छोर्यां / मनोज कुमार स्वामी / कथेसर

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: अक्टूबर-दिसम्बर 2012  

समान सूं लदेड़ो अेक रिक्सो। जिण नै अेक जणो खींचै अर तीन छोर्यां लारै सूं धकै। पुराणियै बस-अड्डै कनै आय'र थमग्यो। अर समान उतरणों सरू हुग्यो। अेक लांठो-सो स्पीकर, तीन मेजां, बैटरी, ढोलकी अर कई चीजां। अेक आदमी, अेक लुगाई, पांच छोर्यां सोळा सतरा बरसां सूं लेयनै सात-आठ बरस री। साल दो-अेक री ल्होड़-बडाई, अेक नान्हों-सो टींगर।

“अरै! खेल दिखास्यो के?” सामरियै आप री आदत मुजब बूझ्यो।

आदमी नाड़ हलाई, “हां!”

“अठै किस्सो खेल हुवै। भाईड़ा कठैई भीड़ आळी जिग्यां क्यूं जावै नीं। दो पीसड़ा बणसी।” साची कैवै सामरियो। नुंवोड़ो अड्डो बण्यां पछै ओ तो वीरान हुग्यो। पंाच बरस पैली नेतावां नै सिल्लां-पत्थर लगाणै री अमिट लालसा, अर ठेकेदारां-अफसरां री भ्रसटाचारी भूख रो ओ भख हुग्यो। पुराणै बस अड्डै पर कार मजूरी करणिया, रेहड़ी खोखै आळां रा हीला खुसग्या। जिग्यां रो मोह तो जिनावर ई को छोड़ै नीं जणां अै तो मिनख हा। कियां छोड़द्यै बीं ठौड़ नै जिकी पर तीस-तीस बरस बिता दिया। आपोआप रा खोखा खोलै, रेहड़ी लगावै। कांई ठाह किण आस में। लोगां री आवा-जावी नीं बरोबर।

“अरे! रेलवे फाटक कनै लगाल्यो खेल। बठै भीड़ घणी रैवै।” इत्तै में अेक जणै और चौधर करी।

पण बै आपरी लगन रा पक्का। स्यात घणो बिसवास हो बांनै आपरी कला पर। जणांई बां ईं सूनी-सी जगां में डेरो लगा दियो।

किड़धूम-किड़धूम। ढोलकी रै डंको मार्यो अेक छोरै।

“कुण है रै?” अेक दाकल सामलै होटल आळै मारी। ईं उजड़्यै बस अड्डै रो अेक लूंठो सेठ जिको रोटी जीम्यां पछै मैड़ करै हो।

“लगा ले-लगा ले, कीं कोनी। ईयां ई रांडां रोवती रैसी अर जुंवाई जीमता रैसी।” कणी कैयो।

ढोलकी रै डंकै साथै पन्द्रा-बीस जणा आग्या। खेल आळी टीम री हूंस बधगी। मोटोड़ो डब्बो लगा दियो। बैटरी अर डैक रो तार जोड़ दियो। अेक माइक रै तार री छेकड़ली ठौड़ लागी चूंच ई डैक में लगा दी। अेक पुराणो केसियो बाजोजोड़ दियो तारां सूं।

धुन बाजी, “कजरारे-कजरारे....।”

आदमी माइक ले लियो। “देखिये भाई साहब, सरकसी कलाकारों के खेल देखिये।”' अेक छोरो, बाटकड़ी पर इसटील री थाळी मेल'र गिलासियै रो टग लगा'र दो डंडकोरड़्यां सूं हाथ चलाण लागग्यो। ढोलकी नै आदमी, अर केसियो लुगाई सम्हाळ लियो। धुन बाजण लागगी, “मन डोले मेरा तन डोले ...।” के करै सतबरणा साज। साच्याई रंग जमग्यो।

“भाई जी! बस अड्डै मैं रूणक हुयगी। जंगळ में मंगळ हुग्यो।” नंदू चैहक्यो। सौ डेढ़ सै लोग भेळा हुग्या। लुगायां-पतायां ई आगी। कई पढण आळी छोर्यां ई थमगी। खेल दिखाण आळी पांचू छोर्यां मेजां जचा दीनीं।

“देखिये सरकस। लड़की का कमाल...।” केसियो पर धुन बदळगी। “मार दिया जाए के छोड़..।” छोर्यां नै देख'र कई सलमान, अक्षय, गोविन्दा, अमिताभ ई आयग्या। “अरै! आज्या माल ठीक है। के बात है वाह!”

