छोटा नटवरलाल / पंकज सुबीर

Gadya Kosh से
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'पर इस पर हम कितना खेल पाएंगे?' उधर से चैनल के क्राइम हेड नासिर ख़ान ने कुछ उलझन भरे स्वर में पूछा।

'ये आपको देखना है नासिर जी, मैं अभी सबसे पहले आपको ही बता रहा हूँ अगर आपको ठीक लगे तो बता दें नहीं तो मैं अपनी साइट पर डाल देता हूँ' सुधीर ने कुछ लापरवाही से जवाब दिया।

'ठीक है सुधीर, मैं देखता हूँ इसको, नहीं तो फिर तुम साइट पर डाल देना।' कह कर नासिर ख़ान ने फ़ोन काट दिया।

सुधीर एक फ़्री लांस जर्नलिस्ट है। पहले तो उसको काम करने में काफ़ी परेशानी होती थी। मगर सूचना क्रांति ने उसके कार्य को आसान कर दिया है। अब समाचारों का प्रसार करना उतना मुश्किल नहीं रह गया है। कम्प्यूटर से जुड़ने से पहले बड़ी मुश्किल थी। मगर एक बार जब वह कम्प्यूटर और इंटरनेट की दुनिया से जुड़ा तो उसके बाद तो समचार माउस की एक क्लिक पर नाचने लगे हैं। इधर आपने सेंड की बटन को हिट किया और उधर दुनिया के किसी भी कोने में बात पहुँच गई। शुरूआत में तो यहाँ भी परेशानी ही थी और परेशानी थी हिन्दी की। इधर से टाइप करके भेजा समाचार वहाँ तक पहुँचते-पहुँचते हिन्दी की जगह कुछ और हो जाता था। शुरूआत मैं वह हर समाचार के साथ अपने हिन्दी फॉण्ट की फाइल भी भेजता था। मगर जानता था कि इतनी फुरसत किसे है जो इतनी उठा पटक करेगा। हाँ जो उसके नियमित सब्स्क्राइबर थे बस वे ही उसकी मेल को देख पाते थे, मगर फिर ब्लॉग, यूनिकोड फॉण्ट आने के बाद तो खेल आसान हो गया है।

प्रिंट मीडिया से जब उसने पल्ला झाड़ा तो उसके पीछे मुख्य कारण बाज़ार था, स्थिति यहाँ तक हो गई थी कि समाचार पत्र के मार्केटिंग प्रबंधक ने मासिक बैठक में ज़िला ब्यूरो में काम करने वाले हरेक व्यक्ति के लिए टारगेट तय कर दिये थे। विज्ञापन के टारगेट। जब कार्यालय के भृत्य ने उससे पूछा 'सुधीर भय्या मैं हर महीने पांच हज़ार के विज्ञापन कहाँ से लाकर दूंगा?' तो उसके पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था।

राजधानी से लगे जिले के ब्यूरो का प्रमुख होने के कारण उसे मासिक एक लाख ख़ुद के और ढाई लाख पूरी टीम के विज्ञापनों का लक्ष्य दिया गया था। ये लक्ष्य ही उसके पलायन का कारण बन गया। उसके बाद जो नया ज़िला ब्यूरो प्रमुख संदीप बना वह ढाई तो नहीं हाँ पौने दो से दो के बीच का टारगेट तो पूरा कर ही रहा है। पर कैसे कर रहा है, ये वह ही जानता है ख़बरें और समाचार तो शायद ही कभी लिखता है। हमेशा विशेषाँकों की जुगाड़ में लगा रहता। अभी उस दिन जब सुधीर को मिला तो सुधीर ने पूछा 'और पार्टनर क्या चल रहा है?' सुधीर के प्रश्न पर तपाक से उत्तर दिया था संदीप ने 'बस विधायक के जन्म दिन पर एक विशेषाँक' युग पुरुष'निकालने की तैयारी चल रही है, चार-पांच के विज्ञापन लग जाने की उम्मीद है। दो तीन महीने का टारगेट एक बार में ही पूरा हो जाएगा। तब तक पार्टी अध्यक्ष का जन्मदिन आ जाएगा, फिर पेल देंगे एक विशेषाँक।'

'कुछ नई ख़बर-वबर है क्या? बताते रहा करो यार, तुम तो जानते हो कि हमारे यहाँ समाचारों की दुनिया कितनी तेज़ है, घंटे आधे घंटे में तो समाचार मर ही जाता है।' सुबीर ने टटोलने के लिए पूछा था।

'यार अभी तो इस विशेषाँक के चक्कर में चार दिनों से कार्यालय ही नहीं गया हूँ, वहाँ पर निर्देश दे रखे हैं जितनी भी प्रेस विज्ञप्तियाँ आ रही हैं उनमें से विवादास्पद को छोड़कर बाक़ी की कम्पोज़ करवा के उतरवा देना मोडम से।' कुछ व्यस्तता वाले अंदाज़ में जवाब दिया था संदीप ने।

'चलो, फिर भी जब विशेषाँक से फ़ारिग हो तो ध्यान में रखना। बस मिस काल कर देना मैं पलट कर लगा लूंगा' पलट कर कहा था सुधीर ने।

