छिंकी / सत्यनारायण सोनी
कलावती छात पर बैठी पीसणो करै। छालै में घाल-घाल कणक फटकै। डूंखळिया निवारै। कांकरा चुगै। काळा अर कमजोर दाणा अळगा करै। धीमी-धीमी राग काढै। कोई गीत-सो गुणगुणावै, अेकली ई। अै ल्यो, जमा साफ कर दिया भई। दाणा काढ दिया बिदाम बरगा।ÓÓ बा दाणा हाथ में लेयÓर अपणै आप सूं ई बतळावै। फेर दाणां रो थेलियो भरै, मूंडो बांधै अर थेलियै पर थपकी-सी न्यारी देवै। अपणै आप में ई भोत राजी है कलावती। छात ऊपर आथूणै पासै चौबारो है। आथणपौर ईं चौबारै री छियां सांगोपांग काम आवै। मंडेरी है ऊंची-ऊंची। नीचलां नै मूंडो को दीखै नीं। नचीती है। ओल्लै-पेटी रो फिकर कोनी। छात ई घणी लाम्बी-चौड़ी। अेक पासै बीं रो छोरो पवन पतंग उडावै। पवन नै बा लाड सूं पौनो कैवै। पांचवीं में पढै। उमर कोई नौ बरस। गांव में बैसाख महीनै में पतंगां रो जबरो जोर रैवै। आखातीज नै तो आसमान में पतंगां मावै ई कोनी। थोड़ी ताळ बा बिसांई लेवै। भींत रो ठेगो लेयÓर पग पसार बैठ ज्यावै। निजरां टंग ज्यावै गिगनार। आऽऽ, पतंगां तो देखो, कित्ती सारी! कोई पूंछआळी, कोई बांडी। कोई लाल, कोई धोळी, कोई पीळी। पेचा न्यारा अड़ावै। कोई कट ज्यावै। डोलती दूर-दूर तांईं जावै। गळियां में दड़बड़ाट मचै। टींगर लूटता फिरै। कलावती अेकर-सी खुद पतंग बण ज्यावै। बा ई उडणो चावै आभै मांय। उडारी भरणी चावै। सोचै, कोई बीं नै उडावै। कोई छींकी देवै। बा उड ज्यावै, आं भींतां सूं पार। फेर कट ज्यावै अर मतै ई उडती जावै। डोर लटकती जावै। पण आ डोर तो बीं नै घणी अणखावणी लागै। ना, पतंग बणनो तो ठीक कोनी। बीं नै आभै में उडारी भरतो अेक पंछी निगै आवै। बा तो पंछी बण ज्यावै। चिड़कली। चिड़कली बण उड़ ज्यावै। कीं रै ई हाथ नीं आवै। इतणै में ई बीं री लाडली सुमन आ ज्यावै। लाड सूं बा बीं नै सुमना कैवै। पैली में पढै। पांच बरस री बायली। सुमना आयÓर बीं रा मोढा मचकावै। माऊ, माऊ, म्हनै ई ल्याद्यो पतंग। सागै अेक चरखी ल्याद्यो।ÓÓ ना, ना बेटा, छोरियां कोनी उडाया करै पतंग।ÓÓ क्यूं हां, क्यूं कोनी उडावै छोरियां?ÓÓ पण कलावती कनै कोई जवाब कोनी इण सवाल रो। बा डूब ज्यावै आपरै बाळपणै मांय। बीं रो भी तो घणो ई जीव करतो। पण छोरियां तो खुद पतंग है। बां री डोर तो औरां रै ई हाथ है। पछै तो सुमना पौनै सागै धक्को करै, भीया, अेकर-अेकर मनै उडा लेण दे रै!ÓÓ बो परनै सरकै। बा फेर निहोरा काढै- भीया, अेकर-अेकर।ÓÓ लै, अेकर रील पकडग़े देखले। तोड़ ना देयी।ÓÓ फेर पाछी ले लेवै बो आपरी रील। गळी में फेर दड़बड़ाट होयो है। पतंग कटी है अर टाबर-टोळी लूटण खातर फेर ऊमड़ी है। कीं रै हाथ में तीरियो है तो कीं रै ई झांपड़ो। दे तेरै गी, दे तेरै गी। बो बीं सूं आगै अर बो बीं सूं। दड़ाछंट। इत्तै में ई अेक झ्याज क्यूं टिपै नीं। सुमना तो डरती माऊ री झोळियां में जा बड़ै। फेर के ठा के मतो फुरै। चाणचकै ऊभी हुवै अर आभै कानी देखण लागै। झ्याज नै ई देखै ही स्यात। बोली, माऊ, अेक झ्याज तो मंगा द्यो!ÓÓ माऊ तो सैतरी-बैतरी देखती रैवै सुमना कानी। फेर सिर पळूंसती पूछै, के करैगी बेटा?ÓÓ माऊ री आंख्यां में आंख्यां घालÓर सुमना कैवै, पतंग लूटस्यां!ÓÓ
(2008)