छाती / रूपसिंह राजपुरी / कथेसर

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: जुलाई-सितम्बर 2012  

नंदू पोस्ती आखै गांव रो खेलणियो। बो जद ई बनारसी सेठ री दुकान जावै, अळबादी टींगरां रो टोळ बींरै लारै-लारै रैवै। दुकान माथै बैठ्या टींगर तीसरी बात करै। अधखड़ माणस मेणा मारै। पण नंदू आं सगळी बातां सूं अळगो बांनै तास खेलतां देखै। पत्तो चालण री सलाह बिना मांग्या ई देवै। जद नंदू बेसी बोलण लागै तो कोई बराबरियो हाड पर मारै-

म्हारी बाजी तो खैर सल्ला, तूं तेरी बेगम नै सम्भाळ बादस्या!

बीं खातर आ जबरी चोट। जकै दिन कोई बींनै बादस्या कैवै तो लागै जाणै कुण ई मां-भैण री गाळ काढ़ दी होवै। बीं रै पोस्त कोनी उगै अर बो गळियां में हांडतो फिरै।

चाळीस री उमर मांय ई नंदू 'बाबो' दीसै। च्यार इंच लाम्बी दाढ़ी में रेत फंस्योड़ी। सिर रा बाळ उळझेड़ा, चिड़ी रा आलणा-सा। हद दरजै रो आळसी। म्हीनै तांई न्हावै न को धोवै। अफीम, दारू, चरस, गांजो, स्मैक, भांग, धतूरो कोई भी नसो मिलै, भख करै। कीं कोनी छोडै। पोस्त तो उग्यै-छिप्यै रो सीरी।

बो कोई इस्यै-बिस्यै घर रो कोनी, बो तो घराणै रो 'कुलदीपक' हो। चाळीस बीघा पाणी आळी, झोटै रै सिर बरगी जमीन रो धणी। बीं रो बाप वार्ड पंच हुया करतो। बाप रै पछै बड़ो भाई मदन भी उपसरपंच बण्यो। गांव मांय मान-सम्मान मोकळो हो।

पण नंदू री दुरगत री भी अेक लाम्बी गाथा है। बात बां दिनां री है जद बण गांव रै स्कूल सूं पांचवी पास कर लीनी ही अर छठी जमात में सारलै गांव रै स्कूल पढण जांवतो हो। बो गोरो-चिट्टो घणो फूटरो हो। नांव धरायो नंदकिशोर। दस साल री उमर मांय ई पेन अर डायरी बीं री जेब री सोभा बधावती। नुंवी रंगीन साइकिल.... कैंची चलावतो। हाफ-पैंट मांय साथळ फसी रैंवती। साइकिल चलावतो तो उड़ती जुल्फां छोरियां री-सी लागती। थक ज्यावतो तो मारग में हरीराम रै कूवै थम ज्यांवतो। हाथ धोवतो, पाणी पीवतो अर कीं बिसांई लेवतो। हरीराम अमली हो। बो बीं रा कोड करतो, कन्नै बिठावतो। बाजरी रै दाणै जित्ती अफीम सूं मनवार करतो।

चेप ले नंदा बेटा! थाकेलै सूं उतरेड़ो तेरो मूंडो मेरै सूं देखीजै कोनी।

ना ताऊ, म्हैं तो कोनी लेवूं। आ तो बुरी चीज होवै। नंदू नट ज्यांवतो। बठै सूं चाल पड़तो। साइकिल रै डंडा मांय टांग्यां फसायां, घंटी बजावतो घरां आवतो।

हरीराम रै मन मांय कीं और ई हो। बो बींरै पाणी आळै लोटै में अमल घोळ'र छोड़ देवतो। बो ई लोटो नंदू नै देवतो। तिरस्यो नंदू पाणी पी'र कैवतो-

ताऊ पाणी खारो-सो है?

