छः बाई चार / अलका प्रमोद
आहना स्कूल के बाहर प्रतीक्षा कर रही थी। डेढ़ बजते ही स्कूल का गेट खुला और बच्चे शोर मचाते दौड़ते ऐसे निकले जैसे किसी कैद से छुटकारा मिला हो। आहना की दृष्टि बेचैन हो कर हर बच्चे में व्योम को ढूंढ रही थी। यह नित्य का क्रम था फिर भी आहना रोज ही उतनी ही व्यग्रता से व्योम को ढूंढती थी। आज कुछ ज्याादा ही देर हो रही थी व्योम को बाहर आने में। तभी वयोम दिखाई पड़ा तो आहना उसकी ओर लपकी। उसने देखा आज व्योम कुछ बुझा बुझा-सा लग रहा है। उसने तुरंत उसके सिर पर हाथ रखा पर गनीमत है बुखार नहीं था, उसने चैन की सांस ली तब से व्योम बीमार हुआ है, हर क्षण उसे खटका लगा रहता है कि उसे कुछ हो न जाये।
व्योम ने रास्ते में पूछा"ममा क्या मुझे बहुत बुरी बीमारी है?"
आहना का दिल धक् से हो गया"नहीं क्यों किसने कहा?"
मम्मा रीना मैम कह रही थीं कि तुमहे ये बीमारी कब से है तुम्हारे मम्मी पापा को ऐसे में तुम्हे स्कूल नहीं भेजना चाहिए था।
फिर बोला ममा बताओ मुझे क्या हुआ है?
आहना ने उसे गले से लगा लिया और कहा कुछ नही।
घर आ कर आहना ने व्योम की कापी देखी तो उसमें रीना मैम ने लिखा था कि तुरंत ही व्योम के माता पिता प्रिंसिपल से आ कर मिलें।
शाम को शिरीष ने सुना तो उसे भी आने वाले तूफान की अनुभूति हो गई
अगले दिन प्रिंसिपल श्रीमती विश्वास से मिला तो उन्होने कहा"मझे दुख है कि आपके बेटे को ऐसी बीमारी हुई पर अब हम उसे स्कूल में नहीं रख सकते"
पर डाक्टर यह बीमारी छूने या साथ खाने से तो नहीं फैलती फिर...
कुछ भी होे अगर दूसरे बच्चों के माता पिता को पता चल गया तो हमारे स्कूल की रेपुटेशन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा इस लिये हम यह जोखिम नहीं उठा सकते।
आहना और शिरीष ने अनेक तर्क दिये डाक्टर की ओर से भी लिखित आश्वासन देने का
प्रस्ताव रखा पर श्रीमती विश्वास टस से मस न हुईं।
दूसरे दिन व्योम पार्क से शीघ्र ही लौट आया और चुप चाप बैठ गया आहना ने देखा तो पूछा क्या हुआ बेटा आज बड़ी जल्दी खेल खतम हो गया 'जब व्योम कुछ नहीं बोला तो आहना ने दृष्टि उठा कर देखा तो पाया उसकी आंखे लाल हो रही हैं और वह सुबक रहा है। आहना ने पूछा"क्या हुआ बेटा?"
, तो उसने बताया"मम्मा मायना हमारी बेस्ट फ्रेंड है लेकिन आज उसने हमारे साथ नहीं खेला। आज मनु के साथ खेल रही थी वह कह रही थी कि उसकी मम्मी ने कहा है कि तुम व्योम से दूर रहो उसको बहुत खराब बीमारी है।
"मम्मी अब मुझसे कोई नहीं खेलेगा मैं स्कूल भी नहीं जा पाउंगा"
"मम्मी क्या मैं मरने वाला हूँ"?
आहना ने व्योम के मुंह पर हाथ रख कर उसे भींच लिया
नही मेरे लाल भगवान तुझे मेरी उमर भी दे दे।
आहना का हदय मानो बैठ गया वयोम की बीमारी ही उसके हइय को व्यथित किये हुये थी उस पर से उस मासूम के मुंह से ऐसी बातें सुन कर उसके दुख का पारावार न रहा।
शाम को शिरीष आये तो आहना ने सारी कहानी बतायी इस दोहरी मार से दोनो पति पत्नी की नींद उड़ गई.
