जटायु, खण्ड-11 / अमरेन्द्र

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एतवार ऐत्हैं रूपसाहै में नें, आस-पास के सब्भे गाँव में खलबली रँ मची गेलोॅ छेलै। कटियामोॅ टाड्ढी, दरिया सें लैकेॅ डड़पा, कटिया तक में यही बात के चर्चा छेलै कि आय रुपसा के दुर्गा थानोॅ में सभा होतै। सभा में की होतै, ई बातोॅ सें ज़्यादा चर्चा यही बातो के छेलै कि वै सभा में मरदाना तेॅ भाषण देवे करतै, दिक्पाल जी के पोती दीपाहौ सब जनाना-मरदाना के बीच बोलतै। ई बात केॅ लैकेॅ जत्तेॅ गामोॅ के जत्तेॅ लोग छेलै, ओतन्हैं किसिम के बातो होय रहलोॅ छेलै...कॉलेज में पढ़ली छै, हेने केॅ नें। पढ़ली छै, तब्हैं नी ठठमठठ मरदोॅ के बीच बोलै के हियाव राखै छै...धूरोॅ, जोर-जनानी-मौगी की बोलतै, मलकाठोॅ में पाठाहै-बकरा कटै छै की बकरियो...हों, मुखड़ा दिखाय वास्तें खाड़ोॅ भै जैतै, आरो की...अरे जानै नैं छै, जोॅर-जनानी भाषण की देतै, ऊ तेॅ सभा में भीड़ इकट्ठा करै वास्तें दीपा के भाषण करै के हल्ला करलोॅ गेलोॅ छै। जानै नें छै, जहाँ दू-चार जोॅर-जनानी खा़ोॅ भेलोॅ, वहाँ सौ-पचास मरदाना के भीड़ बनिये जाय छै। बस यही वास्तें आरो की...जे भी रहेॅ, भाषण तेॅ सुनै लेॅ जानाहै चाहियोॅ, आखिर तेॅ कुछु रहस्य के बात होवे करतै, नें तेॅ ई बोआई-ओआई के टेम में ई सभा-सोसाईटी के की मानें...

ठीक बारह बजें सें खेत-बहियार, पगडंडी, आरी-बारी केॅ पार करतें जोॅर-जनानी मौगी-मुंशा के ऐवोॅ-जैवोॅ शुरू होय गेलै। बच्चा-बुतरू औरत-मरद के साथें लागलोॅ छेलै-कोय गोदी पर, तेॅ कोय कंधा पर, जेना दुर्गा थानोॅ में भगवतिये दर्शन लेली भीड़ उपटी पड़लोॅ छेलै...ई तेॅ संयोगे छेलै कि तीन दिन पहिनें उखेल होय गेला के कारणें रास्ता-पैड़ा सुखलोॅ-सुखलोॅ रँ होय गेलोॅ छेलै आरो दिनो ठो सैर-सपाटा लायक बनी गेलोॅ छेलै। यहू कारण छेलै कि कै दिनोॅ सें झकसी-बतास सें उबी केॅ जोॅर-जनानी गाँव सें बाहर निकली ऐलोॅ छेलै। खुल्ला आकाश आरो धरती के आनन्द लै लेॅ।

सभा आपनो टैम सें शुरू भेलोॅ छेलै। शुरू में वसन्त काका के इशारा पर अनिरुद्ध आरो खुशी नें कुछु-कुछु जमा होलोॅ लोगो सें कहलेॅ छेलै, मतरकि भीड़े हेनोॅ छेलै आरो शोरगुलो हेने कि लोगें ठीक-ठीक ई नें जानेॅ पारलकै कि अनिरुद्ध आरो प्रसूनें आखिर लोगो सें कहलकै की? भीड़ के लगातार बढ़तें शोर देखी केॅ मंचोॅ पर कमरूद्दीन खड़ा भेलै आरो मैक आपनोॅ दिश खींची केॅ जोरोॅ सें कहलकै, "आपनें सब भाय-बहिन, चाचा-चाची आरो बुतरू सिनी सें करबद्ध प्रार्थना छै कि हुनी शांत होय जा, ताकि आपने सिनी के सामना में कुमारी दीपा आपनोॅ बात रखे सकेॅ।" आरो सच्चे में भीड़ में शांति फैली गेलोॅ छैलै। जे जनानी