हरीराम सफाई देवतो, टयूबैल रो है नीं।

हरीराम कदै नंदू रै बाप अमराराम रै सामी पंचायत रो चुणाव हार्यो हो। जद सूं रड़क काढण नै फिरै हो। बो अमराराम रो कीं और तो बिगाड़ कोनी सक्यो, छोटियै छोरै नै अमल री लत लगावण मांय कामयाब होयग्यो। गांवां मांय माड़ा लोग दुसमणी काढण रा इस्या ई हथियार बरतै। आगलै री उलाद नै नसेड़ी बणा'र छोडद्यै, पीढिय़ां तांई नीं सुधरै। ओ ही तरीको हरीराम अपणायो। कदै-सी आपरी कारीगरी परखण खातर नंदू रै पाणी मांय अमल कोनी घोळतो। बीं दिन नंदू मर्यो-सो अर थाकल रैवतो। छव म्हीनां मांय ई बण नंदू नै बच्चू बणा लियो। छुट्टी आळै दिन भी ताऊ रै ट्यूबैल आळै छपरै मांय जावणो बीं री मजबूरी होयगी। आठवीं मांय आवता-आवता तो अमल बिना हाड-गोडा टूटण लागता। जद जमा ई नसै रो गुलाम होयग्यो तो हरीराम बीं नै दुतकारण लागग्यो।

मेरै कन्नै किसी मोरणी ब्यावै, आपरो बंदोबस्त आप कर भई!

म्हैं कठै सूं करूं ताऊ? भोळो-सो मूंडो बणा'र नंदू गिरबिरावतो।

कठै सूं बी, किताबां बेच, साइकिल बेच, तेरै बाप रै चोळै मांय सूं काढ़। बींनै के बेरो लागै। हरीराम उल्टी पट्टी पढावतो। नंदू हरीराम रै कैयां-कैयां चालण लागग्यो। गळत राह पकड़ ली। घर सूं चोरी करतो-करतो, किताबां अर साइकिल रै बाढो लगा लियो। घरां कैय दियो, साइकिल चोरी होयगी। पीसा हरीराम गपळगप्प कर जावतो। नंदू नै अमल रो मावो दे देवतो।

इयां करतां-करतां नंदकिशोर नंदू बणग्यो। आठवीं मांय फेल होग्यो। मुड़ स्कूल जाण रो नांव नीं लियो। नंदू री मां नै बींरै नसेड़ी होण रो बेरो लाग्यो तो बा घणी कळपी, घणी रोई। बाप अर भाई सूं चोरियां पीसा देवती। मां रो जीव मांय ई मांय बळतो। खुल'र बतावण जोगी ई नीं रैयी। नंदू बनड़ो बण्यो रैवतो। इलाज करावण री बात सुहाती रैवती। सरू मांय तो बाप अर भाई घणा ई दोरा होवता। कूटता-मारता। पण अब बै भी कन्नी काटग्या। बाप कचाई रो मार्यो घर सूं निकळणो ई बंद कर दियो। भाई मदन बी दो हरफी बात करता थकां नंदू नै अळगो कर दियो। नंदू भी ओई चावै हो, न्यारो होयग्यो। चाळीस बीघा भोम अर नोहरै आळो घर पांती आया। जमीन ठेकै पर दी तो नोटां सूं जेबां भरगी। खुलै दिल संू खड़्यो खरचो करण लागग्यो। च्यार नसेड़ी और सारै लागग्या। रोज हाजरी भरता। अेक दिन काळियो पोस्ती बोल्यो-

यार नंदू! मदन भाई जी नै घर बसा'र दिखा। सरीक ईयां कोनी मानै?

