छतरी / एक्वेरियम / ममता व्यास

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे आजतक समझ नहीं आया लोग छतरी क्यों लगाते हैं? बरसात से बचने के लिए न? लेकिन मैंने हमेशा देखा है छतरी के बावजूद भी लोग भीग जाते हैं।

मुझे अजीब-सी हैरानी होती है जब मूसलाधार बरसात का सामना एक छोटी-सी छतरी करती है। कभी हवा में उड़ जाती है कभी टूट जाती है, लेकिन लोग फिर भी हमेशा अपने साथ रंगबिरंगी छतरियाँ रखते हैं।

कभी-कभी लगता है खुद को सुरक्षित रखने की ग्रंथि के चलते वह हमेशा छतरी लेकर चलते है। जबकि वे जानते हैं कि वे ज़रूर भीगने वाले हैं और छतरी के बाद भी सुरक्षित रहेंगे इसमें भी तो संदेह रहता है, फिर भी बड़ी शान से लिए फिरते हैं।

सदियों से बारिशें छतरी को भिगोती आ रही हैं। छतरी आज तक अपने ऊपर एक भी बूंद ठहरने नहीं देती। दोनों ही जिद्दी लगती हैं मुझे छतरी भी और बारिश भी। एक को भिगोने की जिद तो दूसरे को सूखने की अकड़।

मुझे जब-जब भी वह मिला अक्सर बरसात में या तेज धूप में ही मिला और छतरी लगाये ही मिला।

ये छतरी कभी उसका मुखौटा बन जाती, कहीं नकाब, कभी देह, कभी उसका ईगो और इस तरह वह हमेशा खुद को बचा ले जाता।

मैं हमेशा से चाहती थी वह जब भी मिले छतरी घर पर ही किसी खूंटी पर टांग आये और उस दिन खूब बरसात हो।

कौन जाने छतरियों के बुलाने से बारिश आती है या बारिश की पुकार पर छतरी घर से बाहर निकलती है।