छोटी जो बड़ी वो / मनोहर चमोली 'मनु'
रिनछिन के पेंसिल बाॅक्स में मिटनी, छिलनी और पेंसिल थी। रिनछिन ने दो और नई पेंसिल खरीदी। नई पेंसिलों को भी उसने बाॅक्स में रख दिया। एक नई पेंसिल बोली-"मैं लाली हूँ। ये हरियन हैं। आज से हम भी इस बाॅक्स में रहेंगे।"
मिटनी ने जवाब दिया-"स्वागत है। ये छिलनी है।"
बाॅक्स की पेंसिल बोली-"मैं नीलू हूँ। कभी मैं भी तुम्हारी तरह नई थी। इतनी ही लंबी। आज देखो। मैं मिटनी की तरह छोटी हो गई हूँ।" यह कहकर नीलू सुबकने लगी। तभी रिनछिन ने लाली और हरियन को बाॅक्स से बाहर निकाला। छिलनी की मदद से उन्हें छिला और फिर बाॅक्स में रख दिया। बाॅक्स में वे सब अभी बातें कर ही रहे थे कि रिनछिन ने बाॅक्स खोला। लाली को बाहर निकाला। लाली से अपना होमवर्क पूरा किया। फिर उसने हरियन की मदद से ड्राइंग बनाई।
होमवर्क करने के बाद उसने लाली और हरियन को पेंसिलबाॅक्स में रख दिया। नीलू सिसकने लगी। कहने लगी-"मैं अब यहाँ नहीं रहूंगी। रिनछिन मुझे अपने हाथ में नहीं लेगी तो मेरा यहाँ क्या काम। इस बार जैसे ही बाॅक्स खुलेगा, मैं छिटककर बाहर आ जाऊंगी।" छिलनी और मिटनी ने नीलू को समझाया। लेकिन वह नहीं मानी।
सुबह नीलू को मौका मिल ही गया। अचानक रिनछिन के हाथ से बैग क्या छूटा, पेंसिल बाॅक्स खुल गया। नीलू छिटककर किसी काॅपी के बीच में जा छिपी। रिनछिन ने स्कूल मंे नई पेंसिल से काम किया। इंटरवल के बाद पांचवा पीरीयड ड्राइंग का था। आसमां और सुहानी ने रिनछिन से ड्राइंग करने के लिए पेंसिलें मांगी। रिनछिन ने लाली और हरियन को दे दिया। संयोग से ड्राइंग पीरीयड के बाद पढ़ाई नहीं हुई। स्टूडेंट्स मस्ती करते रहे।
छुट्टी होने पर रिनछिन आसमां और सुहानी से अपनी पेंसिलें लेना भूल गई। घर लौटकर रिनछिन को देर रात याद आया कि सुबह अंग्रेजी, गणित के साथ-साथ हिन्दी में होमवर्क मिला है। उसने बैग खोला और होमवर्क करने बैठ गई। यह क्या! बाॅक्स में पेंसिल नहीं थी। रिनछिन ने स्कूल बैग उलट दिया। काॅपी किताबों के साथ नीलू भी बाहर आ गई। रिनछिन ने नीलू को चूमते हुए कहा-"थैंक्यू। आज दोनों नई पेंसिल तो स्कूल में ही छूट गईं। तुम न होती तो मैं होमवर्क ही नहीं कर पाती। कल स्कूल में डांट भी पड़ती।"
नीलू रोने लगी-"अब मेरी ज़रूरत ही कहाँ हैं। अब मैं किसी काम की जो नहीं रही।" रिनछिन चैंकी। फिर नीलू को सहलाते हुए बोली-"तुम आकार में जितनी घटोगी, तुम्हारी उम्र उतनी ही बड़ी मानी जाएगी।"
नीलू ने चैंकते हुए पूछा-"वो कैसे?"
रिनछिन ने हंसते हुए जवाब दिया-"सीधी-सी बात है। तुमसे जितना काम लिया जाएगा, तुम उतनी घिसोगी। जब घिसोगी तो छीली जाओगी। छीली जाओगी तो आकार छोटा होगा ही।"
नीलू सोचने लगी। रिनछिन ने बताया-"नई पेंसिल तो लगभग पचास किलोमीटर लंबी लाइन खींचेगी। वहीं तुमने तो यह सफ़र तय कर ही लिया है। नई पेंसिल बार-बार घटने के लिए छीली जाएगी। वहीं तुमने छीले जाने की बहुत-सी पीड़ा सहन कर ली है।" नीलू चुपचाप सुनती रही।
रिनछिन ने कहा-"नई पेंसिल को पहली बार सारे अक्षर और संख्याओं को बनाना सीखना होता है। वहीं तुमने हजार-हजार बार उन अक्षरों को और संख्याओं को बनाया है। क्या नहीं बनाया?" नीलू क्या जवाब देती। वह चुप ही रही।
रिनछिन ने हंसते हुए बोला-"याद करो, कई बार तुम्हारी वज़ह से किए गए स्कूल और होमवर्क में मुझे शाबासी मिली है। ऐसे कई मौके आए हैं जब तुम्हारी बनाई ड्राइंग में मुझे इनाम मिले हैं। मेरी कई काॅपियों पर तुम्हारा लिखा हुआ काम है। तुम मेरी दोस्त हो। सहयोगी हो।" यह सुनकर नीलू गर्व से भर गई। अब वह ख़ुशी से होमवर्क करने के लिए तैयार थी।