जटायु, खण्ड-10 / अमरेन्द्र

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सात दिनोॅ ताँय बारिश गदगदैतें रहलै। लोगें कही रहलोॅ छेलै-सताहा तेॅ देखलेॅ छेलौं, मजकि हेनोॅ सताहा नें, जेहनोॅ अबकी धूप-गर्मी पड़लै, होने बरसो। निनौन पुराय देलकै बारिश नें। बाप रे बाप, है रँ के...नानिये-दादिये के मुँहोॅ सें सुनै छेलियै, से अबकी देखी लेलौं...सात घरोॅ सें तेल माँगी केॅ दीया जरैलोॅ गेलोॅ छेलै, इन्दर भगवान केॅ खुश करै लेली-तबेॅ कांही बरसा रुकलोॅ छेलै। कत्तेॅ के घोॅर भांसी गेलोॅ छेलै आरो कत्तेॅ के दीवार गिरी केॅ ऐंगन उदामोॅ। केकरो छप्पर गिरी गेलोॅ छेलै, तेॅ केकरो सौंसे घरे बही गेलोॅ छेलै। कोय हेनोॅ घोॅर नें छेलै, जेकरा हानि नें पहुँचलेॅ छेलै।

मजकि ई बात के जत्तेॅ चरचा छेलै, ओकरौं सें ज़्यादा चर्चा छेलै, चानन नद्दी के उतराही दिश शीशम गाछ के ई बारिश में अलोपित होय जैवोॅ। गाछ के अलोपित होय जाय के कारण गाँवोॅ में दू खेमा साफ-साफ बनी गेलोॅ छेलै। हालाँकि दोनो खेमा आमना-सामना होय्यो केॅ एक-दूसरा सें कुछ नैं बोलै छेलै। पर एक कान सें दू कान, दू कान सें तीन। बात काँही दबलोॅ रहेॅ छै, आरो गाँवोॅ में? यहाँ तेॅ लोगोॅ केॅ एकरो पता रहेॅ छै कि फलनमां नें दिनोॅ में एत्तेॅ बार साँस लेलकै आरो चिलनमां नें दिनोॅ में एत्तेॅ बार। गाँवोॅ में तेॅ भगवानो केॅ नाँगटे होय केॅ चलै लेॅ लागै छै।

शीशम गाछ के चोरी सुनी केॅ विधाता आरो रवि चक्रवर्ती गाँव लौटी ऐलोॅ छेलै। जे बाहर बसी गेलोॅ छेलै, ओकरोॅ तेॅ बाते अलग छेलै, मजकि जे नगीच कोय गाँव-शहरोॅ में बसलोॅ छेलै-ऊ सब एक दिन आगू-पीछू सें रुपसा पहुँची रहलोॅ छेलै। आखिर आपनोॅ गाँवोॅ के बात छेलै। हालाँकि पहुँचै वाला आदमी में जादा हेने छेलै, जे ई सोची केॅ ऐलोॅ छेलै कि कटलोॅ शीशम गाछ जों पकड़ैलै आरो ओकरोॅ बाँट-बखरा होलै, तेॅ कुच्छु नें कुच्छु एक्को पल्ला भर लकड़ी ओकरोॅ हाथ लगवे करतै-की कम छै। सौ बरस सें जादा पुरानोॅ गाछ छेकै। सबटा साल...किबाड़ की बनतै, जेना लोहा रोॅ फाटक...कुछ हेनोॅ लोग छेलै, जे खाली दिरिश देखै के ख्यालोॅ सें ऐलोॅ छेलै...सौंसे रुपसा ई कांडोॅ सें हठाते गनगनाय उठलोॅ छेलै।

शुरू-शुरू तेॅ जे भी आवै, चानन किनारी में घंटो-घंटो पड़लोॅ रहै। गाँवोॅ के मरद साथें बच्चो-बुतरू के झुमार जेना बनले रहलोॅ छेलै। पर तीने-चार रोजोॅ के बाद यहू मेला-तमाशा धीरें-धीरें खतम हुएॅ लागलै। कमकाजुओ सिनी आपनोॅ-आपनोॅ जग्घोॅ पकड़ी लेनें छेलै। धीरें-धीरें गाँव शांत हुएॅ लागलोॅ छेलै। पर अखिनकोॅ शांति पहिलका सें ज़्यादा भांय-भांय करै वाला बुझावेॅ लागलोॅ छेलै।