जहाँ ठाड़ोॅ छेलै, ऊ वांही बैठी गेलोॅ छेलै। पर मरदाना सिनी दूर-दूर ठाड़े रहलै। भीड़ के शांत होत्हें, कमरूद्दीन नें फेनू कहना शुरू करलकै, "भाय-बहिन, चाचा-चाची, आरो गुरूजन, आयकोॅ सभा बुलाय के एक खास मकसद छै। हम्में ई चाहै छियै कि आपनें सिनी सें दीपा बहिन कुछु कहै, हेकरा सें पहनें मित्रा विधाता आपनें सिनी सें बतावेॅ कि आखिर ई सभा बुलावै के की मकसद छै।"

समुच्चे भीड़ के नजर, जे अभी-अभी दीपा पर टिकलोॅ छेलै, अनचोके विधाता पर जाय टिकलै। मंचोॅ पर खड़ा विधातां एक बार वैंठां ऐलोॅ लोगोॅ केॅ प्रणाम करलकै आरो मैकोॅ पर एकदम मंजलोॅ नेताहै नाँखि कहना शुरू करलकै, "हमरोॅ पूज्य गुरू, आदरणीय बुजर्ग सिनी आरो भाय-बहिन सहित हमरोॅ साथी, आय तोरा सिनी केॅ बोलाय के हमरोॅ एगो खास मकसद छै, आरो ऊ मकसद छेकै, आपनोॅ जंगल, आपनोॅ शीशम-वन बचाय वास्तें एक साथ चिंतित होय के...तोरा सिनी केॅ मालूमे छौं, आपनोॅ चानन नदी के किनारी-किनारी जे तीन मील ताँय शीशम के जंगल फैललोॅ होलोॅ छै, ऊ खाली रूपसाहे गाँव के शान-प्रतिष्ठा के बात नें छेकै, मजकि है शान-प्रतिष्ठा तेॅ ऊ सब गाँवो के छेकै, जे-जे नदी किनारोॅ में बसलोॅ छै आरो नद्दी सें सटलोॅ-सटलोॅ आठ-दस मील के गामो के...ई जंगल के की इतिहास छै, कोय नें कहेॅ सकेॅ...कोय बोलै छै बहुत पुरानोॅ जमाना में यहाँ एक ऋषि ऐलोॅ छेलै, हुनकोॅ पीछू सें दू सौ मुनी। हुनके लगैलोॅ ई सब गाछ छेकै। कोय कहै छै-जबेॅ चानन ई दिश होय केॅ बहलै, तेॅ एकरोॅ किनारी-किनारी वनो आपने-आप उपजतें चल्लोॅ गेलै-राते-रात छोटोॅ-छोटोॅ गाछ बढ़ी मोटाय केॅ जंगल बनी गेलै...मतरकि बाबा तेॅ यहेॅ कहै छेलै कि हजारो बरस पहिनें, ई नदी के किनारी-किनारी दूर ताँय साधु-सन्यासी के एगो बस्ती छेलै। यहाँ भक्त सिनी आवी केॅ विश्राम करै छेलै, एक बार वही आश्रम में हजारो लोग जुटलै एक यज्ञ वाहीं करवाय लेॅ। हुनका सिनी सें एक भयंकर भूल होय गेलै। ऋषि के मना करला के बादो हुनका सिनी जंगल केॅ काटी-काटी यज्ञो में डालना शुरू करी देलकै-नतीजा ई होलै कि जंगल के देव गुस्साय उठलै। हुनी बहिन चानन नदी केॅ कहलकै, अपराधी सिनी केॅ है कुकर्म के सजा दै लेॅ। बहिन चानन नद्दी के गोस्सा आबेॅ एतन्है बढ़लै कि पानी तेॅ ताड़ गाछ तक उछलेॅ लागलै। सब कुकर्म करै वाला बालू तरोॅ मंें दबी गेलै। बाद में वही सिनी गाछ रूपोॅ में निकली ऐलै...जत्तेॅ लोग, ओत्ते कथा। मतरकि है के नें स्वीकारतै, यही जंगलोॅ सें हमरोॅ पुरखां ज्ञान लेनें छै, यही जंगल हमरा सिनी के जान बचैलेॅ छै, सुख देेलेॅ छै, समृद्धि देनें छै। आय वही जंगल के अंग-भंग होय रहलोॅ छै। ताज्जुब छै, हमरा सिनी ई तेॅ जानी रहलोॅ छियै कि गाछ लगातार कटी रहलोॅ छै, मजकि नें तेॅ गाछ काटै वाला के पता छै, नैं तेॅ हमरा सिनी जानै लेॅ चाहै छियै...