च्यानण पख / डॉ. मदनगोपाल लढ़ा / कथेसर

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: जनवरी-मार्च 2012  

09 दिसम्बर 2010

म्हैं भोत राजी हूं आज। म्हारो हरख गैर वाजब ई कोनी। तारानगर सूं हामळ रो फोन आंवता ई आखै घर री चिंता मिटगी। जद सूं बै म्हनैं देख'र गया है, सगळा बां रै उथळै नै अडीकै हा। भाईजी मूंडै सूं तो कीं कोनी कैयो, पण बां रै लिलाड़ माथै चिंता री लकीरां पड़तख दीसै ही। अेक बरस सूं बेसी हुग्यो। भाजा-न्हाठी करतां भाईजी ई नीं, मोटोड़ा बनैईजी, दिनेश मामो, मंजू भुआ अर बीजा कई लोग म्हारै सारू लायक वर सोधण में लाग्योड़ा हा। आ ई कोनी कै सगपण आया कोनी। दसूं रिस्ता आया हुवैला। साल खण्ड में। तीन-चार छोरा तो म्हनैं देख भळै गया। पण कठै ई घर कोनी जच्यो तो कठै ई वर। अेक-दो ठीक लाग्या, पण बां रै म्हैं दाय कोनी आई का बै मोटो मूंडो फाड़ै हा, इण सारू टाळ हुयगी। कदी-कदी तो म्हनैं लागतो कै आ भणाई म्हारै सारू अदै बणगी। छोरी अेम.अे पास तो छोरो बी.अे. तो हुवणो ई चाइजै। म्हारै समाज में छोरां खंनै भणाई रो बगत कठै ? छोरा स्कूल जांवता-जांवता ई गैणां घड़णो सीख जावै।

भाईजी री बीजी कई सरतां ही। जिंयां कै, बा'र गाम में छोरी कोनी देवणी। छोरो सरकारू का निजू नौकरी में हुवणो चाइजै। बां रै मुजब पढ़ी-लिखी छोरी सागै सुनारी रो काम करणियां छोरां री जोड़ी कोनी जमै। छोरै रो परिवार छोटो हुवै तो ठीक रैवै। छोरी न तो खेत जावैला अर नीं डांगर-ढोर अर गोबर-भारी रो काम करैला। दायजो देवैला, पण बूथै सारू, बेहिसाब खरचै री बां री सरधा कोनी।

घर में लगै-टगै रोज आ गाथा छिड़ती अर म्हैं मून धार्यां आडी-ओली होयबो करती। म्हैं भाईजी, भुजाई अर मा री बातां सुणबो करती, बोलती कीं कोनी। बोलूं ई के ? ईं सारू सोचती रैवती। अंतस री अंधेरी सुरंग में बड़ती-निकळती। मन री पाटी माथै लीक-लकोळिया मांडती-ढोंवती। इण रोळै सूं आंतरै सारू ई म्हैं अेक निजू स्कूल में भणावण लागगी। पगार भलांई कम मिलो, पण भणाई-लिखाई में बिलमणै सूं दिन सोखा कटण लागग्या। फेर घर खरचै में कीं सारो तो लागै ई हो।

पण आज, आज म्हैं राजी हूं। राजी होवण रो कारण खुद सूं बेसी घरवाळा री चिन्ता मिटणो है। जीसा कैया करता, कै 'म्हारी लाडकवंर सारू सरकारू कर्मचारी ई ढूंढसूं।' सरकारी तो कोनी, पण भाईजी जयपुर री अेक निजू कंपनी में अकाउंटेट सोध लियो। अबै घर-वर कैड़ो होसी, आ तो बगत ई बतासी।


