चौथा अध्याय / बयान 1 / चंद्रकांता
वनकन्या को यकायक जमीन से निकल पैर पकड़ते देख वीरेन्द्रसिंह एकदम घबरा उठे। देर तक सोचते रहे कि यह क्या मामला है, यहां वनकन्या क्योंकर आ पहुंची और यह योगी कौन हैं जो इसकी मदद कर रहे हैं? आखिर बहुत देर तक चुप रहने के बाद कुमार ने योगी से कहा, “मैं इस वनकन्या को जानता हूं। इसने हमारे साथ बड़ा भारी उपकार किया है और मैं इससे बहुत कुछ वादा भी कर चुका हूं, लेकिन मेरा वह वादा बिना कुमारी चंद्रकान्ता के मिले पूरा नहीं हो सकता। देखिये इसी खत में, जो आपने दी है, क्या शर्त है? खुद इन्होंने लिखा है कि 'मुझसे और कुमारी चंद्रकान्ता से एक ही दिन शादी हो'और इस बात को मैंने मंजूर किया है, पर जब कुमारी चंद्रकान्ता ही इस दुनिया से चली गयी, तब मैं किसी से ब्याह नहीं कर सकता, इकरार दोनों से एक साथ ही शादी करने का है।”
योगी - (वनकन्या की तरफ देखकर) क्यों रे, तू मुझे झूठा बनाया चाहती है?
वनकन्या - (हाथ जोड़कर) नहीं महाराज, मैं आपको कैसे झूठा बना सकती हूं? आप इनसे यह पूछें कि इन्होंने कैसे मालूम किया कि चंद्रकान्ता मर गई?
योगी - (कुमार से) कुछ सुना! यह लड़की क्या कहती है? तुमने कैसा जाना कि कुमारी चंद्रकान्ता मर गई है?
कुमार - (कुछ चौकन्ने होकर) क्या कुमारी जीती है?
योगी - जो मैं पूछता हूं, पहले उसका तो जवाब दे लो?
कुमार - पहले जब मैं इस खोह में आया था तब इस जगह मैंने कुमारी चंद्रकान्ता और चपला को देखा था, बल्कि बातचीत भी की थी। आज उन दोनों की जगह इन दो लाशों को देखने से मालूम हुआ कि ये दोनों...!(इतना कहा था कि गला भर आया।)
योगी - (तेजसिंह की तरफ देखकर) क्या तुम्हारी अक्ल भी चरने चली गई? इन दोनों लाशों को देखकर इतना न पहचान सके कि ये मर्दों की लाशें हैं या औरतों की? इनकी लंबाई और बनावट पर भी कुछ ख्याल न किया!
तेज - (घबड़ाकर तथा दोनों लाशों की तरफ गौर से देख और शर्माकर) मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने इन दोनों लाशों पर गौर नहीं किया, कुमार के साथ ही मैं भी घबड़ा गया। हकीकत में दोनों लाशें मर्दों की हैं, औरतों की नहीं।
योगी - ऐयारों से ऐसी भूल का होना कितने शर्म की बात है! इस जरा - सी भूल में कुमार की जान जा चुकी थी! (उंगली से इशारा करके) देखो उस तरफ उन दोनों पहाड़ियों के बीच में! इतना इशारा बहुत है, क्योंकि तुम इस तहखाने का हाल जानते हो, अपने ओस्ताद से सुन चुके हो।
तेजसिंह ने उस तरफ देखा, साथ ही टकटकी बंधा गयी। कुमार भी उसी तरफ देखने लगे, देवीसिंह और ज्योतिषीजी की निगाह भी उधर ही जा पड़ी। यकायक तेजसिंह घबड़ाकर बोले, “ओह, यह क्या हो गया?” तेजसिंह के इतना कहने से और भी सभी का ख्याल उसी तरफ चला गया।
कुछ देर बाद योगीजी से और बातचीत करने के लिए तेजसिंह उनकी तरफ घूमे मगर उनको न पाया, वनकन्या भी दिखाई न पड़ी, बल्कि यह भी मालूम न हुआ कि वे दोनों किस राह से आये थे और कब चले गये। जब तक वनकन्या और योगीजी यहां थे, उनके आने का रास्ता भी खुला हुआ था, दीवार में दरार मालूम पड़ती थी, जमीन फटी हुई दिखाई देती थी, मगर अब कहीं कुछ नहीं था।