हमरोॅ गामोॅ के जंगल कटी रहलोॅ छै आरो ई गामोॅ के साथें-साथ जों आसो-पास के सब्भे गाँव खामोश छै तेॅ यहेॅ समझै में आवै छै कि ई कामोॅ में हमरो बीचोॅ के लोग मौजूद छै...जरा सोचौ, हमरोॅ चुप्पी सें कल जंगल एकदम खतम नैं होय जाय वाला छै की? कल ई इलाका के सुख-सौन्दर्य-समृद्धि के आधार की होतै, जों ई जंगल कटी जैतै...हमरा ई नें भूलना चाहियोॅ कि एकरा सें हमरोॅ हवा, पानी आरो आकाशे शुद्ध नें होय छै, हमरा सिनी रँ कत्तेॅ-कत्तेॅ गामोॅ के आधा-सें-अधिक घरोॅ के चुल्हा उपासे रही जैतै, जबेॅ ई जंगल खतम भै जैतै...आयकोॅ सभा बुलाय के यही खास मकसद छै कि हमरा सिनी मिली केॅ है जंगल के टहनियो तक कटै सें बचाय लेॅ तैयार होय जांव। जों तैयार होय जैवौ, तेॅ है बात जानी लेॅ कि ई जंगल के एक गाछ की, एक्को टहनी ताँय नें कटतै। तोरा सिनी नें जानतेॅ होभौ, उड़ीसा में कपिलाक्ष नामक इलाका छै। लम्बा-लम्बा गाछोॅ सें भरलोॅ जंगल। धीरें-धीरें जंगलचोर के नजर वै वनोॅ पर गेलै। आबेॅ की छेलै, आस-पास जिला के लकड़ी-व्यापारी के चालीस-पचास आदमी बैलगाड़ी पर गाछ काटै के औजार लै केॅ आवै आरो रातो-रात गाछ सिनी जंगल के बीचोॅ सें काटी केॅ लै जाय। आखिर उड़ीसाहै के ढेकानाल जिला के वनवासी सिनी एकजूट भै गेलै एकरोॅ विरोध में। शुरू में वनवासी सिनी नें गाछ नैं काटै वास्तें जंगलचोर सिनी केॅ डरैलकै, धमकैलकै, ओकर्हौ पर जबेॅ जंगल काटै वालां परहेज नैं करलकै, तबेॅ वनवासी सिनी उन्नीस सौ बेरासी इसवी के नवम्बर महिना में ऊ दुराचारी सिनी केॅ घेरी, जोॅन रँ दंडित करलकै, ओकरोॅ कथा पुरानोॅ नें भेलोॅ छै। साल भरी सें जादा नें भेलोॅ होतै...आय हमरोॅ सिनी के गामोॅ के जंगल धीरें-धीरें घटी रहलोॅ छै। आस-पास के लकड़ी-मिलोॅ में हमरोॅ जंगल कटी रहलोॅ छै। के हमरोॅ जंगल केॅ काटी रहलोॅ छै? के कटवाय रहलोॅ छै? सब कुछ जानै लेॅ हमराहौ सिनी केॅ ढेकानाल वनवासी हेनोॅ संगठित होय लेॅ लागतै, संगठित करै लेॅ लागतै, नैं तेॅ जेना सौंसे देश के घन्नोॅ-घन्नोॅ जंगल कटी गेलै, होन्हैं हमरोॅ यहू छोटोॅ रँ के जंगल कटी जैतै सब कुछ जानै लेॅजानै छौ कि दक्षिण भारत के बड़ोॅ-बड़ोॅ जंगल कटी गेलै, कैन्हें कि ई देशो में सालाना पच्चीस-तीस लाख टन के बराबर कागज बनै छै। ई कागज आवै छै कहाँ सें? जंगल के गाछोॅ सें। गाछ कटी रहलोॅ छै। दक्षिण भारत आरो उत्तरी भारत के कागज-मिल के मालिक के नजर आबेॅ हमरोॅ बिहार, बंगाल, आसाम पर छै, कैन्हें कि जे भी जंगल बचलोॅ छै, यही पूर्वी भारत में। मध्यप्रदेश में आबेॅ हौ जंगल कहाँ रहलै। देखत्हैे-देखत्हैं बिहार, बंगाल, आसामो बंजर होय जैतै, राजस्थाने रँ ...