छिनाल / भीकम सिंह
Gadya Kosh से
लज्जाराम चौधरी कुछ नहीं बोलते, बीड़ी मुँह में लिए फक -फक धुआँ उगलते रहते हैं। अठगैंया के हेकड़ जमींदार हैं। चोर नज़रों से बहूओं की टोह लेते हुए चेहरे पर कई रंग चढ़ाते -उतारते रहते हैं, अभी -अभी आँखों में सुर्ख डोरा उभर आया है,… और तनी हुई मुद्राओं का निहितार्थ करवट ले बैठा। पानी तो मुँह में बहुत दिनों से आ रहा था, लेकिन आज लार बह निकली तो कोशिश की… और बहू का हाथ पकड़ बैठे, ”कैसी हो बहू?“
”इसी वक़्त तुम्हारा मुँह तोड़ देना चाहिए ससुर जी हमें।“, बहू ने अपना तैश प्रदर्शित किया और आँसुओं में डूबती मायके चली गई।
कहते हैं, इस वाकये के बाद, कई दिनों तक लज्जाराम चौधरी अपने कमरे से बाहर नहीं निकले।
कई दिनों बाद अठगैंया के लोग ही लज्जाराम चौधरी के कमरे तक आए और कहा, चौधरी सहाब! बहू छिनाल निकली।“
