जटायु, खण्ड-20 / अमरेन्द्र
धीरें-धीरें तीन कोना गांमोॅ के एकमत हुएॅ लागलोॅ छै। मुखिया सुखिया के बात तेॅ जावेॅ दौ, गाछ के एक डार कटलै तेॅ कटवैय्या के हाथ-गोड़ काटी केॅ राखी देलोॅ जैतै...ई बात के भनक शनिचरौ के कानो तक पहुंचलोॅ छै आरो ई बातोॅ के बड़ी गुस्सा छै कि जे बात एखनी नें बोलै के छेकै, वही सिनी बात ओकरे आदमी बोलना शुरू करी देनें छै...गाँव में एत्तेॅ बड़ोॅ मत ओकरोॅ विरुद्ध देखतैं-देखतैं बनी गेलै, हेन्हैं? ई सब भैरो का, गोपी का, आरनी के सुआरथ सें...शनिचरा मनेमन सोचै छै, पर बोलै छै कुछुवे नें, कैन्हें कि ओकरा मालूम छै-चुनाव में जों जीत के आश छै तेॅ हिनकै सिनी के कारण, नैं तेॅ हमरे गोतिया में कै ठो छै, जे हमरा वोट मनो सें दै वाला छै? जे देतै डर्हे सें आकि लाभे सोची केॅ...तहियो शनिचरें दबले जुबान सें सही, सोराजी चौधरी आरो गोपी घोष केॅ कही ऐलोॅ छै, "कोय हेनोॅ बात एखनी नें बोलाय जाय कि हमरोॅ जड़े कटी जाय। तोरासिनी के की बिगड़तौं। पानी रँ बहैलोॅ अब तक हमरोॅ बीसो हजार टका, ठिक्के में पानी में बही जैतौं।"
गाँव के नया माहोल सें कहीं शनिचर घबड़ावेॅ नें, यही लेॅ पहिलोॅ दाफी गोपी घोष आरो शेखावत सिंह नें गाँव के गल्ली-कुच्ची में बच्चा-बुतरू सें नारा लगवैनें छै, "शनिचर चाचा मत घबड़ाना, तुम्हारे पीछे सारा जमाना...शनिच्चर चाचा से जो टकराएगा, चूर-चूर हो जायेगा...कैसे रुपसा सुखिया हो? जब शनिच्चर चाचा मुखिया हो।" ...एकवाली यादव नें यै नारा पर आपनोॅ गोस्सा झाड़तें शनिच्चर-पक्षोॅ के आदमी केॅ खुल्लम-खुल्ला सुनैतें कहलेॅ फुरै छै-"लेमनचूस दै केॅ नारा लगवैला सें की होय जाय छै। आबेॅ तेॅ टाकाहो खोलला पर ओकरोॅ असर घंटे भरी रहेॅ छै, ई तेॅ लेमनचुसे छेकै। एकवाली यादव के जीत्तोॅ रहतैं नें गोपी के कोय चाल चलैवाला छै, नें सोराजी के, नें शनिच्चर के."
कोय मुँह पर बोलै-नें-बोलै, भैरो चौधरी के पक्षोॅ के सब्भे आदमी यहेॅ बोली रहलोॅ छेलै, "अरे समझै नें छौ, ई विधाता के पक्षोॅ में यै लेली बोली रहलोॅ छै कि शनिचर बदला में हम्में मुखिया बनौं।" पर अकवाली यादव तेॅ ई सरकारी पंचायत के खुद्दे विरोधी छेकै। कहै छै, "अरे गाँव के पाँच-छोॅ बुजुर्ग जे पंचायत करतें ऐलोॅ छै, ओकरा सें बड़ोॅ ईमानदार हुएॅ पारेॅ ई सरकारी पंचायत। जबेॅ सरकारिये होय गेलै तेॅ ईमानदार की...है सब जे मुखिया-सरपंच बनै छै, सब गाँव केॅ खोटी-खोटी खाय लेॅ...सब कान खोली केॅ सुनी लौ, ई गाँव केकरो कमैलोॅ सम्पत नें छेकै कि उलाय-पकाय केॅ निगली जैतै, हों। विधातौ आवी रहलोॅ छै...सौंसे गाँव के प्रमुख आदमी बैठौ आरो तसपिया करौ...हमरोॅ गाँव के पंचायत होन्हें चलतै, जेना पुरखा चलैनें ऐलोॅ छै, नें कि भंगेड़ी-गंजेड़ी आकि पियक्कड़ के इशारा पर?"