आहना ने कहा ईश्वर के घर भी अंधेर है अपराध िकसी ने किया और दंड मेरा मासूम बच्चा भुगत रहा है
मन तो करता है कि उस पापी को ढूुंढ कर सीधे फांसी के तख्ते पर चढ़ा दूं जिसने पुरानी सिरिंज को नये पैकेट में बेवा और मेरालाल उस सुई को लगवा कर जान लेवा रोग का शिकार हो गया कहते कहते शिरीष का गला रुंध गया।
आहना ने कहा शिरीष यह तो हमने सोचा ही नहीं कि हमें उस पापी को सजा दिलवानी चाहिए
तुम क्या समझती हो ये सब इतना सरल है अरे हम अपने बेटे का इलाज करले उसे ही बचा लूं इतना ही बहुत है
पर ऐसे तो न जाने कितने मासूम इसकी बलि चढ़ जाएंगे
अरे हम अपनी देखें कि और सबकी
व्योम दिन पर दिन कमजोर होता जा रहा था शरीर से अधिक वह सबके व्यवहार से दुखी था
डाक्टर कुछ कहें भले न पर उनकी प्रतिक्रिया व्योम के हाल बता रही थी। आहना और शिरीष पागलों की तरह जिस किसी भी डाक्टर के बारे में पता चलता दैोड़ जाते, कभी भी तंत्र मंत्र और बाबा आदि में विश्वास न करने वाले शिरीष अब तो घर में काम करने वाली बाई के बताये बाबा अघोरी के पंाव भी पड़ आये थे। पर कोई दवा और दुआ व्योम की गिरती हालत में सुधार नहीं ला पा रहा था।
उसे जुकाम हो गया दवा कोई असर ही नहीं कर रही थी। रात कोे उसका ज्वर काफी तेज हो गया नींद में वह बड़बड़ा रहा था"नहीं मझेे भी खिला लो अपने साथ... मुझे स्कूल जाना है मम्मी मुझे पढ़ना है... मेरे एक्जाम्स हैं... आप कहती है न पढ़ लिख कर मुझे डाक्टर बनना है..."।
मायना प्लीज मुझसे खेल लो प्र्रामिस मैं तुम्हे कभी नहीं चिढ़ाऊंगा...मम्मी उससे कह दो मैें अपने सारे खिलौने भी उसे दूंगा"आहना से बर्दाश्त नहीं हो रहा था, वह शिरीष के कंधे पर सिर रख कर फूटफूट कर रो पड़ी शिरीष भी क्या कहता वह स्वयं भी रो रहा था। दोनो रात भर जागते रहे कोई किसी से बोल नहीं रहा था पर दोनो मन नहीं मन रो रहे थे।
सुबह शिरीष ने एक आवेदन पत्र लिखा और सूचना के अधिकार के तहत उस अस्पताल से पूछा कि वहाँ जो इनजेक्शन लगते हें वह किससे खरीदे जाते हैं और क्या उस कम्पनी की सिरिंज टेस्ट की जाती हैं?
कम्पनी का नाम पता चलने पर उसने उनके विरुद्ध केस दायर कर दिया। चार दिनों में ही उस कम्पनी का एक आदमी शिरीष से मिलने आया
उसने कहा"हमने सुना है कि आप ने उजाला अस्पताल को सिरिंज सप्लाई करने वाही कम्पनी के बारे में पूछताछ की है"।
"हंा की है तो आपको कैसे पता"?
"देखिये हम उसी कम्पनी से आये है मुझे आपके बेटे की बीमारी के बारे में पता चला मुझे दुख है, पर वह तो इत्तेफाक था इतने लोगों को रोज इन्जेक्शन लगता है कोई सब को एड्स तो नहीं हो जाता न पर फिर भी हम आपको उसका मुआवजा देने को तैयार हैं, हम आपके बेटे के इलाज का पूरा खर्च उठा लेंगे"।
यह सुन कर शिरीष के क्रोध का पारावार न रहा उसने कहा "आप जानते हे जिस बात को आप इतनी लाइटली ले रहे है वह किसी के लिये कितनी बड़ी है"।
"हां पर ऐसे हादसे तो होते रहते हैं वह तो हम आपकी मदद कर रहे हैं"।
"आप हमारी मदद नहीं कर रहे, वरन अपने अपराध का दबाने के लिये हमें घूस दे रहे हैं"।
"देखिये आप हमारी शराफत का ग़लत मतलब निकाल रहे है वरना हमारी पहुंच बुहत ऊपर तक है"।
"तो आप लोग लोगों की जान लेते रहेंगे और कोई आपका कुछ नहीं कर पाएगा"।
"तो ठीक है जो करना हो कर लीजिये"।
"हम तो आप से शान्ति से समझौता करने को कह रहे है पर आप को नहीं समझ में आ रहा तो जो करना हो कर लीजिये"और वह वहाँ से चला गया।
शिरीष ने ठान ली कि उसके बेटे को मौत के मुह में ढकेलने वालों को वह छोड़ेगा नही। उसने सीधे प्रेस वालों से समपर्क किया मीडिया के सहयोग से बात ने तूल पकड़ लिया कम्पनी की जांच शुरु हो गई. कई महत्त्वपूर्ण लोगों के उसमें शामिल होने के सुराग मिले पर सिद्ध करना आसान न था
कुछ दिनों तक यह समाचार, समाचार-पत्रों की सुर्खियां बनता रहा फिर पत्रों को और मसालेदार नई खबरें मिल गईं और यह समाचार अतीत बन गया बस शिरीष जूते चटकाता रहा।
उससे जिन लोंगों ने व्योम के इलाज की पेशकश की थी अब वह धमकी पर उतर आये थे। एक ओर व्योम की दिन पर दिन गिरती हालत उसका इलाज और दूसरी ओर केस में लिप्त लोगों की धमकियां। वह पूरी तरह टूट चुका था। अचानक व्योम की हालत अधिक बिगड़ गई और डाक्टरों के अथक प्रयास के बाद भी वह बच नहीं पाया।
व्योम आहना को बिलखता छोड़ कर गाड़ी में अपने हदय के टुकड़े को अंतिम यात्रा पर ले जा रहा था कि गाड़ी रुक गई, ड्राइवर ने बताया
"साहब सड़क पर जाम है दूसरे रास्ते से चलना पड़ेगा"।
"क्यों इतना जाम कैसे हो गया?"
अरे साहब बड़े लोगों की बात है अजय भदौरिया के बेटे की शादी है तो बारात में वीआईपी आये है वही निकल रहे हें
अंतिम यात्रा के लिये गाड़ी ने राह बदल दी थी।
या
दूसरे दिन शिरष ने व्योम को श्रद्धंजलि के लिये समाचार पत्र में शेक संदेश दिया था जब उसने समाचार पत्र का पृष्ठ खोला तो नीचे एक कोने में व्योम का चित्र और संदेश था और उसी पृष्ठ के उपर अजय भदौरिया का एक संस्था के चरा सामाजिक कार्यों के लिये दिये गये पुरस्कार को लेते हुए एक छः बाई चार आकार का चित्र छपा था।