पांचूं छोर्यां आपरो डील कसण लागगी चुन्यां सूं। लागै जाणै जंग में जावण सूं पैली फौजी कमर कसता हुवै। बडोड़ी छोरी मेज पर चढगी। अेक आछै जिमनास्ट री ढाळ डील नै लोळती आपरी कला दिखाण लागी। केसियो, ढोलक अर थाळी री झणकार माहौल रोचक बणा राख्यो हो।

फूटती मूंछ्यां अर पाटती..... रा टींगर सिसकारा मारै अर तीखी निजरां सूं छोरी री सलवार मांखर चिलकतै डील नै खा ज्याणो चावै।

“ढूंगा तो ठीक है।” अर छाती.....।”

किरड़धूम-किरड़धूम ढोलकी बाजै अर खेल चालै। उण वेळा अेक मिरासी री कैयोड़ी बात चेतै आई कै”मिनख री निजर भैड़ी घणी हूवै। पराई बेट्यां नै, मंचा पर, फिलमां में अर किणी उच्छब रै मोकै पर नाचती देख'र कोई आ नीं सोचै कै आ मेरी बेटी, भैण, भूवा, मा जिसी फूटरी नाचै। उण बगत बो फगत अेक लुगाई नै नाचती देखै।”

धुन फेर बदळगी....”हम को भी गम ने मारा..” बूढा-बुजरग ई खेल देखै हा। बांरै मूंढै पर अेक न्यारी पीड़ दिस्सै ही।

छोरी डील नैं इयां मरोड़ै जाणै हाडकी तो मांय है ई कोनी। रबड़ री हुवण रो बैम हुवण लागग्यो। छोटकी छोरी अेक बीयर री खाली बोतल झला दी। पैलड़ी बींनै माथै उपरां मेल ली। नाड़ लारनै कर्यां-कर्यां ई मेज पर मूंधी हुगी। लारै कर सूं अेक पग अर साम्हैं सूं अेक हाथ लारनै कर'र डील रो धनुस बणा लियो। किणी योगी रै योग सूं कम नीं। माइक आळै ताळी बजाण रो कैयो। ना जी, सै थाकल, हार्योड़ा लोग खड़्या हा। माड़ी सी'क तड़तड़ बाजी। जे अबार कोई नेता हुंवतो अर साव झूठ बोलतो तो स्यात कई ताळ ताळ्यां कोनी थमती। छोरी इत्तो खेल दिखा'र किसी थमगी। माइक आळै कैयो, “ऐसे ही हाथ और पैर पकड़े-पकड़े बोतल कोबिना टच किये निकल कर दिखावो लड़की।” छोरी तणीजण लागगी। जिकां रै घरां में उण छोरी री हाण री बेट्यां ही, बां रो काळजो मूंडै आवण लागग्यो।

ओ कोई ढंग है! पण के जोर। पेट री आग सै सूं तकड़ी। सगळा पेट रा हुनर। मूंधै पासै सूं दोलड़ी हुयोड़ी छोरी रो हाथ, माथै मेल्योड़ी बोतल रै उपर कर पूगण री आफळ करै ई हो कै माइक आळो मक्कू बोल्यो, “ऐसे नहीं लड़की बोतल नीची है। इसमें अेक नोट और लगाओ।”

