प्रेमिका आँख बंद करती है, चोर उसे गुलाब का फूल देता है। फिर धीरे-धीरे चोर एक-एक कर कई सारे गुलाब निकाल के देता है।]
प्रेमिका: एक बात पूछूँ?
चोर: पूछो।
प्रेमिका: हम जब भी मिलते हैं तुम मेरे लिए गुलाब ले कर आते हो। सच-सच बताओ, तुम फूल खरीदते हो या चुरा कर लाते हो?
चोर: अब जब तुम इतने प्यार से पूछ रही हो तो सच बताना पड़ेगा... चुरा कर।
प्रेमिका: अगर तुम सचमुच मुझसे प्यार चाहते हो तो पहले यह चोरी बंद करो।
चोर: देखा, प्यार में दिल चुराने से तुम्हारा धंधा ही बंद हो गया। इस लिए मैं प्रेम के चक्कर में पड़ता ही नहीं।
सूत्रधार: किसी कवि ने कहा है गुड़ से मीठा इश्क-इश्क इमली से खट्टा इश्क-इश्क...
नटी: पर चोर के प्यार में इमली का खट्टापन नहीं था, वहाँ तो बस गुड़ से मीठा इश्क-इश्क था।
सूत्रधार: चोर अक्सर अपनी प्रेमिका से चोरी-चोरी मिलता।
नटी: चोरी-चोरी पत्र भी लिखता।
सूत्रधार: पर अब उसे ये सबकुछ चोरी-चोरी करने में बड़ी तकलीफ होने लगी है।
चोर: चोरी-चोरी मिलने में अब मजा नहीं आ रहा। हर वक्त पकड़े जाने का डर लगा रहता है। अब तो हर जगह सीसीटी कैमरे भी लग गए हैं - बस स्टैंड, सड़क, फुटपाथ - यहाँ तक कि पार्क भी अब बचे नहीं हैं।
प्रेमिका: तो क्या अब हम नहीं मिलेंगे? तुम से बिना मिले मैं कैसे रहूँगी? मैं तो मर जाऊँगी।
चोर: मिलेंगे न।
प्रेमिका: कैसे?
चोर: मोबाइल से, तुम मोबाइल खरीद लो। हम उससे बात किया करेंगे।
प्रेमिका: पर बात करते हुए मेरे कसाई भाइयों ने देख लिया तो हमें जिंदा चबा जाएँगे।
चोर: अरे इतना डरती क्यों हो? हम एसएमएस से बात किया करेंगे। और जब फोन पे बात करनी होगी तो तुम मुझे लड़की समझ के बात करना, जैसे हलो क्या कर रही हो? कैसी हो? फिर किसी को शक भी नहीं होगा और अपनी बल्ले-बल्ले।
प्रेमिका: हाउ स्वीट। आई लव यू...
चोर: लव यू हमेशा।
सूत्रधार: चोर अब प्रेम का इजहार एसएमएस से करने लगा।
नटी: पर कुछ दिनों के बाद उसे लगने लगा कि वह जिस तरह प्रेम का इजहार करना चाहता है एसएमएस से संभव नहीं है।
सूत्रधार: फिर वह साइबर कैफे में बैठकर अपनी प्रेमिका से चैट करने लगा।
नटी: लेकिन उसमें भी उसे वह रोमांच नहीं होता जो उसे खत लिखने में होता था।
सूत्रधार: वह फिर से अपनी प्रेमिका को खत लिखने लगा।
चोर: कागज मेरे पास कलम तुम्हारे पास है ।
क्या लिखूँ ऐ जानेमन दिल तुम्हारे पास है ।।
मेरी प्रिय, प्रियतमा, जाने-मन, जाने-ए-बहार, गुलबदन, गुलो-गुलजार, तेरे बिना ये दिल हुआ है जार-जार मेरी बिल्लो रानी, क्या बताऊँ तुम्हें, जब भी तुम मेरी यादों में आती हो मेरा दिल गार्डन-गार्डन हो जाता है। तुम्हारे एक खयाल से मेरा रोम-रोम रोमांचित हो जाता है। इसीलिए तो कहता हूँ,
लिखता हूँ मैं खत खून से स्याही मत समझना।
मरता हूँ तेरी याद में रोगी मत समझना।।
तुम्हारे पत्र के इंतजार में... तुम्हारा सातों जन्मों का आशिक, पागल, दीवाना
प्रेमिका: सुनो
चोर: सुनाओ
प्रेमिका: मुझे माफ कर देना
चोर: आखिर हुआ क्या?
प्रेमिका: मैं तुम्हारी नहीं हो सकी।
चोर: क्या?
प्रेमिका: हाँ, मेरे घरवालों ने मेरा रिश्ता कहीं और तय कर दिया है। मैं चाह कर भी उनकी मर्जी के खिलाफ नहीं जा सकती। एक आखिरी अहसान कर देना मुझ पर। मुझे भूल जाना।
चोर: क्या मुझे इतनी जल्दी हार मान लेनी चाहिए? नहीं, मुझे उसे मनाना चाहिए। ऐसे कैसे मैं अपनी बिल्लो रानी को दूर जाने दूँगा।
[प्रेमिका का घर, उसके तीनों भाई सोए हुए हैं। चोर का खिड़की से प्रवेश।]
बड़े: छोटे, देख तो कहीं बिल्ली आई है क्या?
छोटे: अरे देख ले नहीं तो सारा दूध बिल्ली पी जाएगी फिर सुबह हॉर्लिक्स कैसे पिएगा?
छोटे: नहीं, नहीं देखता हूँ... [टॉय गन लेकर खोजने लगता है, कुछ देर के बाद चोर को देख लेता है]
छोटे: चोर चोर भाई चोर
मँझले: चोर किधर है चोर [बड़े पर बोतल तानते हुए] यू आर अंडर अरेस्ट।
बड़े: अबे बेवड़े कहीं के, मैं नहीं हूँ, चोर उधर है चोर। चल पकड़ते हैं...