'अरे वह भी कोई कहने की बात है? और फिर तुमको बताने में तो कोई परेशानी नहीं है तुम तो इलेक्ट्रानिक के लिए खेल करते हो और वैसे भी यहाँ हमारे यहाँ तो ख़बरों की कोई क़ीमत है नहीं। हमारा मालिक तो बिल्डर है उसका तो एक ही कहना है' खबर कितनी ही बड़ी हो पढ़ने वाला उसे शाम तक भी याद नहीं रखता और शाम को उसी अख़बार पर समोसे या पोहे खाता है, पर विज्ञापनों को हमारा बैंक एकाउंट देर तक याद रखता है' संदीप ने कुछ निराशा भरे स्वर में कहा था।

'ये तुम्हारी नहीं सभी की यही हालत है। समाचार या ख़बरें कहीं नहीं हैं केवल सूचनाएँ हैं। फलां विदेश से लौटे, फलां सम्मानित हुए, आज ये आयोजन है, कलेक्टर ने ये कहा, एस पी ने वह बैठक ली। कुल मिलाकर सूचनाएँ ही सूचनाएँ पौना पेज तो कलेक्टर का पी.आर.ओ. ही भर देता है।' सुधीर ने उसे दिलासा देते हुए कहा था।

'हाँ यार पिछले हफ्ते पूरे जिले में इल्लीयों से सोयाबीन की फ़सल के बरबाद होने का समाचार कम्पाइल कर रहा था, जिले भर के संवाददाताओं से आंकड़े बुलवाए थे। लग रहा था कि कुछ अच्छा बन पड़ेगा। तभी कलेक्टर के पी.आर.ओ की डाक आ गई, डाक के साथ एक किसान का फ़ोटो भी था जिसमें वह अपने खेत के सोयाबीन का एक पौधा जो फलियों से लदा था, कलेक्टर को भेंट कर रहा था। शाम तक प्रांतीय से फ़ोन आ गया कि किसान वाले फ़ोटो के साथ किसान का एक डेस्क इंटरव्यू भी बना कर भेज दो। अपनी वाली ख़बर डस्टबिन में डाल कर कलेक्टर वाली भेज दी। क्या करते' संदीप ने उत्तर दिया।

'हम हैं मताए कूचा ओ बाज़ार की तरह, ये सब जगह की हालत है। ये जो नए लौंडे कलेक्टर बन के आ रहे हैं ये ज़िला ब्यूरो की जगह प्रांतीय को पटा के रखते हैं, जानते हैं होना तो सब वहीं से है' सुधीर ने दिलासा देने वाले अंदाज़ में कहा था।

'आप अभी भी मेल से ही करते हो कुछ और ...?' संदीप ने बात पलटने के लिए कहा था।

'अरे अब तो बहुत बदल गया है, पहले ब्लॉग पर शुरूआत की थी। फिर ख़ुद की ही साइट बना ली है। साढ़े तीन-चार सौ सब्स्क्राइबर हैं जैसे ही कोई नया पोस्ट डालता हूँ सबको मेल से सूचना कर देता हूँ। कुछ ख़ास को एसएमएस भी कर देता हूँ। यूनीकोड फॉण्ट आने के बाद खेल आसान ही गया है' सुधीर ने जवाब दिया था।

'अरे हाँ आपका वह बंदर तो ख़ूब चला था, आधे घंटे तक उसी पर चलता रहा था।' संदीप ने प्रशंसा भरे स्वर में कहा।

'वो तो मुझे भी नहीं पता था कि इतना चलेगा। सुबह जब ऑफ़िस पहुँचा तो वह बंदर और एक कुत्ता साथ घूम रहे थे। पता चला ये बंदर कभी-कभी आता है और आने के बाद आस पास के इलाके में इसी कुत्ते के साथ घूमता है। दुकानदारों के पास जाता है तो वे इसको चाय, पान बगैरह देते हैं जिनको बकायदा खाता-पीता है। मुझे जंच गया मैंने कैमरामेन को बुलाकर घंटे भर का शूट करवा लिया। यक़ीन मानो पहले ही चैनल को जब फ़ोन किया तो उनका कहना था' इट्स डन, आप और किसी को मत बताएँ, साइट पर भी नहीं डालें, हम इसको रात के ख़ास में लेंगे, आजकल बंदर चल रहा है। आप कैसेट भिजवा दें ' सुधीर ने हंसते हुए कहा था।

'बंदर ही बिक रहे हैं आज कल' संदीप ने सुधीर की बात में बात जोड़ते हुए ठहाका लगाया था।

'और बाद में दूसरे चैनलों के शिकायत भरे फ़ोन आते रहे कि आपके पास बंदर था तो आपने हमको क्यों नहीं दिया।' सुधीर ने हंसते हुए ही जवाब दिया।

'सीधे साइट पर नहीं डालते हो आप?' संदीप ने पूछा था।

'नहीं यार एक बार डल जाए तो फिर तो सब जान जाते हैं। पहले आइटम के हिसाब से मोबाइल पर एक-एक को बता कर बेचने की कोशिश करता हूँ अगर बात जम जाए तो ठीक नहीं तो फिर साइट पर लगा देता हूँ।' सुधीर ने उत्तर दिया था।

