छोटी भूमिकाओं के गहरे प्रभाव / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 05 अक्टूबर 2018
भोजन की थाली में दाल, रोटी और सब्जी मुख्य होती है परंतु चटनी, अचार, कढ़ी, पापड़ भी सहायक के रूप में परोसे जाते हैं। कभी-कभी मरीज के इलाज में आयुर्वेद, होम्योपैथी और एलोपैथी साथ-साथ इस्तेमाल होते हैं। इस उम्मीद के साथ कोई तो असर करेगा। इसी तरह फिल्म में नायक, नायिका और खलनायक के साथ चरित्र अभिनेता होते हैं, जो फिल्म के मनोरंजन में इजाफा करते हैं। कभी-कभी फिल्मकार केवल प्रमुख किरदारों के दम पर ही फिल्म बना लेते हैं। राज कपूर की 'संगम’ के 45 मिनट के क्लाइमैक्स दृश्य में केवल तीन पात्र त्रिभुज के आकार के अनुरूप घूमकर अपनी-अपनी बात करते हैं। आज प्रदर्शित होने वाली 'लवयात्री’ में केवल दो दृश्यों में अरबाज खान और सोहेल नजर आते हैं परंतु वे यादगार हो जाते हैं। इसी तरह आमिर खान द्वारा बनाई गई फिल्म 'जाने तू या जाने ना’ में भी इन दोनों भाइयों ने चंद दृश्यों में ही गजब का प्रभाव उत्पन्न किया था परंतु इनकी नायक के रूप में अभिनीत फिल्में असफल रहीं गोयाकि वे चटनी, पापड़ भूमिकाओं में पसंद किए जाते हैं।
छठे दशक में रशीद खान ऐसे ही कलाकार थे, जिन्हें राज कपूर और देवानंद अपनी अधिकांश फिल्मों में अवसर देते थे। राज कपूर की 'बॉबी' में फरीदा जलाल अभिनीत पात्र केवल दो दृश्यों में है परंतु गजब का प्रभाव छोड़ जाती है। इसी तरह 'हिना' में फरीदा जलाल अमिट प्रभाव छोड़ जाती हैं। नादिरा ने अपना कॅरिअर दिलीप कुमार के साथ 'आन' में बतौर नायिका प्रारंभ किया था परंतु 'जूली' में उन्होंने यादगार चरित्र भूमिका की थी। उन्हीं की तरह ओमप्रकाश विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'बुड्ढा मिल गया' में उन्होंने सबसे अधिक तालियां बटोरीं। डेविड ने 'बूट पॉलिश' में जॉन चाचा की भूमिका में फिल्म के दो महत्वपूर्ण गीतों में कमाल किया था। राम कपूर ने साक्षी तंवर के साथ सबसे अधिक लोकप्रिय सीरियल में अभिनय किया था। कुछ फिल्मों में उन्होंने चरित्र भूमिका अभिनीत कीं। 'लवयात्री' में वे मास्टरमाइंड मामा की भूमिका में मन मोह लेते हैं। इसी तरह नाना पलसीकर भी छोटी भूमिकाओं में चमकते थे परंतु 'प्रेम परबत' नामक फिल्म उन्हें लेकर बनाई गई। चार सुपरहिट गीतों के बावजूद फिल्म असफल रही। विजय आनंद द्वारा निर्देशित 'गाइड' में अनवर खान ने दिल जीत लिया।
ज्ञातव्य है कि अनवर खान नरगिस के भाई थे। महबूब खान की 'आवाज’ में वे एक दफ्तर में कर्मचारी की भूमिका में हैं। सारे कर्मचारी साथ बैठकर दोपहर का भोजन आपस में बांटकर करते हैं। अनवर खान प्रतिदिन केवल एक नींबू लेकर आते हैं और उसी के योगदान के दम पर भरपूर भोजन करते हैं। महान गीतकार कैफी आज़मी ने 'नसीम’ नामक फिल्म में केंद्रीय भूमिका अभिनीत की थी। शैलेंद्र राज कपूर की 'श्री 420’ में नज़र आए। 