भट्टी जलतै तेॅ जंगल कटतै, कागज बनतै तेॅ जंगल कटतै, रेल बिछतै तेॅ ओकरोॅ पटरी के फिसप्लेट लेॅ जंगल कटतै। कल-कारखाना खुलतै तेॅ जंगल कटतै, खान खुदैतै तेॅ जंगल कटतै आरो खानोॅ के छत केॅ थिर करतै तेॅ जंगल कटतै। आरो नें तेॅ नै, कोय नया आबादी बसाना छौं तेॅ वहू में जंगल कटतै ...ई बात शायत तोरा सिनी केॅ नें मालूम होत्हौं-जबेॅ उन्नीस सौ अनठौन में पूर्वी पाकिस्तान सें शरणार्थी के झुमार भारत ऐलोॅ छेलै, तबेॅ मध्यप्रदेश आरो उड़ीसा के जंगले काटी केॅ ऊ शरणार्थी सिनी केॅ बसाय के काम शुरू भेलोॅ छेलै। हेना में बोलोॅ, आपनोॅ देश में कांही छोटो रँ के जंगल बनलोॅ रहेॅ पारेॅ? राजनेता कहै छै-खान खुदैतै, लोहा-इसपात बनतै, पर है खान खुदाय में हमरोॅ बेशकीमती गाछ, जड़ी-बुटी के जंगल कटी रहलोॅ छै, ओकरोॅ की होतै? ...हमरोॅ जंगल कटला सें जे दुर्लभ-दुर्लभ जंगली पशु-पक्षी खतम भै रहलोॅ छै, ओकरोॅ की होतै। जों है रँ जंगल कटतेॅ रहतै, तेॅ एक दिन सिंह, बाघ, हाथी के दर्शन दुर्लभ होय जैतै, यहाँ पर जे हमरोॅ बुजुर्ग सिनी उपस्थित छै, हुनकासिनी केॅ है बात मालूम होतै कि यही चानन नद्दी के किनारी-किनारी फैललोॅ बँसबिट्टी छेलै। आय ऊ नैं छै। कहाँ गेलै ऊ बाँस-वन? कोय जानै छौ? ई बात खाली हमरे गामोॅ के नें छेकै, सौंसे देश के बाँसवन धीरें-धीरें मिल में पेरैलोॅ जाय रहलोॅ छै। बाँस लुदगी बनी रहलोॅ छै, गत्ता बनी रहलोॅ छै। कल ताँय बिहार में कत्तेॅ-कत्तेॅ जग्घोॅ में बाँसतरी छेलै, आय दू-चार टा कहीं बाँस दिखाय जांव तेॅ यही बस...कैन्हें कि सौंसे देश सेें धीरें-धीरें बाँस खतम भै रहलोॅ छै। कुछ बाँसतरी बची गेलोॅ छै तेॅ बंगाल में। वहूँ सें कागज-गत्ता लेॅ बाँस मिल में चूर होय रहलोॅ छै...मिल-मालिक आबेॅ तोरोॅ घरोॅ के आस-पास के बंसबिट्टी केॅ खरीदी रहलोॅ छौं, तोरा ई नैं मालूम छौं। खाली मुट्ठी भर लाभ वास्तें, बड़ोॅ-सें-बड़ोॅ जंगल, नें खाली हमरोॅ वन-संरक्षके कटवाय रहलोॅ छै, मजकि सरकारो...आय वहेॅ आफत हमरा सिनी के जंगलोॅ पर आवी गेलोॅ छै। पिछला चार-पाँच साल के भीतरे पचास सें जादा पेड़ कटी चुकलोॅ छै...है बात छिपलोॅ नें रहतै कि तनी टा लोभ वास्तें, यै पापोॅ के विरोध नें करै में के-के शामिल छै। पर ई तेॅ बादकोॅ बात छेकै...आय जे हम्में आपनें सिनी केॅ यहाँ बुलैनें छियै, ओकरोॅ मकसद छेकै-आपनें सिनी केॅ कटतें जाय रहलोॅ जंगल के प्रति सावधान करवोॅ आरो जों हमरा सिनी सावधान नें होलियै, तेॅ ई जंगल की, एक दिन हमरा सिनी के ऐंगन के तुलसी-चौरा के तुलसी गाछो तक कटी जैतै।"