[सभी चोर को पकड़ने की कोशिश करते हैं। चोर को पकड़ लेते हैं]
बड़े: बहुत भाग रहा था, बोल और भागेगा। स्साला हम तीनों भाइयों को अच्छा कबड्डी खेलाया है तूने।
मँझले: हूँ... अब यू आर अंडर अरेस्ट...
छोटे: भइया, कानून हाथ में मत लीजिए इसे पुलिस के हवाले कर दीजिए।
बड़े: हाँ हाँ, बाँधो इसके हाथ-पैर और ले चलो थाने।
[पुलिस थाना]:
दारोगा: स्साला, मेरे इलाके में चोरी करता है रे... मेरा रिकॉर्ड ख़राब करेगा रे।
चोर: सर जी, मैं चोरी करने नहीं गया था, मैं तो अपनी प्रेमिका से मिलने गया था।
दारोगा: एक तो विदाउट प्रायर इनफार्मेशन चोरी करता है और ऊपर से जबान लड़ाता है।
चोर: सर जी, कसम खा कर कहता हूँ। मैं अपनी प्रेमिका से ही मिलने गया था।
सिपाही: 1: सुन, साहेब का यदि ब्लडप्रेशर हाई हो गया न तो ऐसा थर्ड डिग्री लगाएँगे कि सात जन्म तक चोरी करना भूल जाएगा।
चोर: आप मेरा विश्वास कीजिए, मैं अपने प्रेमिका से ही मिलने गया था।
बड़े: साहब इसपर कोई भरोसा मत कीजिएगा। यह चोरी करने ही आया था।
दारोगा: तिवारी, ऐसे नहीं मानेगा ये, कपड़े उतार इसके, अभी हुलिया टाइट करते हैं साले का।
चोर: (सच बोलने पर ये मुझे छोड़नेवाले नहीं। लगता है अब झूठ बोल कर अपने आपको फँसवाना पड़ेगा तभी जान बच सकती है।) नहीं सर जी, बताता हूँ। ये...ये...मोबाइल चुराने गया था।
सिपाही: बड़ा पागल है बे, मोबाइल तो लोग सड़क, बस गाड़ियों में चुरा लेते हैं, तुझे घर में घुस के चुराने की क्या पड़ी थी।
दारोगा: देखा, लातों के भूत बातों से नहीं मानते। यह देखिए... कह रहा है कि यह मोबाइल चुराने गया था। क्या यह आप का नहीं है?
बड़े: जी जी यह हमारा ही मोबाइल है। [मोबाइल ले लेता है] साहब, अब हमारा सामान तो मिल गया। इसे छोड़ दीजिए, हम अपनी रिपोर्ट वापस ले लेते हैं।
सूत्रधार: चोर थाने से छूट गया।
नटी: लेकिन इस घटना ने चोर को परेशान कर दिया।
सूत्रधार: उसे समझ में नहीं आ रहा था कि समाज का मोरल डाउन हो रहा है या फिर एक नई किस्म का मोरल वैल्यू क्रिएट हो रहा है।
नटी: इसी असमंजस में वह गौतम बुद्ध से मिला और अपना संशय जाहिर किया।
सूत्रधार: गौतम बुद्ध की शिक्षा को मानते हुए उसने चोरी पूरी तरह से बंद कर दी।
[बुद्ध साधना में बैठे हुए हैं।]
माँ-बाप: प्रभु! हमारी रक्षा कीजए। आपने हमारे बेटे को चोरी बंद करने की शिक्षा क्या दे दी, हमारे लिए भूखों मरने की नौबत आ गई है। अब हम आपकी शरण में आए हैं। हमारे लिए अब आप ही अन्न की व्यवस्था कीजिए।
बुद्ध: मेरे पास अन्न का भंडार नहीं है। किसी सेठ-साहूकार से भी कोई संबंध नहीं है कि किसी से कह कर आप लोगों को अन्न दिलवाऊँ। एफसीआई अर्थात भारतीय खाद्य निगम-वालों को भी मैं नहीं जनता। फूड मिनिस्ट्री में भी मेरा कोई जाननेवाला नहीं है... [सोचते हुए] चौरम शरण गच्छामि जाइए अपने बेटे को कहिए कि अपने पूर्व मार्ग पर वापस लौट जाए। चौरम शरणम गच्छामि।
माँ: -बाप: चौरम शरणम गच्छामि... चौरम शरणम गच्छामि... चौरम शरणम गच्छामि
सूत्रधार: कहते हैं तब से बौद्ध धर्म भारत में खत्म हो गया।
नटी: वह जापान, चीन, थाईलैंड आदि देशों में फैलने लगा और भारत में चौर धर्म का राज हो गया।
सूत्रधार: समय के साथ-साथ चोर की जिंदगी भी चलती रही।
नटी: एक दिन उसकी भी शादी हो गई...
सूत्रधार: पर लड़कीवालों को पता नहीं था कि दूल्हा चोर है।
नटी: फिर सुहागरात के दिन... आप खुद ही देख लीजिए।
[सुहागरात]:
चोर: (क्या मैं अपनी पत्नी को यह राज बताऊँ कि मैं एक चोर हूँ? अगर आज मैं यह राज नहीं बताता हूँ तो एक दिन इस को जब पता चलेगा तो इसे बहुत गहरा धक्का लगेगा। समझ में नहीं आ रहा कि बताऊँ या न बताऊँ...)
