छात्रों में लहर / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती
जिन छात्रों पर हमारे नेताओं का नाज था उनमें भी घोर असंतोष की लहर आज हिलोरें मार रही है। बिहार के कॉलेजों के छात्रों की हड़ताल इसका प्रकट रूप था। पटना में विशेष रूप से जो नजारा दीखा वह भूलने का नहीं। साम्राज्यशाही के विरुध्द शान के साथ जूझनेवाले बहादुर छात्रों को पालतू समझने की नादानी करनेवाले नए मालिकों की आँखें खुलीं जरूर और असलियत का नंगा रूप उनकी आँखों के सामने आ गया अवश्य। कहा जाता था कि इस हड़ताल और हठ के फलस्वरूप छात्रों का एक साल चौपट हो गया। लेकिन कहनेवाले भूल जाते थे कि स्वराजी शासकों को गद्दीनशीन करने में यदि इन्हीं छात्रों ने कई साल चौपट किए और इस पर खुशी जाहिर की गई तो उनके खिलाफ अलार्म बजाने में भी एक साल जाए तो बला से। गर्व में चूर नेताओं को तमाचे तो लगें और वे देखें कि कितने गहरे पानी में हैं। पटने में छात्रों ने जिस क्रांतिकारी एवं संगठनवाली मनोवृत्ति का परिचय दिया वह ऐतिहासिक वस्तु है। इतिहास साक्षी है कि दुनिया के छात्र सदा ऐसा ही करते रहे हैं। वे स्वदेशी , विदेशी किसी गुलामी को बर्दाश्त नहीं करते हैं।