'बूट पॉलिश’ में 'चली गुजरिया कौन सा देश’ गीत भी उन पर फिल्माया गया है। संगीतकार जयकिशन भी 'श्री 420’ के एक दृश्य में नशे में धुत ऊंघते हुए नजर आए थे। वर्तमान समय में इरफान खान और नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी भी छोटी भूमिकाओं में छा जाते हैं। इरफान खान तो 'लंच बॉक्स’ जैसी फिल्म में नायक की भूमिका की थी, जिसके लिए उन्होंने कई पुरस्कार भी मिले। इला अरुण भी छोटी भूमिकाओं में कमाल करती है। इला अरुण फिल्मी भोजन की थाली में कढ़ी की तरह सुस्वादु और चटपटी हैं। 'लम्हें’ के गीत में श्रीदेवी के साथ इला अरुण ने गहरा प्रभाव छोड़ा है। श्रीदेवी की 'मॉम’ में भी नवाजुद्दीन प्रभावी रहे। रजत कपूर ने ‘बुरे फंसे ओबामा’ में अविस्मरणीय अभिनय किया है। पंकज कपूर उस्तादों के भी उस्ताद हैं। विशाल भारद्वाज की 'मियां मकबूल’ में इरफान खान से उनकी सीधी भिड़ंत है। अल्काजी की अध्यक्षता के दौर में 'नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ से प्रशिक्षित होकर आए नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी अभिनय की पाठ्यक्रम की किताब की तरह रहे। 'मियां मकबूल’ में दोनों ने अपराध सरगना की सेवा करने वाले पुलिस वालों की भूमिका में उस फिल्म को बोझिल होने से बचाया था। शेक्सपियर ने अपने नाटकों में छोटी भूमिकाओं का चरित्र चित्रण विस्तार से किया है। पीयूष मिश्रा तो इस तरह की भूमिकाओं के 'डॉन’ ही हैं। हॉलीवुड में हिचकॉक रहस्य रोमांच की फिल्मों के लिए याद किए जाते हैं। अपनी सभी फिल्मों में हिचकॉक एक या अधिकतम दो दृश्यों में अभिनय करते थे। उनका अनुकरण करते हुए फिल्मकार सुभाष गई भी अपनी फिल्मों में नजर आते हैं। वे प्राय: किसी गीत की एक पंक्ति गाते हैं।
सलमान खान अभिनीत 'बजरंगी भाईजान’ में केवल दो दृश्यों में गुमशुदा बच्ची की मां की झलक हम देखते हैं। चरित्र भूमिकाओं में कलाकारों का चयन विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। मां और बच्ची के चेहरे में कुछ समानता होने का उन्होंने ध्यान रखा है। दुर्गा खोटे ने अपना कॅरिअर नायिका की तरह प्रारंभ किया। फिल्म क्षेत्र में आने वाली वे पहली स्नातक थीं। बाद में कई फिल्मों में चरित्र भूमिका अभिनीत कीं। 'मुगल-ए-आजम' में वे जोधाबाई बनी थीं। राज कपूर की फिल्म 'बॉबी’ में उनके मात्र तीन दृश्य हैं परंतु मिसेज ब्रिगेन्जा को भूल नहीं पाते। ललिता पवार ने भी विविध भूमिकाएं की हैं। एक दृश्य में पात्र द्वारा थप्पड़ मारने के कारण उनकी एक आंख छोटी हो गई परंतु उन्होंने इसका उपयोग भी अभिनय में बखूबी किया है। एक चित्रकार एक पेंटिंग पूरी कर लेता है। इसके बाद वे अपने ब्रश से पेंटिंग में हल्के स्पर्श करता है और ये स्पर्श ही उस पेंटिंग को यादगार बना देते हैं। कवि भी अपनी रचना में एक शब्द को जोड़ने या हटाने के काम से स्थायी प्रभाव छोड़ देता है। फिल्म गीत की रिकॉर्डिंग के समय वायलिन सेक्शन होता है। रिदम सेक्शन होता है परंतु छोटा-सा दल परकशन का होता है परंतु पूरे गीत के समग्र प्रभाव में उसका गहरा असर होता है। एक अत्यंत खूबसूरत चेहरे पर एक तिल होता है, जो सौंदर्य में चार चांद लगाता है। बिगड़े दिल शहजादे शायर ने लिखा है कि खूबसूरत चेहरे पर तिल ऐसा है जैसे खूबसूरती की सुरक्षा के लिए कोई पहरेदार बैठाया है।