आखरी पंक्ति कहतें-कहतें विधाता के दोना हाथ जुड़ी गेलोॅ छेलै। जुड़लोॅ हाथोॅ सें भाषण के अंत समझी केॅ जनसमूह के बीचोॅ सें ताली के हेने गड़गड़ाहट उठलोॅ छेलै, जेना समुद्र में अनचोके ज्वार-भाटा होय गेलोॅ रहेॅ आरो ओकरोॅ आवाज सें सौसे वातावरण गूंजी गेलोॅ रहेॅ। ओकरोॅ प्रतिध्वनि जेना खतम होय के नामे नें लै रहलोॅ छेलै। पता नैं कखनी ताँय लोगें मंत्रामुग्ध होलेॅ ताली ठोंकते रही जैतियै, जों दीपा मैकोॅ के आगू नें आवी गेलोॅ होतियै।

कारोॅ-कारोॅ साड़ी-बुलाउज, जै पर महीन मोटोॅ जरी के काम करलोॅ छेलै। सचमुचे में वै पहनावा में दपदप करती दीपा के मैकोॅ पर ऐवोॅ नें सबके हाथो पर जेना ब्रेक लगाय देनें रहै। सबके मुँहोॅ पर जेना एक्के प्रश्न चुप छेलै-एतना सब बात कही देला के बाद बचिये की गेलोॅ छै, जे आबेॅ दीपा कहतै? पत्थर नाँखि इस्थिर, सब के आँख दीपा के चेहरा पर आवी केॅ गँथी गेलोॅ छेलै, जेना कोय शक्तिशाली चुम्बक आस-पास के लोहा के कण केॅ खींची लेलेॅ रहेॅ...मंचोॅ पर दीपा एकदम शहरूआ लड़की के भेष-भूषा में ऐलोॅ छेलै, मतरकि हाव-भाव सें आपनोॅ गाँव वाली। खाड़ी होय सें पहनें वें आपनो सौंसे देह साड़ी सें ढकी लेनें छेलै आरो सभा केॅ प्रणाम करै वक्ती आपनोॅ मूड़ियो झुकाय लेॅ नें भूललोॅ छेलै, आरो यही क्रम में वैनें आपनौॅ अंग-प्रत्यंगो केॅ चोर आँखी सें देखी लेनें छेलै, सब अंग ढकलोॅ तेॅ छै। लोगोॅ केॅ जे शंका छेलै, आखिर आबेॅ दीपा बोलतै की? सब तेॅ विधाता कहिये देलकै, सचमुचे में दीपौं वहीं सें कहना शुरू करलकै, "आबेॅ कहै लेॅ कुछू नें बचलोॅ छै, सार-सार सब निचोड़ी केॅ कही देलोॅ गेलोॅ छै...तहू पर हमरा जे कहना छै, हौ ई कि चानन के किनारी-किनारी जत्तेॅ पेड़ कटी गेलोॅ छै, ओत्तेॅ नया पेड़ हमरा सिनी वहाँ लगावौं। ओत्ते नें, ओकरा सें सौ गुना जादा। हमरा सिनी में सें एक आदमी जों एक गाछ लगैतै, तेॅ सोचोॅ कत्तेॅ गाछ लगी जैतै...गुरू रविन्द्रनाथ ठाकुर शांतिनिकेतन में सौन महिना के बाइस तारीख केॅ एकटा समारोह करै छेलात। वै समारोह में फूलोॅ के एक पालकी में एक छोटोॅ रँ के गाछ बिठाय केॅ लानलोॅ जाय आरो बड़ी आनन्द, धूम-धाम सें ओकरा कहीं रोपी देलोॅ जाय छेलै। ई वृक्ष-उत्सव केॅ बाबा आमटे नें आगू बढ़ैलकै। हजारो-हजार कॉलेज के लड़का-लड़की पालकी में बालतरू लानै आरो मील्हौं गाछ लगैतें चलै। उन्नीस सौ बेरासी में मध्य प्रदेश के तीन सौ पचास कॉलेजो के हजार लड़का-लड़की मिली केॅ एक लाख गाछ लगाय लेॅ साईकिल सें यात्रा करनें छेलै...ई तेॅ बहुत बड़ोॅ बात भेलै। हमरा सिनी कम-सें-कम आपनोॅ-आपनोॅ घरोॅ के आगू-पीछू के अलावा ई चानन नद्दी के किनारा में एक-एक गाछ ज़रूरे रोपों, ई हमरोॅ चाचा-चाची, बाबा-दादी, भाय-बहिन सब्भे सें निवेदन छै। खास करी केॅ यै कामोॅ में हमरोॅ भाय-बहिन आगू बढ़ौक, हमरोॅ ई भीतरिया मोॅन छेकै...