छन्द-साधना की अनुपम कृति / शिवजी श्रीवास्तव
छन्द-विधान एवं सृजन: रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' , प्रथम संस्करण: 2022, मूल्य-220₹, प्रकाशक-अयन प्रकाशन, जे-19 / 39 राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059
कविता की गेयता और लयबद्धता ही उसे दीर्घजीवी और जन-जन के कंठों की शोभा बनाती है, कविता में यह गुण 'छंद' से आता है। छन्दों का ज्ञान कराने हेतु संस्कृत साहित्य में अनेक पिङ्गल ग्रंथों की रचना की गई। हिन्दी में भी छन्द-शास्त्र पर ग्रंथ लेखन की परंपरा जारी रही। वर्तमान में भी अधिकारी विद्वानों द्वारा इस विषय पर सतत लेखन हो रहा है, इसी परम्परा में प्रख्यात साहित्यकार रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' द्वारा रचित 'छन्द-विधान एवं सृजन' एक महत्त्वपूर्ण कृति है। इस कृति में श्री हिमांशु जी ने परम्परागत प्रसिद्ध भारतीय छन्दों के साथ ही पिछले कुछ दशकों में तेजी से लोकप्रिय हुए जापानी छन्दों-हाइकु, ताँका, सेदोका और चोका जैसे छन्दों की रचना-प्रक्रिया से भी अवगत कराया है। वस्तुतः छन्द-विधान एक गणित है, गणित को सरल ढंग से समझाना श्रेष्ठ गुरु द्वारा ही सम्भव है। यह कार्य हिमांशु जी ने बहुत सुंदर ढंग से किया है।
कृति में दो अध्याय हैं-1.छन्द-विधान (प्रवेश) एवं2-छन्द-विधान (विस्तार) । प्रथम अध्याय प्रवेश के अंर्तगत 'छन्द की आवश्यकता' में वे स्पष्ट कहते हैं-'मेरा मत है-यदि काव्य की आवश्यकता है, तो छन्द की भी आवश्यकता है, निराला जैसे छन्द के बन्धन को तोड़ने वाले दिग्गज छन्द के ही नहीं संगीत के भी जानकार थे।' उन्होंने अज्ञेय जी के वक्तव्य द्वारा स्पष्ट किया कि प्रयोगवादी कवियों ने भी छन्द एवं कविता की आंतरिक लय को सुरक्षित रखा, किंतु वर्तमान में छन्दों से मुक्ति के नाम पर कविता रचने वाले अनेक कवि कविता के इस गुण की उपेक्षा करते हैं।
'हिमांशु' जी ने छन्द को बहुत ही सरल ढंग से परिभाषित किया है-'छन्द वर्ण, मात्रा के साथ यति, गति, लय के अनुशासन का वह सार्थक संयोजन है, जो भावानुभूति को अभिव्यक्ति प्रदान करता है।' इसी के साथ मात्रा, यति और गति का अर्थ स्पष्ट करते हुए मात्रा की गणना करने की विधि, वर्णिक छन्दों में गण की आवश्यकता एवं गणों को सहज ढंग से समझाते हुए प्रमुख मात्रिक एवं वर्णिक छन्दों को सुगम उदाहरणों के साथ प्रस्तुत किया गया है। हिमांशु जी ने छन्दों के उदाहरणों के रूप में प्रसिद्ध कवियों को ही उद्धृत नहीं किया, अपितु सर्वथा नए कवियों की कविताएँ भी सम्मिलित की हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि आज भी अनेक कवि छन्द रचना के प्रति सजग हैं।
कृति का दूसरा अध्याय-छन्द-विधान (विस्तार) कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। इस अध्याय में कविता के रूप-विन्यास की विशद चर्चा की गई है। लेखक की दृष्टि में छंद रहित कविता का जीवन क्षणिक होता है, अतः काव्य के चिरस्थायित्व हेतु छन्द आवश्यक है। छन्द के साथ ही यति, गति, बलाघात, अन्तर्यति की समझ भी अनिवार्य है, इनके अभाव में मात्रा-गणना ठीक होने उपरांत भी पद में या तो कवित्त्व का अभाव रहता है या कविता दोषपूर्ण हो जाती है। इस दोष से बचने हेतु'पद-विन्यास', 'अर्थ-विन्यास', 'विशिष्ट शब्द-प्रयोग', 'तुकान्तता में सावधानी', 'उच्चारण और मात्रा' शीर्षकों केअंतर्गत काव्य-रचना की बारीकियों को उदाहरणों द्वारा समझाया गया है।
प्रायः नए अभ्यासी मात्रा गणना तो सही रखते हैं; फिर भी छन्द त्रुटिपूर्ण रहता है, उसका कारण होता है लघु-गुरु के क्रम का ध्यान न रखना। ऐसे अभ्यासियों को समझने के लिए इस अध्याय में 'छन्द विचार' और 'छन्द-बोध' के अंर्तगत समान मात्राओं वाले छन्दों को लेकर उनके मध्य के सूक्ष्म अंतर को स्पष्ट किया गया है, उदाहरणार्थ 'पद्धरि छन्द' और 'चौपाई' दोनों में ही 16-16 मात्राओं के चार चरण होते हैं; पर दोनों में जो सूक्ष्म अंतर है उसे नए अभ्यासियों को समझना आवश्यक है। यथा-
चुपचाप खड़ी थी वृक्ष पाँत। सुनती जैसे कुछ निजी बात॥
उसमें से उठता गन्ध धूम। श्रद्धा ने वह मुख लिया चूम॥
16-16 मात्राओं के चरणों वाला यह छन्द चौपाई क्यों नहीं है? ये प्रश्न करके लेखक ने उत्तर भी दिया है-'चौपाई के चरणान्त में दो लघु या एक गुरु जरूर होता है। दो गुरु भी हो सकते हैं। यहाँ चरणान्त में गुरु-लघु है जिसका चौपाई में निषेध है।'
इतना ही नहीं इसके पश्चात ही 'छन्द-बोध' के अंतर्गत छन्द के शब्दों का क्रम बदलकर स्पष्ट किया कि मात्राएँ पूर्ण होने पर भी त्रुटि कहाँ हो सकती है। इस प्रकार के अनेक छन्दों के सही स्वरूप को उदाहरणों द्वारा समझाया गया है, निःसन्देह इस विधि से समझने पर छन्दों के अध्येताओं को कोई भ्रम नहीं रहेगा और वे उसके सही स्वरूप को समझ सकेंगे।
इस अध्याय में 'छन्द-अभ्यास' के अंतर्गत दिए हुए छन्दों को पढ़कर उनमें सही छन्द या त्रुटिपूर्ण छन्द की पहचान करके उन्हें कारण सहित स्पष्ट करना है। यह अभ्यास काव्य-प्रेमी / जिज्ञासुओं को काव्य-रचना हेतु सजग दृष्टि प्रदान करेगा। यह अभ्यास कार्य जापानी छन्दों के विवेचन के पश्चात भी दिया गया है। निःसन्देह छन्द सीखने के इच्छुक काव्यानुरागियों एवं छात्रों के लिए यह उपयोगी कृति है। इस संक्षिप्त कृति में हिमांशु जी ने छन्द-शास्त्र को जिस सहज ढंग से समझाया है वह अनुपमेय है। सहज भाषा-शैली और सरल उदाहरणों के माध्यम से छन्दों का ज्ञान देने वाली यह कृति छन्द सीखने वालों के लिए सहज-ग्राह्य एवं उपयोगी सिद्ध होगी।