छप्पर फाड़ी कॅ / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
पल्टन ठीक एक साल सताइस दिन के होय गेलै। बेटा केॅ तेल-काजर के साथ-साथ कनपट्टी में टेम्हों लगाय केॅ कौशल्या जीबू के गोदी में देॅकेॅ कहलकै-हलॉ आपनोॅ दूलरूआ केॅ। जीबू लेलकै तैॅ सही मतर जी दाबी कैॅ कहलकै-आय सनीचरे दिन नूनू केॅ कथिलेॅ निकाल्हो। नजर-गुजर लागी जौतै तबैॅ की होतै। एकदम से खतमेॅ आदमी छो की? -नय हो हम्में खतम कहिनेॅ रहबोॅ, हमरा सब पता छै, माय छेकियै नी। लागै छै भूलाय गेल्होॅ, अहो! एक दिन सरंगी बाला बाबा, नूनू के कानबो सूनी केॅ अगरजानिए बोललोॅ रहै न कि कानै बाला बच्चा बड़ा होनहार होथौन लक्ष्मी। सात महीना तॉय ग्रह-गोचर सतैथौन ओकर बाद सब बमबम। -हों-हों! असल तोरा लक्ष्मी जे कही देलखैान नेॅ, तेॅ तोय फूली केॅ कुप्पा भैॅ गेल्हैॅ। अरे होकरा सेॅ पहिनेॅ तेेॅ कत्ते सरंगी बाला कत्ते बात कहलकै-कि होलै सब ठक्की कैॅ गेलै। होकरा फेरा मेॅ चर-चर गो बूतरू पार होय गेलो। -तोंय तेॅ जनानीयों सेॅ गेलो गुजरलो नॉकती लागै छोॅ हम्में माय छिकियै, डरै के हमरा चाही। मतर हम्में छाती ठोकी के कहै छीहौन कि आबेॅ हमरोॅ पलटन कॅ कुछ नै होतै। एक बात आरो आय सेॅ नूनू केॅ नाम पलटन नै पाण्डव रहतै आरो यहा कहो, नै तेॅ सब दिन हमरोॅ बेटा केॅ लोग पलटनमा कहतें रहतै। कौशल्या के बात नै काटेॅ पारलकै जीबू आरो पलटन पाण्डव बनी गेलै।
जीबू मेहनत मजूरी करी केॅ जिनगी के गाड़ी घींची रहलो छीलै। बाप-दादा के सिरकी रंग दस धूर धरती छेलै, जेकरा पेॅ मॉटी के घोर, फूस के छौनी-छप्पर। बीसुआ-पेॅ-बीसुआ बीतलो गेलै। पाण्डब केॅ स्कूल मेॅ भर्ती करैलकै। आपनें मूरूख रहै मतर बेटा के सिलेट-पिनसील, कोपी-कलम देनें गेलै। माय के बात सोलेॅ आना सच्चा साबित होलैै। पाण्डब बच्चे सें होनहार, करमैतो निकललै। स्कूल में सब दिन फस्ट, बड़का-बड़का बाप के बेटा केॅ पछाड़ी देलकै। आसन-भासन मेॅ बिबेकान्नद। जोंॅ लक्ष्मी मेहरवान रहथियै तेॅ जज, किलिट्टर बनथियै मतर मजबूरी मेॅ मास्टर बनी के माय-बाप के लाज राखी लेलकै। सौसें गाँव हल्ला होय गेलै कि जीबू के बेटा पाण्डव मास्टर बनी गेलै। आबे कौशल्या केे जिनगी निहाल होय जैतेै।
ढेर दिन के बाद मोटौॅ दरमाहा मिललै। माय-बाप के अरमान आरो टोला समाज के अनुमान एकदम सच्चा निकललै। गाँव के देवता-पित्तर कैॅ पूजी कैॅ छोटोॅ-छोटोॅ दू टा कोठरी आरो जे ज़रूरी बुझलकै पैखाना, भंसा बनाय कैॅ आगू में एगो पलानी गिराय लेलकै। ओसरा घेरी केॅ एगो केबाड़ी लगाय लेलकै। सीबू-कौशल्या बुझी गेलै कि आबेॅ बोर-बरतूहारी केॅ बैठाबै के जोगाड़ होय गेलै।
दुनियां के दस्तूर रहलो छै कि बेटा बाला केॅ बेटा, दौलत बाला केॅ दौलत, नौकरी बाला केॅ नौकरी मिलै छै। से जीबू के बेटा पाण्डव पर, बेटी के अमीर बाप बरतूहारी के जोगार बान्हें लागलै। जीबू आपनेॅ एहिनों जोड़ी-पारी बाला के पक्ष में रहै, मतर कौशल्या राम बाबू के पूतोहू ऐसनोॅ सुन्दर-गुणबन्ती के फेरा में रहै।
