जंगल / हेमन्त शेष

Gadya Kosh से
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जंगल की खासियत यह है कि वहाँ पेड़ उगाने के लिए किसी को नहीं जाना पड़ता. पेड़-पौधे, घास-पात, बेलें वगैरह सब अपने आप उगते रहते हैं, कोई खाद-बीज डालने नहीं जाता. आप से आप बीज फूटते और दरख़्त उगते और बड़े होते जाते हैं- उनके सहारे नाजुक सी बेलें ऊपर और ऊपर चढ़ती चली जाती हैं. कुछ वृक्ष तो इतने बड़े हो जाते हैं कि अगर आप पारंपरिक अँगरेज़ हों तो आप का हैट ही गिर जाए. जो पेड़ धराशाई हो कर ज़मीन पर गिर जाते हैं वे दीमकों के कुनबों का पेट भरते हैं. गिरी हुई सूखी पत्तियाँ बेहतरीन खाद बन जाती हैं. पता नहीं, कितनी तरह के कीड़े-मकोड़े और तितलियाँ वहाँ एक साथ पैदा होती और रहती हैं.

हाँ, उनमें से कुछ एक दूसरे को खाते ज़रूर हैं, पर शुक्र है, जंगल में रेलगाड़ी नहीं होती वरना तो वहाँ भी गोधरा-टाइप के कांड ज़रूर हो गए होते!