छोटी सी बात / ज़ाकिर अली 'रजनीश'
आसमान में बादल छाए होने के कारण उस समय काफी अंधेरा था। हालाँकि घड़ी में अभी साढ़े चार ही बजे थे, लेकिन इसके बावजूद लग रहा था जैसे शाम के सात बज रहे हों। लेकिन सलिल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह अपने हाथ में गुलेल लिये सावधानीपूर्वक आगे की ओर बढ़ रहा था। उसे तलाश थी किसी मासूम जीव की, जिसे वह अपना निशाना बना सके। नन्हे जीवों पर अपनी गुलेल का निशाना लगाकर सलिल को बड़ा मज़ा आता। जब वह जीव गुलेल की चोट से बिलबिला उठता, तो सलिल की प्रसन्नता की कोई सीमा न रहती। वह खुशी के कारण नाच उठता।
अचानक सलिल को लगा कि उसके पीछे कोई चल रहा है। उसने धीरे से मुड़ कर देखा। देखते ही उसके पैरों के नीचे की ज़मीन निकल गयी और वह एकदम से चिल्ला पड़ा। सलिल से लगभग बीस कदम पीछे दो चिम्पैंजी चले आ रहे थे। सलिल का शरीर भय से काँप उठा। उसने चाहा कि वह वहाँ से भागे। लेकिन पैरों ने उसका साथ छोड़ दिया। देखते ही देखते दोनों चिम्पैंजी उसके पास आ गये। उन्होंने सलिल को पकड़ा और वापस उसी रास्ते पर चल पड़े, जिधर से वे आये थे।
कुछ ही पलों में सलिल ने अपने आप को एक बड़े से चबूतरे के सामने पाया। चबूतरे पर जंगल का राजा सिंह विराजमान था और उसके सामने जंगल के तमाम जानवर लाइन से बैठे हुये थे। सलिल को जमीन पर पटकते हुए एक चिम्पैंजी ने राजा को सम्बोधित कर कहा, “स्वामी, यही है वह दुष्ट बालक, जो जीवों को अपनी गुलेल से सताता है।”
शेर ने सलिल को घूर कर देखा, “क्यों मानव पुत्र, तुम ऐसा क्यों करते हो?”
सलिल ने बोलना चाहा, लेकिन उसकी ज़बान से कोई शब्द न फूटा। वह मन ही मन बड़बड़ाने लगा, “क्योंकि मैं जानवरों से श्रेष्ठ हूँ।”
“देखा आपने स्वामी ?” इस बार बोलने वाला चीता था, “कितना घमंड है इसे अपने मनुष्य होने का। आप कहें तो मैं अभी इसका सारा घमंड निकाल दूँ ?” कहते हुए चीता अपने दाहिने पंजे से ज़मीन खरोंचने लगा।
सलिल हैरान कि भला इन लोगों को मेरे मन की बात कैसे पता चल गयी? लेकिन चीते की बात सुनकर वह भी कहाँ चुप रहने वाला था। वह पूरी ताकत लगाकर बोल ही पड़ा, “हाँ, मनुष्य तुम सब जीवों से श्रेष्ठ है, महान है। और ये प्रक्रति का नियम है कि बड़े लोग हमेशा छोटों को अपनी मर्जी से चलाते हैं।”
तभी आस्ट्रेलियन पक्षी नायजी स्क्रब, जिसकी शक्ल कोयल से मिलती–जुलती है, उड़ता हुआ वहाँ आया और सलिल को डपट कर बोला, “बहुत नाज़ है तुम्हें अपनी आवाज़ पर, क्योंकि अन्य जीव तुम्हारी तरह बोल नहीं सकते। पर इतना जान लो कि सारे संसार में मेरी आवाज़ का कोई मुकाबला नहीं। दुनिया की किसी भी आवाज़ की नकल कर सकती हूँ मैं। …क्या तुम ऐसा कर सकते हो?” सलिल की गर्दन शर्म से झुक गयी और नायजी स्क्रब अपने स्थान पर जा बैठी।
