जंगल में मंगल, वैचारिक दंगल / जयप्रकाश चौकसे

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जंगल में मंगल, वैचारिक दंगल
प्रकाशन तिथि : 05 अगस्त 2020


ताजा घटना है कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा का एक माओवादी अपनी बहन माला से राखी बंधवाने आया। बहन के समझाने पर वह पुलिस थाने गया, जहां बहन ने राखी बांधी और भाई ने आत्मसमर्पण किया। पुलिस ने हथकड़ियां पहनाईं, आत्मसमर्पण करने वाले अपराधियों के प्रति अदालत दया का दृष्टिकोण अपनाती है। ज्ञातव्य है कि मात्र 12 वर्ष की आयु में वह माओवादियों से मिल गया, उन्हीं की बस्ती में वह युवा हुआ और उसने बसें लूटी, अपहरण व हत्याएं भी कीं। क्या 12 वर्ष की आयु में माओ दर्शन समझा जा सकता है? क्या अमीरों को लूटने से आर्थिक समानता लाई जा सकती है? क्या बंदूक से कोई रास्ता निकल सकता है? दंतेवाड़ा से कुछ दूर बस्तर है। जनजातियां डाके नहीं डालतीं, बस उनके जंगल हड़प लिए जाते हैं। एक दौर में बंगाल में पढ़े-लिखे लोगों ने हिंसक नक्सलवाद चलाया था।

गोविंद निहलानी की फिल्म ‘हजार चौरासी की मां’ नक्सलवाद पर है। चंबल के डाकुओं ने भी आत्मसमर्पण किया था। यूरोप का सिसली और भारत के चंबल क्षेत्र से आए कुछ लोगों ने अपराध किए और डाके डाले। सिसली के किसान बेहतर अवसर के लिए अमेरिका गए, परंतु दरवाजे बंद मिले, तो उन्होंने संगठित अपराध घराने की स्थापना की। चंबल में छुप जाना आसान है। दंतेवाड़ा के घने जंगल भी व्यक्ति को छुपाए रख सकते हैं। अमेरिका में न चंबल है और न ही दंतेवाड़ा, परंतु संगठित अपराध उसी एलरोडो में पनपा।

दरअसल ये सारी बातें आर्थिक असमानता की खाई से निकलती हैं। यह बात गणतंत्र प्रणाली की कमतरी को रेखांकित करती हैं कि एक तर्कहीन व भावनाहीन, अमेरिका में उच्च पद पर जा पहुंचा। पूरे विश्व में पागलपन की हवा में आम आदमी की बदहवासी और तर्क को तिलांजलि देने से इस तरह के हुक्मरान सत्ता पर काबिज हो गए। किसी भौगोलिक परिस्थिति या किसी आबोहवा से अपराध प्रवृत्ति जन्म नहीं लेती। सर्वव्यापी जहालत के केलिडोस्कोप में रंगारंग आकृतियां उभरती हैं, परंतु जिस दिन रंगीन कांच का टुकड़ा आंख की ओर चल पड़ेगा होश फाख्ता हो जाएंगे। विज्ञान व टेक्नोलॉजी के शिखर समय में तर्कहीनता की जंगल घांस चहु और फैल रही है।

दंतेवाड़ा प्रकरण को एक काल्पनिक कथा से समझने का प्रयास करें। एक जिलाधीश दंतेवाड़ा दौरे पर था। वह जंगल में अपने सुरक्षा दल से दूर चला आया, मानो, जंगल में बजती बांसुरी की ध्वनि के मोहपाश मेंं खिचता गया। माओवादियों ने उसका अपहरण कर लिया। माओवादी नेता ने कैद में जिलाधीश से कहा कि वह सभी जगह घूम सकता है, परंतु भाग नहीं सकता। जंगल का हर वृक्ष एक गार्ड है और पशु-पक्षी निगाह रखे हुए हैं। जिलाधीश के लिए एक करोड़ रुपयों की फिरौती मांगी गई। मंत्री महोदय दुविधा में थे कि अगर आला अफसर के लिए फिरौती दी, तो व्यवस्था की पोल खुलेगी। अगर उसे वहां मरने दिया, तो सरकार की नाक कटेगी।

मंत्री जी ठहरे जुगाड़ू। उन्होंने अपने साथी को अपनी रिश्वत की कमाई दी और फिरौती देकर जिलाधीश को छुड़ाने भेजा।

माओवादी नेता ने रिश्वत की फिरौती अस्वीकार कर दी लेकिन जिलाधीश को छोड़ दिया। अगले दिन खूब प्रचारित किया गया कि मंत्री जी अपने साहस से दंतेवाड़ा के चक्रव्यूह में घुसे व अपने अफसर को छुड़ा लाए। कुछ समय बाद माओवादी नेता पुलिस द्वारा पकड़ा गया। जब जिलाधीश दंतेवाड़ा में स्वतंत्र कैदी था, तब रक्षा बंधन के अवसर पर माओवादी की बहन ने उसे राखी बांधी थी। उसके पर्स में रखी, राखी के धागे में कच्चा, रिश्ता ये पक्का’ उसे बार-बार शर्मिंदा कर रहा ता। जुगाड़ू मंत्री के साथ काम करते हुए, आला अफसर ने भी एक जुगाड़ यह की कि पेशेवर कैदियों के कान में मंत्र फूंका और फिल्म ‘द श्वासहैंक रिडेम्पशन’ की तर्ज पर माओवादी सरगना को जल से भगा दिया गया।

फिल्म गीत की पंक्ति- ‘विरह ने कलेजा यूं छलनी किया, जैसे जंगल में बांसुरी पड़ी हो’।