संदीप और वह दोनों साथ ही आए थे पत्रकारिता में। थोड़ा-सा सीनियर है सुधीर और इसीलिये उसको रिस्पेक्ट करता है संदीप। दोनों को पत्रकारिता के ग्लैमर ने खींच लिया था। शुरूआत में जब वह आए थे तब इलेक्ट्रानिक मीडिया का इतना ज़ोर नहीं था। तब ढूँढ-ढूँढ कर ख़बरें निकालते थे दोनों। संदीप तो पत्रकारिता के बाज़ारीकरण में ढल गया है और शायद इसीलिए प्रिंट मीडिया और वह भी एक बिल्डर के समाचार पत्र के ब्यूरो में खपा हुआ है। मगर वह नहीं खप पाया इस लिए बाहर आ गया। उसके पत्रकारिता के गुरु जो अपना ख़ुद का समाचार पत्र निकालते हैं कहते हैं 'सुधीर, तुम भले ही ये कहते रहो कि तुम अपनी आत्मा-फात्मा टाइप की चीज़ को गिरवी नहीं रख पाए इसलिए बाहर आ गए, पर हक़ीक़त क्या है ये तुम भी जानते हो। दरअसल में तो तुम बाहर ख़ुद नहीं गए हो तुम्हें तो निकाल कर फ़ैंक दिया गया है। मगर एक बात याद रखना पत्रकारिता बेर का पेड़ होती है इसे या तो लगाना ही मत और लगाओ तो छोड़ना मत नहीं तो उम्र भर पत्थर आएंगें'।

कभी कभी तो उसे भी लगता है कि बात सच ही है वह उस व्यवस्था के साथ नहीं चल पा रहा था तो व्यवस्था ने उसको बाहर फ़ैंक दिया है और जहाँ पर वह है वहाँ पर भी क्या कर रहा है? बंदर, कुत्ते, भूत, नागिन के समाचार। उससे कहा जाता है क्रिकेट, क्राइम और सिनेमा पर जो भी मिले झपट लो। कैमरे में वह ही चेहरे रखो जो ठीक नज़र आऐं। एक दो चैनल वालों का तो साफ़ कहना है 'सुधीर जी आप ये गाँव के लोगों को फ्रेम में मत लिया करो, बाइट तो बिल्कुल नहीं, सारी स्टोरी लो प्रोफ़ाइल हो जाती है। जितना हो सके शहरी और वह भी मध्यम वर्गीय या उससे ऊपर के लोग लो।'

एक घंटे में नासिर खान का कोई जवाब नहीं आया तो उसने समाचार को टाइप करवा के फोटो के साथ साइट पर लगवा दिया। 'सर मेल भी कर दूँ क्या सबको' उसके असिस्टेंट ने पूछा तो पहले तो उसने सोचा कि थोड़ा और ठहर जाए नासिर खान के लिए फिर जाने क्या सोच कर उसने कहा 'ठीक है सनी कर दो और हाँ एक काम करना, मेल में हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों में हेडिंग मार देना' कहानी जूनियर नटवर लाल की'। कह कर वह थाने रवाना हो गया था।

थाने में पहुँच कर वह बाइक खड़ी ही कर रहा था कि सेलफोन थर्रा उठा था। 'सुधीर अगर ऊपर से कोई फ़ोन आए तो बिल्कुल मत बताना कि तुम ये स्टोरी साइट पर डालने से पहले मेरे साथ डिस्कस कर चुके थे। तुमने साइट पर जो हेडिंग लगाई है' कहानी जूनियर नटवर लाल की'वह यहाँ क्लिक कर गई है, रात के क्राइम रिपोर्ट में जाएगी। मैं टीम भेज रहा हूँ करवा देना।' नासिर ख़ान ने उसके हलो कहने से पहले ही सारी बात कह ही थीं।

'ठीक है नासिर जी भेज दीजीए टीम, स्टोरी लाइन क्या चाहिए आपको' सुधीर ने हंसते हुए उत्तर दिया।

'वही जो तुम्हारी हेडिंग में है' कहानी जूनियर नटवर लाल की'लड़का तो ज़मानत पर छूट गया है उसके काफ़ी शॉट्स करवा देना स्टोरी के सपोर्ट में। पुलिस की वर्दी में भी करवा देना कुछ शॉट्स और हाँ उसका पिछला कुछ रिकार्ड है क्या?' नासिर ख़ान ने पूछा।

'कुछ ख़ास नहीं है, एकाध बार उपभोक्ता फोरम का सदस्य बनकर किसी दुकानदार से कुछ छोटा मोटा सामान लेने की छुटपुट बातें हैं। ये पहली बार उसने किया है कि पुलिस की वर्दी पहन कर हाइवे पर खड़े होकर बाक़ायदा वसूली की है।' सुधीर ने जवाब दिया।

'नहीं यार ये उपभोक्ता फ़ोरम नहीं चलेगा। ऐसा करो मानवाधिकार आयोग का सदस्य बन कर लोगों को धमकाने का पुराना मामला जुड़वा देना। मानवाधिकार थोड़ा कैची है।' नासिर ख़ान ने जवाब दिया।

'मानवधिकार आयोग? पर वैसा तो कोई मामला पहले दर्ज़ नहीं है' सुधीर ने उलझन भरे स्वर में कहा।

'कौन देखता है? एकाध बाइट करवा देना किसी की सपोर्ट में और हाँ वह उपभोक्ता फ़ोरम भी जोड़ देना इससे नटवरलाल शीर्षक को सपोर्ट हो जाएगा' उधर ने नासिर खान ने जवाब दिया।

