जंगल की होली / सुधा भार्गव

Gadya Kosh से
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एक भालू था। वह गुल्लू किसान के खेत की रखवाली किया करता। गुल्लू हर वर्ष होली के अवसर पर अपने गाँव होली खेलने जाया करता। इस साल भी जाने वाला था मगर भालू ने टोक दिया –गुल्लू चाचा ,इस बार गाँव न जाओ .। हमारे साथ मनाना।

-क्या बात करता है !तू तो बड़ा भोला है-- अरे दो लोग में क्या होली मनती है।

-दो --दो कहाँ? हम तो दस हैं --देखते ही देखते सारा जंगल होली खेलने लगेगा।

- अच्छा, ठीक है। होली खेलने से पहले तो आज शाम को होलिका जलाई जायेगी और उसके लिए लकडियाँ इकट्टी करनी पड़ेंगी। तुम अपने साथियों के साथ लकड़ी जुटाओ,मैं अभी आता हूँ।

भालू जोर से चिल्लाया -

कठफोड़वी,कोयलिया

रिंकू हाथी,चिंकू घोड़ी

जल्दी जल्दी आओ,

सूखी लकड़ी जुटाओ

होलिका आज जलानी है।

प्रेम की नगरी बसानी है।

सब दौड़े दौड़े आये।

बोले -होलिका क्यों जलानी है?

-अरे यह तो मुझे भी नहीं मालूम। वह देखो गुल्लू चाचा ---वे ही बताएँगे।

सबने किसान को घेर लिया --चाचू --चाचू बताओ न,होली क्यों जलाते है।

-सुनो,बहुत पहले राक्षसों का एक राजा था। उसका नाम हिरण्याकश्यप था। उसने एक बार भगवान् की बहुत पूजा की। प्रसन्न होकर उन्होंने उसे वरदान मांगने को कहा।

हिरन्यकश्यप ने कहा -- मैं चाहता हूँ कि मेरी मौत आदमी या जानवर, एक हथियार या बिना हथियार, दिन या रात के दौरान, घर के अंदर या बाहर और धरती या आकाश में नहीं होनी चाहिए।

वरदान मिलने के बाद तो राजा को घमंड हो गया और सोचने लगा -मैं तो अमर हूँ।

उसने राज्य में ढिंढोरा पिटवा दिया -मैं ही सबसे बड़ा हूँ। भगवान् को कोई नहीं पूजेगा। मेरी ही सब पूजा करेंगे।

जो उसकी बात नहीं मानता था उसको वह मरवा देता।

-वह तो बड़ा गन्दा था । हाथी बोला।

-हाँ !ठीक कह रहे हो। पर उसका बेटा प्रहलाद ईश्वर को बहुत मानता था।

उसने कहा -पिता जी,ईश्वर ने तो हम सबको बनाया है,फिर तो वह सब से बड़ा हुआ। उसकी पूजा करना मैं नहीं छोडूंगा।

इसपर राजा उससे बहुत नाराज हो गया। मारने के लिए उसे कभी ऊँचे पर्वत से नीचे गिराया,कभी समुद्र में डुबोने की कोशिश की पर वह बच गया।

राजा परेशान होकर अपनी बहन से बोला --होलिका तुम्हें तो आग में न जलने का वरदान भगवान् से मिला है। अगर प्रहलाद को लेकर आग में बैठ जाओ तो यह अवश्य जलकर ख़ाक हो जाएगा और तम्हारा बाल बांका भी नहीं होगा।

पर चमत्कार --यहाँ भी भगवान् ने अपने भक्त की रक्षा की। होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया।

-अच्छा हुआ होलिका जल गई --होलिका जल गई --कोयल कूक उठी।

-ओह चुप कर कोयलिया --। चाचू --जल क्यों गई वह? कठफोड़वी ने पूछा।

-असल में दोनों भाई -बहन भगवान् की यह बात भूल गए ;यदि किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए होलिका उसे आग में लेकर बैठेगी तो वह जल जायेगी। होलिका ने प्रहलाद का बुरा चाहा लेकिन उसका बुरा हुआ और प्रहलाद अच्छा था सो बच गया।

-अब मैं समझा,हर साल होली इसीलिये जलाते हैं कि अपने मन की बुराइयों को भी आग में जला दें -रिकू हाथी बोला।

शाम होने वाली थी सबको मिलकर होलिकादहन की तैयारी भी करनी थी। कोयलिया -कठफोड़वी उड़ चले। चोंच में तिनके भर कर लाये और जंगल के एक तरफ मैदान में रख दिए। हाथी सूखी टहनियों का गट्ठर अपनी सूढ़ में लपेटकर लाया और तिनकों पर रख दिया। भालू के दोनों हाथ भूसे से भरे थे। उसने भी भूसा गट्ठर पर धीरे से रख दिया खरगोश भी कब पीछे रहने वाला था। उसने खेत से गेहूँ की बालियाँ तोड़ ली थीं उन्हें मुँह में दबा कर फुदकता हुआ आन पहुंचा।

किसान भी समय पर आ गया। उसके हाथ में पीतल की एक थाली और लंबा सा डंडा था । उसने घास -फूस और टहनियों के ढेर को ठीक ठाक कर रोली चावल से पूजा की और बताशे चढ़ाये .।

-चाचू,पूजा क्यों कर रहे हो?