गाँव में जे भी बूढ़ोॅ-पुरानोॅ छेलै, हुनकासिनी में तेॅ नें, पर नया खूनोॅ में है घटना केॅ लै केॅ उथल-पुथल ज्यादाहै छेलै।

कुछु लोगोॅ के कहना छेलै कि गछकटाई में विधाताहै के हाथ छै, ऊ भागलपुर कथी लेॅ गेलोॅ छेलै, आबेॅ ई बात एकदम साफ होय गेलोॅ छै। ऊ भागलपुर गेलोॅ छेलै-लकड़ी मिल वाला सें बात करै वास्तें। झुट्ठे सब्भै केॅ कही देलकै कि रवि चक्रवर्ती ओकरा बोलैनें छै-कमिश्नर सें कही-सुनी केॅ चानन के जंगल वाला खलिया जग्घोॅ हासिल करै लेॅ, विद्यापीठ खोलै लेॅ...महिना भरी लागै छै हाकिम-हुक्काम सें बात करै में? ...अरे ऊ वहाँ जाय केॅ ई इन्तजारी में छेलै कि बरसा अय्ये रहलोॅ छै, कोय दिन हेनोॅ झोड़-पानी पड़लै, तेॅ गाछ सिनी के ठिकानोॅ लगाय देलोॅ जैतै...आरो इन्दरो भगवान हेनोॅ सहाय ओकरा पर भेलै कि सताहे लगाय देलकै...आरो विधातां गाड़ी-मजूर लगाय केॅ गाछ कटवाय लेलकै...भला हौ ठनका में आरी के आवाज के सुनेॅ पारतियै?

पर ई बात कोय आपनोॅ दिश सें नें बोलै छेलै। कोय ई कहै तेॅ ई कही केॅ कि फलां हेनोॅ कही रहलोॅ छेलै, चिलां होनोॅ कही रहलोॅ छेलै...कहै वाला साथे-साथ यहू कहना नें भूलै, "होना केॅ कोय कुछु बोलेॅ, हमरा तेॅ कोय घुट्टियो भरी पानी में डूबी केॅ कहतै, तभियो हम्में विश्वास करै वाला नैं। हौं।"

पर ई बातोॅ सें कि गछकटाई विधाता करवैनें छै, जों केकरहौ शात शायत विधाताहौ सें ज़्यादा दुख छेलै तेॅ दीपा केॅ। वें बार-बार विधाता केॅ यै बारे में कुछु करै लेॅ कहनें छेलै, पर बार-बार विधाताहों यही कही केॅ टाली दै कि जहाँ पानी कम रहेॅ, वहाँ कीचड़ हटाय के मानै छै-पानी आरो कदोड़ करी देवोॅ ...भीमो सें यही गलती होलोॅ छेलै, आखिर में वहेॅ कदोड़ पानी प्यासलोॅ युधिष्ठिर वास्तें लै जाय लेॅ लागलोॅ छेलै भीम केॅ। पर ई सब बातोॅ सें दीपा केॅ सन्तोष नें हुऐ, जेना ई दोष विधाता पर नें, ओकर्है पर लगैलोॅ गेलोॅ रहेॅ। बातो सही छेलै। दीपा विधाता केॅ आपना सें अलग कहाँ मानै छेलै। से ऊ सीधे अनिरुद्धोॅ के नगीच पहुँची गेलोॅ छेलै आरो कहनें छेलै, "अनिरुद्ध दा, तोंही कुछ करोॅ। विधाता पर एत्तेॅ बड़ोॅ दोष लगैलोॅ गेलोॅ छै आरो तोरा सिनी कोय कुछु नें बोलै छौ। नें प्रसून दा बोली रहलोॅ छै, नें खुशी दा, नें गंगा दा आरो नें तेॅ रंगीला दा...होना केॅ एक बात जानी ला-ई हेनोॅ बात छेकै, जेकरा साफ करने बिना हम्में शांत नें रहेॅ पारौं। जों अन्याय सहै के क्षमता तोरा सिनी केॅ एतन्हें बढ़ी गेलोॅ छौं, तेॅ बढ़ौक। पर यहू नें भूलियौ-ई दोष केॅ हम्में सौंसे गाँव सें एक दीपा पर लगैलोॅ अपराध नाँखि लै रहलोॅ छियै आरो एक सौ हजार देवता असमर्थ हुएॅ पारेॅ, मजकि अन्याय के विरोध करै वास्तें कभी-कभी एक नारिये काफी होय जाय छै।" आरो ई कही केॅ दीपा हनहनैली अनिरुद्ध घरोॅ सें निकली गेलोॅ छेलै...तखनी ओकरोॅ दुःख आरो गुस्है एत्तेॅ माथोॅ पर चढ़लोॅ छेलै कि अनिरुद्धे ओकरा रोकौ लेॅ चाहतियै, तैहियो ऊ नें रुकतियै। दुआरी सें दूर निकली गेला पर अनिरुद्ध नें आपनोॅ पत्नी सें कहलेॅ छेलै, "मीरा, आबेॅ तोरा की समझैय्यौं-विधाता के कौन सोभाव तोरा सें छिपलोॅ छौं...हम्में एक्को कदम यै मामला में उठैवै तेॅ वैं यही कहतै-तोहें गाँव केॅ शांत नें रहेॅ देवैं। उधियैला सें छाली बरतन सें बाहर आगिन में गिरवे करेॅ, छाली नें गिरै, यै वास्तें हम्में कुछु बोलिये नें रहलोॅ छियै, यै मामला में...पर दीपा केॅ की मालूम, ओकरा सें कम दुःख आरो गुस्सा हमरा नें होय रहलोॅ छै...लतांतो केॅ ओत्है गुस्सा छै, खुशियो लाल केॅ, मतरकि कर्है की पारेॅ सकेॅ। विधाता के विधाने अलग छै...चित्रागुप्त जी केॅ दूसरा के लिखा-पढ़ी पर विश्वासे नें हुएॅ पारै।" कहतें-कहतें अनिरुद्ध के बोली थोड़ोॅ तीक्खोॅ होय गेलोॅ छेलै।

