छुपे हुए हाथ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Gadya Kosh से
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लंचब्रेक में अच्छी–खासी चिल्ल–पों हो रही थी। पर आज चौंकाने वाली बात थी। किसी ने मुख्यालय को मि। सिंह की शिकायत कर दी थी। बेनामी शिकायत की भी जाँच–रिपोर्ट तो जानी ही है। पूरे दफ्तर में मि।सिंह का कोई विरोधी नहीं था। सब अपने–अपने अनुमान लगा रहे थे। किसी नाम पर अन्तिम राय नहीं बनी थी।

पोखरियाल ने चश्मा उतारकर हाथ में लिया तथा आँखें सिकोड़कर दृढ़ स्वर में पूछा–"बताइए यह ड्राफ़्टिंग किसकी हो सकती है?"

"किसकी हो सकती है?" कई स्वर एक साथ उभरे।

"अरे हिन्दी की इतनी अच्छी ड्राफ़्टिंग हरीश के सिवाय और कौन कर सकता है? देख लीजिए पढ़कर।"

सिर हिलाकर कई लोगों ने आश्चर्य मिश्रित हामी भरी। कई ने पोखारियाल की तरफ ईर्ष्याभाव से देखा तथा 'अरे वाह'–कहकर उसकी समझ की दाद देने लगे।

"हमें पहले ही शक था।" कई स्वर एक साथ उभरे।

पोखरियाल की दृष्टि मिस्टर सिंह की तरफ उठी–"सिंह साहब, आप क्या सोच रहे हैं? इस तरह की शिकायतों से क्या फर्क पड़ता है?"

"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"

"तब उदास क्यों हो?"

"शिकायत करने वाले हरीश जी न होकर कोई और महानुभाव हैं।" मि। सिंह ने पोखरियाल की तरफ घूरा।

"कौन है?" कई लोग एक साथ बोले।

"पोखरियाल जी से पूछिए." मि। सिंह उठते हुए बोले। पोखरियाल को जैसे साँप सूँघ गया हो।

अब सभी लोग उनकी चालाकी की दाद दे रहे थे।