'और कुछ ...?' सुधीर ने फिर पूछा।

'बस बाक़ी तो तुम सब जानते ही हो। बस ये ध्यान में रखना कि लड़के के घर के, वर्दी के, हाइवे के और हाँ काली बोलेरो में बैठे हुए सारे शाट करवा देना। जो न हो पाए उसका रीक्रिएशन वहीं किसी लड़के को पकड़ कर करवा देना। यहाँ पर हमारे पास टाइम नहीं होगा रीक्रिएशन का' नासिर खान समझाइश भरे अंदाज़ में कहा।

'ठीक है नासिर जी मैं सब करवा दूंगा आप भेजिए टीम को। वह लड़का वैसे तो मेरा परिचित है पर फिर भी अगर कुछ काम के लिए नहीं मानेगा वह उसके लिए फिर रीक्रिएशन करवा दूंगा अपने बंदे को ड्रेस पहना कर' सुधीर ने लापरवाही के साथ उत्तर दिया।

'ठीक है सुधीर मैं इसको डाल रहा हूँ, तुम सब देख लेना' कह कर नासिर ख़ान ने फ़ोन काट दिया। सेलफ़ोन हाथ में लिए मुस्करा दिया सुधीर। कितनी छोटी-सी कहानी है एक लड़का अपने दोस्तों पर रोब झाड़ने के लिए कहीं से पुलिस की वर्दी का जुगाड़ कर लाया और टू स्टार की वर्दी पहन कर काली बोलेरो गाड़ी में हाइवे पर खड़ा होकर वाहनों की चैकिंग कर रहा था कि पुलिस ने दबोच लिया। हालांकि मामला कुछ विशेष नहीं बना और पुलिस ने जमानत पर छोड़ भी दिया। पर उसके लिए तो मसाला था ही। लड़का चार पांच साल पहले उसके साथ ही काम करता था। अख़बार के दफ़्तर में।

'सुधीर जी रश्मि बोल रही हूँ कहा हैं आप?' इस बार फ़ोन चैनल की रिपोर्टर रश्मी का था।

'मैं थाने में ही खड़ा हूँ रश्मी कहाँ हो तुम' सुधीर ने पूछा।

'बस हम लोग निकल गए हैं पहुँचने में ही हैं आप क्या वहीं मिलेंगे' रश्मी ने पूछा।

'हाँ मैं यहीं हूँ आप लोगयहीं पहुँच जाइयेगा, पहले थाने वालों की बाइट बगैरह कर लेंगे बाद में फिर लड़के पर वर्क करेंगे' सुधीर ने उत्तर दिया।

'ठीक है मैं बस वहीं पहुँच रही हूँ' रश्मी ने कहा और डिस्कनेक्ट कर दिया।

सुधीर स्टोरी के सारे ऐंगल तलाशने लगा। पुलिस का वर्ज़न, लड़के की बाइट, उसके दोस्तों की बाइट और फिर घटना का रीक्रिएशन, इतने में तो दस पन्द्रह मिनट का पैकेज बन ही जाएगा।

'सर ये आप जो करवाते हैं इसमें सब तो झूठ ही झूठ होता है' उस दिन उसको थोड़ा ठीक मूड में देखकर उसके असिस्टेंट सनी ने पूछा था।

'हाँ होता है, मगर क्या करें सच को देखता कौन है?' उसने जवाब दिया था। दरअसल उस दिन वह दोनों 'भूतकथा' के लिए पास के क़स्बे वीरपुर के तालाब पर स्टोरी कवर करवाने गए थे। 'ख़बरदार' चैनल से लगातार फ़ोन आ रहा था, उनके पास अगले हफ्ते की 'भूतकथा' के लिए कोई कहानी नहीं थी। सुबह जब समाचार पत्र उठाया तो एक छोटा डबल कॉलम समाचार था 'वीरपुर में एक और लड़के की तालाब में मौत।' समाचार में इस वर्ष की दौ मोतों और पिछले सालों की कुल मौतों का विवरण था। उस तालाब की तलछटी में काफ़ी मिट्टी गाद होने से दलदल है, अगर कोई ऊपर से कूदता है तो अंदर फंस कर रह जाता है। वीरपुर में उस पेपर का संवाददाता परवेज़ उसका पट्ठा ही था, उसने तुरंत फ़ोन लगाकर बात की और उसको इस ट्रेक पर काम करने का कहा कि कुछ लोगों को तैयार करो जो ये कह सकें कि तालाब ये लोग ख़ुद डूबते नहीं है, कोई उनको खींच ले जाता है। कुछ लोग ऐसे भी तैयार कर लेना जो ये कह सकें कि उन्होंने अपनी आँख से कुछ देखा है वहाँ पर। कैमरे के सामने आने के लिए लोग कितना ही बड़ा झूठ भी बोलने को तैयार हो जाते हैं। शाम को जब परवेज़ का फ़ोन आया तो स्टोरी पक चुकी थी। एक दो मरने वालों के परिवार वाले भी बात करने को तैयार थे कि उनके परिजन को वास्तव में किसी बला ने तालाब में खींच कर मारा है, अन्यथा तो वह बहुत अच्छा तैराक था। तालाब की पूरी स्टोरी करने में दिन भर लग गया था, फिर रात को तालाब के किनारे पर अलग से शूट किया था। धुंआ फ़ैलाकर एक लड़के को तालाब के किनारे पाल पर सफेद चादर उढ़ाकर इधर उधर चलते हुए दिखाना। अंधेरे में तालाब में बड़ा-सा पत्थर फ़ैंककर हलचल दिखाना।