घर बस्योड़ो ई है। और के घर रै फूल लटकै? नंदू साम्हीं सवाल कर्यो।

घर तो घरआळी स्यूं बणै नंदू। काळियै नहलै पर दहलो मार्यो।

तेरो मतलब झांझरआळी...। नंदू नसै री लोर मांय बोल्यो।

तो...? हरज के है? इत्ती जमीन, इत्तो मोटो घर, मोटी गुवाड़ी, पढ्यो-लिख्यो छोरो...पच्चीस साल रो। आगलां नै और के बांस चाइजै काळियै जाळ फैंक्यो।

अरै रमता जोगी नै क्यूं तेला-लूणी रै झमेलै मांय घींसै रै काळू गजबी? पण मांय नंदू रै लाडू-सा फूटै हा।

पकी पकाई ताती रोटी-फलकिया मिल्या करसी। रात नै आगली पग दाब्या करसी। काळियै आंख मार'र कैयो तो सगळा पोस्ती हंस्या। कमरै मांय हड़बास-सी फैलगी।

कठै गळ दाबण आळी ना आज्यै। नंदू ऊपरलै मन स्यूं चिंता बताई।

थोड़ै ई दिनां मांय अेक लाख रिपिया खरच'र नंदू आपरो घर बसा लियो। सारलै गांव मांय तीन साल सूं पीवर मांय बैठी अेक लुगाई लाधगी। बींरै बाप नै पचास हजार रोकड़ा दिया अर कीं टूम-छल्ला बणा लिया। नंदू सरीकां साम्हीं खंखारण जोगो होग्यो। मनभरी नंदू नै रसभरी लागती। खूब सेवा होवण लागगी। नंदू नै भी कोई 'सुणो हो के स्याणो' कैय'र बुलावण आळी आयगी। नंदू रा दिन तीजां रा-सा टूटण लागग्या। ब्याव होयां पछै आदमी सुरग रा हींडा हींडै। नंदू नै अब बेरो लागग्यो। साल भर मांय अेक बेटी जलमगी। नंदू रै नसै री 'डोज' मोटी होंवती गई। अमल री जग्यां पोस्त पीवण लागग्यो। बेहोस पड़्यो रैंवतो। घोरी होग्यो। मूंडो कोझो होग्यो। नाक सूं पाणी, आंख्यां मांय गीड, सिर मांय जूंआं, डील मांय बांस, बींनै भलै माणस री पदवी सूं घणो तळै गिरा दियो। जूणी जंगळियां जिसी होयगी। बात बात में ई मनभरी नै गाळ काढ़ देवतो। कूट देवतो। दूजै पोस्तियां नै भी सारै को लागण देंवतो नीं।

न तो नंदू मनभरी नै परोट सक्यो अर न ही मनभरी नंदू नै। अेक दिन गांव मांय बात उडी, कै मनभरी काळियै पोस्ती सागै भाजगी। इण पीड़ नै बो मांय री मांय गिटग्यो। नसै मांय कचूच बोल्यो, कुत्ती रांड रो के है, कठै ई रह सकै। आं सबदां सूं आपरी पीड़ हळकी करण रो जतन करतै नंदू पोस्त री अेक फांकी और मार ली। मनभरी काळियै रै बस मांय बी ज्यादा नीं रैयी। अब बीनैं हरीराम आळो बेदियो ट्यूबैल आळै छपरै मांय राखण लागग्यो। लोकलाज नै उतार'र फैंकण आळी लुगाई रो के है, बा कठै ई जा सकै। आपरी छोरी नै गोद्यां मांय ले इन्नै-बिन्नै घूमती रैवती। गांव री भलेरी लुगायां देख'र मूण्डो मरोड़ लेवती। कदे कदास नंदू आळो घर भी सम्भाळण आ जावती। नंदू रोळो करतो तो धौलधप्प कर बींनै पटक जावती। अब नंदू मांय ताकत कोनी ही। जकै दिन गांव मांय आवती, नंदू री गळी मांय मेळो-सो मंड ज्यावतो। जबरो बणाव-सिणगार कर'र निकळती, नोटां सूं बटुओ भर्यो रैवतो। छोर-छंडा बींनै 'बेगम' तो नंदू नै 'बादस्या' कैय'र चिड़ावता। नंदू रै ईं सबद सूं चिरमिराट लाग ज्यावता। 'बादस्या' कैवतां ई अगलै नै खाण नै आंवतो, पण खुद रो ई दम उपड़ण लाग ज्यावतो, धांसी में उळझ ज्यावतो। लोग मजा लेवता।