पत्नी: लगता है आप मुझ से कुछ छिपा रहे हैं। कहिए ना क्या बात है? अब तो हमें जिंदगी भर साथ निभाना है, इसलिए एक-दूसरे पर विश्वास करना चाहिए और मन की बातें बतानी चाहिए।
चोर: जानती हो मैं क्या काम करता हूँ? मैं एक चोर हूँ। चोरी कर घर-बार चलता हूँ।
[पत्नी जोर-जोर से रोने लगती है।]
चोर: अरे... देखो...। लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे... चुप हो जाओ... आखिर तुमने ही कहा था न कि मन में कोई बात नहीं छिपानी चाहिए। इसलिए मैं ने तुम्हें सच-सच बता दिया।
पत्नी: पति चोर है तो क्या हुआ, सच तो बोलता है। मुझ पर विश्वास तो करता है।
[पत्नी पति को चूम लेती है।]
सूत्रधार: चोर को आज तक याद है अपनी सुहागरात। जब भी उसे उसकी पत्नी चूमती है उसे अपनी सुहागरात याद आ जाती है।
अंक 2
अदालत का दृश्य:
चोर: जज साहब, हाँ यह सच है कि मैं ने इस आदमी के घर में चोरी की है। लेकिन मैं ने सिर्फ 15 हजार रुपए ही चुराए हैं, जबकि इस ने थाने में रिपोर्ट लिखवाई है कि इस के घर से पचास हज़ार रुपए चोरी हुए है।
जज: तुमने चोरी तो की है न?
चोर: जज साहब, मैं कब मना कर रहा हूँ कि मैं ने चोरी नहीं की है। पर इस आदमी ने जो झूठी रिपोर्ट लिखवाई है उसकी भी सजा होनी चाहिए।
जज: इस बारे में कोई भी सबूत अदालत को नहीं मिले हैं।
चोर: यह तो हद है जज साहब, मुझे इसकी झूठी रिपोर्ट पर गुस्सा आया तभी तो मैं ने थाने में फोन करके बताया कि इसने झूठी रिपोर्ट लिखवाई है क्योंकि इस के घर में चोरी मैं ने ही की थी इसलिए सच मुझे पता है।
जज: तमाम गवाहों और सबूतों के मद्देनजर अदालत इस नतीजे पर पहुँची है कि चोर से बरामद हुए 15 हजार घर मालिक को दे दिए जाएँ। और बाकी पैसे उपलब्ध नहीं कराने के जुर्म में चोर को अदालत 6 महीने की सजा सुनाती है
चोर: ज़माना बदल गया है, अब तो चोरी के साथ-साथ इमानदारी बचाना भी मुश्किल हो रहा है।
[चोर का अखबार लिए प्रवेश]:
चोर: जब नौकरी मिलेगी तो क्या होगा?
पत्नी: क्या होगा?
चोर: बदन पे सूट होगा पाँव में बूट होगा और...
पत्नी: और क्या?
चोर: और बाँहों में गोरी का बदन होगा
पत्नी: रे मन थोड़ा धीर धरो।
चोर: अरे अब धीर क्या धरना, आज से समझो चोरी बंद।
पत्नी: ऐसी कौन-सी तिजोरी हाथ लग गई?
चोर: यह देखो, चोरों के टैलेंट को देखकर एक कंपनी ने विज्ञापन दिया है - जिन्हें चोरी करने का सात साल का अनुभव हो, वे नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं।
पत्नी: लेकिन आप को चोरी करने के सात साल के अनुभव का सर्टिफिकेट कौन देगा?
चोर: धत्त तेरी की, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था। अब क्या करूँ?... हाँ, यह ठीक रहेगा।
[थानेदार के पास]
चोर: दारोगा साहब, अगर आप यह लिख कर दे दो कि मैं पिछले सात सालों से इस मोहल्ले में चोरी कर रहा हूँ तो मुझे नौकरी मिल जाएगी।
दारोगा: पगला गए हो क्या? इस तरह का कहीं कोई सर्टिफिकेट मिलता है?
चोर: इस तरह की नौकरी भी तो पहली बार ही मिल रही है न। दे दीजिए न साहब
दारोगा: नहीं नहीं, यह नहीं होगा जाओ।
चोर: [एक तरफ ले जाकर] साहब जरा इधर आइए। कुछ ले-दे कर कर दीजिए न।
दारोगा: अगर तुम पचास हजार दो तो तुम्हे इस तरह का सर्टिफिकेट मैं दे सकता हूँ।
चोर: अभी तो मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं पर यकीन कीजिए नौकरी मिलते ही सब चुकता कर दूँगा। पहली तनख्वाह तो आपको ही दे दूंगा। बाकी पैसे इंस्टालमेंट में दे दूँगा।
दारोगा: हम इस तरह की डील नहीं करते। एडवांस लेकर ही काम करते हैं, पर चलो तुम्हारी नौकरी का मामला है मान जाते हैं।
सूत्रधार: कंपनीवालों को इस बात की हैरानी हुई कि और लोग तो इस तरह का सर्टिफिकेट क्यों नहीं ला सके।
नटी: कहीं यह सर्टिफिकेट फर्जी तो नहीं।
सूत्रधार: उन्होंने थानेदार से संपर्क किया तब जा कर यकीन हुआ।
नटी: और इस तरह उस कंपनी में चोर की नौकरी लग गई।
सूत्रधार: लेकिन धीरे-धीरे चोर वहाँ भी चोरी करने लगा क्योंकि थानेदार को किस्त चुकाने के बाद उसके घर का खर्च चल नहीं पाता था।
नटी: एक दिन कंपनीवालों ने चोर को पकड़ लिया और नौकरी से निकाल दिया।
सूत्रधार: इस तरह चोर फिर बेरोजगार हो गया - अपनी पूरी प्रतिभा के बावजूद।
चोर: यार, समझ में नहीं आ रहा है क्या करूँ। एक काम मिला था वह हाथ से निकाल गया। और अब तो चोरी करने में भी बड़े खतरे बढ़ गए हैं।
चोर: 2: एक हमारे गुरु भाई हैं यानी वे भी अपनी चोर-बिरादरी के ही हैं और आजकल सचिवालय में हैं। वे कह रहे थे कि एक मंत्री के यहाँ पीए की वैकेंसी है। वो अपने ही जैसा कोई आदमी खोज रहे हैं। कहो तो बात करता हूँ।
चोर: नेकी और पूछ-पूछ। जल्दी कर दे भाई। घरवाले भी खुश होंगे कि बेटा बड़ा आदमी बन गया। बड़े लोगों से जान-पहचान होगी तो दिन पर दिन तरक्की के रास्ते खुलेंगे। आज बत्तीवाले का पीए बनूँगा फिर क्या पता कल मैं भी बत्तीवाला बन जाऊँ।
चोर: 2: चलो ठीक है, मैं बात कर लूँगा। और समझ लो तुम्हारा पक्का है।
मंत्री: तुम्हे कितनी बार कहा है कि सिचुअशन देखकर बहाना बनाया करो। लेकिन तुम सब गुड़ गोबर कर देते हो। जहाँ झूठ बोलना हो वहाँ सच बोल देते हो और जहाँ सच बोलना हो वहाँ झूठ बोल देते हो।
चोर: जी झूठ बोलने की आदत रही नहीं मेरी। मैं तो सिर्फ तभी झूठ बोलता था जब चोरी करते हुए पकड़ा जाता कि मैं ने कोई चोरी नहीं की है। और वह भी अपनी जान बचाने के लिए। यहाँ तो हर साँस के साथ झूठ बोलना पड़ रहा है इसलिए कनफ्यूजन हो जा रही है। आगे से कोशिश करूँगा कि ऐसा न हो।
मंत्री: यह तुम्हारा आखिरी मौका है।
चोर: जी...