"हुनका विश्वास नैं छै, तेॅ नें छै। तोरा तेॅ कुछु मित्रा वास्तें करन्हैं चाहियोॅ। कहलेॅ छै कथी लेॅ-धीरज, धर्म, मित्रा आरू नारी-आपद काल परखिये चारी। यहाँ तेॅ मित्रा आरो धर्म, दोनों के ही रक्षा के सवाल आवी गेलोॅ छै।" अनिरुद्धोॅ के कनियैनी कहनें छेलै

"कहै तेॅ ठिक्के छौ। देखै छियै, की करेॅ पारै छियै?"

"सबसें अच्छा यहेॅ होत्हौं कि दुर्गा थानोॅ में एकठो सभा बुलावोॅ आरो वहीं में सब बात के खुलासा करोॅ। जेकरा जे कहना छै, खुली केॅ कहौ। है की-रूय्या नाँखि कनफुसकी सुलगतें रहेॅ...हम्में तेॅ कहभौ-शनिच्चरो जी केॅ वैं सभा में बुलावौ।"

"यहेॅ नैं होत्हौं हमरा सें, चाहे हमरोॅ गोतिया समेत ई सौंसे पट्टी हमरोॅ खिलाफ होय जाय...तोरोॅ जनानी वाला बुद्धि...की समझवा...है हेत्तेॅ जे खेला होय रहलोॅ छै-की शनिचरे बिना? ...मीरा पाप के गोड़ सहलैला सें, पाप गोड़ोॅ सें माथा पर चढ़ी आवै छै, ऊ नरम नें पड़ै छै। ओकरोॅ बुद्धि उल्टे दिश चलवे करै छै। शनिचर केॅ मनाय के मतलब समझलौ, ऊ आपना केॅ वरियो समझी केॅ आरो अन्याय पर उतरी जैतै...पर सभा होतै। तोरोॅ है बात हमरा जँचलोॅ। तोहें एक काम करोॅ। वैं सभा में जत्तेॅ पुबारी-दखनवारी आरो पछियारी-उतराही टोला के जोॅर-जनानी आवेॅ पारेॅ, जमा करोॅ। हम्में एखनिये कमरुद्दीन आरो खुशी सें बात करै छियै। आय बृहस्पतिवार छेकै। सभा यही एतवार केॅ बैठतै। दुर्गे थानोॅ में। ठीक बारह बजे दिनो सें।" कहतें-कहतें अनिरुद्ध के बांयां तरहत्थी में दायाँ मुट्ठी जोर सें कसी गेलोॅ छेलै आरो दोनों ठोर दोनो दिश फैलतें हुएॅ एकदम पतला होय गेलोॅ छेलै।