जटायु, खण्ड-17 / अमरेन्द्र

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दीपा के पत्र विधाता लेली

अभिन्न

तोरोॅ चिट्ठी बीस रोजोॅ के बाद घुमतें-धुमतें कल जयपुर में मिललौं। असल में परीक्षा खतम होला के बाद सब लड़कीं टूर के प्रोग्राम बनैलकै आरो हमरासिनी आपनोॅ प्रोफेसर प्रियव्रत पातंजलि साथें जयपुर चल्लोॅ ऐलियै। यहाँ हमरा सिनी प्रोफेसर साहब के दोस्त सदाशिव झुनझुनवाला के हवेली में ठहरलोॅ छियै, तोहें जोन पता सें चिट्ठी देलेॅ छेलौ, फूफां उ पता काटी केॅ चिट्ठी हमरा ई पता पर भेजी देलेॅ छेलै...तोंहें गामोॅ सें बाहर छोॅ, एकरोॅ जानकारी हमरा कमरूद्दीन दां चिट्ठी सें देनें छेलै। हमरो पता तोरा हुनकै सें मिललोॅ होथौं, ढेर इन्तजार के बादो तोरो नैं ऐला पर हम्में आपनोॅ पता ऐतें-ऐतें हुनके पास छोड़ी ऐलोॅ छेलियै। खैर...तोहें आयकल हजारीबाग में छोॅ, ई हम्में तोरोॅ चिट्ठिये सें जानेॅ पारलौं। तोहें चिट्ठी के ओरिये में हमरा सें कुच्छू पूछलेॅ छौ आरो फेनू चिट्ठी के आखरी में जवाबो दै देलेॅ छौ, जेकरा एत्तेॅ-एत्तेॅ प्यार दै लेॅ कोय तैयार रहेॅ, तेॅ पावैवाला अभिन्न ही हुएॅ पारेॅ? ऐंगन भरी तेॅ की, तोरोॅ एक मुट्ठी प्यार ही हमरोॅ ई जिनगी वास्तें कम नें छै। ओत्तेॅ-ओत्तेॅ सौभाग्य आखिर हम्में आपनोॅ कोॅन अंचरा में बान्ही राखवै?

तोहें सोचतेॅ होवौ, हम्में झुट्टी छियै। बोललोॅ छेलियै, पनरहेॅ दिनों में आवी जैबै आरो दुओ महीना बीतै पर छै। कत्तेॅ विवश होय गेलोॅ छेलियै हम्में, तोहें नें जानभौ। प्रोफेसर साहब के पत्नी प्रभा दी जिद् पर अड़ी गेलै, 'दीपा नें जैतै तेॅ हम्मू नें जैवै'। आबेॅ प्रभा दी नें जैतियै तेॅ प्रोफेसर साहबो नें जैतियै आरो जों हुनी नें जैतियै तेॅ सब लड़की के किंछा टुटतियै। ओत्तेॅ-ओत्तेॅ आदमी केॅ निराश करना की ठीक होतियै? हमरा यहाँ आवै लेॅ लागलै। एकरोॅ जानकारी हम्में नानियो केॅ भेजी देलेॅ छेलियै, तोरा बताय दै लेॅ।

यहाँ सब खुश छै, बहुत खुश। हमरौ खुश रहेॅ लेॅ लागै छै। जेन्होॅ देश, तेन्होॅ भेष। पर मन तोरे साथ छौं, आबे वहाँकरोॅ जंगल में भटकतेॅ। तोरोॅ साथ।

...होना केॅ, यहाँ जाड़ा उतरत्हैं कोॅन-कोॅन देशोॅ के जंगलोॅ सें उड़ी-उड़ी केॅ कोन-कोॅन रँ के चिड़ियाँ आवी रहलोॅ छै। जंगल-झील, ऊ चिड़ियाँ सिनी सें भरेॅ लागलोॅ छै आरो देश भरी सें ऐलोॅ देखवैय्यो सिनी के भीड़ जुटी गेलोॅ छै...स्वर्ग बनी रहलोॅ छै एखनी आपनोॅ देश के ई माँटी. लेकिन हमरा लेॅ जेहना सब सूना।