सलिल के बगल में स्थित पेड़ की डाल से अपने जाल के सहारे उतरकर एक मकड़ी सलिल के सामने आ गयी और फिर उस पर से सलिल की शर्ट पर छलांग लगाती हुई बोली, ”देखने में छोटी ज़रूर हूँ, पर अपनी लम्बाई से 120 गुना लम्बी छलांग लगा सकती हूँ। क्या तुम मेरा मुकाबला कर सकते हो? कभी नहीं। तुम्हारे अन्दलर यह क्षमता ही नहीं। पर घमंड ज़रूर है 120 गुना क्यों?” कहते हुये उसने दूसरी ओर छलांग मार दी।
तभी गुटरगूँ करता हुआ एक कबूतर सलिल के कन्धे पर आ बैठा और अपनी गर्दन को हिलाता हुआ बोला, ”मेरी याददाश्त से तुम लोहा नहीं ले सकते। दुनिया के किसी भी कोने में मुझे ले जाकर छोड़ दो, मैं वापस अपने स्थान पर आ जाता हूँ।”
सलिल सोच में पड़ गया और सर नीचा करके ज़मीन पर अपना पैर रगड़ने लगा।
“मैं हूँ गरनार्ड मछली। जल, थल, नभ तीनों जगह पर मेरा राज है।” ये स्वर थे पेड़ पर बैठी एक मछली के, “पानी में तैरती हूँ, आसमान में उड़ती हूँ और ज़मीन पर चलती हूँ। अच्छा, मुझसे मुकाबला करोगे?”
ठीक उसी क्षण सलिल के कपड़ों से निकल कर एक खटमल सामने आ गया और धीमे स्वर में बोला, ”सहनशक्ति में मनुष्य मुझसे बहुत पीछे है। यदि एक साल भी मुझे भोजन न मिले, तो हवा पीकर जीवित रह सकता हूँ। तुम्हारी तरह नहीं कि एक वक्त का खाना न मिले, तो आसमान सिर पर उठा लो।” खटमल के चुप होते ही एल्सेशियन नस्ल का कुत्ता सामने आ पहुँचा। वह भौंकते हुये बोला, “स्वामीभक्ति में मनुष्य मुझसे बहुत पीछे है। पर इतना और जान लो कि मेरी घ्राण शक्ति (सूँघने की क्षमता) भी तुमसे दस लाख गुना बेहतर है।”
पत्ता खटकने की आवाज़ सुनकर सलिल चौंका और उसने पलटकर पीछे देखा। वहाँ पर बार्न आउल प्रजाति का एक उल्लू बैठा हुआ था। वह घूर कर बोला, “इस तरह मत देखो घमण्डी लड़के, मेरी नज़र तुमसे सौ गुना तेज़ होती है समझे?”
सलिल अब तक जिन्हें हेय और तुच्छ समझ रहा था, आज उन्हीं के आगे अपमानित हो रहा था। अन्य जीवों की खूबियों के आगे वह स्वयं को तुच्छ अनुभव करने लगा था। इससे पहले कि वह कुछ कहता या करता, दौड़ता हुआ एक गिरगिट वहाँ आ पहुँचा और अपनी गर्दन उठाते हुये बोला, ”रंग बदलने की मेरी विशेषता तो तुमने पढी़ होगी, पर इतना और जान लो कि मैं अपनी आँखों से एक ही समय में अलग-अलग दिशाओं में एक साथ देख सकता हूँ। मगर तुम ऐसा नहीं कर सकते। कभी नहीं कर सकते।” दोनों चिम्पैंजियों के बीच खड़ा सलिल चुपचाप सब कुछ सुनता रहा। भला वह जवाब देता भी तो क्या? उसमें कोई ऐसी खूबी थी भी तो नहीं, जिसे वह बयान करता। वह तो सिर्फ दूसरों को सताने में ही अभी तक आगे रहा था।
तभी चीते की आवाज सुनकर सलिल चौंका। वह कह रहा था, ”खबरदार, भागने की कोशिश मत करना। क्योंकि 112 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ्तार है मेरी। और तुम मुझ से पार पाने के बारे में सपने में भी न सोच सकोगे। क्योंकि तुम्हारी यह औकात ही नहीं है।”
