छोटी-सी बात / सत्यनारायण सोनी

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोटी-सी बात कदै-कदै काळजै चिप ज्यावै। घणा ओखा करै। पण आ छोटी बात कठै ही। बाप-बेटा जावै हा बस अड्डै कानी। बाप रै कांधै भारी-सो अेक बैग अर बेटो बगै हो जाबक खाली, जाबक निरवाळो, किणी पावणै री भांत। बाप किणी आछै मिजमान री गळाई आपरै बेटै नै बस चढावण जावै हो। बाप अेक साधारण खेतीखड़ मजूर। बेटो डॉक्टरी री पढाई करै। घणो हुंस्यार, घणो मेहनती। स्याणो अर समझदार। पण आ कीकर व्है सकै के बेटो किणी अफसर री भांत चहलकदमी करतो जावै अर बाप किणी मातहत कर्मचारी-सो बोझ तळै दब्यो। आ तो आपणी संस्कृति अर परम्परा रै साव उळटी बात ही। पांच-सातेक दिन पैली तो आयो हो श्रवणसिंह कोटा सूं। लुळÓर प्रणाम कर्यो हो म्हांनैं दूर सूं ई, दिखतां पाण। ओ ईज भारी-भरकम बैग उणरै कांधै हो। भळै नजीक पूग्यो तो मुळकतां अर निंवता थकां म्हारा पग चुचकार्या। पड़ोसी चरणै री दादी देवलोक हुयी ही उण दिन अर म्हैं बां रै घर रै साम्हींसाम खड़्यो हो। घर रै आसै-पासै लोगां रो जबरो क_ हो। म्हारा पिताजी भी बठै इज बैठ्या हा। गांव रा बूढा-वडेरा ई मोकळा हा। बां सगळां म्हारै कानी घणै इचरज सूं देख्यो। पिताजी तो पूछ भी लियो, ओ छोरो?ÓÓ डॉक्टरी रो कोर्स करै कोटा में। नत्थूसिंघ राजपूत रो बेटो है, म्हारो चेलो।ÓÓ बतांवता थकां म्हनै घणो गुमेज हुवै हो। पांख लागग्या हा म्हारै अर म्हैं वायरै सूं बातां करै हो जाणै। म्हारै वास्तै बा घणै हरख री घड़ी ही। लायक चेलो अर लायक गुरु हुवै जद मान-सम्मान तो हुवै ई।ÓÓ लोग बातां करै हा। आजकाल रा गुरुवां माथै छींटाकसी भी हुवण लागी ही। गांव में लोग जद भेळा बैठै अर किणी बात माथै चरचा छिड़ ज्यावै तो बातमांय सूं बात निकळती ई जावै। चरचा घणी लाम्बी चालै। आज रैगुरुवां अर आधुनिक चेलां रा ग्रंथ खुलण लाग्या तो खुलता ई गया। बूढा-वडेरा आपरै जमानै नै याद करै हा। बां रै जमानै में गुरुवां रो जको आव-आदर हो बो अबार कठै! अबार तो गुरु-चेला साथै बैठÓर दारू पीवै। साथै-साथै सिगरेटां रा सपीड़ मारै। अेक इज हथाळी माथै फटक-फटकÓर चिमठी-चिमठी जरदो लगावै। पण म्हानै आं गुरुवां सूं कीं न्यारो अर कीं खास ई बखाणीज्यो हो। म्हारो सीनो जरूरत सूं कीं बेसी ई फूलग्यो हो। म्हैं श्रवणसिंह अर उणरै बाप नै बस-अड्डै कानी जांवतां देख्या। बै जावै हा अर म्हारै कानी उणांरी पीठ ही। म्हैं इन्नै-बिन्नै तकायो। म्हैं सोचै हो- अबार कोई पूछ नीं लेवै कै ओ आपरो बो इज लायक चेलो है कांईं जको लारलै दिनां आपरै पगां धोक खावै हो? बातड़ी सझगी, कुण ई नीं पूछ्यो। पण आ बात केई ताळ म्हारै हियै मांय गडती रैयी। जाबक भलो आदमी है नत्थूसिंह। दोय बेटां रो बाप। अेक बेटी भी ही। तीनूं टाबर म्हारै कनैं भणता। उण वगत म्हैं गांव री प्राथमिक पाठसाळा मांय भणांवतो हो। तीनूं ई आप-आपरी जमात में पैली ठौड़ रैंवता। सावित्री, श्रवणसिंह अर करणीसिंह नांव। सावित्री बड़ी ही। पांचवी में ही जद तीन दिन ताव चढ्यो तकड़ो अर बा बच नीं सकी। घणा दिनां तांई इण पीड़ सूं पिंड नीं छुड़ा सक्यो हो म्हैं। कांईं ठा कित्ती तरक्की करती बा। म्हैं पढ़ाई में इत्ती तेज लड़की पैली वार देखी ही। गुरुजी जित्तो पढांवता उणसूं ई बेसी जाणन-वाळी। हुंस्यार टाबर जद अेक स्कूल छोडर दूजी स्कूल में दाखलो लेवणो चावै तो टीसी काटती वेळा गुरुजनां नै घणो दुख हुवै। आपरै स्कूल में भणावण सारू उणरै मायतां रा निहोरा