छोड़ना बिस्तर / मनोहर चमोली 'मनु'
चूंचूं चूहे के आलसीपन से उसकी मां भी तंग आ गई थी। आज तो हद ही हो गई। वह उसके लिए खाना लाई। चूंचूं ने अपना मुंह रजाई से बाहर निकाला। दो बूंद पानी हाथ में लिया और आखों में छिड़क दिया। उसने फटाफट खाना खाया। हाथ धोना और कुल्ला करना भी उसने जरूरी नहीं समझा। चूंचूं रजाई ढक कर फिर सो गया। दिन के बाद शाम हुई और फिर रात भी हो गई। रात का खाना बन चुका था। चूंचूं ने सुना। उसकी मां ने पुकारा-”चूंचूं। खाना खा लो।” चूंचूं रजाई से हिला तक नहीं। उसने फिर बिस्तर पर ही खाना खाया।
अब यह चूंचूं की रोज की आदत बन चुकी थी। अब तो वह कई दिनों तक बिस्तर पर लेटा रहता। नहाने का नाम सुनकर उसकी कंपकंपी छूटने लगती। उसे कपड़े बदलने में भी आलस आता। साफ-सफाई से उसे चिढ़ रहती। चूंचूं आलसी तो था ही अब वह कामचोर भी हो गया था। काम न करना पड़े तो वह बहाने भी बनाने लगा। कभी सिर, तो कभी पेट दर्द का बहाना बनाता।
आखिर वही हुआ जो होना था। वह बीमार हो गया। चूंचूं चिल्लाने लगा। डॉक्टर को बुलाया गया। वह डॉक्टर को अपनी बीमारी तक नहीं बता पाया। डॉक्टर ने उसके बिस्तर की हालत देखी। मैले-कुचेले कपड़ों को देखकर डॉक्टर उसकी मक्कारी समझ गए। उसके बदन से बदबू आ रही थी। दांत मटमैले हो चुके थे। डॉक्टर ने कहा-”चूंचूं। बात बिगड़ गई है। कल सूरज उगने से पहले यदि तुम मेरे अस्पताल पंहुच गए तो मैं तुम्हें दस दिन जिंदा रख सकता हूं। इससे ज्यादा नहीं। बाकी तुम्हारी मर्जी।” चूंचूं अपनी मौत की खबर सुनकर उछल पड़ा। वह बिस्तर पर उठ बैठा। वह रोने लगा। डॉक्टर ने कहा-”रोते क्यों हो? हर किसी को मरना है। मौत तो कभी भी आ सकती है। तुम चाहो तो दस दिन और जिंदा रह सकते हो। नहीं तो आज की रात तुम्हारी अंतिम रात है। कल सुबह के बाद तुम्हारे प्राण कभी भी निकल सकते हैं।” यह कहकर डॉक्टर जाने लगा।
चूंचूं रोते हुए बोला-”डॉक्टर साहब। मैं सूरज के उगने से पहले आपके अस्पताल में पहुंच जाउंगा। आप मेरी दवाई तैयार रखना।” चूंचूं रात होते ही सो गया। उसे सुबह उठने की चिंता जो थी। भोर होते ही वह उठ गया। उसने साफ-सुथरे कपड़े पहने और सीधे अस्पताल जा पहुंचा। डॉक्टर बागीचे में टहल रहे थे। वह भी टहलने लगा।
डॉक्टर ने कहा-”आज मैं तुम्हारी दवाई लेने शहर जाउंगा। कोई बात नहीं। आज का दिन पूरी मस्ती में गुजारो। खूब इधर-उधर घूमो। बातें-मुलाकातें करो। याद रखो। अब तुम्हारे पास सिर्फ नौ दिन हैं। कल इसी समय आ जाना। पर सुनो। कल नहा-धोकर आना।” बेचारा चूंचूं वापिस लौट आया। वह बिस्तर पर नहीं घुसा। दिन भर इधर-उधर घूमता रहा। परिचितों से मिलता रहा। चूंचूं अगली सुबह निश्चित समय से पूर्व ही डॉक्टर से मिलने पहुंच गया। डॉक्टर रोजाना की तरह बागीचे में घूम रहे थे। डॉक्टर ने फिर अगले दिन आने को कहा। चूंचूं फिर समय पर आया। डॉक्टर ने फिर अगले दिन आने को कहा। इस तरह चूंचूं लगातार नौ दिन आता रहा।
आज दसवां दिन था। चूंचूं समय पर डॉक्टर के पास पहुंचा। डॉक्टर हमेशा की तरह बागीचे में टहल रहे थे। चूंचूं ने पूछा-”डॉक्टर साहब। मैं जब भी आता हूं आप टहलते हुए मिलते हैं। ऐसा क्यों?” डॉक्टर ने कहा-”चूंचूं। मैं डॉक्टर हूं। रोगियों का इलाज करता हूं। जरा सोचो। अगर मैं ही बीमार हो गया तो? मैं बीमार न पडूं, स्वस्थ रहूं इसके लिए मैं खुद को व्यस्त रखता हूं। बैठे रहना मतलब अपाहिज होना। आधे रोग तो सिर्फ बैठे रहने से हो जाते हैं।” चूंचूं कुछ देर सोचता रहा फिर कहने लगा-”डॉक्टर साहब। अब एक दिन के लिए क्या दवाई खानी है। अब दवाई रहने दो।” डॉक्टर ने मुस्कराते हुए जवाब दिया-”तुम ठीक कहते हो। तुम्हें दवाई की जरूरत नहीं है। मगर...” डॉक्टर यह कहते हुए चुप हो गए।
“मगर क्या डॉक्टर साहब?” चूंचूं ने पूछा। डॉक्टर ने कहा-”मगर फिर तुम्हें दवाई की जरूरत पड़ सकती है। अगर तुमने बिस्तर पर आराम करते रहने की आदत को नहीं छोड़ा। देखो। तुम्हें पिछले नौ दिनों से किसी प्रकार की समस्या नहीं है। तुम लगातार इतनी दूर मुझसे मिलने आते रहे। तुम्हारा सिर, कमर, पेट और दांत का दर्द जाता रहा। मैंने तुम्हें कोई दवाई भी नहीं दी। कुछ समझे?” चूंचूं चुप रहा। डॉक्टर ने कहा-”तुम अब स्वस्थ होने लगे हो। सुबह जल्दी उठने और शरीर को व्यस्त रखने से तुम्हारी तकलीफें कुछ हद तक दूर हो गई हैं। नहा-धोकर और साफ-सुथरे कपड़े पहन कर तुम पहले से ज्यादा सेहतमंद हो गए हो। याद रखो। नियमित खान-पान और दिनचर्या से रोग पास नहीं फटकते। शरीर को चुस्त रखने के लिए काम करना जरूरी है। निठल्ला रहना रोगों को अपने पास बुलाना है। अब जाओ। तुम्हारे दस दिन पूरे हुए। यहां नियमित आना ही तुम्हारी दवाई थी। बस याद रखना। बिस्तर पर सिर्फ सोने के लिए जाना है और सुबह जल्दी ही बिस्तर को छोड़ देना है। समझे।”
चूंचूं नाचते-गाते हुए अपने घर की ओर चल पड़ा।