जंगल-जानवर फिल्मों में मनुष्य / जयप्रकाश चौकसे

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जंगल-जानवर फिल्मों में मनुष्य
प्रकाशन तिथि : 05 अप्रैल 2019

विद्युत जामवाल अभिनीत फिल्म 'जंगली' दर्शक द्वारा पसंद की जा रही है। इस फिल्म का केंद्र एक हाथी है। राजेश खन्ना ने अपने शिखर दिनों में चिनप्पा देवर की फिल्म 'हाथी मेरा साथी' अभिनीत की थी। चिनप्पा देवर की दूसरी फिल्म 'गाय और गोरी' में जया भादुड़ी ने अभिनय किया था। चिनप्पा देवर जानवरों को प्रशिक्षित करने का व्यवसाय करते थे। वे पढ़े-लिखे नहीं थे, अत: उनके पास कोई बैंक अकाउंट नहीं था। वे सारा लेन-देन कैश में ही करते थे। वर्तमान समय में वे काम नहीं कर पाते। देवर महोदय ईश्वर के भक्त थे और ईश्वर को अपने कारोबार में बराबरी का भागीदार मानते थे। फिल्म के मुनाफे का आधा भाग मंदिर को देते थे। यह सब वे अपने कुल देवता के मंदिर के लिए करते थे।

वर्ष 1985 में राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मैली' और केसी बोकाडिया की कुत्ते पर केंद्रित फिल्म 'तेरी मेहरबानियां' का प्रदर्शन हुआ और वितरक ने कहा कि गंगा के तट पर कुत्ता दौड़ रहा है परंतु गंगा 2550 मील का सफर तय करती है। कुत्ते के लिए इतना दौड़ना संभव नहीं था। एक फिल्म में अरुणा ईरानी अभिनीत पात्र का शिशु जन्म के बाद ही मर जाता है। अपने पास आते सपोले को वह अपना दूध पिलाती है। आगे जाकर मुसीबत के समय सांप अपनी दूध पिलाने वाली मां की सहायता करता है। फिल्म का नाम था 'दूध का कर्ज'। जानवर पात्रों को लेकर बहुत-सी फिल्में बनी हैं। ज्ञातव्य है कि अमेरिका में 'स्टूडियो एनिमल' नामक संस्था है और वह फिल्मकार की आवश्यकता के अनुरूप जानवर प्रशिक्षित करके भेजती है।

कुछ वर्ष पूर्व जानवरों से प्रेम करने वाले मंत्री ने सेन्सर बोर्ड को आदेश दिया था कि वे निगरानी रखें कि फिल्मकार शूटिंग के समय जानवर को कष्ट नहीं दें। सेन्सर का एक सदस्य शूटिंग में मौजूद रहता है और फिल्म के प्रारंभ में डिसक्लेमर देना होता है कि शूटिंग के समय जानवर को कष्ट नहीं दिया गया है कि फिल्म के सारे पात्र काल्पनिक हैं और किसी यथार्थ मनुष्य से फिल्म के पात्र का कोई संबंध नहीं है। यहां तक कि यथार्थवादी फिल्म में भी काल्पनिक होने का डिसक्लेमर देना पड़ता है। खाकसार ने तो प्रवेश द्वार पर ही लिख दिया है कि इस घर में रहने वाले सभी पात्र काल्पनिक है।

आज फिल्म टेक्नोलॉजी इतनी विकसित हो चुकी है कि जानवरों के दृश्य ग्राफिक्स द्वारा बनाए जाते हैं और जानवर की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। टारजन किंवदंती बार-बार फिल्माई गई है। दुर्घटनावश एक बालक जंगल में अकेला रह जाता है। वह उनकी भाषा भी समझ लेता है परंतु मनुष्य की भाषा उसे नहीं आती। कुछ वर्ष पश्चात एक दल जंगल आता है, जिसकी एक सदस्या से टारजन को प्रेम हो जाता है। अपनी प्रेमिका की संगत में वह भाषा सीखने लगता है। उसके प्रथम संवाद 'मी टारजन, यू जेन' पर खूब तालियां बजाई गई थीं। टारजन कथा एनिमेशन में भी बनी है। इसी तरह वनमानुष केंद्रित 'किंगकांग' भी कई बार फिल्माई गई है। यह भी एक प्रेम-कथा है। अपनी प्रेमिका के वियोग में वनमानुष चीख पड़ता है। फिल्म में दिखाया है कि जंगल से विशालकाय वनमानुष को पानी के जहाज के तलघर में रखकर लंदन लाया जा रहा है, जहां टिकट लगाकर उसका प्रदर्शन किया जाएगा। एक दृश्य में नायिका का लाल रंग का स्कार्फ हवा के कारण तलघर में बंद किंगकांग के चेहरे पर गिरता है और उस वियोगी का दर्द किसी कवि को प्रेरित कर सकता है। अमेरिकन फिल्म 'इरमालाडूस' से प्रेरणा लेकर शम्मी कपूर ने संजीव कुमार व जीनत अमान अभिनीत फिल्म 'मनोरंजन' बनाई थी। पुलिस हवलदार को तवायफ से प्रेम हो जाता है। अपने सरकारी समय में प्रेम करने के अपराध में उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। वह जीविका कमाने के लिए पुलिस द्वारा अपने कुत्तों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में काम करता है। उसे हाथ-पैर पर मोटा कपड़ा बांधकर भागना होता है और कुत्ते शिकारी की तरह उसका पीछा करते हैं। कभी-कभी काट भी लेते हैं। जब उसकी प्रेमिका को यह बात मालूम पड़ती है तो वह उसे फटकार लगाती है और संवाद हैं 'क्या तवायफ कि बिरादरी में मेरा नाम बदनाम करोगे की एक अदद प्रेमी भी पाल नहीं सकी।'

बारमैन शम्मी कपूर की सलाह पर संजीव कुमार एक नवाब का भेष धारण करके अपनी प्रेमिका के कोठे पर जाता है। शम्मी कपूर पूछते हैं...'क्या मुगलों के बारे में उसे कोई जानकारी है? उसका जवाब है क्या बात करते हैं मैंने सारी उम्र ईरानी रेस्तरां में मुगलई खाना खाया है।' राहुल देव बर्मन ने माधुर्य रचा था। एक गीत के बोल थे 'कितना प्यारा गीत है यह गोयाकि चुनांचे' राज कपूर के 'मेरा नाम जोकर' में रूसी कलाकार आमंत्रित किए गए थे। फिल्म में नीरज रचित गीत के बोल थे 'ए भाई जरा देखकर चलो.... जानवर आदमी से ज्यादा वफादार हैं और आदमी माल जिसका खाता है, प्यार जिससे पाता है, उसके ही सीने में भोंकता है कटार।'