18 दिसम्बर 2010

आज पैली बेळा 'बां' सूं बात हुई। मोबाइल रै जरियै। संजू भाभी रो पी'र म्हारै सासरै खंनै है तारानगर में। बै मिल'र आया बां सूं अर मोबाइल नम्बर भळै ल्याया। म्हैं संकती-सी फोन मिलायो। सगाई री बेळा तो फगत बां रो मूंडो जोयो। बात तो आज फोन सूं। म्हारा तो बोल कोनी नीसरै हा। दस मिंट री बात में बां सत्तर सुवाल पूछ लिया। अब के-के बतावूं? 'हॉबी के है? गाभा-लत्ता कैड़ा चोखा लागै? स्कूल में कित्ती पगार मिलै? आद-आद।' अेक महीना पछै बा जयपुर सूं आवणै री बात कैयी अर मिलणै री मनसा बताई। म्हैं भळै ई हां-हूं सूं काम चलांवती रैयी। फोन मिलावणै सूं पैली कित्ता सुवाल म्हारै मन-मगजी में गेड़ा काटै हा पण बात करती वेळा जाणै कंठ ई चिपग्या। कीं कोनी पूछ सकी। फोन छोड्यां पछै भाभी रो माथो खांवती रैयी। बै जयपुर में कठै रेवै ? रोटी कठै जीमै? गाभा कुण धोवै? बांरी रूचि, नौकरी अर नीं जाणै कांई-कांई...। भाभी चिडग़ी, 'म्हनैं के ठाह? बींनै ई पूछ लेवती।'

अबै तो बांरा नम्बर म्हारै खनै है। फेर बात कर लेसूं। सुवारै का परसूं ....।


29 दिसम्बर 2010

दिनूगै नौ बजी दरूजै री कुण्डी बाजी। भाईजी बारणो खोल्यो। कोरियर वाळो छोरो हाथ में अेक डब्बो लियां ऊभो हो। 'विमला री डाक है।' बण कैयो तो भाईजी म्हनैं हेलो कर'र न्हावण बड़ग्या। म्हैं कमरै में आय'र डब्बो खोल्यो। अेक नूंवो चमचमावतो मोबाइल म्हारै हाथ में हो। सागै 'हैप्पी न्यू ईयर' रो रंगील कारड भळै। म्हारै हरख रो छेह कोनी। मोबाइल लियां पछै भाईजी घरवाळो फोन कटवा दियो। दिन में भाईजी काम पर जावै अर म्हैं स्कूल। भोर में अर आथण भाईजी रै साम्हीं 'बां' सूं बात करतां म्हनैं ई संको आवै। संजू भाभी रो घर लारली गळी में है, बां खनै रोज जावणो ई ओपै कोनी। तनखा सूं मोबाइल खरीदण री बात ई म्हारै भोगै कोनी खावै। आज 'बां' म्हारै सारू नूंवो मोबाइल भेज दियो सिम सागै। अब जद मरजी बात हुवैला। म्हारी मुळक भुजाई सूं छानी कोनी रैयी। बां म्हनैं छेड़तां कैयो, 'सगाई होंवता ई मोबाइल तो ब्याह पछै कांई देवैला जीजोजी?' थारा भाई तो अजै म्हनैं आपरै मोबाइल रै ई हाथ कोनी लगावण देवै।'

म्हैं भुजाई री बात रै उथळै री ठौड़ मून रैवणो ई ठीक समझ्यो। आथण मोबाइल री घंटी बाजी। डागळै म्हनैं 'बां' सूं बंतळ करतां जोय'र चांद ई सदां नांव बेसी पळकै हो।


04 जनवरी 2010

आज सुबै मोबाइल री टीं....टीं....सूं आंख खुली। देख्यो तो अेक 'संदेस' आयोड़ो हो, बांरो। बांचण खातर 'रीड' रो बटण दबायो।

'भूलने वाले हमें भूल जाते हैं
दिल से उनके हम निकल जाते हैं
जब तक हम ना याद करें किसी को
तब तक हम कहाँ किसी को याद आते हैं?'