देर रात को जब वे लौट रहे थे तब ही सनी ने वह सवाल पूछा था। 'मगर सर ये तो ग़लत है' सनी ने झिझकते हुए कहा था।

'तुम कभी वैश्या के पास गए हो' सनी के प्रश्न पर उसने उलटा प्रश्न कर दिया था।

'नहीं सर' झिझकते हुए कहा था सनी ने।

'तो जान लो कि वैश्या को वैसा ही बनकर रहना पड़ता है जैसा उसके ग्राहक चाहते हैं, क्योंकि ख़रीदार माल अपनी पंसद का लेता है दुकानदार की पंसद का नहीं' सुधीर के उत्तर पर चुप हो गया था सनी।

'मैं भी वैश्या हूँ, मुझे उतना ही नंगा होना पड़ेगा जितना मेरा ग्राहक चाहता है, मैं अगर नंगा होने से परहेज़ करूंगा, तो ये ग्राहक आएंगे मेरे पास? और भी वैश्याएँ हैं इस मंडी में, अगर मुझे नंगा होने से परहेज़ है तो दूसरे हो जाऐंगे, काम थोड़े ही रुकेगा' सुधीर के उत्तर के साथ ही बात ख़त्म हो गई थी।

'कहिए पत्रकार महोदय, थाने में कैसे? सब ख़ैरियत तो है' थाना प्रभारी ने सुधीर को खड़े देखा तो पूछा।

'बस वही देवेन्द्र की कहानी करना है। टीम आ रही है सो वेट कर रहा हूँ' सुधीर ने उत्तर दिया।

'वो स्टोरी? उसमें क्या है ऐसा?' थाना प्रभारी ने हैरत से पूछा।

'वो तो आप टीवी पर ही देखना, हाँ थोड़ा मुंह हाथ धोकर तैयार होकर आ जाइये, आपकी बाइट लेना है' हंसते हुए कहा सुधीर ने।

'और कुछ मेरे लायक हो तो बताओ?' थाना प्रभारी ने आभार के स्वर में कहा।

'बस ज़रा डिटेल बता दीजिएगा और हाँ एक टू स्टार की वर्दी की ज़रा व्यवस्था करवा दीजिए, रीक्रिएशन में लगेगी, बाद में वापस करवा दूंगा' सुधीर ने कहा।

'हो जाएगी, आप मुंशी के पास से कलेक्ट कर लेना, मैं अभी बोल देता हूँ' कहते हुए थाना प्रभारी चला गया।

टीम के पहुँचते ही काम शुरू हो गया। थाने की प्रोफ़ाइल बनाना, थाना प्रभारी की बाइट वगैरह लेने में घंटा भर लग गया। रश्मि वैसे भी थोड़ी फ़ुर्तीली रिपोर्टर है काम को जल्दी निबटा लेती है। थाना प्रभारी के चेंबर में काफ़ी पीते हुए ही दोनों आगे का शेड्यूल तय कर चुके थे। मुंशी से ड्रेस कलेक्ट करते हुए जब देवेन्द्र के घर पहुँचे तो सनी वहाँ पहले से मौज़ूद था। सुधीर ने सनी को नासिर ख़ान का फ़ोन आने के बाद से ही देवेन्द्र के घर रुकने को कह दिया था ताकि वह इघर उधर ना हो जाए। रश्मि को गाड़ी में ही छोड़ कर सुधीर देवेन्द्र के घर पैदल चला गया। देवेन्द्र ने उसे देखते ही उठकर पैर छू लिए।

'बस बस देवेन्द्र क्या हो गया ये? क्या पुलिस ने फंसा दिया है तुमको' उसने सहानूभूति जताते हुए कहा।

'जी सर मैं तो वर्दी पहना भी नहीं था पुलिस ने रोककर जबरदस्ती पहना दी और फिर मामला बना दिया' देवेन्द्र ने जवाब दिया।

'हूँ वह तो मुझे भी लग रहा था। इसीलिए तो हम पुलिस के ख़िलाफ स्टोरी कर रहे हैं, तुम ऐसा करो सब बोल देना। ओर हाँ कैमरे के सामने थोड़ा नाटक करना पड़ेगा कि कैसे पुलिस ने तुमको वर्दी पहना कर झूठा मामला बनाया, ठीक है?' सुधीर ने समझाते हुए कहा और सनी को गाड़ी से रश्मी और कैमरामैन को बुला लाने का इशारा कर दिया।

रश्मी के आते ही सुधीर ने एक आँख थोड़ी छोटी करते हुए कहा 'देखो रश्मी मैं कह रहा था ना कि पुलिस ने पूरा मामला फ़र्ज़ी बनाया है वही निकला। पुलिस ने इसे रोककर जबरदस्ती वर्दी पहना दी थी। अब ख़बर लेंगे पुलिस वालों की।'

'अच्छा ...! वही-वही ...! बताओ एक कॉलेज के लड़के को कैसे फंसा दिया।' रश्मी ने कुछ अचरज भरे स्वर में कहा।

