चौरस्ते पर संवाद / सूर्यबाला

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विपरीत दिशाओं से आते दो राहगीर आमने-सामने मिल गए और इस प्रकार संवाद हुए-

पहलाः बहुत सुस्त दिखाई देते हो भाई, कैसे निकले?

दूसराः रोजी-रोटी की तलाश में निकला हूँ, इधर मिलेगी क्या?

पहलाः नहीं, इधर तो मेरा गांव है और वहाँ जबरदस्त सूखा पड़ा है, इसीलिए तो मैं भी निकला हूँ। उधर सामने की तरफ मिलेगी क्या?

(इस पर दूसरा राहगीर सुस्ती भूल ठठाकर हंस पड़ा।)

दूसराः खूब! अरे, इधर तो मेरा गांव है और वहाँ जबरदस्त बाढ़ आई हुई है।

पहलाः ओह! तब तो ढोर-डंगर सब बह गए होंगे, बड़ी वाही-तबाही मची होगी?

दूसराः सो तो है, पर हमने हेलिकॉप्टर भी तो देखे, ज़िन्दगी में पहली बार।

पहलाः अच्छा... अच्छा, खाना गिराने आए होंगे, हमने अखबारों में पढ़ा था।

दूसराः खाना तो सिर्फ़ एक बार ही गिराया गया था, लेकिन मुआयना कई बार किया गया न घूम-घूमकर। उसमें बड़ा मजा आया... हर घंटे-दो घंटे पर घुरघुराते हेलिकॉप्टर देखकर बड़ा मजा आता था, जैसे हेलिकॉप्टरों का कोई शिखर सम्मेलन होने जा रहा हो। वाह-वाह! क्या नजारा था!

पहलाः (चिढ़कर) हुंह, यह कौन-सी बड़ी बात है! सम्मेलन तो हमारे गांव में भी हुए थे-सूखाग्रस्त क्षेत्रों के नेताओं का गुटनिरपेक्ष सम्मेलन। वाह, क्या गहमा-गहमी थी! क्या नजारा, क्या समां क्या फिजां!

दूसराः ठहरो, क्या कहा तुमने? समां, नजारा और फिजां-इन शब्दों पर एक बढ़िया ट्यूनिंग सूझ रही है, गाऊँ क्या?

पहलाः गाओ भाई, गाओ! तुम्हें राष्ट्रीय गौरव गाने से रोकने वाला मैं कौन होता हूँ भला!

दूसराः (गाते हुए) याऽऽद आ गईं वह सम्मेलनी फिजाएँ...

यारो थाम लेना, थाम लेना-

यारो थाम लेना, थाम लेना-

मेरी बांऽऽहें।

(गाता-गाता दूसरा राहगीर पहले के ऊपर गिरने लगता है।)

पहलाः (सहानुभूति से) क्या कमजोरी बहुत ज़्यादा हो गई है?

दूसराः (जले-भुने स्वर में) लो, यह भी कोई पूछने की बात है! जैसे तुम्हें मालूम नहीं कि मेरे गांव में बाढ़ आई है। हफ्ते भर से कुछ खाया नहीं!

पहलाः तुम्हें हेलिकॉप्टरवाला खाना उचककर कैच कर लेना था।

दूसराः तुमसे कहा न, सिर्फ़ एक बार... उससे पेट भरता क्या?

पहलाः (कौतूहल से) तो क्या बाढ़ आने से पहले तुमने कभी भरपेट खाना खाया था?

दूसराः (हड़ककर) जैसे तुम अपने गांव में सूखा पड़ने से पहले पेट भर खाते थे?

पहलाः बिगड़ते क्यों हो भाई? अगर मैंने कहा होता कि मेरे गांव के सभी लोग भरपेट खाते हैं, तब तुम बिगड़ते तो कोई बात थी। मैं तो खुद ही भूखा हूँ। तुमसे पूछ-पूछकर अपने देश, अपने राष्ट्र को ज्यादा-से-ज्यादा समझने की कोशिश कर रहा हूँ। अब ठीक से जान गया कि जहाँ तक भूखे रहने का सवाल है, हम सब एक हैं।

(इस पर दोनों खुश होकर, थोड़ी देर तक, 'आवाज दो हम एक हैं-हम एक हैं' गाते रहे। गाते-गाते जब हलक सूखने लगे तो वार्तालाप फिर शुरू हुआ।)

दूसराः लेकिन एक बात है, रहने-बसने के लिए सूखाग्रस्त इलाके बाढ़ग्रस्त इलाकों से ज़्यादा बेहतर होते हैं।

पहलाः कैसे?