मरदाना केॅ सौ काम रहेॅ छै, सौ गो चिन्ता। जनानी घरोॅ में रहै छै, घरोॅ केॅकाम सें मुक्ति मिलत्हें हमरोॅ बहिन-भाभी, जे भी छै, ऊ गाछ के रक्षा लेॅ समय दियै पारै...यहाँ पर ऐली हम्में आपनोॅ चाची, दादी, बहिन आरो भाभी केॅ खास करी केॅ, आपने देश रोॅ एक घटना सुनाय लेॅ चाहै छियै। ढेर साल अभी नें होलोॅ छै। उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिला के बात छेकै। वही जिला में खीराकोट नाम के एक गाँव छै, जहाँ एक कम्पनी नें खड़िया पत्थर के खुदाय शुरू करलकै तेॅ गाछो सिनी कटना शुरू होय गेलै। देखत्हैं-देखत्हैं खेत खड़िया पत्थर के टुकड़ा सें भरेॅ लागलै। यै पर ऊ गामोॅ के जोॅर-जनानी संगठित होय केॅ ऊ कम्पनी के एत्तेॅ जमी केॅ विरोध करलकै कि कम्पनी केॅ आपनोॅ काम रोकै लेॅ पड़लै। बादोॅ में वहाँकरे जनानी सिनी कटलोॅ गाछी के जग्घा में नया गाछ लगैलकै, जेकरोॅ कारण वहाँ हरा-भरा जंगल के जनम फेनू हुएॅ सकलै...तेॅ हमरा बस यही कहना छै कि जे जंगल हमरोॅ पास छै, ओकरा कोय्यो कीमतोॅ पर बचाना छै, लब्वो रोपना छै ...जंगल नें कटेॅ, यै लेली बहुत जल्दिये ओकरोॅ आस-पास आश्रम हेनोॅ कोय संस्था खोलै के बातो सोचलोॅ जाय रहलोॅ छै, ताकि लोगोॅ के कल्याणो हुएॅ आरो जंगलो के रक्षा। हमरा पूरा विश्वास छै कि हमरा सिनी केॅ यै सभा रोॅ आशीर्वाद आरो सहयोग, साथे-साथ मिलतै।"

सचमुच में दीपा नें आपनोॅ बातोॅ सें विधाता के बनैलोॅ रंग केॅ आरोॅ गाढ़ोॅ करी देनें छेलै-हेनोॅ गाढ़ोॅ कि चढ़ै ने दूजोॅ रंग। खुद विधातौ केॅ एकरोॅ विश्वास नें छेलै कि दीपा हेनोॅ निर्भय होय केॅ, एत्तेॅ भीड़ोॅ के बीच, एत्तेॅ बुद्धिमानी आरो ज्ञानोॅ के बात करेॅ पारतै।

पर कैन्हें नी करेॅ पारतै। गाँव छोड़ी केॅ दस-दस बरस शहरोॅ में रहली छै। वहीं सें स्कूल-कॉलेज के कत्तेॅ परीक्षा पास करनें छै...तेॅ यै में अचरजे की, जों दीपा नें सभा पर विधाता के चढ़ैलोॅ रंग केॅ आरो गाढ़ोॅ करी देनें छेलै। चार दिन पहिनें, हों चारे दिन पहिनें, जमीनोॅ पर जेना कि चारो दिश पानिये-पानी बहतें नजर आवी रहलोॅ छेलै, होने सभा के टुटला पर आदमी चारो दिश पसरलोॅ जाय रहलोॅ छेलै, ठीक बारिस के पानिये रँ। केहनोॅ-केहनोॅ साड़ी में, कुरता में, फ्रॉक में, दुपट्टा में, कमीज-कुरता में, जेना लागी रहलोॅ छेलै-धरती पर पनसोखा आकाश सें उतरी केॅ पसरी गेलोॅ रहेॅ। मंचोॅ पर ठाड़ोॅ रही गेलोॅ विधाता, दीपा, कमरूद्दीन, खुशी, प्रसून आरनी भीड़ केॅ टुकटुक बच्चे नाँखि अचरज आरो आनन्द सें देखी रहलोॅ छेलै। देखत्हैं रही गेलै, तब ताँय, जब ताँय कि आँखी के सामना सें ऊ जनसमूह आलोपित नें होय गेलोॅ छेलै।