जटायु, खण्ड-21 / अमरेन्द्र
धाक धिनक धिन, धाक धिनक धिन
धिनक धिन, धिनक धिन, धिनक धिन
दुर्गाथानोॅ में बिना होली के होली मनैलोॅ जाय रहलोॅ छै। पचास-पचपन के भैरो चौधरी, सोराजी चौधरी, काली दत्ता, निताय मंडल, सुधीर घोष के दगदग उजरोॅ खादी के कुरता-पजामा लाल-गुलाबी रँगोॅ सें सरावोर छै। दूरे में खाड़ोॅ गामोॅ के पचासो बच्चा-बुतरू आचरज के आँखो ँ से घूरी रहलोॅ छै। आखिर है केन्होॅ होली छेकै? गाँव में काँही होली नें मनैलोॅ जाय रहलोॅ छै आरो यहाँ होली, "अरे खाली धिनक धिन, धिनक धिन होतै कि एकाध होरियो?" सोराजी चौधरी नें आपनोॅ हाथ केॅ एकदम आगू बढ़ैतें कहलकै। मिरबा के चेहरा पर रोमांच के कम्पन ढोलक पर पड़लोॅ थाप सें कहीं जादा होय रहलोॅ छेलै।
' अभी होरी केना होतै, चौधरी का होली तेॅ अभी महिना भरी दूर छै। इखनिये सें होली शुरू करी देला सें होली बासी नें भै जैतै। " हिरवा आपनोॅ बात खतम करतें-करतें एक बार फेनू ढोल पर आपनोॅ हाथोॅ के घोड़ा सरपट दौड़ावेॅ लागलोॅ छेलै,
धाक धिनक धिन, धाक धिनक धिन
धिनक धिन, धिनक धिन, धिनक धिन
जखनी भिरवा के हाथ ढोलक पर उछली-कूदी रहलोॅ छेलै, तखनी ओकरोॅ मूड़ी नीचू-ऊपर दाँया-बाँया हेने होय रहलोॅ छेलै, जेना ढोलक नें, वामर के झपट्टा पर भगत का भाव ऐतै रहेॅ। फेनू हठाते थाप रोकतें होलेॅ चौरासी सें पूछलकै, "अरे आभी ताँय शनिचर नें ऐलोॅ छै?"
"की बोलै छैं? भांग तेॅ नें खाय लेलेॅ छैं। आबेॅ शनिचर मुखिया होतै। तोहें की सोचै छैं, तोहें जखनी जे दारू-ताड़ी, गांजा-भांग के बैठकी लगैवैं, वही में शनिचर जी आवी बैठतै। आबेॅ ऊ दिन भूलें। आय शनिचर जी के घरोॅ पर जलसा होतै, कत्तेॅ सोर-सिपाही, बड़ोॅ-बड़ोक्का लोग ऐतै-जैतै, मुखिया पदोॅ लेॅ खाड़ोॅ होय वास्तें बधाय दैलेॅ...अरे हमरा सिनी आपनोॅ मित्रा के होय वाला जीत पर ढोलक बजावें, बस यहेॅ बहुत" आरो चौरासी ने बिना ताल-लय वाला दोनों हाथों सें ढोलक के दोनो दिश जोरोॅ-जोरोॅ सें पीटी देलकै।
"मजकि सुनै छियै सब्भे टोलो में हेने लोग जादा छै, जे शनिचर जी के मुखिया वाला बात सें खुश नें छै, खुद शनिचर जी के टोले में हेनोॅ लोगोॅ के कमी नें छै। भोरे-भोरे रामधारी मरड़ ऐलोॅ छेलै। कही रहलोॅ छेलै," शनिच्चर शनिचर सें शनि मुखिया कैन्हें नी बनी जाव, हमरोॅ लेॅ तेॅ वहा शनिचरा छेकै, वहे परफुलवा, सोरजिया, कलिया आरो भैरवा के पालतू। वें जलसा में मुर्गा बनावोॅ कि खस्सी आरो ऊ भोज में दारोगा आवोॅ कि मंत्राी, हमरोॅ घोर-घराना वै में नें जावैवाला छै, हों...अरे ई बात केॅ नें जानी रहलोॅ छै कि कैथ-टोली, बभन-टोली, बबुआन-टोली आरो गुअर-टोली में जे-जे मुखिया-चुनाव लेॅ खाड़ोॅ होलोॅ छै, सब शनिच्चर के आदमी छेकै। जबेॅ चुनाव के दिन ऐतै तेॅ रातो-रात सब शनिचर के पक्षोॅ में बोलेॅ लागतै। डराय, धमकाय, मनाय केॅ आपनोॅ-आपनोॅ टोला के बहुते वोट दिलवाय देतै आरो शनिचर मुखिया बनी जैतै। ई चुनाव नें भेलै, धोखाधड़ी भेलै आरो जे चुनाव भय-आतंक सें हुऐ छै, ओकरा में नें आदमी शांति महसूस करेॅ पारेॅ, नें जीतैवाला ही आदमी के विश्वास जीतेॅ पारेॅ। " कहै वक्ती निताय मंडल के जी, नैं जानौं कैन्हें गेलोॅ छेलै।