दूसराः वहाँ राहत काय पहुंचाने के लिए सड़कें जो होती हैं और मंत्रीजी के भी पांव-प्यादे 'दर्शन' हो जाते हैं।

पहलाः हाँ, सो तो हैं।

दूसराः सुना, इस बार मंत्रीजी ने खुद खाना परोसा?

पहलाः हाँ, परोसा तो।

दूसराः धन्य-धन्य, ऊधो विदुर घर जाई... ऊधो बिदुर घर जाई. अच्छा क्या परोसा?

पहलाः पूछो मत! परोसते तो बहुत कुछ, लेकिन बेचारे कुल डेढ़ दिन लेट पहुंचे। इधर राहतवाली खिचड़ी और लपसी बुसा गई.

दूसराः तुम्हारे गांव वालों का मुकद्दर खराब था, इतनी देर से खाना मिला तो बासी.

पहलाः लेकिन मंत्रीजी का 'दर्शन' ताजा मिल गया; सो सब तृप्त हो गए.

दूसराः चलो, अंत भला तो सब भला।

पहलाः नहीं, अंत तो गड़बड़ा गया। बासी खिचड़ी-लपसी खाकर बहुत सारे लोग मरणासन्न हो गए न! एक समस्या और खड़ी हुई.

दूसराः कैसी समस्या?

पहलाः समस्या यह कि लोगों को यही नहीं समझ में आ रहा था कि बासी खिचड़ी खाकर मरने वालों की संख्या को सूखे से मारनेवालों की संख्या में से घटाया जाए या जोड़ा जाए! कहो, थी ना विकट समस्या?

दूसराः अबे, तुम लोगों के घटाने-बढ़ाने से मरने वाले जिंदा हो जाएंगे क्या?

पहलाः अहमक हो तुम! ये उसूलवाली बातें हैं और उसूल कहता है कि आंकड़े हमेशा सही और सूत्र हमेशा विश्वस्त होने चाहिए.

दूसराः जैसे मैं जानता नहीं; लेकिन उसके लिए बस कमीशन बिठा देना था।

पहलाः सो तो बिठा भी दिया गया है, साल-दो साल में सही आंकड़े सामने आएंगे-ही-आएंगे।

दूसराः अच्छा, यह तो बताओ, रोटी-रोजी कमाने चलना है या यहीं बैठकर सही आंकड़ों का इंतजार करना है?

पहलाः चलना तो है ही, लेकिन किधर? एक तरफ तुम्हारे गांव में बाढ़ आई है और दूसरी तरफ मेरे गांव में सूखा पड़ा है। अब जाएँ तो जाएँ कहांऽऽ?

दूसराः अरे अहमक! इन दो ही दिशाओं में क्यों? चलो, दोनों मिलकर तीसरी दिशा में कमाने-खाने चलें।

पहलाः चलो।

(वे दोनों कुछ ही कदम चले होंगे कि तीसरी दिशा से बेतहाशा भागते आते एक आदमी ने उन्हें इशारा करते हुए चिल्लाकर रोका।)

तीसराः अरे, कहाँ जाते हो भाई, जान प्यारी है तो लौटो! लूट-पाट, दंगा मचा है, मैं जान बचाकर भागता हुआ आया हूँ।

पहलाः लेकिन तुम आए क्यों?

तीसराः रोजी-रोटी की तलाश में।

दूसराः एक से दो भले, दो से तीन। चलो ऐसा करते हैं, अब तीनों ही एक साथ चौथी दिशा की ओर चलते हैं, वहाँ रोजी-रोटी का डौल ज़रूर मिलेगा।

(इस पर तीनों सहमत हो गए और चौथी दिशा की ओर कूच कर गए. वे चलते गए, चलते गए, जब कि चौथी सीमा पर उन्हें एक तख्ती लटकी दिखाई नहीं दे गई. तीनों ने साफ-साफ एक-दूसरे से पढ़वाया। तख्ती पर लिखा था-'सुख-शांति और सामान्य जनजीवन बरकरार रखने के लिए-कर्फ्यू!'

अभी वे तीनों पढ़ ही रहे थे कि कर्फ्यूग्रस्त इलाके में तीन व्यक्तियों के एक साथ निकल पड़ने के जुर्म में पुलिसवाले उनकी ओर बंदूक के कुंदे लेकर झपटे। वे तीनों बेतहाशा भागे और वापस उसी जगह पर लौट आए जहाँ से चले थे। थोड़ी देर तक तो वे बेतहाशा भागने की वजह से हांफते रहे, फिर पुलिस के कुंदे से सही-सलामत वापस लौट आने की खुशी में वे तीनों खुश होकर गाले लगे।)

हम उस देश के वासी हैं... हम उस देश के वासी हैं... जिस देश में...