छलिया, हीना, बजरंगी भाईजान और गीता / जयप्रकाश चौकसे

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छलिया, हीना, बजरंगी भाईजान और गीता
प्रकाशन तिथि :28 अक्तूबर 2015


कोई छह दशक पूर्व मनमोहन देसाई की देश के विभाजन की पृष्ठभूमि पर 'छलिया' में पति-पत्नी बिछड़ गए थे। उस भयावह दौर में अनगिनत अपने एक-दूसरे से बिछड़ गए थे। दोनों ओर की धर्मांधता ने मानवता पर कहर बरपा दिया था। बिछड़ी हुई नारी को सहारा देता है एक भारतीय युवा, मन ही मन उससे प्यार करने लगता है। ये भूमिकाएं नूतन और राज कपूर ने अभिनीत की थीं। नूतन सहारा देने वाले की शुक्रगुजार थीं परंतु प्यार अपने पति से ही करती थी। दशहरे पर रावण दहन के लिए आई भीड़ में नूतन को उसका पाकिस्तान गया पति दिख जाता है और भगदड़ में नन्हा बेटा खो जाता है। राज अपनी जान पर खेलकर नन्हे को खोज लाते हैं और रहमान तथा नूतन को सौंप देते हैं। यह कथा दोस्तोवस्की की 'व्हाइट नाइट्स' से प्रेरित थी। रूस में बर्फ की चादर पर पूर्णिमा के चांद की रोशनी के जादुई प्रभाव से उसे 'व्हाइट नाइट' कहा जाता है। एकत्रित भीड़ में बिछड़े हुए मिल जाते हैं। छह दशक के बाद संजय लीला भंसाली की "सांवरिया' इसी कथा से प्रेरित थी। राज कपूर के पोते रणबीर कपूर ने अपने दादा वाली भूमिका की थी, नूतन वाली भूमिका सोनम ने और रहमान वाली भूमिका सलमान खान ने की थी। मनमोहन देसाई की 'छलिया' सफल थी, भंसाली की 'सांवरिया' घोर असफल। दोनों फिल्मों के बीच साठ साल का अंतर था परंतु दोनों फिल्मकारों के दृष्टिकोण में सदियों का फासला है। मनमोहन देसाई भारत के अवाम के सामूहिक अवचेतन को भंसाली से बेहतर समझते थे और उन्होंने अपनी कथा को विभाजन की पृष्ठभूमि पर बनाया था, भंसाली ने न कालखंड तय किया न उस जगह को कोई नाम दिया, जहां यह घटित होता है।

बहरहाल, 'छलिया' की शूटिंग के समय राज ने अखबार में खबर पढ़ी कि एक भारतीय युवा कार दुर्घटना के बाद नदी में बहकर पाकिस्तान जा पहुंचा, जहां कबीले के लोगों ने उसकी जान बचाई और महीनों खिदमत करके, तबियत दुरुस्त होने पर उसे उसके वतन भारत भेजा। राज ने इसी सत्य घटना में प्रेमकथा जोड़ी और अपने मेंटर ख्वाजा अहमद अब्बास को 'हीना' की पटकथा लिखने का काम सौंपा। उन्होंने तेरह बहस 'बॉबी' की जुबली पर हीना की पटकथा राज को सौंपी। राज ने उस पटकथा पर दुबारा काम जैनेंद्र जैन से कराया और संवाद लेखन के लिए पाकिस्तान की लेखिका हसीना मोइन को भारत बुलवाया, क्योंकि इस दरमियान अब्बास साहब का इंतकाल हो चुका था। तीन गीतों के बाद राज कपूर का निधन हो गया और उनके इस आकल्पन को उनके ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर ने डायरेक्ट किया। यह सफल फिल्म 1991 में प्रदर्शित हुई। हीना पर काम करते समय राज कपूर हमेशा कहते थे कि यह फिल्म हिंदूस्तान-पाकिस्तान के ऊपर आकाश में मानवीयता के इंद्रधनुष की तरह होगी, जो सरहदों के आर-पार तक फैला है और 'बजरंगी भाईजान' के प्रदर्शन के एक माह पूर्व मैंने कबीर खान से कहा था कि अंतिम दृश्य में आकाश पर इंद्रधनुष की छवि विशेष प्रभाव से बनाएं।

राजामौली के पिता ने 'हीना' से प्रेरित अपनी पटकथा में सरहद के आर-पार की प्रेमकथा हटाकर अबोध मूक-बधीर लड़की का पात्र रचकर महान फिल्म का आकल्पन किया, जिसे निर्माता-नायक सलमान खान और निर्देशक कबीर ने महान फिल्म के रूप में प्रस्तुत किया। आजकल सुर्खियों में है गीता की वापसी का विषय। 'बजरंगी भाईजान' के प्रदर्शन से प्रेरित पाकिस्तान में इस भारतीय लड़की को उसके घर वापस भेजने के प्रयास किए गए। यह भी कितना गहरा इत्तफाक है कि 'बजरंगी भाईजान' की अबोध बालिका की तरह गीता भी मूक-बधिर है। कई बार कुछ महान फिल्मों में यथार्थ जीवन में परिवर्तन किए हैं। एक अमेरिकन फिल्म के प्रभाव से खाड़ी देशों की जेल में बेहतर हालात बनाए गए।

इन तमाम घटनाओं में मुझे दोनों देशों का अवाम मूक-बधिर की तरह लगता है, जिनकी आवाज नफरत की राजनीति ने दबा दी है। विभाजन की त्रासदी भी घिनौनी राजनीति का नतीजा थी। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बर्लिन के बीच में खड़ी की गई राजनीतिक स्वार्थ की दीवार ढहा दी गई परंतु एशिया महाद्वीप में विभाजन की सरहदें और दीवारें कभी नहीं गिराई जाएंगी, क्योंकि दोनों देश की राजनीति का आधार ही नफरत पर है। लिखते समय ही खबर सुन रहा हूं कि पंजाब में मुख्मंत्री के हेलिकॉप्टर को उतारने की खातिर गुरुद्वारा संपत्ति की दीवार गिरा दी गई। इस घटना की पूरी रपट शायद कभी नहीं आए परंतु हमारे यहां दीवारें बनाई और तोड़ी जाती है, महज नेता की सहूलियत के लिए। भारत-पाक पर गुलशन नंदा के उपन्यास 'वापसी' से प्रेरित राजेश खन्ना, राखी, जीनत अभिनीत फिल्म 12 रील बनकर अधूरी छोड़ दी गई। उसका एक गीत निदा फाज़ली ने लिखा था। बोल थे, 'ये कंकर पत्थर की दुनिया, इंसा की मुसीबत क्या जाने, दिल मंदिर है, दिल मस्जिद भी है, ये बात सियासत क्या जाने।'