छोटा क्या बड़ा / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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मछली ने हवा में छलाँग लगाई। मेंढक ने चिढ़ाया,‘‘तुम इतना ही उछल सकती हो। इतना तो मेरा बायाँ पैर हवा में उठ जाता है। छुटकी कहीं की।’’ छुटकी ने कहा,‘‘मैं छोटी हूँ तो छुटकी ही कहलाऊँगी। क्या कद में छोटा होना गुनाह है? छोटे भी बड़ा कर सकते हैं।’’

मेंढक टर्राने लगा। कहने लगा,‘‘तुम और बड़ा काम। चल हट। हवा आने दे। पिद्दी भर की मछली। मेरे एक पैर से बड़ी नहीं हो तुम। समझी। मेरी क्या मदद करोगी?’’ छुटकी ने पानी में गोता लगाया और दूर चली गई। बात आई-गई हो गई।

एक दिन की बात है। मेंढ़क दर्द से चीख रहा था। केंकड़े ने पैर में काट लिया था। चोट की वजह से वह तैर नहीं पा रहा था। केंकड़ा बोला,‘‘ठहर। मैं अपने दोस्तों को बुलाकर लाता हूँ। आज हम तेरी दावत उड़ाएँगे।’’

छोटी मछली कमल का पत्ता ले आई। पत्ते का डंठल मुंह में लेते हुए उसने मेंढक से कहा,‘‘जल्दी करो। पत्ते पर बैठ जाओ। मैं खींचकर तुम्हें किनारे पहुँचा देती हो।’’ मेंढक ने ऐसा ही किया। अब मेंढ़क फुदकता हुआ तालाब से बाहर चला गया। इस बार उसने प्यार से कहा,‘‘थैंक्यू छुटकी।’’