'चलिए एक काम करिये, पहले तो देवेन्द्र की बाइट ले लीजिए कि कैसे उसकी इच्छा था पुलिस में जाने की और अब कैसे उसके सपने टूट गए। इसे वर्दी पहनते हुए कुछ शूट कर लेते हैं ताकि लगे की पुलिस ने ज़बरदस्ती वर्दी पहनाई थी और फिर कुछ घरवालों की बाइट्स ले लेंगे कि कैसे देवेन्द्र हमेशा पुलिस में जाने की बात करता था और अब उसकी क्या हालत है।' सुधीर ने समझाते हुए कहा।

'ठीक है हम इसका ही पक्ष रखेंगे जनता के सामने कि इस लड़के का आख़िर क्या क़सूर है जो इस निर्दोष को जान बूझ कर फंसा दिया गया।' रश्मी ने सुधीर की बात से सहमति जताते हुए कहा। कैमरामेन ने इस बीच घर के, परिवार के सदस्यों के शॉट्स लेने शुरू कर दिए थे। रश्मी और सुधीर, देवेन्द्र के साथ बात करके उसको सहज बनाने का प्रयास कर रहे थे। कैमरामेन अपना काम धीरे-धीरे करता जा रहा था वैसे भी इन कैमरामेनों को इतना अभ्यास होता है कि अगर रिपोर्टर ना भी आए तो भी ये स्टोरी कर लाएँ।

'ठीक है देवेन्द्र पहले तो तुम ये बताना कि किस तरह तुम्हारी बचपन से ही इच्छा थी पुलिस में जाने की और तुम बचपन में भी झूठमूठ की वर्दी पहन लिया करते थे। पुलिस अधिकारी बनना तुम्हारा सपना था। इसके बाद दूसरी बाइट में हम तुम्हारी पूरी कहानी ले लेंगे कि किस तरह से पुलिस ने तुमको उस दिन फंसा दिया' रश्मी ने समझाइश भरे स्वर में देवेन्द्र से कहा।

'हाँ देवेन्द्र बताओ पुलिस में भर्ती होने की तुम्हारी कितनी इच्छा थी?' रश्मी के पूछते ही देवेन्द्र ने रटा रटाया वही जवाब दे दिया जो रश्मी और सुधीर ने उसे समझाया था। इसके बाद उसकी वह बाइट भी ली गई जिसमें उसने कहा कि पुलिस ने उसे ख़ुद ही वर्दी पहना कर फंसा दिया है, सुधीर जानता था कि दोनों में से कौन-सी बाइट ली जाएगी और कौन-सी नहीं।

उसके बाद देवेन्द्र के घर वालों और उसके दोस्तों की बाइट्स हुईं। सबमें वही बात थी देवेन्द्र तो पुलिस में जाना चाहता था और इसीलिए वह झूठमूठ की बचपन में भी वर्दी पहन लेता था। पुलिस में भर्ती होना उसका सबसे बड़ा सपना था। देवेन्द्र की बचपन की कुछ ऐसी फ़ोटो ढूंड कर उनकी भी शूटिंग करवा ली गई जिनमें वह पुलिस की वर्दी पहने था। उसके बाद साथ लाई गई पुलिस की वर्दी पहनते हुए देवेन्द्र की शूटिंग करवाई गई। इस पर देवेन्द्र के चाचा ने कुछ आपत्ती ली थी पर सुधीर ने यह कह टाल दिया कि इससे स्टोरी में वह बात आएगी के पुलिस ने किस तरह इसको जान बूझकर वर्दी पहनाई थी। वर्दी पहना कर देवेन्द्र के चलते फिरते, लोगों से बात करते हुए शाट्स लिए गए। कुछ देर बाद रश्मी ने सुधीर को आँख से इशारा कर दिया 'इनफ़, काफ़ी निकल जाएगा इसमें से'। चलते समय देवेन्द्र ने फिर सुधीर के पैर छू लिए थे, उसने बस इतना ही कहा 'चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा।'

गाडी में बैठकर उसने चैन की सांस ली थोड़ा मुश्किल लग रहा था उसे ये सब होना। देवेन्द्र अगर उसका परिचित नहीं होता, तो-तो होना ही नहीं था। उसके बाद एकाध बाइट मानवाधिकार और उपभोक्ता फोरम वाली ले ली। उसमें तो ज़्यादा परेशानी नहीं थी। उपभोक्ता फोरम के सदस्य बनने का मामला तो वैसे भी सही ही था मानवाधिकार एक अलग से जोडं दिया था उसमें।

किराए की काली बोलेरो में सनी को वर्दी पहना कर हाइवे पर जाकर सारा का सारा रीक्रिएशन करवा लिया गया। ये नाट्य रूपांतरण (रीक्रिएशन) भी अजीब चीज़ है इसकी आड में खुल कर खेला जा सकता है। वाहनों को रोब देकर रोकने, उनसे पैसा वसूली करने का पूरा नाट्य रूपांतरण सनी पर हो गया। स्टोरी पूरी पक गई थी। पुलिस की बाइट, देवेन्द्र और उसके परिवार की बाइट्स, देवेन्द्र के वर्दी वाले शाट्स, उपभोक्ता फ़ोरम और मानवधिकार वाली बाइट्स फिर ये रीक्रिएशन, इतने में तो दस पन्द्रह मिनिट का पैकेज निकल ही आएगा।

'पीस कहाँ करोगी रश्मी' सुधीर ने पूछा।

'यहीं कर लूं' रश्मी ने कहा।

'यहाँ इफ़ेक्ट नहीं आएगा, तुम्हारा चेहरा भी थका लग रहा है। थाने चलते हैं वहाँ थाना प्रभारी के चेम्बर में थोड़ा हाथ मुंह धोकर फ़्रेश हो लेना फिर वहीं पर पीटूसी कर लेना।' सुधीर ने कहा।