संदेस बांच'र म्हारै मूंडै मुळक सांचरगी। हियै री कळी-कळी खिलगी। म्हैं ई अेक 'संदेश' लिख'र भेज दियो-

'ये हसीं यादों का खूबसूरत नाता है
जो बिना किसी शर्त के निभाया जाता है
रहें हम दूर तो क्या हुआ
याद जुबाँ से नहीं दिल से किया जाता है।'

बां मिस कॉल सूं पूग दे दी।

आजकाळै आठूं पौर इंयां ई चालै। रात नै म्हैं बांनै 'गुड-नाईट' रो 'संदेस' भेज'र सोवूं तो सुबै बांरो 'संदेस' म्हनैं जगावै। दिन में दो-तीन बार तो बात हुयां ई सरै। 'मिस्ड कॉल' तो चाल ई-बो करै। केई बार तो संदेस री मारफत ई बातां हुवै।

बात ई कांई-कांई। खुद री अर पारकी। घर री अर स्कूल री। भूत, वर्तमान अर भविस री। भोर सूं लेय'र रात तांई री चूकती गाथा अेक-दूजै नै सुणाइजै। बात निवड़णै में कोनी आवै। हाथ में राखूं इण खुणखुणियै नै। सोवूं जद सिराणै। तकनीक रै बल दो दिल कोसां रो आंतरो डाक'र सागै ई रैवै।

अबै तो उण घड़ी री उडीक है जद ओ आंतरो ई मिट जावैला! इण ख्याल सूं म्हारो मन मेह में मोर ज्यूं घेर-घुमेर नांचण ढूकै।

09 जनवरी 2011

आज दिनूगै सूं जीव आकळ-बाकळ है। सुबै जद बांरो फोन आयो, कित्तै चाव सूं उठायो म्हैं। पण बात कर्यां पछै मोबाइल राखणो मुस्कल हुग्यो। कई ताळ सूनी-सी बैठी रैयी अेकळी। बात ई अैड़ी करी बां।

ओ तो म्हनै पैलां ई ठाह पड़ग्यो कै म्हारी अध्यापकी बांनै दाय कोनी। पण आज बांरी भाषा साव दूजी ही। बांरा बोल अजैं म्हारी मन-मगज में गूंजै हा। 'कित्ता रिपिया मिलै थनै स्कूल में? फगत च्यार हजार! कांई जरूरत है नौकरी री? ब्याह पछै तो बियां ई काम कोनी करणो पण म्हैं चावूं कै थूं अबै ई स्कूल छोड़ दे।'

बै भळै ई कोनी ढब्या अर नीं म्हारी बात सुणी।

'मोट्यारां री कमाई सूं ई घर चालै। लुगायां तो घर में ई ओपै। जे भाईजी नै थारी पगार सूं ई मोह है तो म्हैं ब्याह तांई च्यार हजार रिपिया महीणो भेज देसूं।'

आं बोलां सूं दाह-सी लागगी म्हारै काळजै। म्हारो राम जाणै कै भाईजी कदी म्हनैं कमाई खातर कोनी कैयो। स्कूल में पढ़ावण रो फैसलो फगत म्हारो हो। जीसा नै सौ बरस पूग्यां पछै भाईजी रै ऊपर आखै घर रो भार आग्यो पण बै कदी लारै कोनी सिरक्या। बां मोटोड़ा बाई नै परणायी अर म्हनैं ई पढ़ाई। अबै म्हारै अेढै सारू सुंवाज में लाग्योड़ा है।

पंडत म्हारी कुंडली तो मिलाली पण विचारां रो ओ आंतरो कींकर मिलैला? सुवालां रा कांटा गडण लागग्या तो म्हारै नैणां री पाळ तूटगी। स्यात डायरी नै आपरी पीड़ बतायां कीं सोराई मिलै।

18 जनवरी 2011

'म्हैं थनै साफ-साफ कैवणो चावूं कै म्हनैं अैड़ी बातां दाय कोनी। कांई जरूरत है थंनै 'सोसल नेटवर्क' री। बांरा बोल सुण'र म्हनैं झटको-सो लाग्यो।