मंत्री: तुम यहीं बैठो मैं अन्दर चलता हूँ। [मंत्री का प्रस्थान]
चोर: [फोन पर ] हलो... जी मैं मंत्री जी का पीए बोल रहा हूँ। आप पहले अपना पूरा परिचय दीजिए और अपना काम बताइए फिर मैं बताऊँगा कि मंत्री जी हैं या नहीं... क्या ठर्रावाला... ये कैसा अजीब नाम है? अच्छा तो आपका दारू का बिजनेस है। जी अपना काम बताइए... क्या चंदे के सिलसिले में मिलना है... (यहाँ झूठ बोलना ठीक रहेगा क्योंकि यह चंदे के लिए बात कर रहा है।) देखिए, मंत्री जी अभी शहर से दूर एक कार्यक्रम के उद्घाटन में गए है। फिर वहाँ से वे 15 दिनों के लिए विदेश यात्रा पर जा रहे हैं... उसके बाद फोन कीजिएगा...
[एक आदमी का प्रवेश]
आदमी: जी, मंत्री जी से मिलना था...
चोर: काम क्या है?
आदमी: जी, मेरी वृद्धावस्था पेंशन पिछले एक साल से अटकी पड़ी है। ब्लाक पर पता किया तो बोल रहे हैं कि डिपार्टमेंट ने तुम्हें मृत घोषित कर दिया है। अब इसे दुबारा खोलने के लिए 20000 रुपए माँग रहे हैं। अब बताइए सरकार मेरी इतनी औकात कहाँ कि मैं इतने पैसे दे पाऊँ। इसी सिलसिले में मत्री जी से गुहार करने आया हूँ।
चोर: (यह बेचारा जरूरत का मारा है। इस के लिए सच बोल देना चाहिए। इससे मंत्री जी को भी पुण्य मिलेगा। देखो बाबा तुम यहीं बैठो। मैं मंत्री जी को बुलाता हूँ।
[मंत्री जी को बुला के लाता है।]
मंत्री: देखो बाबा, इस ने मुझे आप की परेशानी बता दी है। असल में यह जो आपकी समस्या है वह मेरे मंत्रालय में नहीं आती है। आपके लिए अच्छा रहेगा कि ब्लाक में जितना माँग रहे हैं उतना दे दीजिए या फिर अगले इलेक्शन तक इंतजार कीजिए। यदि मुझे पेंशन-वाला मंत्रालय मिलेगा तो आप का काम हो जाएगा। अब मुझे कुछ अर्जेंट काम है। आप चलिए। [आदमी का प्रस्थान]
मंत्री: तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? ऐसे ऐरे-गैरों के लिए मेरी नींद खराब करता है। तुम्हें मैं ने समझाया था न... कि सम्हल के झूठ और सच बोला करो... और भी कोई आया था?
चोर: जी आया तो नहीं था, फोन आया था।
मंत्री: किस का फोन था?
चोर: जी, किसी ठर्रेवाला का फोन था। बोल रहा था कि आप से चंदे के सिलसिले में मिलना है।
मंत्री: क्या ठर्रेवाला... क्या कहा तूने?