जीत फेरू कौशल्या के होलै। बगल गॉव के मनोहर बाबू के बी0ए0 पास बेटी से देखा-सुनी होलै।
-पाण्डब, मनोहर के सामनें अदब से कहलकै हम्मेॅ आपनैॅ के जोड़ी-पारी मेॅ नय छीयै। हमरो हालत देखी रहलो छीयै, कोय बात छिपलो नै छै, आरो रहै के भी नै चाही। आपनेॅ सेॅ आग्रह छै कि सब बात आपनो बेटी आरो परिजन के बताय दीयै। अगर सब के मर्जी होतै तेॅ, बाबू-माय सेॅ बात करियै, हमरा कोय एतराज नै होतै। मनोहर, पाण्डव के बात केॅ औपचारिकता-भर बूझी केॅ, मटियाय देलकै।
बात पक्का, दिन-सगुन पक्का, खर्चा-बर्चा पक्का। बारात सजी-धजी के गेलै, धमगज्जर खान-पान, बे-तहासा दान-दहेज। मनोहर जी बेटी सीमा के साथ बड़का-बड़का पलंग, सन्दूक, अलमारी, तोसक-तकिया, टेबुल, दर्जन भर कुर्सी. मनेॅ ऐश-मौज के जादेतर समान ट्रकटर पर लाधी कैॅ बिदा करी देलकै। समान देखी केॅ कोर-कुटुम, जीबू, कौशल्या गदगद, मतर पाण्डव, एकदम निमझान। मनों मेॅ कत्तेॅ तरह के विचार। आखिर मनोहर बाबू ऐहनो कहिनेॅ करलैॅ। हम्में इ सब समान केना आरो कहॉ में राखबै। सन्दूक केना जैतै घरो के भीतर। कुर्सी कहाँ मेॅ राखबै। टी0भी0 केरो की होतै, एहां तेॅ बिजली तक नदारत छै। सोचतेॅ-सोचतेॅ गाड़ी जीबू के दूआरी पर सऱसरैलो आबी गेलै। गाँव-टोला के लोग कनियांन कैॅ ताक-झॉक करे लागलै। कौशल्या गलसेधी करै लेॅ थरिया मेॅ सब जोगाड़ करी केॅ माथेॉ पर सड़िया सम्हारने दाय-माय के साथें रश्म निभाबै में भीड़ी गेलै। हुन्नेॅ पाण्डब, कोर-कुटूम काकी-मामी-टोला के भौजाय बीध करै लेली गरजतेॅ रहलै मतर पाण्डब हाँथ जोड़ी के मॉफी मांगी लै, आरो रिसियाय के फेरू भीड़ी जाय कामों मेॅ। सन्दूक, अलमारी, टेबुल जपाल बनी गेलै।
कोय विचार देलकै-धौ तोरी के, नै हुए तेॅ ओसरा बाला द्वार तोड़ी के समान भीतर करी ले पाण्डव। मतर पाण्डब बिगडी गेलै, कहलकै कि नै-नै घोर-द्वार मेहनत के कमाय से बनैनें छीयै। एकरा कोइ कीमत पेॅ नै तोड़बै। चाहे समान बाहरे मेॅ कहिनेॅ न रही जाय। जब एत्ते बढ़ियॉ सेॅ बैठाय के मनोहर बाबू के सब कुछ देखाय आरो समझाय देलियै तैॅ पता नै अहिनों मजाक कहिनें करलकै। तब ताँय कनियँान के घोॅर मेॅ लेॅ जाय के घरभरी के बात होय रहलोॅ रहै, मतर कनियाँन (सालो) मोबाइल निकाली केॅ धड़ाधड़ नम्बर लगाबैॅ लागलै। दू-तीन दफे लगैला के बाद-ले-लो रे, ले-लो बाबू, पीलो नारियल पानी'। के धुन बाजे लागलै, सब के धियान कनियाँन कैॅ तरफ। हेलो! हॉ माय! अगे माय हम्में कौन जनम के दुश्मन छेलियौ जे हमारो बीहा कबूत्तर के भॉंड़ी मॅ करी देलहैं। पता नै हुन्ने सेॅ की बोललै, सालो तमतमाय के जबाब देलकै, यहाँ केकरहौ अकल नै छै। सब समान जेना-तेना रस्ता पर लोघड़लो छै।