-होली जलाने से पहले पूजा करके होलिका से प्रार्थना की जाती है कि जिस तरह से उसने बालक प्रहलाद को दुख दिया वैसा किसी के बच्चे को न दे।

किसान ने सबको एक एक मीठा बताशा खाने को दिया। डंडे के एक छोर पर उसने गेहूँ की बालियाँ बांधी और होलिका में आग लगा दी। उसके जलते ही चारों ओर रोशनी फैल गई। दूर खड़े पलाश पेड़ के चटक लाल -नारंगी रंग के फूल और ज्यादा मुस्कराने लगे .। आग की जब लपटें ऊपर उठने लगीं,चाचू डंडे से बंधे गेहूँ के दाने भूनने लगा। दानों के छिलके उतारकर आस -पास खड़े पशुपक्षियों को दिये और बोला -होली के दिनों में किसान मस्ती से झूम उठता है क्योंकि नई फसल कटती है --जितनी ज्यादा फसल उतनी ज्यादा खुशी की लहरें। लो नए अनाज का प्रसाद लो।

अब होलिका जल चुकी है,तुम भी दूसरों के लिए जो बुरी भावनाएं रखते हो उन्हें जलाकर प्रेम भाव से मिलो।

आज से हम सब प्यार से रहेंगे ----सारा जंगल गूज उठा ।

कोयलिया और कठफोड़व़ी चोंच से चोंच भिडाकर प्रेमपगी भाषा बोलने लगीं। हाथी अपनी सूढ़ से सबको छूता और फिर अपने मस्तक से लगा लेता मानो स्नेह की बौछारों में भीगना चाहता हो। रिंकू घोड़ी किसान के पास हिनहिनाकर उसके आगे -पीछे घूमने लगी। किसान उसकी बात समझकर एक ही झटके में उसपर सवार हो गया। उड़ चली घोडी उसको ले कर और अपने साथियों को इशारा करने लगी --ठहरो --अभी आई --पूरे जंगल की सैर कराऊँगी।

हाथी बोला --हम उसका इन्तजार क्यों करे !भालू तू मेरे ऊपर बैठ --तेरे ऊपर बैठेगी कोयलिया और कठफोड़वी। सबसे पहले पलाश से मिलेंगे और फिर पूरे जंगल में कोयल रानी का मीठा गाना सुनते घूमेंगे। …थप --थप --टप --टप करते आधी रात बीत गई। आज उसकी काली चादर में तारे नहीं प्यार के मोत़ी जड़े थे ।

किसान चाचू लौटकर आया तो भालू बोला -रंग तो हैं ही नहीं ---कल होली कैसे खेलेंगे?

-मेरे होते हुए चिंता न करो। जल्दी से बड़े -बड़े बर्तन ले आओ। पलाश का पेड़ बोला।

किसान के घर से बाल्टी और भगोने आ गए।

पलाश इतनी जोर से हिला कि उसके फूल झर झर जमीन पर टपक पड़े।

-इनको बर्तनों में डालकर पानी से भर दो। सुबह तक केसरिया पानी तैयार !बस उसी से खेलना होली।

-टेसू के फूलों से भी तो होली खेली जाती है। मेरे दादा कहा करते थे।

अरे मैं ही तो टेसू हूँ। कोई मुझे पलाश कहता है तो कोई टेसू। कोई अग्नि वृक्ष कहता है

-अग्नि वृक्ष !

-हाँ !मैं जब अपने भाई -बहनों के साथ खड़ा होता हूँ तो लाल -लाल फूलों के कारण दूर से देखने पर लगता है जैसे जंगल में आग लग गई हो। मुझे तो सुग्गा पेड़ भी कहते हैं।

-सुग्गा --मजाक कर रहे हो क्या?

-मेरा फूल देखो --इसकी लाल -पीली पंखुड़ी तोते की चोंच की तरह मुड़ी है।

-मुड़ी तो है--मान गए सुग्गा भाई।

बहुत रात हो गई। सब सोने जाओ। कल होली खेलनी है। चाचू कहकर अपने खेत की ओर चला गया।

भालू की दोस्त मंडली देर से सोकर उठी पर भालू खरगोश की आवाज सुन पहले ही जाग गया था। आवाज की ओर दौड़ा दौड़ा गया तो देखा खरगोश टेसू के पानी से भरी बालटी में डूबा सा चिल्ला रहा है --बचाओ --बचाओ।

भालू ने उसे ऊपर खींचा और झुंझलाया -यह क्या तमाशा है

मैं सुबह उठकर पानी में झांका --उसमें मैं बहुत सुन्दर लग रहा था। उसे पकड़ने को झुका तो गिर गया धडाम से।

उसके भोलेपन पर भालू को हँसी आ गई। इतने में रिंकूहाथी और चिंकू घोड़ी भी आन पहुंचे। कोयलिया और कठफोड़वी चोंच में पानी भरकर एक दूसरे पर डालने लगीं। हाथी ने तो अपनी सूढ़ को ही पिचकारी बना लिया और कुछ ही देर में सबको रंग बिरंगा कर दिया। किसान को देखते ही उसे भी पल भर में ऊपर से नीचे तक भिगो दिया । इन पशु -पक्षियों की निराली होली देखकर गुल्लू किसान अवाक् था। सोच रहा था -इस बार गाँव न जा कर उसने अच्छा ही किया। यहाँ न छल -कपट न ईर्ष्या की भावना बस इनके बीच प्यार की एक धारा बह रही है जिसे इंसान ने सुखा दिया है।