“क्यों नहीं है औकात?” चीते की बात सुनकर सलिल अपना आपा खो बैठा और जोर से बोला, “मैं तुम सबसे श्रेष्ठ हूँ, क्योंकि मेरे पास अक्ल है । और वह तुममें से किसी के भी पास नहीं है।” सलिल की बात सुनकर सामने के पेड़ की डाल से लटक रहा चमगादड़ बड़बड़ाया, ”बड़ा घमण्ड है तुझे अपनी अक्ल पर नकलची मनुष्य। तूने हमेशा हम जीवों की विशेषताओं की नकल करने की कोशिश की है। जब तुम्हें मालूम हुआ कि मैं एक विशेष की प्रकार की अल्ट्रा साउंड तरंगें छोड़ता हूँ, जो सामने पड़ने वाली किसी भी चीज़ से टकरा कर वापस मेरे पास लौट आती हैं, जिससे मुझे दिशा का ज्ञान होता है, तो मेरी इस विशेषता का चुराकर तुमने रडार बना लिया और अपने आप को बड़ा बुद्धिमान कहने लगे?” “बहुत तेज़ है अक्ल तुम्हारी?” इस बार मकड़ी गुर्रायी, ”ऐसी बात है तो फिर मेरे जाल जितना महीन व मज़बूत तार बनाकर दिखाओ। नहीं बना सकते तुम इतना महीन और मज़बूत तार। इस्पात के द्वारा बनाया गया इतना ही महीन तार मेरे जाल से कहीं कमज़ोर होगा।… और तुम्हारे सामान्य ज्ञान में वृद्धि के लिये एक बात और बता दूँ कि यदि मेरा एक पौंड वजन का जाल लिया जाये, तो उसे पूरी पृथ्वी के चारों ओर सात बार पलेटा जा सकता है।”
इतने में एक भंवरा भी वहाँ आ पहुँचा और भनभनाते हुये बोला, ”वाह री तुम्हारी अक्ल? जो वायु गतिकी के नियम तुमने बनाये हैं, उनके अनुसार मेरा शरीर उड़ान भरने के लिये फिट नहीं है। लेकिन इसके बावजूद मैं बड़ी शान से उड़ता फिरता हूँ। अब भला सोचो कि कितनी महान है तुम्हारी अक्ल, जो मुझ नन्हे से जीव के उड़ने की परिभाषा भी न कर सकी।” हँसता हुआ भंवरा पुन: अपनी डाल पर जा बैठा। एक पल के लिये वहाँ सन्नाटा छा गया। सन्नाटे को तोड़ते हुए शेर ने बात आगे बढ़ाई, ”अब तो तुम्हें पता हो गया होगा नादान मनुष्य कि तुम इन जीवों से कितने महान हो? अब ज़रा तुम अपनी घमण्ड की चिमनी से उतरने की कोशिश करो और हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि सभी जीवों में कुछ न कुछ मौलिक विशेषतायें पाई जाती हैं। सभी जीव आपस में बराबर होते हैं। न कोई किसी से छोटा होता है न कोई किसी से बड़ा। समझे?” “लेकिन इसके बाद भी यदि तुम्हारा स्वभाव नहीं बदला और तुम जीव-जन्तुओं को सताते रहे, तो तुम्हें इसकी कठोर से कठोर सज़ा मिलेगी।” कहते हुये हाथी ने सलिल को अपनी सूंड़ में लपेटा और ज़ोर से ऊपर की ओर उछाल दिया।
सलिल ने डरकर अपनी आँखें बन्दा कर लीं। लेकिन जब उसने दोबारा अपनी आँखें खोलीं, तो न तो वह जंगल था और न ही वे जानवर। वह अपने बिस्तर पर लेटा हुआ… “इसका मतलब है कि मैं सपना…” सलिल मन ही मन बड़बड़ाया। उसने अपनी पलकों को बन्दत कर लिया और करवट बदल ली। हाथी की कही हुई बातें अब भी उसके कानों में गूँज रही थीं। नोट- कहानी में दिये गये सभी तथ्य पूर्णत: प्रामाणिक हैं।