छोटी परछाइयाँ / वाल्टर बेंजामिन / शशांक दुबे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
वाल्टर बेंजामिन »

निष्‍काम प्रेम

निष्‍काम प्रेम का स्‍वभाव और उसकी विशेषता सबसे ज्‍यादा उस नियति से व्‍याख्‍यायित होती है जो इसे किसी के नाम से जोड़ देता है, खासकर व्‍यक्ति के पहले नाम के साथ। शादी स्‍त्री से उसका मूल उपनाम छीन लेती है और उसकी जगह उसके पति का उपनाम लग जाता है। और ऐसा नहीं है कि इससे उसका पहला नाम अनछुआ रहा जाता है - सेक्‍स के लगभग हर समागम में यही घटित होता है। उस स्‍त्री का मूल नाम कई घरेलू नामों की छाया में घिरकर बरसों तक, बल्कि दशकों तक लुप्‍त रहता है। इस व्‍यापक अर्थ में एक नाम की नियति के संदर्भ में ही (उसके शरीर के संदर्भ में नहीं) विवाह का निष्‍काम प्रेम (प्‍लेटोनिक लव) के मौलिक और महत्‍वपूर्ण अर्थ से विरोधाभास है, क्‍योंकि प्रेम अपनी इच्‍छा को नाम में पूरा नहीं करता, बल्कि वह प्रेयसी को उसके नाम में प्‍यार करता है, उसके नाम से ही उसे हासिल करता है और उसके नाम को पूजता है। सच तो यह है कि प्‍लेटोनिक प्रेम नाम को - यानी कि पहले नाम को सहेजता है और उसकी निगरानी करता है। नाम को न बदलना बनाव की वास्‍तविक अभिव्‍यक्ति है, दूर से किया गया प्‍यार उसकी विशिष्‍ट निशानी है। प्रेम का केंद्र नाम होता है और एक प्रकाशित केंद्र बिंदु की तरह उस नाम से ही प्रेयसी का अस्तित्‍व नि:सृत होता है। इस अर्थ में 'डिवाइन कॉमेडी' और कुछ नहीं बिएत्रिस के नाम के चारों ओर लिपटा हुआ प्रभामंडल है जो इस विचार का सर्वाधिक शक्तिशाली प्रतिनिधित्‍व करता है कि ब्रह्मांड में सारी शक्तियों और प्राणियों का उदय प्रेम से जन्‍मे नाम से ही हुआ है।

असफलता की ताकत

जब हम असफल होते हैं तो अपने आप को तुच्‍छ मानने लगते हैं। भले ही हम सक्षम हों, मजबूत हों, असफलता हमारा मुँह चिढ़ाती है और हम नसीब को रोने लगते हैं। लेकिन क्‍या हमने कभी सफलता पर अपनी खूबियों को जानने की या अपनी तकदीर पर खुश होने की कोशिश की है? चाहे लोकप्रियता हो, शराब हो, पैसा हो या प्‍यार-हर तबके में हमारी कुछ कमजोरियाँ होती हैं और कुछ खूबियाँ, लेकिन सफलता पर आत्‍मुग्‍ध होना एक ऐसी खाई में कूदने के समान है जहाँ मैल और ठोकर के सिवा कुछ नहीं है। यदि हम इसी घेरे में रहते हैं तो हमसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं। शायद सफलता की यही सबसे बड़ी कीमत है, जो हमें चुकानी होती है। इसलिए ताकत पहचानने के लिए असफलता जरूरी है।

गरीब के जलवे

किसी भी उत्‍सव-समारोह में शिरकत करना इतना मुश्किल नहीं है, जितना मुश्किल ईश्‍वर की प्रकृति के साक्षात दर्शन करना है। यह प्रकृति आवारा, बदमाशों और भिखमंगों पर जितनी मेहरबान होती है, उतनी अमीरों पर नहीं। इस कटु सत्‍य का आभास आपको तभी हो सकता है, जब एक बार आप इटालियन विला के गेट पर जाऐं। आपकी वहाँ जाकर तमन्‍ना होगी सुंदर झील और दिग्‍गज पहाड़ को खिड़की से निहारने की। आप वह नजारा देखने को बेताब होंगे, जिसे अब तक आप कोडक कैमरे की मेहरबानी से देखते चले आए होंगे। लेकिन जैसे ही आप खिड़की के पास पहुँचेंगे आपको तस्‍वीर नहीं, जीती-जागती तस्‍वीरें दिखाई देंगी - वे तस्‍वीरें, जिन पर ऊपर वाले ने स्‍वयं अपने हाथों से हस्‍ताक्षर किए हैं।

ये नजदीकियाँ

अक्‍सर मैं एक सपना देखा करता था कि मैं सीन नदी के बायें किनारे पर नौत्रदेम के सामने हूँ। बाद में वास्‍तव में जब मैं वहाँ बहुत देर तक रहा तो नोत्रेदेम सरीखा कुछ भी दिखाई नहीं दिया। दिखी तो ईंटों की एक धुँधली सी विशाल इमारत जो लकड़ी की फेन्‍स से घिरी हुई थी। लेकिन चूँकि मैं नोत्रेदेम के सामने खड़ा था इसलिए अभिभूत था और सवाल यह कि मुझे क्‍या चीज अभिभूत किये हुए थी? उसी पेरिस को देखने की उत्‍कंठा जिसे मैंने स्‍वप्‍न में देखा था? आखिर यह ललक क्‍यों थी? और फिर यह निहायत ही टूटी-फूटी चीज कहाँ से आई? शायद यह सपने का ही असर था कि जिस चीज को आपने सपने में बार-बार, करीब से देखा, उसे हकीकत में जब देखा तो कायाकल्‍प हो चुका था। सुखदर हसरतें, वास्‍तविक छवि की दहलीज पर पैर रखते ही धुँधला चुकी थीं।

छोटी परछाइयाँ

दोपहर में परछाइयाँ बिल्‍कुल छोटी, धारदार और नुकीली हो जाती हैं। ऐसा लगता है, मानो परछाई अपनी वस्‍तु के ही चरण छू रही है। यह परछाई खामोशी से, चुपके-चुपके, पीछे की ओर झुकते हुए अपने रहस्‍यमय बिल में घुस जाना चाहती है। तभी समय आता है सिमटे-दबे हुए जरथुस्‍त्र का। जरथुस्‍त्र यानी गर्म जिंदगी की दोपहर का विचारक। इसीलिए कहते हैं, गहन ज्ञान हमेशा चीज की समझ को धारदार बनाता है, ठीक वैसे ही जैसे सूर्य अपनी परकाष्‍ठा में परछाइयाँ बनाता है।