"धुर, छोड़ें है सब बातोॅ केॅ। हौ, सब्भैं जानै छै, शनिच्चर केना चुनाव जीततै, तेॅ की कोय मुखियागिरी छिनियो लेतै पाँच सालोॅ वास्तें। आबेॅ पाँच साल हमरा सिनी के मौज-मस्ती करै के समय ऐलोॅ छै। की मिरबा? यही बातोॅ पर दै ढोलक थाप।" आरो एक बार फेनू चौरासीं जोर सें दोनो आँख मुनी ढोलक केॅ तड़ातड़ पीटी देलकै।
"धुर, तोहें ढोलक फोड़वैं की मरदे। बजाय-उजाय के लुर तेॅ छौ नें, खाली ढम-ढम करै छैं।" मिंरबां चौरासी के दोनो हाथ झटकतें कहलकै तेॅ चौरासी के चेहरा थोड़ोॅ उतरी गेलै।
"अरे ढोलके नी फुटतै, किस्मत तेॅ नें नी। आबेॅ तेॅ किस्मते के रस्सी कसै के दिन ऐलोॅ छै, ढोलक के नें...अच्छा एक बात तेॅ बताव, हौ बेघर सिनी बसावै के बात कत्तेॅ दूर आगू बढ़लोॅ छै।" बात केॅ बदलतें सोराजी चौधरी नें चौरासी सें पूछलकै।
"होय रहलोॅ छै, होय रहलोॅ छै ...दू दिन पहिनें शनिच्चर सें पूछलेॅ छेलियै तेॅ वैं कहनें छेलै, 'चौरासी, ई छोटोॅ-छोटोॅ कामोॅ वास्तें आबेॅ हमरा सें नें पूछलोॅ कर...बस समझी ले, हम्में मुखिया होलियौ आरो तोरा सिनी सरपंच। जे मोॅन हुवौ करियें।' एकरा सें सब्भे बात साफे छै।" चौरासी भावविभोर मनोॅ सें ढोलक पर दायाँ हाथ सें एक जोरदार चोट देतें कहनें छेलै। हालांकि मिरबा के बातोॅ के खयाले करी केॅ ढोलक पर एक्के दिश आरो एक्के बार चोट करनें छेलै, तहियो मिरबा के चेहरा तनै सें रुकलोॅ नें छेलै आरो वैनें ढोलक केॅ खड़ा करी अलग राखी देनें छेलै। वहाँ सें बच्चा-बुतरू हटी गेलोॅ छेलै कि आबेॅ ढोलक-ढुलक नें बाजै वाला छै। पर ई सब बातोॅ पर कुछुवे ध्यान नें दै केॅ चौरासी सोराजी चौधरी सें कहनें छेलै, "मतरकि एक बात हमरा समझै में नें आवै छै सोराजी काका। आखिर शनिच्चर विधाता के बारे में कैन्हें खोज-खबर लै रहलोॅ छै। कहीं मुखिया बनला के बाद ओकरोॅ मोॅन तेॅ नें बदली जैतै चौधरी...कोय ठीक, नांगटे चानन नदी में दोनो नहैलोॅ पाठा छेकै।" कहतें-कहतें चौरासी के मुँहो पर हवाई उड़ेॅ लागलोॅ छेलै, मतरकि सोराजी चौधरीं ओकरोॅ चिंता के उडै़तें, जेना हाथ के पंजा सें चिड़िया केॅ उड़ावै के कोशिश हुएॅ, कहलकै, "एकदम नैं, अरे ई सब एकदम नैं छेकै, विधाता के खोज-खबर लेवोॅ, राजनीतिवाला बात-चीत छेकै। नें समझवैं भतीजा लाल। राजनीति में कत्तेॅ दिमाग चलाय लेॅ लागै छै...फेनू विधाता कहाँ छै, कहिया ऐतै, ई सब के जानै छै। ओकरोॅ ऐतें-ऐतें तेॅ चानन-पट्टी बेघर सिनी शरणार्थी सें आवाद होय जैतै, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा।" सोराजी के ठहाका उठी केॅ होन्है धीरें-धीरें नीचे होलोॅ गेलोॅ छेलै, जेना हरमुनियम में भाँति सें भरलोॅ हवा केॅ कोय कत्तेॅ नी पटरी केॅ दावी देलेॅ रहेॅ-अवरोही आवाज आरोही होतें हुएॅ।
"अरे यही बातोॅ पर आबेॅ देखैं।" अभी ताँय चुप्पे बैठलोॅ काली दत्तां खड़ा ढोलक केॅ आपनोॅ जाँघोॅ के नीचें दबैलकै आरो आवाज करेॅ लागलै
धाक धिनक धिन, धाक धिनक धिन
धिनक धिनक धिन, धिनक-धिनक धिन
आरो सब्भे मस्ती में एक सुरोॅ सें बोली उठलै,
कहोॅ कि सरेॅ र...र कहो कि सर...र...र
र...र...र...र...र...र