'अच्छा ठीक है, चलो वहीं ये वर्दी भी वापस कर देंगे और धन्यवाद भी दे देंगे' रश्मी ने कहा।

हाइवे से वापस थाने आकर वहाँ रश्मी ने अपना पी टू-सी कर लिया कि किस तरह से एक कॉलेज जाने वाले लड़के ने नटवरलाल के रास्ते पर चलते हुए कभी मानवाधिकार आयोग का सदस्य तो कभी पुलिस वाला बन कर पुलिस को परेशान कर रखा है।

'अच्छा सुधीर जी भागती हूँ, अभी जाकर अपलोड भी करना है। कुछ ख़ास हो तो बताइयेगा' रश्मी ने चलते समय कहा और गाड़ी में बैठ गई।

सुधीर ऑफ़िस आया तो सनी ने आते ही फिर पूछा 'सर उस लड़के को कोई नुक़सान तो नहीं होना न इससे?'

'हम यहाँ अपना फ़ायदा देखने बेठे हैं ना कि दूसरों का नुक़सान देखने और उसको जो होना था वह तो हो ही गया अब इससे ज़्यादा क्या होगा।' सुधीर ने कुछ कड़े स्वर में उत्तर दिया।

'सुधीर बढ़िया स्टोरी है, बस तुम्हारे जूनियर नटवरलाल को छोटा नटवरलाल कर दिया है जूनियर में बात बन नहीं रही थी। रात को क्राइम रिपोर्टर पर देखना। बढ़िया टीआरपी आएगी, प्रोमो तो शुरू भी कर दिया है' रात आठ बजे नासिर ख़ान ने फ़ोन लगाकर सूचना दी थी।

रात साढ़े दस बजे क्राइम रिपोर्टर जब चालू हुआ तो वही हेडिंग चल रही थी 'कहानी छोटे नटवरलाल की।' और फिर वही सब चलने लगा। ऐंकर चीख-चीख कर कह रहा था 'देखिए इस मासूम चेहरे को, जो कभी उपभोक्ता फ़ोरम का सदस्य, कभी मानवधिकार आयोग का सदस्य तो कभी पुलिस वाला बनकर लोगों को ठगता है।' इसके बाद देवेन्द्र के वर्दी पहनते हुए और वर्दी पहने हुए शाट्स स्क्रीन पर चलने लगे। ऐंकर फिर चीखा 'ये पुलिस वाला बनना चाहता था, नहीं बन पाया तो नकली पुलिस वाला बनकर लोगों को लूटने लगा।' और फिर धड़ाधड़ देवेन्द्र, उसके परिवार वालों और दोस्तों की बाइट्स शुरू हो गईं। सबमें एक ही बात कि देवेन्द्र बचपन से ही पुलिस वाला बनना चाहता था। 'इसकी मासूम सूरत पर मत जाइये ये इतना शातिर है कि कभी मानवधिकार आयोग का सदस्य बन जाता है, तो कभी और कुछ।' इसके बाद उन लोगों के बाइट्स आने लगे जो इस बारे में बता रहे थे। 'ये इतना चलाक है कि पुलिस ख़ुद भी हैरान और परेशान है इसको लेकर।' थाना प्रभारी की बाइट्स शुरू हो गई कि किस तरह देवेन्द्र को हाइवे पर धर पकड़ा गया था। 'कालेज जाने वाला ये छोटा नटवरलाल इतनी सफ़ाई से अपना काम करता है कि किसी को पता भी नहीं चलता है कि ये असली है या नकली?' ऐंकर के चीखते ही रीक्रिएशन के सीन चालू हो गए। पुलिस की वर्दी पहने सनी के बोलेरो में बैठकर जाते, हाइवे पर गड़ियों से वसूली करते ये सारे के सारे सीन एक के बाद एक आने लगे और पीछे से एंकर का स्वर मानो वह किसी दाऊद या अबू सलेम के बारे में बता रहा है 'देखिए इसे, ये वही है जो कुख्यात है छोटा नटवर लाल के नाम से।' रश्मी के पीटूसी के साथ जब स्टोरी ख़त्म हुई तो उसका सेलफोन बज उठा 'थैंक्स सुधीर जी बढ़िया स्टोरी बनी है' उधर रश्मी थी।

सुबह जब सोकर उठा तो देखा थाना प्रभारी के दो मिसकाल हैं 'कहिए सर क्या हो गया? स्टोरी पसंद नहीं आई क्या?' सुधीर ने काल लगा कर पूछा। 'नहीं भई बहुत अच्छी थी मैंने तो केवल ये बताने के लिए फ़ोन किया था कि देवेन्द्र ने रात को स्यूसाइड कर लिया, उसकी लाश पंखे पर झूलती मिली है।' थाना प्रभारी ने जवाब दिया।

'अरे ...कैसे? कब ...?' चौंकते हुए कई प्रश्न कर डाले सुधीर ने।

'रात को की है, कब, ये तो पी.एम. रिपोर्ट के आने के बाद ही पता चलेगा ...' थाना प्रभारी ने कहा।

