छोटे / ओशो
साँचा:GKCatBodhkatha मक्का की बात है। एक नाई किसी के बाल बना रहा था। उसी समय फकीर जुन्नैद वहां आ पहुंचे। उन्होंने कहा, "खुदा की खातिर मेरी हजामत भी कर दे।"
नाई ने खुदा का नाम सुनते ही अपने गृहस्थ-ग्राहक से कहा, "दोस्त, अब मैं थोड़ी देर आपकी हजामत नहीं बना सकूंगा। खुदा की खातिर उस फकीर की खिदमत मुझे पहली करनीचाहिए। खुदा का काम सबसे पहले है।"
इसके बाद उसने फकीर की हजामत बड़े प्रेम और श्रद्धा-भक्ति से बनाई और नमस्कार करके उसे विदा कर दिया।
कुछ दिन बीत गये। एक रोज जुन्नैद को किसी नेकुद पैसे भेंट किये तो वह उन्हें नाई को देने आये। पर नाई ने पैसे लेने से इन्कार कर दिया। उसने कहा, "आपको शर्म नहीं आती? आपने तो खुदा की खातिर हजामत बनाने को कहा था पैसों की खातिर नहीं।"
फिर तो जीवन-भर फकीर जुन्नैद को वह बात याद रही और वह अपनी मंडली में कहा करते थे, "निष्काम ईश्वर-भक्ति मैंने एक हज्जाम से सीखी है।"
छोटे-से-छोटे में भी विराट के संदेश छिपे हैं। जो उन्हें उघाड़ना जानता है, वह ज्ञान को प्राप्त करता है जीवन में सजग होकर चलने से प्रत्येक अनुभव प्रज्ञा बन जाता है। जो मूर्च्छित बने रहते हैं, वे दरवाजे पर आये आलोक को भी लौटा देते हैं।