जंगल / शोभना 'श्याम'
आखिर वन विभाग ने उस बाघ को पकड़ ही लिया था, जिसने कई दिनों से इस गाँव के पास वाले छोटे से जंगल पर कब्ज़ा किया हुआ था। वह कई लोगों को ज़ख़्मी कर चुका था और एक-दो को तो जान से मार चुका था। इस जंगल से गाँव वालों की कई दैनंदिन ज़रूरतें पूरी होती थी, जिनका संकट खड़ा हो गया था।
बच्चे भी कम प्रभावित नहीं थे, उनका पेड़ों पर खेलना, बेर और शहतूत आदि तोड़ कर खाना आजकल बन्द था।
वन विभाग के आदेश से पिंजरे वाली वैन गाँव के बीचोबीच खड़ी कर दी गयी थी ताकि ग्रामवासी आश्वस्त और निर्भय होकर अपनी जंगल से जुड़ी गतिविधियाँ फिर से शुरू कर सकें। जहाँ बड़ों के चेहरों पर राहत झलक रही थी, वहीं बच्चों के मुख से उत्साह छलक रहा था।
दस वर्षीया झुनिया किलक कर बोली, "बापू, अब तो हम फिर से झरबेरी के बेर खा सकेंगे न। कित्ते दिन हो गए, जंगल में गए। मेरी बकरी भी फिर से खूब छक कर खाएगी। बेचारी इत्ते दिनों से गाँव में सूखी पत्तियाँ खाकर दुबली हो गयी है। हैं न बापू? मैं फिर से अपनी बकरी को लेकर जंगल जाऊँगी न।"
"नहीं बिटिया! अभी तो सिर्फ़ बाघ ही पकड़ा गया है।"
बापू ने वैन से झुनिया को घूरती एक जोड़ी आँख को देखते हुए कहा। "