काढीजै। पण कोई प्रतिभा जद दुनिया सूं ई व्हीर व्है जावै तो दु:ख व्हैणो सुभाविक है। बां दिनां म्हारै दुख रो पार नीं हो। आगलै बरस श्रवणसिंह पांचवीं में हो। नवोदय विद्यालय में दाखलै सारू फार्म भरीजै हा। हेडमास्टर साÓब उणरो इज फार्म भरवा दियो। हिन्दी री त्यारी रो जिम्मो म्हनै सूंप्यो। नवोदय सारू उणरो चयन हुयो तो म्हारै हरख रो पार नीं रैयो। हेडमास्टर साÓब तो उणरो फोटू पण अखबार में छपवायो। बां दिनां सरकारी स्कूल रै वास्तै आ बड़ै जस री बात मानीजती ही। श्रवणसिंह अबार नवोदय-विद्यालय रो विद्यार्थी हुयग्यो हो। उणरो बाप म्हारी घणी बिड़द गांवतो। म्हैं वां नै समझांवतो कै टाबर री मेहनत काम आई है। पण बो तो आपरो तर्क देंवतो, पाणी तो बादळ मांखर ई बरसै गुरुजी!ÓÓ उण टाबर रै मन में म्हारै सारू अणपार सरधा ही, आज भी है। नवोदय सूं बारवीं पास करतां ई बो पीएमटी री त्यारी में जुटग्यो। कठै ई कोई कोचिंग क्लास में नीं गयो। खुद री त्यारी रै बळ बो एमबीबीएस में दाखिल हुयग्यो। लोग लाखूं-लाख खरच करÓर भी खाली हाथ रैय ज्यावै, पण नत्थूसिंघ रै होनहार बेटै रो ओ चमत्कार देख सगळां नै इचरज हुयो। आ तो आखै गांव सारू गुमेज करणजोग बात ही। म्हारै जिस्या मास्टरां सारू तो और ई बेसी। चेलो चोर, डाकू, जेबकतरो, बदमास बणै तो दु:ख हुवै भलां ई नां हुवै पण किणी बड़ै ओहदै माथै जावै तो हरख जरूर हुवै। भळै बा हरख री बात बो आपरै बेली-साथियां में सांझी करण सूं भी नीं चूकै। पण आज बाप रै खांदै बेटै रो बैग देखÓर म्हारो तो सत्त ई निकळग्यो। गुरुवां सारू अणपार सरधा राखण-वाळो चेलो बाप नै नौकर री भांत बरतसी, आ तो सुपनै में भी नीं सोची ही। कोर्स करती वेळा ई इणरै मन में ओ भाव आयग्यो तो डाक्टर बण्यां तो ठा नीं कांईं हुसी? विचारां रो तूफान गरणेट चढतो जावै हो। म्हारै भीतर भतूळिया-सा उठै हा। विचारां रो अेक अजीब-सो खळबळाटो हो। म्हारै जीव नै जक नीं हो। अेक चढै अनै अेक उतरै। ओ अेक अैड़ो अळोच हो जिको किणी साथै बांट्यो भी नीं जाय सकै। बरसां पैली पढ्योड़ो अेक सेर म्हारै माथै में गेड़ा काटै हो- 'जिनसे उम्मीद थी बनाएंगे मजार मेरा। वो ही मेरी कब्र से पत्थर चुरा के ले गए॥Ó म्हनै आपरी उम्मीदां माथै पाणी फिरतो-सो लखायो। आखै अरमानां री राख बणगी जाणै। उणी वगत साम्हीं सूं नत्थूसिंघ आंवतो दीस्यो। म्हारै मन रो उचाट अर उणियारै री उदासी बधगी। पण नत्थूसिंघ तो म्हनै दूर सूं देखÓर मुळक्यो। नजीक पूग्यो तो 'गुरुजी प्रणामÓ कैयÓर म्हारो मान बधायो। उम्र में म्हारै सूं बड़ो है पण भळै ई प्रणाम करै। गुरुवां सारू उणरै हियै मांय सिरधा रा भाव मावै नीं। आपरै लाडेसर री कामयाबी रो सेवरो गुरुवां रै सिर बांधै। आपरै भीतर री सगळी ऊरजा बटोरता थकां म्हैं उणरो अभिवादन अंगेज्यो। मूंडै मुळक ल्यावण रा जतन पण कर्या। बो म्हारै नजीक आयÓर थमग्यो। आपोआप बोलण ढूक्यो- सरमणियै नै चढाÓर आयो हूं ओऽ! आपरी भोत बडाई करै। संकाळू है। इन्नै-बिन्नै किन्नै ई को जावै नीं। पढाई में मगन रैवै।ÓÓ नत्थूसिंघ बस आपरी ध्यान में ई बोलतो जावै हो अेक सांस, बैग भारी हो, म्हैं कैयो, तेरै सूं कोनी चकीजै, बजन भोत है, तेरै सूं ई बेसी, लै, म्हैं चकल्यूं। पण क्यांरो मानै, म्हनै तो हाथ ई को अड़ाण दियो नीं। बोझ तळै दब्यां जावै हो, अठै-सी आयनै तो म्हनै खोसणो पड़्यो।ÓÓ बण गळी कानी हाथ करतां कैयो अर भळै बोल्यो, खेतीखड़ां नै ओ इत्तोÓक बोझ के मायनो राखै ओ, गुरुजी!ÓÓ

(2005)