छोटी मछली बड़ी मछली / श्याम बिहारी श्यामल
Gadya Kosh से
जब मेहतर डेढ़ रुपए पर ‘लैट्रिन’ साफ करने को तैयार हो गया, तब घोष बाबू के नौकर के होठों पर एक विषैली मुस्कान तैर गई।
साफ करवा लेने के बाद उसने मेहतर की ओर एक चवन्नी फेंक दी। इसके पहले कि वह गिड़गिड़ाता या हक के पैसे मांगता, घोष बाबू का नौकर ही यक–ब–यक आगबबूला होकर गरजने लगा, “....स्साले, अब कुछ बोलना मत वरना....!.....और यही तेरे लिए काफी है!...तूने कोई पहाड़ नहीं तोड़ दिया है मेरा....!”