चोर: जी, मैं ने कहा कि आप 15 दिन के बाद मिलेंगे, अभी यहाँ नहीं हैं।
मंत्री: हे भगवान, अरे बेवकूफ, ये क्या कर दिया तुम ने? वो चंदा लेने नहीं, चंदा देने आ रहे थे। पार्टी का फण्ड मजबूत करने आ रहे थे।
सूत्रधार: मंत्री जी अभी मीटिंग में हैं।
नटी: मंत्री जी अपने रूम में नहीं हैं।
सूत्रधार: मंत्री जी नहा रहे हैं।
नटी: मंत्री जी सचिवालय जाने के लिए तैयार हो रहे है।
सूत्रधार: मंत्री जी मोर्निंग वाक पर हैं।
नटी: मंत्री जी ब्रश कर रहे हैं, जूते पहन रहे हैं, धोती पहन रहे हैं, बालों को डाई कर रहे हैं।
सूत्रधार: ऐसे ही ढेर सारे बहानों के बीच झूठ और सच के कन्फ्यूजन से परेशान चोर ने अपनी यह नौकरी भी छोड़ दी।
नटी: और पुनः अपने चोरी के धंधे में आ गया।
[: हनुमान जी का मंदिर: , चोर का प्रवेश]:
हनुमान जी: नहीं चाहिए मुझे तुम्हारा चढ़ावा। बहुत दिनों से तुम मुझे ये सस्ते नकुलदाना का प्रसाद चढ़ा के ब्लैकमेल कर रहे हो। तुम अपने आप को क्या समझते हो? ऐसे सस्ते प्रसाद चढ़ाने से तुम्हारा काम पुण्य का हो जाएगा। तुम चोर ही कहलाओगे।
चोर: प्रभो! गुस्सा मत कीजिए... मुझे पता है आप लड्डू के शौक़ीन हैं। आजकल लड्डू इतना महँगा हो गया है कि खरीदते हुए हालत पतली हो जाती है। लेकिन आप चिंता मत कीजिए, आज मैं आपके लिए लड्डू ही ले कर आया हूँ।
हनुमान: तो पहले ही बोलना चाहिए न। बेकार में डाँट सुन ली।
चोर: कोई बात नहीं प्रभो! लीजिए भोग लगाइए। और मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं चोरी करते कभी पकड़ा न जाऊँ।
हनुमान: जाओ, मैं तुम्हारी सफलता की कामना करता हूँ। तुम चोरी करते पकड़े न जाओ।
चोर: जी प्रभो!
[दृश्य परिवर्तन]:
[एक घर का दृश्य, चोर चोरी करने जाता है और उसकी नजर वहाँ सोने की मूर्ति पर पड़ती है।]
चोर: जिस तरह से सोने के भाव बढ़ रहे हैं वैसे में यदि यह सोने की मूर्ति चुरा लूँ तो फिर पूरी जिंदगी भर चोरी से आजादी मिल जाएगी। अपने बूढ़े माँ-बाप का इलाज भी अच्छे से करा सकता हूँ... नहीं, जिस इश्वर की मैं रोज पूजा करता हूँ उनकी मूर्ति चुराना ठीक नहीं है। लेकिन सोने के भाव को देखते हुए यह मेरे लिए अंतिम चोरी हो सकती है। क्या करूँ... समझ में नहीं आ रहा है... हे भगवन, तुम्ही रास्ता बताओ कि तुम्हे चुराऊँ या नहीं...
[तभी सभी दरवाजे बंद हो जाते हैं।]
चोर: हे प्रभो! यह क्या हो गया... यहाँ तो सारे दरवाजे आटोमेटिक लॉक हो गए। आज तो पकड़ा जाना तय है। हे हनुमान जी, मेरी रक्षा करो... मेरे लड्डू की लाज रख लो।
हनुमान जी: वत्स, मैं इसमें कुछ भी नहीं कर सकता। यह टेक्नोलॉजी का मामला है। कोई रिमोट सिस्टम है जिससे यह दरवाजा बंद हो गया है। मूर्ति को घुमाओ, शायद दरवाजा खुल जाए।
[चोर मूर्ति को घुमाता है और सायरन बजने लगता है।]
चोर: प्रभो! यह क्या, यहाँ तो और सायरन बजने लगा। अब क्या करूँ?
हनुमान जी: वत्स! घबराओ मत, अब मेरा ध्यान मत करो, बल्कि सैम पित्रोदा और बिल गेट्स का ध्यान लगाओ। वे ही तुम्हे मुक्त कर सकेंगे।
सूत्रधार: उस दिन से दुनिया के सारे चोर बिल गेट्स के कदमों में झुक गए।
नटी: चोर तो पकड़ा गया, पर जब वह छूटा तो उसने ईश्वर की भक्ति छोड़ दी।
सूत्रधार: वह बिल गेट्स और सैम पित्रोदा की पूजा करने लगा। वह जान गया कि अपना ईश्वर टेक्नोलॉजी के मामले में बहुत पिछड़ा हुआ है।
चोर: यार लाइफ में अब कुछ नया चाहिए। यहाँ रहते-रहते मन भर गया है। सोचता हूँ क्यों न राजधानी की तरफ कूच किया जाए। लोग कहते हैं कि देश के सारे फैसले वहीँ से होते है, तो क्यों न अपनी किस्मत का फैसला भी वहीँ चल के किया जाए।
नटी: और इस तरह चोर देश की राजधानी दिल्ली चला आया।
सूत्रधार: दिल्ली आते ही उसने रामलीला मैदान के दर्शन किए। उस समय रामलीला मैदान में एक चोर प्रवचन दे रहा था।
साधू: धन-सम्पत्ति ही सब कुछ है। भोग ही सब कुछ है। आनंद की प्राप्ति इसी से होगी और मोक्ष भी मिलेगा। पैसे कमाओ, तिकड़म भिड़ाओ, मंत्रियों, तस्करों और अपराधियों से मिलना जुलना रखो। समाज में सम्मान और यश पाओगे। मीडिया में खूब छाओगे। पुलिस और न्यायपालिका भी तुमसे डरेगी। चारों तरफ तुम्हारा ही नाम होगा, तुम्हारी दुकान चलेगी। महापुरुष कहलाओगे। मूर्तियाँ तुम्हारी लगेंगी। सिक्के तुम पर निकलेंगे। पुल तुम्हारे नाम पर बनेंगे। हवाई अड्डे तुम्हारे नाम पर होंगे। अनाथालय भी तुम्हारे नाम से खुलेंगे। कोर्स में तुम्हें पढ़ाया जाएगा। इतिहास में अमर हो जाओगे। बोलिए श्री श्री चोर नारायण की जय...
चोर: बाबा प्रणाम,
साधू: जय हो, तुम्हारी झोली भारती रहे।
चोर: बाबा, एक संशय है...
