छोटे परदे पर विपुल शाह की पुकार / जयप्रकाश चौकसे

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छोटे परदे पर विपुल शाह की पुकार
प्रकाशन तिथि : 25 नवम्बर 2014


जिंदगी पर प्रसारित सीरियल ने कई चैनल प्रमुखों को यह प्रेरणा दी है कि वे सास-बहू सीरियलों से उठकर कुछ नया सोचें और थोड़ा सा यथार्थवादी तड़का अब आवश्यक हो गया है। विपुल शाह के पास मनोरंजन उद्योग का लंबा अनुभव है और उनकी कंपनी टेलीविजन क्षेत्र में भी काफी समय से काम कर रही है। इस बार विपुल शाह के अपने मार्गदर्शन में "पुकार' का निर्माण किया है और नई गाइडलाइन के अनुरूप उन्होंने 45 मिनट के 24 एपिसोड में अपनी कथा अभिव्यक्त कर दी है। सीरियल को रबर की तरह टूटने की हद तक खींचने की परंपरा से अब किनारा किए जाने का प्रारंभ विपुल शाह की "पुकार' से हो रहा है।

पुकार एक फौजी अफसर के परिवार के कहानी है और इसमें पिता-पुत्र के रिश्ते को कथा का आधार बनाया गया है। अफसर का लाड़ला बेटा देश के लिए शहीद हो चुका है परंतु उन्हें यह भरम है कि बड़े बेटे ने जो सीनियर अफसर है, अपने छोटे भाई की रक्षा नहीं की। उनका चरित्र हमेशा ऐसा ही रहा है कि वे पहली चूक को भी क्षमा नहीं करते। अपने बीस वर्ष के ड्राइवर को केवल एक बार शराब पीकर गाड़ी चलाने की भूल के कारण नौकरी से निकाल देते हैं और इस कठोर कदम के साथ ही ड्राइवर के बेटे के साथ कहीं हो रहे अन्याय का सक्षम विरोध भी करते हैं। फौज के अफसरों के पारंपरिक अनुशासन में गलती बेटा करे या गैर सभी दंडनीय होते हैं।

बहरहाल विपुल शाह ने यह रेखांकित किया है कि केवल सरहदें नहीं सुलग रही हैं वरन् देश के भीतर अन्याय, असमानता और भ्रष्टाचार के कारण भी एक गृहयुद्ध सतत जारी है और इसमें मरने वाले को तो शहादत की गरिमा भी नहीं मिलती। कितने ही अनाम लोग इस तरह की मौत मर जाते हैं और कभी सुर्खियों में नहीं आते। अवाम पर डर का हव्वा बैठा है और डर के साम्राज्य का अंत आसान नहीं है। राजकुमार संतोषी की घातक का खलनायक कहता है कि वर्षों के प्रयास के बाद उसने बस्ती में डर कायम किया था और बनारस से आए उस युवा ने एक दिन में डर खतम कर दिया। ज्ञातव्य है कि गांधीजी ने भारत में पहला भाषण काशी विश्वविद्यालय के उद्धाटन अवसर पर दिया था जिसका सूत्रवाक्य ही यह था कि हृदय से डर को निकाले बिना आजादी के लिए लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। उनके अथक प्रयास से समाज से डर हट गया था परंतु स्वतंत्रता पाने के कुछ बरसों बाद ही डर का साम्राज्य पुन: छा गया। पुकार का नायक इसी डर के साम्राज्य को तोड़ने का प्रयास करता है। डर फैलाए बिना कमजोर लोग अन्याय नहीं कर पाते।

इस सीरियल में पिता-पुत्र के उलझे रिश्ते की कथा है और घटनाओं के प्रवाह से उलझा रिश्ता मंजिल पर जा टिकता है। उपनिषद खंड 12 में पिता-पुत्र रिश्ते पर एक सारगर्भित बात यह है कि पिता-पुत्र का रिश्ता तीर-कमान की तरह होता है और सही तनाव के कारण ही पुत्र रूपी तीर पिता की कमान से निकलकर जीवन के निशाने पर लगता है। पुकार के पिता-पुत्र ऐसे ही हैं। इस 24 एपिसोड के सीरियल में अन्य रिश्तों को भी महत्व दिया गया है परंतु अन्य सास-बहू मार्का सीरियलों की तरह इसे अति-भावुकता की गाढ़ी चाशनी बनने से बचाया गया है। इस तरह की संयुक्त घोल की तरह की चाशनी में प्रेमल तितली के कोमल पंख उलझ जाते हैं और रिश्ते बोझिल हो जाते हैं। अतिभावुकता का घटाघोप केवल ग्लीसरीन के आंसू गिराने में ही काम सकता है। असली भाव आंसू पीने की चेष्टा से परदे पर प्रभाव पैदा करता है। विगत कुछ बरसों से एक्शन दृश्यों में नई टेक्नोलॉजी आने के कारण अतिरेक काम होने लगा है और सिनेमा का यह प्रवाह छोटे परदे तक जा पहुंचा है। विपुल शाह ने भी अपने नायक को सुपरमैन छवि देने के लिए एक्शन दृश्यों पर पानी की तरह पैसा बहाया है।

दरअसल टीवी चैनल के प्रमुख यह महसूस कर रहे हैं कि वे टीवी पर फिल्म प्रसारण के लिए बहुत अधिक धन देने के लिए बाध्य किए जा रहे हैं और इस दबाव से मुक्ति के लिए वे अपने सीरियल में सिनेमा की तरह खर्चीला एक्शन रख रहे हैं और विपुल शाह ने भी अपनी भावना तथा देशप्रेम से सराबोर सीरियल में कुछ एक्शन दृश्य सिनेमा की तर्ज पर शूट किए हैं और उनका ध्वनिपट भी इसी से लबरेज है। बहरहाल इस सीरियल से राज बब्बर छोटे परदे पर प्रस्तुत हो रहे हैं और सख्त रवैये वाले सेवानिवृत अफसर की भूमिका उन्होंने ही अपने अंदाज में निभाई है। पुकार सप्ताह में दो बार सोमवार-मंगलवार को लाइफ ओके पर प्रारंभ इसी सोमवार से हो रहा है।