चौथा अध्याय - स्वराघात / कामताप्रसाद गुरू
चैथा अध्याय स्वराघात 56. शब्दों के उच्चारण में अक्षरों पर जो जोर (धक्का) लगता है, उसे स्वराघात कहते हैं। हिंदी में अपूर्णाेच्चरित अ (दे. 40वाँ अंक) जिस अक्षर में आता है, उसके पूर्ववर्ती अक्षर के स्वर का उच्चारण कुछ लंबा होता है; जैसेμ‘घर’ शब्द में अंत्य ‘अ’ का उच्चारण अपूर्ण होता है, इसलिए उसके पूर्ववर्ती ‘घ’ के स्वर का उच्चारण कुछ झटके के साथ करना पड़ता है। इसी तरह संयुक्त व्यंजन के पहले के अक्षर पर (दे. 52 अंक) जोर पड़ता है; जैसेμ‘पत्थर’ शब्द में ‘त्’ और ‘थ’ के संयोग के कारण ‘प’ का उच्चारण आघात के साथ होता है। स्वराघात संबंधी कुछ नियम नीचे दिए जाते हैंμ (क) यदि शब्द के अंत में अपूर्णोच्चरित अ आवे तो उपांत्य अक्षर पर जोर पड़ता है, जैसेμघर, झाड़, सड़क इत्यादि। (ख) यदि शब्द के मध्य भाग में अपूर्णोच्चरित अ आवे तो उसके पूर्ववर्ती अक्षर पर आघात होता है; जैसेμअनबन, बोलकर, दिन भर। (ग) संयुक्त व्यंजन के पूर्ववर्ती अक्षर पर जोर पड़ता है; जैसेμहल्ला, आज्ञा, चिंता इत्यादि। (घ) विसर्गयुक्त अक्षर का उच्चारण झटके के साथ होता है; जैसेμदुःख, अंतःकरण। (च) यौगिक शब्दों में मूल अवयवों के अक्षरों का जोर जैसा का तैसा रहता है; जैसेμगुणवान, जलमय, प्रेमसागर इत्यादि। (छ) शब्द के आरंभ का अ कभी अपूर्णोच्चरित नहीं होता, जैसेμघर, सड़क, कपड़ा, तलवार इत्यादि। 57. संस्कृत (वा हिंदी) शब्दों में इ, उ, वा, ऋ पूववर्ती स्वर का उच्चारण कुछ लम्बा होता हैμजैसे हरि, साधु, समुदाय, धातु, पितृ, मातृ इत्यादि। 58. यदि शब्द के एक ही रूप से कई अर्थ निकलते हैं तो इन अर्थों का अंतर केवल स्वराघात से जाना जाता हैμजैसे ‘बढ़ा’ शब्द विधिकाल और सामान्य भूतकाल, दोनों में आता है, इसलिए विधिकाल के अर्थ में ‘बढ़ा’ के अंत्य ‘आ’ पर जोर दिया जाता है। इसी प्रकार ‘की’ संबंधकारक की स्त्राीलिंग विभक्ति और सामान्य भूतकाल का स्त्राीलिंग एकवचन रूप है; इसलिए क्रिया के अर्थ में ‘की’ का उच्चारण आघात के साथ होता है। (सू.μहिंदी में संस्कृत के समान स्वराघात सूचित करने के लिए चिद्दों का उपयोग नहीं होता।) देवनागरी वर्णमाला का कोष्ठक अघोष घोष स्थान स्पर्श ऊष्म ऊष्म स्पर्श स्वर कंठ क ख ह ग घ ङ अ आ तालु च छ श ज झ ×ा य इ ई ए ऐ मूर्धा ट ठ ष ड ढ ण र ऋ िंदंत त थ स द ध न ल ओष्ठ प फ ब भ म व उ ऊ ओ औ ड़, ढ़=द्विस्पृष्ट; ज=दंततालव्य फश्=दंतोष्ट्य। अल्पप्राण महाप्राण महाप्राण महाप्राण अल्पप्राण महाप्राण ़ अल्पप्राण (अनुनासिक) अंतस्थ Ðस्व दीर्घ संयुक्त स्थान ़ नासिका 1 दंत ़ ओष्ठ 2 कंठ़तालु 2 कंठ़ओष्ठ