साधू: अति शीघ्र दूर कर लो।
चोर: सारे बाबा सांसारिक सुखों को त्यागने का प्रवचन देते हैं और आप उन को भोगने के लिए कह रहे है।
साधू: मैं तो 'तुम भी खाओ मैं भी खाऊँ' की तर्ज वैसा ही कहता हूँ जैसा मैं करता हूँ। लेकिन और बाबा लोग जनता के पैसे अपनी जेब में भरने के लिए दूसरों को सांसारिक सुखों का त्याग करने के लिए कहते हैं।
चोर: ऐसे में तो आप को शुरू में बहुत दिक्कत आई होगी और बाबाओं से।
साधू: हाँ आई थी न, उन सब की टीआरपी डाउन हो गई तो तिलमिला गए और पुलिस से मुझे प्रवचन देने पर रोक लगा दी। आखिर समाज में साधुओं का गिरोह इतना मज़बूत जो है।
चोर: फिर?
साधू: फिर क्या, मैं ने उन साधुओं के सामने कमीशन देने की बात की तो वे मान गए। पुलिस भी अपना हिस्सा लेने लगी। और आज मेरा प्रवचन बिना किसी रोक-टोक के फुल सिक्योरिटी के चल रहा है।
चोर: धन्य हैं बाबा आप। हम चोरों के लिए आप ही सच्चे गुरु हैं। एक और प्रश्न था, बाबा...
साधू: पूछो
चोर: चोर चोरी क्यों करते हैं?
साधू: बेटा, यह निहायत ही राजनितिक प्रश्न है। इसका जवाब तुम्हें संसद में ही मिल सकता है।
चोर: जी बाबा धन्यवाद। प्रणाम।
चोर: भाई साहब नमस्कार।
सूत्रधार: नमस्कार
चोर: आप जरा मेरी सहायता करेंगे?
सूत्रधार: बताइए
चोर: मैं संसद को भीतर से देखना चाहता हूँ और एक सवाल पूछना चाहता हूँ।
सूत्रधार: देखिए, आप ने दो काम बताए हैं। और दोनों की कैटेगरी अलग-अलग है। दोनों के रेट भी अलग-अलग हैं।
चोर: मतलब?
सूत्रधार: मतलब यह कि संसद में जाने के लिए आपको पास बनवाना पड़ेगा और उसके लिए 100 लगेंगे। एक सवाल पूछने के लिए 2000 रुपए।
चोर: पास बनवाने के लिए और सवाल पूछने के भी पैसे? यह तो खुलेआम घूसखोरी है।
सूत्रधार: तो ठीक है न। जाइए बिना पैसे के लोकसभा चैनल पर लाइव संसद देख लीजिएगा।
चोर: अच्छा ठीक है ठीक है। मैं आपको पैसे दे दूँगा। आप व्यवस्था कर दीजिए।
सूत्रधार: ठीक है। मैं आप को बुलाता हूँ इंतजाम करके।
चोर: जी शुक्रिया। [सूत्रधार का प्रस्थान] इसीलिए लोग कहते हैं कि दिल्ली दूर है।
अन्धकार:
[चोर सोया हुआ है। सपना देखता है कि कुछ चोर हाथ-पैर बँधे इधर से उधर घिसट रहे हैं। चोर यमराज की तरह उन से प्रश्न करता है।]
चोर: तुम लोगों को जब पता था कि चोरी करने पर नरक की सजा होगी और वह भी कठोर से कठोर, फिर भी तुम लोगों ने चोरी क्यों की?
चोर: 1: हम चोर नहीं बनते, अगर चुनाव में लाखों खर्च नहीं करने होते?
चोर 2: अगर मेरी बेटी की शादी बिना दहेज के होती तो हम चोरी क्यों करते
चोर: 3: आज मुझे प्रतिभा के बल पर नौकरी मिलती तो ये रिश्वत नहीं देनी पड़ती। चोरी की, तो रिश्वत दे पाया।
चोर: 4: अगर मेरे लिए रहने की छत होती तो मैं मकान नहीं बनवाता और मुझे चोरी नहीं करनी पड़ती।
चोर: 5: अगर मुझे दाम्पत्य सुख मिलता तो मैं भौतिक सुख के चक्कर में नहीं पड़ता। फिर मैं ऐशो-आराम के लिए चोरी नहीं करता
चोर: 6: एक दिन मैं इतना भूखा था कि ब्रेड चुराने के लिए चोरी की, तब से चोरी से भूख मिटाने की आदत पड़ गई।
[चोर यह सब सुन कर हँसने-रोने लगता है। तभी मोबाइल की घंटी बजती है। चोर का सपना टूट जाता है।]
चोर: हेलो... हाँ जी बोलिए... नहीं-नहीं, अभी सोया हुआ था... अच्छा... ठीक है ... मैं दस बजे तक संसद पहुँच जाऊँगा, हाँ हाँ पैसे भी लेते आऊँगा।
[संसद का दृश्य, एक कुर्सी पर छाता लटकाया हुआ है। सारे संसद मेढक बने टर्र-टर्र कर रहे हैं। चोर दर्शक दीर्घा से देख रहा है। कुछ देर बाद चोर सवाल पूछने के लिए उठता है, आप लोग बता सकते हैं कि चोर चोरी क्यों करते हैं? एक मंत्री उसकी तरफ मुड़ के देखता है और बोलने के लिए उठता है तभी उसके गले में कुछ फँस जाता है और बोल नहीं पाता है... सभी नेता टर्र-टर्र करने लगते हैं]
चोर: [अचानक] अरे भाई साहब, आप लोग यह क्या कर रहे हैं।
[सारे नेता चोर की तरफ देखते हैं और अचानक टर्राना बंद कर देते हैं और गुर्राने लगते हैं। चोर यह देख कर बेहोश हो जाता है।]
सूत्रधार: कुछ दिनों के बाद चोर ने जब फिर से एक मंत्री जी से अपने सवाल का जिक्र किया तो मंत्री ने कहा...