अर झट करतो थाली बजावण आळो छोरो खड़्यो हुयो अर बीस रै नोट री लाम्बी पोलरी बणा'र बोतल रै मूं में फसा दी। अेक बिंलात री छेती और बधगी। रीस तो इसी आवै, साळै रै ढूंगा पर च्यार लात ठरका द्यूं। हुसी जिकी देखी जासी। छोरी तूंगण लागगी। लखदाद है इण कला नै। पीठ लारै कर हाथ सूं पग रो अंगूठो झाल्यां, लिलाड़ पर नोट फसायोड़ी बोतल, बिनां डील अड़ाए मांखर काढ़ दी। फेर होळै-होळै खड़ी हूगी। इस्कूलां में पढण आळी कई छोर्यां, ईं खींचाताण नै देखै ही बां री आंख्यां में पाणी आग्यो।

“लड़की इनाम ले लो। बाबूजी कला की कदर करेंगे।” माईक आळो बोल्यो। छोरी गेड़ो काट्यो। दस रिपिया, पांच रिपिया घणकरां'क दिया। उजड़ेडै बस अड्डै में रेहड़ी, खोखा आळा जिका चा पाणी घर सूं पीय'र जावै, बां ई दिया। अबै दूसरी छोरी मेज पर आयगी। साज बाजण लागग्या। इत्तै में मुरली, अेक मिठाई रो भरेड़ो गोथळियो लियां आयो। खोखै आळै नै झलांवतो बोल्यो, “लै दुकान में मेल दे, घरां ले ज्याई। कथा रो पंचामृत प्रसाद है। खास तौर सूं महाराज जी आप भेज्यो है तेरै सारू।”

खोखै आळै गोथळियो लियो अर कैयो, “ईं प्रसाद रा हकदार आं कलाकारां सूं बेसी कुण हुय सकै।” बण बो गोथळियो छोटियै छोरै-छोरी नै दे दियो। “ल्यो, खा ल्यो प्रसाद है।” छोर्यां मुळकी, उजळा दांत चिलक्या। बां सगळां बांट-बांट'र प्रसाद खा लियो।

मेज पर दूसरी छोरी आपरो खेल दिखाण लागगी। अण छोरी दो मेजा मे'ली अर मेज पर बींटी। पैली तो लारैकर मूंडै सूं बींटी चकी। तीन पासां सूं बारी-बारी।

“अभी देखने वाले खुश नहीं हुए। अंगूठी नीचे वाली मेज पर रखो, लड़की।” माइक आळै कैयो।

साळा देखण आळा तो नागी नाच्यां खुस हुसी। आं नै तो उपरलो ई खुस कोनी कर सक्यो तो तूं किसै बाग री मूळी है।

थाळकी बजाण आळै छोरै फुर्ती स्यूं बींटी निचली मेज री अेक कोर पर मेल दी। अब उपरली मेज पर छोरी, लारै कर दोलड़ी हुय'र निचली मेज पर पड़ी बींटी चकी मूं सूं। तो देखणियां री सांसां थमगी। अण छोरी पीसा मांग्या। अबकाळै कीं कम मिल्या।

तीसरी छोरी आगी। मेज पर अेक मुटठी रेत मेलनै, रेत में सुई खड़ी कर दी। बियां ई लार कर दोलड़ी हुयर आंख सूं सूई चकी।

अेक जणी तीन सूत रो सिरियो गळै सूं दोलड़्यो। आंख पर मेल'र ई दोलड़ दियो। इस्या-इस्या दरसाव आं छोर्यां दिखाया जिका सैकड़ूं रिपिया खरच्यां ई देखणा तो दूर सोच में ई नीं आवै। इत्ता जबरा-कलाकार इयां गळ्यां-गळ्यां रोवता फिरै! कियां टेम टिपावता हुसी।

सो समान रिक्सै मांय पाछो लदीजण लागग्यो। जी में आवै कै आं सूं बंतळ करां। बूझां। कठै सूं आयोड़ा हो, इत्ती छोर्यां किण री है?

सुवाल घणा ई, पण हिम्मत नीं पड़ी। बां रै आगै सगळा सुवाल पोचा हुग्या।

जियां ई आं सगळै कलाकारां बस अड्डो छोड़्यो। तो लाग्यो, पंाच-पांच बेट्यां अेकै सागै व्हीर हुगी। लाग्यो जाणै कोई काळजो काढ लेयग्यो। पाछी सून बापरगी बठै।