छोड़ आए जो गलियां फिल्मकार…/ जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 03 मई 2018
पहले खबर आई कि श्रीदेवी पर एक वृत्त चित्र बनाया जाएगा, जिसे शेखर कपूर निर्देशित करेंगे। ज्ञातव्य है कि शेखर कपूर ने 'मि. इंडिया' निर्देशित की थी। देव आनंद की बहन के सुपुत्र शेखर कपूर 'बेंडिट क्वीन' के लिए प्रसिद्ध हैं परंतु उनकी पहली फिल्म मासूम थी। 'मि. इंडिया' के बाद उन्होंने कुछ फिल्में आधी-अधूरी छोड़ दी। बाद में खबर आई कि श्रीदेवी का 'बायोपिक' बनाया जाएगा। अभी तक कोई अधिकृत जानकारी नहीं है। खाकसार का खयाल है कि कुछ वर्ष पश्चात श्रीदेवी की सुपुत्री जाह्नवी अपनी मां के बायोपिक में अभिनय कर सकती है। श्रीदेवी चित्रकारी करती रही हैं परंतु उन्होंने कभी अपनी पेंटिंग्स का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया। सलमान खान भी पेंटिग्स करते हैं और दोनों कलाकार एक-दूसरे के प्रशंसक रहे हैं। श्रीदेवी पर वृत्तचित्र बने या बायोपिक परंतु पहला दृश्य तो यह हो कि उनकी पेंटिग्स की प्रदर्शनी दुबई के उसी होटल में रखी जाए, जहां वे पारिवारिक विवाह में शिरकत करने गई थीं। हर एक पेन्टिंग के क्लोजअप से उनके जीवन की झलकियां दिखाएं और इसी तरह सिलसिला जारी रहे उनकी मृत्यु तक।
उनकी आखिरी फिल्म 'मॉम' के एक दृश्य में वे एक किन्नर की मदद लेकर एक दुष्कर्मी को मारती हैं। ज्ञातव्य है कि वे यथार्थ जीवन में भी इन आधे-अधूरों की आर्थिक सहायता करती रही हैं। इस तरह फिल्म के हर दृश्य से उनके जीवन को जोड़कर प्रस्तुत किया जा सकता है। रवि उदयवर की लिखी पटकथा पढ़ते ही श्रीदेवी ने उसे स्वीकार कर लिया था। रवि उदयवर के साथ गिरीश कोहली, पूनम प्लाहा और कोना वेंकटराज ने मिलकर काम किया है। गौरी शिंदे की फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश' भी सफल रही, अत: उनसे भी इस बायोपिक को निर्देशित करने की बात की जा सकती है। ज्ञातव्य है फिल्मकार आर बाल्की की पत्नी हैं गौरी शिंदे। एक तरह से यह प्रतिभा की जुगलबंदी है।
रवि उदयवर ने 'मॉम' की रचना कुछ इस तरह की है कि बरबस हमें अगाथा क्रिस्टी की याद आती है, जिन्हें थ्रिलर लिखने में महारत हासिल थी। संभव है उन्होंने स्वर्ग से रवि उदयवर पर फूल बरसाएं हों, जो घटाटोप के कारण रवि उदयवर तक नहीं पहुंचे। थ्रिलर हमेशा ही बनते रहे हैं परंतु दूसरे विश्वयुद्ध के दरमियान इस विधा में नई धार आ गई कि राष्ट्रवाद को भी थ्रिलर द्वारा प्रस्तुत करें। हमारे यहां मनोज कुमार ने देशभक्ति की फिल्में बनाई हैं परंतु उसमें भाषणबाजी है और वे छद्म देशप्रेम की फिल्मे हैं। आमिर खान की 'लगान' सच्चे देशप्रेम की अनूठी फिल्म है। तापसी पन्नू अभिनीत 'नाम शबाना' अत्यंत रोचक थ्रिलर है। यह नई धारा 'वेडनस डे' से प्रारंभ हुई है। 'पिंक' भी एक थ्रिलर है परंतु उसमें स्त्री विमर्श भी उभरकर सामने आता है। 'पिंक' में अदालत के दृश्य में जज महोदय के सामने उनकी नेम प्लेट है 'सत्यजीत दत्त'। एहसास होता है मानो फिल्मकार शूजीत सरकार जज सत्यजीत (राय) के सामने अपनी प्रतिभा का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत कर रहे हैं। फैसला फिल्मकार के पक्ष में गया है और उस नायिका के पक्ष में भी जाता है, जो भरी अदालत में स्वीकार करती है कि उन्नीस की वय में उसने शारीरिक अंतरंगता बनाई और ऐसा तीन-चार बार हुआ परंतु हर बार उसकी रजामंदी के साथ हुआ, जबकि इस मामले में उसने स्पष्ट 'ना' (नो) कहा था। उसकी पैरवी करने वाला उम्रदराज वकील कहता है कि 'नो' सिर्फ एक शब्द नहीं वरन अपने आप में पूरा वाक्य है। अमिताभ बच्चन ने सफाई पक्ष की भूमिका भावना की तीव्रता से अभिनीत की है। शूजीत सरकार की विद्या बालन अभिनीत 'कहानी' भी राष्ट्रवाद की नई लहर की फिल्म है।
संजय दत्त का बायोपिक 'संजू' प्रदर्शन के लिए तैयार है और अक्षय कुमार अभिनीत 'गोल्ड' के ट्रेलर में आभास होता है कि यह संभवत: मेजर ध्यानचंद की कथा है। मिल्खासिंह का बायोपिक 'भाग मिल्खा भाग' सफल रहा था।
राकेश ओमप्रकाश मेहरा की आमिर खान अभिनीत 'रंग दे बसंती' देशप्रेम की महान फिल्म है। गौरतलब है कि इसका कथासार कुछ इस तरह है कि लंदन से एक युवती शहीद भगतसिंह के जीवन पर एक वृत्तचित्र बनाने आई है और चार उद्देश्यहीन युवा उसकी सहायता केवल थ्रिल के लिए कर रहे हैं परंतु जैसे-जैसे फिल्म बनती जाती है, वे अपने अभिनीत पात्रों से जुड़ते जाते हैं। भूतकाल और वर्तमान एक-दूसरे में समाए हुए भविष्य का संकेत भी देते हुए से लगते हैं।
यह अजीबोगरीब बात है कि फिल्मकार छद्म देशप्रेम की फिल्मों से मुक्त होकर सार्थक देशप्रेम की फिल्में बना रहे हैं, नेतागण अभी तक अपनी इन जंजीरों से मुक्त नहीं हुए जिन्हें तोड़कर फिल्मकार मनोरंजन जगत में नया पथ प्रशस्त कर रहे हैं।