मंत्री: घबराओ मत, लिखित जवाब मिल जाएगा। मैं तुम्हारे पते पर उसे भेज दूँगा।
नटी: कुछ दिनों के बाद चोर को एक चिट्ठी मिली और उसमें मंत्री जी का जवाब था...
मंत्री: चोर इसलिए चोरी करते हैं क्योंकि दूसरों के घरों में सामान होता है।
सूत्रधार: चोर को जवाब से संतुष्टि नहीं मिली तो फिर वह इलेक्ट्रॉनिक चैनल का पत्रकार बन गया।
नटी: और उसके सवाल पूछने का तरीका भी बदल गया।
सूत्रधार: एक दिन प्रधानमंत्री संसद से बाहर निकले तो पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया। उसमें चोर भी था।
चोर: अगर आप को कोई चीज चुरानी हो तो आप क्या चुराना पसंद करेंगे?
सूत्रधार: ये कैसा सवाल है?
नटी: इस तरह के सवाल कहीं पीएम से पूछे जाते हैं?
प्रधानमंत्री: मैं इस देश का प्रधानमंत्री हूँ। मुझे किसी चीज को चुराने की जरूरत नहीं है। चुराता तो वह है जो कुछ हासिल नहीं कर पाता है।
सूत्रधार: अगले दिन अखबारों में यह खबर पहली लीड थी, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय को इस पर गहरी आपति थी। पीएमओ का मानना था कि इससे प्रधानमन्त्री की गरिमा को ठेस पहुँची है।
सूत्रधार: पीएमओ ने इसका खंडन करते हुए कहा -
नटी: प्रधानमंत्री को चोर न समझा जाए क्योंकि उनको किसी चीज की कमी नहीं है। उनका संबंध तो महाकाय बैंक से रहा है। महाकाय बैंक का आदमी चाहे कुछ भी करे वह चोरी नहीं कर सकता।
सूत्रधार: प्रधानमंत्री कार्यालय ने सफाई दे कर अपने प्रधानमंत्री को बचा लिया।
नटी: लेकिन चोर प्रधानमंत्री से ऐसे सवाल पूछने से नाराज चैनलवालों से बच नहीं पाया।
सूत्रधार: और उसे वहाँ से भी चलता कर दिया गया।
नटी: चोर परेशान हो गया।
सूत्रधार: उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें...
नटी: कि एक दिन वह राजा के महल में घुसा।
[चोर राज महल में प्रवेश करता है]
चोर: यार, घुसते जा रहा हूँ - घुसते जा रहा हूँ पर साला समझ ही में नहीं आ रहा कि निकलने का रास्ता किधर है। धत्त तेरे की, यार निकलने की अभी इतनी जल्दी क्या है? इतने सारे कमरे हैं, कहीं भी दुबक के रह लूँगा। कुछ दिन रह के मैं भी तो जरा देखूँ आखिर ये राजसी ठाठ-बाट कैसे होते हैं? [आहट पा कर] लगता है कोई आ रहा है...
[राजा, रानी का प्रवेश]
राजा: अच्छा रानी साहिबा, मैं चलता हूँ। आप अपना ध्यान रखिएगा। मैं ने आपके बताए पॉइंट्स नोट कर लिए हैं। आपने जो कहा है वही बोलूँगा। उससे एक शब्द भी ज्यादा नहीं।
रानी: बहुत अच्छे महाराज, टाइम से खाना खा लीजिएगा, टाइम पर सो जाइएगा। सारे राजाओं के सामने अच्छे से स्पीच दीजिएगा और हाँ मीडिया के सामने ज्यादा मुँह मत खोलिएगा।
राजा: जी
रानी: ये लीजिए अपना लोलीपॉप का डिब्बा।
राजा: थैंक यू... अच्छा रानी साहिबा... अब मुझे परमिशन दीजिए चलने की।
रानी: जी चलिए... बाय... [राजा चलता है] सुनिए...आइल मिस यू।।
राजा: मी टू... [प्रस्थान]
चोर: अच्छा... यानी राजा साहब कुछ दिनों के लिए विदेश यात्रा पर जा रहे हैं। फिर तो अपनी बल्ले-बल्ले...
[चोर राजा के सभी सामानों को देखता है और उनका इस्तेमाल करता है। तभी उसे राजा की डायरी हाथ लग जाती है।]
चोर: यह क्या है... हम्म... लगता है राजा की डायरी है... मैं दुनिया का सबसे लाचार राजा हूँ। अपने प्रान्तों के गवर्नरों को हटा नहीं सकता। मंत्रियों को बर्खास्त नहीं कर सकता। क्योंकि सभी मेरा राज जानते हैं। मेरी कमजोरी पहचानते हैं। सच मैं बोल नहीं सकता, पर अब झूठ भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। अजीब राजा है यह तो। जब इतने प्रोब्लम में है तो फिर क्यों राजा बना हुआ है?
[राजा के आने की आहट] लगता है राजा आ गया... अरे मर गया... [जल्दी से छिप जाता है, राजा का प्रवेश]
राजा: [सूँघ कर] हैं यह तो मेरे इत्र की खुशबू है... पर मैं तो यहाँ था नहीं... जरूर मेरे कमरे के अंदर कोई है। जो कोई छिपा है, सामने आकर सरेंडर कर दे, नहीं तो संतरी उसके दो टुकड़े कर देगा।
चोर: मैं आत्मसमर्पण तो कर दूँगा, पर मैं ने आपकी डायरी पढ़ ली है। मैं आप को एक तरकीब बता सकता हूँ।
राजा: पहले यह बताओ कि तुम हो कौन? और यहाँ किसलिए आए हो?