म्हारी 'फ्रेण्ड रिक्वेस्ट' री अैड़ै उथळै री दर ई उम्मीद कोनी ही म्हनैं।

स्कूल री 'कम्प्यूटर लैब' में इंटरनेट री सुविधा है। म्हारै स्टाफ रा लोग सुभीता सूं नेट रो उपयोग करै। स्कूल में लगै-टगै सगळा जणां सोसल नेटवर्किंग साइट 'फेसबुक' सूं जुड़्योड़ा है। तकनीक री दुनियां में 'फेसबुक' गांव री गुवाड़ दांई है, जठै आठूं पौर गुरबत चालै। दूजां नै देख'र म्हैं ई 'फेसबुक' माथै खातो बणा लियो। अर सबसूं पैलां बांनै ई सोध्या। बांरी फोटू देख'र म्हारै हरख रो छेह नीं! म्हैं म्हारै मनां-गनां बां पै 'सरप्राईज' करणै री मनसा सूं 'फ्रेण्ड रिक्वेस्ट' भेजी अर घणै उछाव सूं उथळो अडीकै ही। दिन छिप्यां बांरो उथळो आयो पण 'फेसबुक' नी मोबाइल माथै। अेकर तो म्हनै बिसवास ई कोनी हुयो कै अै बांरा बोल है।

'भला घरां री छोर्यां नै अैड़ा काम ओपै कोनी। फालतू लोगां रो काम है ओ।'

पण बै आ कोनी बताई कै खुद 'फेसबुक' माथै क्यूं है।

म्हारी सिंझ्या तो बिगड़णी ही।

03 फरवरी 2011

रात रा साढी इग्यारै बज रैया है पण नींद नेड़ै-तेड़ै ई कोनी। इण रो कारण मन री दोघाचींती है जकी कई दिनां सूं म्हारै जी नै आकळ-बाकळ कर राख्यो है। बारै सूं सो कीं सांयत दीसै पण म्हारै अंतस री घरळ-मरळ अबै तूफान रो रूप धारती लखावै। इण जुद्ध में फगत म्हैं जूझूं, बीजो कोई सागै कोनी। साथण है तो फगत म्हारी डायरी।

लुगाई री जिनगाणी ई अजब हुवै। ठौड़-ठौड़ समझौता करणां पड़ै उणनै। सुपनां देखण रो ई हक कोनी उणनै। सुपनां अर सांच में जमीन-आभै रो आंतरो हुवै। सांची कैवै पंकज बिष्ट, अैड़ा सुपनां देखणां ई नीं चाइजै, जका बाद में दुख रा कारण बणै।

कई बार सोचूं कै जाड़ भींच'र धिकावणै में ई सार है। बगत परवाण सो कीं ठीक हुय जावैला। घरवाळा नै भळै तंग कोनी करणो चावूं म्हैं।

पण छेकड़ कद तांई धिकैला इण ढाळै। सुवाल दो-च्यार दिनां रो कोनी, आखी उमर रो है। सोच रो अैड़ो संकड़ैलो कांई ठाह भविस में कैड़ा रंग दिखाळै। म्हनैं म्हारा सुपना, बिना पाणी मछली दांई तडफ़ड़ांवता दीसै।

इण दोघाचींती रै कारण म्हारी सगाई अर भावी दांपत्य जीवण रो सगळो उछाह छांई-मांई हुग्यो। अेक अणजाण डर कांई ठाह कींकर म्हारै मन में आय'र बैठग्यो।

पण आज, अमावस री इण काळी अंधारी रात में, म्हैं म्हारै पूरै चेतै में, सगपण री इण डोर नै तोड़णै रो फैसलो करूं। म्हारा गैला न्यारा है, जका मिल कोनी सकै। इण गेलै अेकली चालणो मंजूर, पण आपरै हाथां सुपनां रो कंठ, म्हारै सूं को मोसीजै नीं।

भींत माथै टंग्योड़ी घड़ी बारै बजणै रो हेलो कर्यो।

तिथ बदळगी अर च्यानण पख लागग्यो।