होन्हौ केॅ राजस्थान बड़ी शुष्क स्थान छै। एकाध मौसम केॅ हटाय दौ आरो दू-चार जग्घोॅ केॅ, तेॅ बड़ी उजाड़ प्रान्त ही लागै छै राजस्थान,

सोनो लेने पीहु गया, सूनो कर गयो देश
सोनो मिला न, पीहु मिला, चाँदी हो गयो केश

ई जेना सौंसे ठो राजस्थान के ही दर्द छेकै। नें जानौं कोॅन कवि नें ई प्रान्त के समुच्चा दर्द केॅ एक दोहा में बान्ही केॅ राखी देनें छै। दूर-दूर ताँय रेगिस्तान-रेगिस्तान। एक बून्द लेॅ व्याकुल धरती। हरियाली के कांही ठौर-ठिकानो ॅ नें...एकरोॅ छाती में सुरँग बनैलोॅ जाय रहलोॅ छै-खनिज-सम्पति केॅ निकालै लेॅ। हम्में नें समझेॅ पारी रहलोॅ छियै कि जबेॅ खूब गर्मी अन्धड़-विन्डोबो बहतेॅ होतै, तेॅ ई मीरा आरो महाराणा प्रताप के भूमि के दुख कत्तेॅ बढ़ी जैतेॅ होतै। जोधपुर, जयपुर, उदयपुर में पत्थर-खदान आरो बाड़मेर में खड़िया पत्थर के खदाने सिनी सें तेॅ ई सब जग्घोॅ के बचलो-खुचलोॅ हरियाली मिटी रहलोॅ छै...तोहें यहेॅ बातोॅ सें अनुमान लगावेॅ सकै छौ कि राजस्थान में खनन वास्तें पट्टा पर जे जमीन देलोॅ गेलोॅ छैलै, वै में खाली उन्नीस सौ सत्तर सें छियत्तर के बीचोॅ में छियासी प्रतिशत के वृद्धि भै गेलोॅ छै। सुरसा के मूँ़ बढ़ले जाय रहलोॅ छै आरो सरकार-संसार के लोभो ओतन्हैं। आय राजस्थान सें पचासो रँ के खनिज खोदी केॅ निकाललोॅ जाय रहलोॅ छै...एक दिन एकरोॅ की परिणाम होतै, सरकार केॅ ई बातोॅ सें कोय मतलब नें छै...पर्यावरण तेॅ एत्हैं खराब होलोॅ जाय रहलोॅ छै कि बतान्हैं मुश्किल...लोग मीरा आरो महाराणा के भूमि छोड़ी-छोड़ी व्यापार आरो नौकरी के खोज में देश के दुसरोॅ-दुसरोॅ हिस्सा में बसी गेलोॅ छै, शायत घूरी केॅ देखौ लेॅ आवै छै की नें, रही-रही ठोरोॅ पर यही पंक्ति घुरी आवै छै,