मनभरी घरां आवती तो नंदू आपरी मांची दुराजै मांय ढाळ लेवतो। बदमास गोडा मार-मार जावता। नंदू चुपचाप पड़्यो रैवतो। लैरलै जलमां री करणी-भरणी जाण दड़ बंट जावतो। गांव रो अेक लुंगाड़ो 'डांगर' नाम सूं मशहूर हो। पसुआं बरगो डील। बिसो ई मूंह। लोग बीं सूं डरता। बो तीन साल जेळ मांय रैयो हो। जद आयो तो 'बेगम' रा चरचा सुण्या। मिलण चाल पड़्यो। पिस्तौल रा दो-चार फायर कर्या तो टींगर-टोळ दड़ाछंट। बो मस्त हाथी-सो नंदू रै घर बड़्यो। डांगर खुद रै बारै में बतायो तो मनभरी घणी राजी होयी। बण डांगर रा किस्सा सुण राख्या हा। मुळकती थकी बोली- आओ देवर जी! आओ पधारो।

बेगम तो डांगर री दीवानी होयगी। बा तो बीं रै साथै ई व्हीर होयगी। डांगर सागै गई बेगम पाछी नीं बावड़ी। बींरै खेतआळै कोठै मांय रैवती। नंदू ईं बात सूं ई खुस हो कै झमेलो मुकग्यो। साळै काळियै, सुख आळी जिंदगी मांय आग रा बीज रोप दिया। सिर मांय मारणी ही इसी झांझरआळी?

कोई दो-अेक दिन पछै री बात। दोपारै-सी नंदू घर मांय नीम नीचै मांची ढाळ्यां चादर ओढ्यां सूत्यो हो। दो स्कूलिया टींगर भींत पर चढ़'र बतळावण लागग्या-

बेगम मांय इसो के है, सारो गांव लट्टू दांई घूमण लागर्यो है?

दूजो बोल्यो- सुण्यो है, बा कींनै ई खाली नीं जाणद्यै।

तो आपां ई चाल'र देखां। पैलो बोल्यो।

स्यात नीम नीचै सूती है। अेक छोरै भीतर छलांग लगा दी। नंदू बांरी बातां सुणै ई हो। छोरै मांची रै बारकर गड़को काट्यो। फेर डरतां-डरतां पगां रै हाथ लगा'र देख्यो। कीं नीं होयो। फेर पेट पर हाथ फिरांवतो छाती पर लेयग्यो। हैरान-सो होंवतो बोल्यो-

ईं रै तो छाती ई कोनी!

नंदू स्पिरिंग आळै गुड्डै दांई खड़्यो होय'र चादर फैंक दी। मांची नीचै पड़्यो रैंगळ उठा'र गाळ बकतो गळी में आयग्यो-

थम तेरी....... मेरै छाती कोनी? डावड़ै हाथ में डांग पकड़्यां बण जीवणो हाथ आपरै सीनै पर ठोक्यो, छाती कोनी मेरै?

भाजतै छोरां कानी लाठी फैंकतो फेर गरज्यो-

पूरै गांव मांय मेरै जित्ती छाती कींरै ई है के?

रोळो सुण'र अड़ोसी-पड़ोसी बारै आय'र देखण लाग्या। कई लुगायां-पतायां अर टाबर-टीकरां ई तमासो देखण सारू आडा खोल लिया। नंदू आपरी लाठी उठाई। भाजतै टींगरां कानी देखतां उणरै हियै पीड़ रो अेक भतूळ-सो उठ्यो। आपरी दुरगत रा जिम्मेदार कित्ता ई उणियारा उणरी आंख्यां में गडण लाग्या।

अेक हाथ में डांग, अेक हाथ छाती माथै, निजरां गळी में टिक्योड़ी..... बीं री तो पिनक लागगी।

ओ कारूणिक दरसाव पत्थर नै पिघळावण वाळो हो, पण लोग तो ताळी पीट-पीट हांसै हा।