चोर: मैं चोर हूँ।
राजा: क्या... च्च...चोर
चोर: हाँ चोर पर घबराइए मत। मैं यहाँ चोरी करने नहीं आया हूँ।
राजा: पर चोर तो चोरी करने के लिए ही कहीं जाते हैं।
चोर: उँची केटेगरीवाले चोर हमेशा चोरी करते हैं। मैं नीची केटेगरी वाला हूँ न। जब जरूरत पड़ती है तभी करता हूँ।
राजा: फिर तुम यहाँ आए क्यों?
चोर: राज महल का ग्लैमर देखने के लिए।
राजा: अच्छा हाँ तुम कोई तरकीब बता रहे थे?
चोर: हाँ, अगर आप इतने बेबस हैं तो राजपाट छोड़ दें।
राजा: कैसे छोड़ दें? रानी साहिबा नहीं छोड़ने देंगी, राजकुमार नहीं छोड़ने देंगे, वजीर नहीं छोड़ने देगा। और राजपाट छोड़ते ही देश में सब को पता चल जाएगा और हंगामा खड़ा हो जाएगा। पडोसी देश हमारे ऊपर हमला बोल देंगे।
चोर: एक रास्ता है। आप मेरा वेश बदलकर बाहर चले जाइए। कुछ सालों तक चैन की जिंदगी बिता लीजिए। फिर जब मन करे वापस आ जाइए। आपको राजपाट वापस मिल जाएगा।
राजा: नहीं नहीं, भला ऐसा भी कहीं होता है। और मैं तुम पर कैसे भरोसा कर सकता हूँ? तुमने कुछ गड़बड़ कर दिया तो?
चोर: देखिए यदि मुझे गड़बड़ ही करना होता तो मैं अभी कर देता। आपकी डायरी लीक कर देता। पर मैं ऐसा नहीं कर के आपको आप के भले के लिए ही सलाह दे रहा हूँ।
[कुछ देर सोचने के बाद]
राजा: मुझे भी लग रहा है इसमें नुकसान कम फायदे ज्यादा हैं। एक बार ट्राई करने में क्या जाता है। लाओ अपने कपड़े...
[राजा चोर के कपड़े पहनता है]
सूत्रधार: राजा वेश बदल कर बाहर निकाल गया और चोर राजा का वेश बना कर राजपाट सँभालने लगा।
नटी: कुछ महीनों बाद जब राजा राज महल की ओर चला तो संतरी ने उसे अंदर जाने नहीं दिया।
सूत्रधार: किसी तरह वह राज महल में घुसा तो देखता है कि चारों तरफ चोर का गुणगान हो रहा है।
नटी: उसे ऐसा कोई आदमी नहीं मिला जो चोर के खिलाफ हो। रानी साहिबा ने भी राजा को पहचानने से इनकार कर दिया।
सूत्रधार: और चोर के साथ मिल कर उसने राजा को राजमहल से बाहर निकाल दिया।
नटी: राजा मन ही मन चोर से बदला लेने की योजना बनाने लगा।
सूत्रधार: आखिरकार उसने एक बड़ी अच्छी तरकीब निकली।
नटी: चोर को बाहर निकालने के लिए सारे चोरों को गोलबंद करने लगा और देश में चुनावी माहौल तैयार करने लगा।
सूत्रधार: और एक दिन वो घड़ी आ ही गई जब सारे चोर चुनाव मैदान में थे।
चोर: [भाषण की मुद्रा में] माताओ, बहनो और भाइयो, हम 55 हजार करोड़ रुपए खर्च कर देश का निर्माण करेंगे। इस विकास की रकम का कम से कम 20 प्रतिशत कमीशन आप सभी की जेब में देंगे। हम सड़क बनवा देंगे। हम बजली लगा देंगे। हम पानी भी पहुँचा देंगे। हम मुफ्त शिक्षा और स्वस्थ्य मुहैया कराएँगे। जाति और वर्गविहीन समाज बनाएँगे जिसमें चोर और सिपाही दोनों बराबर सम्मान पाएँगे। हम हर क्लास के चोरों के लिए इनकम टैक्स में रिबेट देंगे। हम उन को रहने के लिए शहरों में गेस्ट हाउस बनवा देंगे। चोरों के लिए रिजर्व बैंक विशेष बांड जारी करेंगे। हम सभी चोरों को ईमानदार बनाने के लिए उन का महाकाय बैंक में अकाउंट खुलवा देंगे।
[रात में सभी चोरों की मीटिंग होती है। उस में यह तय होता है कि कोई भी जीते हारे पर किसी भी चोर को नुकसान नहीं होना चाहिए। साथ में उनके रिश्तेदारों को भी फायदा होना चाहिए। इस बात पर आम सहमति बन जाती है।]
सूत्रधार: चुनाव हुए, नतीजे आए।
नटी: नतीजे राजा के पक्ष में गए।
सूत्रधार: पर किसी भी चोर का नुकसान नहीं हुआ।
नटी: चोरों के आपसी एग्रीमेंट के अनुसार सारे चोरों को किसी न किसी विभाग में भेज दिया गया।
सूत्रधार: चोरों को खुश रखने के लिए कई नए विभाग और पोस्ट क्रिएट किए गए।
सूत्रधार: यही नहीं, सरकार ने एक नए स्वतंत्र मंत्रालय का भी गठन किया। चोर मंत्रालय का।
नटी: इस मंत्रालय का काम चोरों को पकड़ना, उन्हें सजा दिलवाना और जरूरत पड़ने पर उन का पुनर्वास करना तय किया गया।
सूत्रधार: इस के लिए अलग से योजना आयोग अलग से धन राशि जारी करेगा।
नटी: इस तरह चोर सारे मंत्रालय, विकास योजनाओं, अकादमियों, अस्पतालों और क्षेत्रों में चले गए और अपने भाई-भतीजों, नाते-रिश्तेदारों की भी दशा सुधारने लगे।
दोनों: आइए हम सब अपनी और देश-समाज की तरक्की के लिए सर्वशक्तिशाली, सर्वव्यापक चोर शक्ति को नमन करें।
[चोर आरती]