चौंसठ वर्षीय जादू का रहस्य / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 06 सितम्बर 2013
आज राकेश रोशन का चौंसठवां जन्मदिन है, गोया कि उनके जन्म के समय तक उनके पिता रोशन साहब 'बावरे नैन' में संगीत दे चुके थे, लताजी की 'भैरवी' की बात संभवत: हो चुकी थी और भारत को आजाद हुए भी दो वर्ष हो चुके थे। रोशन साहब के संगीत सृजन के समय उनके दोनों पुत्र मौजूद होते थे, परंतु छोटे पुत्र राजेश अधिक समर्पित दिखाई पड़ते थे, जबकि राकेश रोशन की भूरी चंचल आंखें देख कहां रही हैं और निशाने पर कौन है, बताना कठिन था। कॉलेज में भी राकेश खिलंदड़ रहे और राजेश तन्हा तथा संजीदा। रोशन साहब ने साहिर लुधियानवी के साथ 'ताजमहल', 'बरसात की रात' और 'दिल ही तो है' के साथ ही दर्जनों फिल्मों में माधुर्य रचा, परंतु उन्हें उतना नाम और शोहरत नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे। रोशन साहब के मित्र निर्माता के घर एक दावत में प्राय: संजीदा रहने वाले रोशन साहब खूब लतीफे सुना रहे थे। इतना खुश उन्हें किसी ने कभी नहीं देखा, परंतु उस दावत में अनिमंत्रित मौत जाने किस खिड़की या दरार से भीतर आ गई और उसे ठहाके लगाते सुरीले रोशन साहब से इश्क हो गया। वहां मौजूद कोई समझ ही नहीं पाया कि ठहाके लगाने वाला एक तंदुरुस्त हंसते-हंसते फर्श पर ढेर हो गया, कभी न उठने के लिए या कहें उठ गया सदा के लिए। जैसे कोई धुन गले में मछली के कांटे की तरह अटक गई हो। उनकी मृत्यु के बाद उनका गीत 'खुशी-खुशी कर दो बिदा कि रानी बेटी राज करेगी' रिकॉर्ड हुआ और सारे वादक देर तक रोते रहे। इसे कहते हैं 'मरकर किसी के आंसुओं में मुस्कराएंगे।'
इस दुर्घटना ने दोनों भाइयों का जीवन ही बदल दिया। राजेश लक्ष्मी-प्यारे के सहायक हो गए और राकेश निर्देशक मोहन कुमार के। दोनों को मामूली से वेतन से ही गुजारा करना पड़ा, क्योंकि स्वर्गीय रोशन साहब केवल धुनें छोड़ गए थे, जिन्हें बैंक में कैश नहीं कराया जा सकता था। बहरहाल, दोनों भाइयों ने संघर्ष किया और कभी किसी परिचित को यह नहीं मालूम पडऩे दिया कि आर्थिक हालात खराब हैं। राकेश रोशन ने अभिनय किया। कुछ फिल्में चलीं, कुछ नहीं चल पाईं और उसी दौर में निर्माता जे. ओमप्रकाश की पुत्री पिंकी से उन्हें इश्क हो गया। कमजोर आर्थिक हालात में इश्क की बरसात में कड़की का निमोनिया हो जाने का अंदेशा तो होता ही है।
बहरहाल, राकेश की व्यावहारिक बुद्धि बहुत जल्दी इस नतीजे पर पहुंच गई कि अभिनय में वे शिखर पर नहीं पहुंच सकते, अत: उन्होंने निर्माण शुरू किया और 'आपके दिवाने' के बाद सफल 'कामचोर' बनाई। राकेश ने एक और निर्णायक फैसला लिया कि निर्माण के साथ वे निर्देशन भी करेंगे, क्योंकि जे. ओमप्रकाश की 'भगवान दादा' में वे हाथ आजमा चुके थे। उनकी निर्देशित जीतेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा अभिनीत 'खुदगर्ज' सफल रही, परंतु भव्य सफलता मिली 'करण-अर्जुन' में और उस समय तक उनका पुत्र ऋतिक उनका सहायक हो चुका था। शाहरुख और माधुरी अभिनीत 'कोयला' के निर्माण के समय उन्होंने ऋतिक के परिश्रम और एकाग्रता को देखा तथा उसे अभिनय के क्षेत्र में उतारने का फैसला किया। राकेश रोशन की ऋतिक अभिनीत पहली फिल्म 'कहो ना प्यार है' के प्रदर्शन के एक सप्ताह पूर्व आमिर की 'मेला' और एक सप्ताह बाद शाहरुख की 'फिर भी दिल है हिंदुस्तानी' लगी, परंतु राकेश रोशन की फिल्म ने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की कि संगठित अपराध ने प्रदर्शन के विदेश अधिकार नहीं मिलने के कारण राकेश पर गोली चलवा दी। भाग्यवश वे बच गए। पिता-पुत्र की जोड़ी ने ऐतिहासिक बॉक्स ऑफिस सफलता अर्जित की। इस वर्ष दिवाली पर उनकी विज्ञान फंतासी 'कृश-3' प्रदर्शित होने जा रही है। राकेश रोशन ने अपने लंबे कॅरियर में फिल्म उद्योग की राजनीति में कभी हिस्सा नहीं लिया, हमेशा सिर्फ काम किया है। चौंसठ बेदाग प्रतिभा से रोशन वर्षों की बधाई।