'कोई स्यूसाइड नोट वगैरह ...?' चिंता में अपना प्रश्न आधा ही छोड़ दिया सुधीर ने।

'नहीं कुछ भी नहीं' थाना प्रभारी ने उत्तर दिया।

'थैंक्स गॉड, वैसे आप थोड़ा देख लें परिवार वाले कहीं ।' फिर बात आधी छोड़ दी सुधीर ने।

'अरे, आप चिंता मत करो, हम बैठे तो हैं' कहते हुए थाना प्रभारी ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया। दोनों हाथों से सिर थाम कर सुधीर वहीं बिस्तर पर ही बैठा रहा। आत्मा कि आवाज़, ज़मीर की पुकार जैसी बातें उसने सुन रखी थीं, डर रहा था कहीं उसकी आत्मा भी ऐसा ही कुछ न करने लगे। गिल्टी या अपराध बोध जैसी फ़िज़ूल की बीस-पच्चीस साल पहले ख़त्म ही चुकी चीज़ें कही धर न लें उसको। उसने डरते हुए अपने अंदर झांका कि देख ले वहाँ आत्मा किस हालत में है, कही गुस्साई हुई तो नहीं बैठी है। अंदर झांकते ही वह हैरत में पड़ गया, आत्मा तो कहीं थी ही नहीं चारों तरफ़ बाज़ार पसरा हुआ था। कुछ अलफ़ नग्न दूकानदार तरह-तरह की चीज़ें लेकर बैठ थे और कई सारे पूरे नग्न ख़रीदार टूट-टूट कर वे सामान ख़रीद रहे थे। उसने सिर को थोड़ा और अपने अंदर घुसाया कि शायद आत्मा कहीं नज़र आ जाए पर वह कहीं नहीं थी। चैन की सांस लेते हुए उसने सिर को वापस निकाल लिया।

सेलफोन थर्रा रहा था, परवेज का नम्बर डिस्पले हो रहा था 'हाँ परवेज बोल ...?' उसने पूछा।

'हाँ भैया दो बढ़िया समाचार हैं, पास के आदिवासी इलाके में एक बच्चे की मौत हुई है। गाँव वालों का कहना है कि बच्चा भूख़ से मरा है' परवेज़ उत्साह में था?

'आदिवासी? नहीं परवेज़, बहुत लो प्रोफ़ाइल हो जाएगा मामला, कोई भी नहीं ख़रीदेगा' कुछ नागवारी के स्वर में कहा उसने।

'पर भैया, भूख़...' परवेज़ की बात को बीच में ही काट कर कहा उसने 'हाँ ठीक है, दूसरा वाला समाचार बताओ? जो भूख़ा रहेगा वह तो मरेगा ही, इसमें नया क्या है'।

'दूसरा तो यूं ही है, यहाँ का एक लड़का किसी लड़की के चक्कर में सरकारी अस्पताल की दूसरी मंज़िल की छत पर चढ़ गया है और कूदने की धमकी दे रहा है' परवेज़ ने साधारण लहज़े में कहा।

'क्या ...? गुड वेरा गुड कब से चढ़ा है? लड़की कहाँ की है? लड़के की प्रोफाइल क्या है?' लगभग उछलते हुए कहा सुधीर ने?

'सुबह से ही चढ़ा है एक ही बात कह रहा है, लड़की एक बार आ जाए नहीं तो कूद जाऊंगा। लड़की भी यहीं की है, दोनों ठीक घरों से हैं' परवेज़ ने उधर से उत्तर दिया।

'लड़की आई क्या?' सुधीर ने उत्सुकता से पूछा।

'नहीं भैया वह तो नहीं आएगी, अच्छे परिवार की लड़की है और ये एक तरफ़ा प्यार का मामला है। लड़का उसे परेशान किया करता था परेशान होकर लड़की के परिवार वालों ने थाने में मामला भी दर्ज़ करवाया था' एक सांस में उत्तर दिया परवेज़ ने।

'गुड वेरी गुड, उसे उतरने मत देना, मैं बस पहुँच ही रहा हूँ कैमरामेन को लेकर, तुम ध्यान रखना मेरे पहुँचने तक उतरे नहीं' कहते हुए सुधीर ने मोबाइल पटक कर जल्दी से कपड़े वगैरह उठाए और बाथरूम में जाने को ही था कि फिर सेलफोन थर्राया 'हैलो सुधीर जी, लड़के की लाश को पी.एम. के लिए भेज रहे हैं, आपको शाट्स लेने हो तो रोक लूं थोड़ी देर' थाना प्रभारी का स्वर आया।

'नहीं नहीं सर, कौन देखेगा एक लड़के की आत्महत्या का समाचार, कोई लड़की वड़की का चक्कर होता तब भी कुछ उम्मीद थी पर आत्मा कि आवाज़ पर मरने वालों का समाचार ख़रीदेगा कौन ...? और रहा सवाल फालोअप का तो हमारे यहाँ तो एक दिन के हीरो होते हैं कल वह लड़का हमारा हीरो था आज नहीं है। हम कल के समाचारों को कल ही भूल जाते हैं, प्रिंट मीडिया कि तरह फालोअप पर फालोअप देकर पकाते नहीं हैं पाठकों को। आज तो वह वीरपुर की टंकी पर चढ़ा प्रेमी हमारा हीरो है। फिर भी थैंक्स आपको।' कहते हुए सुधीर ने मोबाइल का स्विच ऑफ़ किया और सर झटकता हुआ बाथरूम में घुस गया।