सोनो लेने पीह गया सूनो कर गया देश

की सचमुच में पिया लौटी केॅ ऐतै? ई धरती के मोॅन हरियैतै? के कहेॅ पारेॅ। मतरकि ई जग्घोॅ सें जबेॅ आपनोॅ गाँव लौटवै तेॅ एक बहुत बड़ोॅ संकल्प लै केॅ। जानै छौ, बीकानेर में एक गाँव छै-मीनासर। यहाँ राखी-बंधन के दिन खाली बहिनिये भाय केॅ राखी नें बांधै छै, भैय्यो भाय केॅ बांधै छै। जानै छौ कथी लेॅ? ताकि एक-दुसरा के रक्षा के साथें-साथ पर्यावरण आरो चारागाह के रक्षा मिली-जुली केॅ करेॅ सकै। ई गाँववासी हर महिना के बारह तारीख केॅ दिनभरी के काम-काजोॅ के बाद रात केॅ रामराज चौंक पर जुटै छै आरो मशाल-जुलूस के शक्ल में मुरली मनोहर-मंदिर तक जाय छै। रास्ते में गोचर-रक्षा के नाराहौ दुहरैतेॅ जाय छै, लोगें यहू बतलैलकै कि हर साल राखी-बंधन रोॅ दिन मीनासर में एकरे एगो वार्षिक समारोह मनैलोॅ जाय छै। भोरे-भोर लोग गोचर के पौधशाला में काम करै छै आरो शाम सात बजें सौंसे गाँव में गोचर-रक्षा के स्मृति में पाँच मिनिट ताँय ताली के आवाज गूंजतेॅ रहेॅ छै। गाँववासी गोचर आरो पर्यावरण के रक्षा लेली दीया नें जलावै छै, मजकि गंगाजल में दूध मिलाय केॅ मीलो-मील ताँय फैललोॅ गोचर केॅ सभ्भे रँ के बाधा सें मुक्ति लेली रेखा सें घेरै छै, की हमरा दोनों मिली केॅ आपनोॅ गाँव में हेने संकल्प वास्तें आपनोॅ गाँववासी केॅ तैयार नें करेॅ पारौं। तोरा जानी केॅ अचरज होतौं कि एत्तेॅ बड़ोॅ आन्दोलन केॅ खड़ा करैवाला मीनासर के एक किसान छेलै। साठ साल के किसान नारायण माली...हुनका पता चललै कि दस-बारह किलोमीटर दूर फलाना जग्घोॅ में लिगनाइट सें चलैवाला बिजली-घर खुलै वाला छै, यहीं सें ओकरोॅ रास्ता में पड़ैवाला मीनासर के गोचर के कीमत कुछुवे सालोॅ में करोडो़ के भै जैतै आरो यही लेली ऊ गोचर पर अधिकार जमाय के ख्यालोॅ सें एक मातवरें वै पर बाड़ा लगाना शुरू करलेॅ छै। पन्द्रह हजार सफेदा के गाछो लगवाय के योजना शुरू करी देलकै, ताकि गाछ बढ़त्हैं गोचर पर ऊ मातवर के अधिकार बनी जाय। ई बात नारायण माली केॅ समझतें देर नें लागलोॅ छेलै। हुनी लोगोॅ केॅ एकरोॅ विरुद्ध तैयार करना शुरू करलकै। गाँववासी शुरू-शुरू में ध्यान नें दै, पर बादोॅ में बड़के सिनी लोग नारायण माली के साथ होय गेलै। ग्यारह अगस्त उन्नीस सौ चौरासी केॅ मुरली मनोहर-मंदिर में हौ सब लोग इकट्ठा होलै आरो सोलह अगस्त चौरासी केॅ ई जनान्दोलन के समक्ष पुलिस आरो प्रशासन केॅ झुकै लेॅ पड़लोॅ छेलै। सफेदा के गाछ उखाड़ी केॅ फेंकी देलोॅ गेलोॅ छेलै...ऊ दिन राखी-बंधन के दिन छेलै, यही सें राखी भाय-बहिन के रक्षा साथें-साथ पर्यावरण आरो गोचर-रक्षा के भी दिन बनी गेलै। हम्में मीनासर जाय केॅ ऊ अद्भुत लोगोॅ सें मिललियै, जौनें खाली छोॅ दिनोॅ में एत्तेॅ बड़ोॅ इतिहास गढ़ी देनें छेलै...हमरोॅ वास्तें तेॅ राजस्थान के ई यात्रा जेना संकल्प के यात्रा बनी गेलोॅ छै। कभी कोॅन संकल्प करी बैठै छियै, कभी कोॅन आरो कभी कोॅन। तोरोॅ साथ आरो विश्वास नें हमरा कहोॅ कत्तेॅ बौराय देलेॅ छै। मतराकि खाली संकल्पे सें की होतै, ई संकल्प केॅ तोरोॅ वाला कर्म चाहियोॅ, बिना कर्म के इच्छा की? हर बार हमरा यहेॅ लागलोॅ छै कि तोहें हमरोॅ इच्छा के पूर्णता छेकौ। यहीं सें सोचेॅ पारोॅ कि ताहें हमरा लेॅ कत्तेॅ ज़रूरी छौ। की तहूँ हेने नें महसूस करै छौ?

तोर्हे

दीपा