-केकरहौ अकल नै छै! हेकरा पर पाण्डव कैॅ बेजाय लागलै, तैयोॅ नरमी सैॅ बोललै-एनां कहिनैॅ करै छो, है सब ठांम्हें माय-बाप केॅ बताबै के की ज़रूरत छेलै? नै बोलै के चाही। "नै बोलै के चाही, हमको उपदेश मत दीजिए"। सीमा घोंघों फैलाय केॅ बोली देलकै। पापा 'मुन्हॉ फॉंड़ के दिए है, घर में सामान रखने तक की जगह नहीं है'।
पाण्डव के भौवा तनाय गेलै। बड़ो-बुजुर्ग समझैलकै-बुद्वि सें काम लैॅ बेटा, तोंय तॅ पढ़लो-लिखलो छहो, तोरा सेॅ कत्तेॅ लोग सीख लै छै। देखो कनियान एक तरह से ठीके कहै छै। अमीर बापो के बेटी छीकै, सोर-समान ठीके छप्पर फॉड़ी के देनें छै, आरो आबै हेकरा छप्परे फॉड़ी के भीतर भी करना छै। हम्में सनी तुरंते सब ठीक-ठाक करी देबै।
यही होलै! सब समान कोय तरह से सोड़ियाय गेलै। कौशल्या टोला-पडोस के आय-माय के बोलाय केॅ दहेज के समान देखाबै में बेहाल छेलै। जीबू भी एकदम गदगद। मतर सीमा आरो पाण्डव के भीतर अनाप-सनाप बात सुनगी रहलो छीलै। पाण्डव दिमाग से काम लेलकै। सीमा के बगल में बैठी केॅ आपनो अगला-पीछला बात। बर-बरतूहारी से लेकेॅ लेनी-देनी, बीहा-शादी तक के सचका बात सुनाय देलकै। आरो कहलकै कि ऐतना के बाद जों तोरा शांन्ति मिलै तॅ ठीक, नै तॅ तोरो माय-बाप जेना छप्पर फॉड़ी कैॅ देनें छौंन। हम्में छप्पर फॉड़ी कैॅ घोॅर के भीतर करलों। आबे वोन्हैं छप्पर फॉड़ी केैॅ सब कुछ निकाली के पहुचाय देभौन। लेकिन ऐहिंनो कुछ नय होय के चाही जेकरा से कि हमरोॅ माय-बाप के छाती फाटी जाय।
पाण्डव के बात सुनी केॅ सीमा के आँख लोरियाय गेलै। ठोर थरथराबैॅ लागलै तेॅ दाँतोॅ सेॅ दाबी लेलकै, नै रहलोॅ गेलै तेॅ सीमा, पाण्डव के छाती सेॅ माथो सटाय के फफकी-फफकी कानेॅ लागलै, बोली नरम पड़ी गेलै। "हमरा माफ करी दां! हमरा इ-सब नैं बतैलकै" हमरो माय-बाप इतना समान देलकै, यहाँ तक ठीक छै मतर जब जानै रहै कि जग्घो के दिक्कत छै तबेॅ अैसनो नै करै के चाही। आबे हम्में सनी मिली-जुली केॅ सब ठीक-ठॉक करबै। आपनें अराम करियै। आबे किन्खौं सेॅ कोय शिकबा-शिकायत नै होतै। हमरा आपनें ऐसनो पति, करमैती सास, आरो बाप सेॅ बढ़लो, ससूर मिललोॅ छै। सचमुच भगवान हमरा सबकुछ छप्पर फॉड़ी केॅ देने छै।
ठीके सीमा, घोर के बागडोर थांम्हीं लेलकै। बड़ो बाप केॅ बेटी होय के कोय गुमान नै। सादा जीवन उच्च विचार के सूत्र अपनाय के परिवार-समाज कॅ खुश करी देलकै। टोला के अमीर आदमी के मनाय के हुनको बंगला पर स्कूल खोली लेलकै। आपनोॅ टेबुल-कुर्सी लगाय केॅ बच्चा-बूतरू के पढ़ाना शुरू करी देलकै। कलैॅ-कलेॅ अच्छा आमदनी हुये लागलै। सास-ससुर बेहद खुश। टोला के लोग भी गर्व के साथ सीमा ऐसनो लुरगरी दुलहिन के उदाहरण जहां-तहां देतें रहलै। पाण्डव ससुरार गेलै-अैलै, मतर सीमा दोहराय के माय-बाप के एंगना नै गेलै।