सब्भैं कहै छै, "एकवाली यादव के मिजाज सें गाँव भरी परिचित छै। एकवाली यादव एकबोली यादव छेकै।" एकबार जे बात बोली देलकै, ऊ सोचोॅ ब्रह्म के लकीर, ब्रह्मौं नें मेेटेॅ पारेॅ। सब केॅ शंका छै कि मुखिया के चुनाव हुएॅ पारतै कि नें। मरड़ घरोॅ के लोग कुछुवे नैं बोली रहलोॅ छै। एत्तेॅ बड़ोॅ चुनाव होय रहलोॅ छै। मरड़ घरोॅ के लोगोॅ के बोलना ज़रूरी-पक्षोॅ में बोलौ कि विपक्षोॅ में। हालांकि दुसाध टोली के एकेक लोग एकबाली यादव के साथ छै। जेकरा देखोॅ वही बोलै छै...आखिर है चानन-पट्टी में एत्तेॅ सिनी गुलगुलिया लोगोॅ केॅ बसाय के की मतलब? सब केॅ मालूम छै। चुनाव में भाँगटोॅ लानै लेॅ आनलोॅ गेलोॅ छै, हों भाँगटोॅ...यै सिनी है में सफेदा रोपी रहलोॅ छै, ई सफेदा नें, विष रोपी रहलोॅ छै...ई इडियो-बीडियो केॅ की हक छै कि हमरोॅ घरोॅ में रोपेॅ, विष। मरड़ घर बोलेॅ नें बोलेॅ, एकबाली काका बोली रहलोॅ छै, तेॅ हमरासिनी मुड़ियो कटाय देवेॅ ई गाँव के रक्षा लेॅ।
निरगुनिया पंडित अलगे सबसें कहलेॅ फुरै छै, "ई दुसाध टोला के बात छेकौ भाय, एकबार उमताय गेलौ तेॅ बस समझें-दुःसाध, जेकरा वश में करना, साधना एकदम मुश्किल, तबेॅ शनिचरा आरो परफुलवा की करेॅ पारतै।" दोनो लाला-ग्वाला माथोॅ धुनी मरतोॅ"
गाँव में रँग-बिरँग के आदमी के आना-जाना शुरू भै गेलोॅ छेलै। कोय गोड़ सें लैकर माथोॅ ताँय खादी में, तेॅ कोय फुलपैंट-कमीज में। कोय माथोॅ पर गमछा बान्हलें, तेॅ कोय खाली गंजी आरो पैंट पिन्हले। रुपसा में है सब आदमी कभियो नें देखलोॅ गेलोॅ छेलै, नें एत्तेॅ-एत्तेॅ रँ के फटफटिया-दिनोॅ में बीस-पच्चीस बार ऐतें-जैतें रहेॅ छै। गाँव के बूढ़ी-पुरानी केॅ एक्के अचरज छै, "माय गे माय, एत्तेॅ तेॅ है मशीन थ्रेसरो नें आवाज करै छै, जत्तेॅ ई फटफटिया। धरती पर चलै वाला ई हवाई जहाज छेकै, हवाई जहाज। कखनी हूरी केॅ चली देॅ। चलै छै तेॅ पांच-छोॅ ठो एक्के साथ, जेना छोटोॅ-मोटो रेल रहेॅ।" फटफटिया के घनघनैवोॅ शुरू हुऐ कि गाँव के सब बच्चा-बुतरू रास्ता पर आवी केॅ ठाड़ोॅ आरो गुजरला पर तीन मिनट ताँय धूले झाड़तें रही जाय। हेनोॅ।