जटायु, खण्ड-25 / अमरेन्द्र
विधाता के दुसरोॅ पत्रा दीपा लेली
प्रियश्री दीपा
एक चिट्ठी महिना भरी पहिले डाललेॅ छियौं। सबटा बात वै में नें लिखेॅ पारलेॅ छेलियौं। गामोॅ के सब हाल आबेॅ लिखनौ मुश्किले छै। है पाँच महिना के भीतर गाँव की रँ रन्न-भन्न होय गेलोॅ छै। खास करी केॅ सौंसे गाँव में दुर्भाग्य नाँखि जे रँ सफेदा के गाछ उगी रहलोॅ छै, ऊ तेॅ आरो चिन्ता के बात छेकै। ई गाँव के सपना के जोॅड़ केॅ उखाड़ी रहलोॅ छै, ई सोचै लेॅ केकरो पास फुर्सत नें छै। आपनोॅ-आपनोॅ कोठी भरतें रहेॅ बस आरो एक दिन जबेॅ कोठी भरना बंद होय जैतै, तबेॅ? हाही के कोय सीम्हैं नें हुएॅ पारेॅ। आदमी के यहेॅ हाही नें गाँव के जंगल बर्बाद करनें छै, करी रहलोॅ छै। ई महिना-दू-महिना के भीतर शीशम दसो-बीसो गाछ आरो खतम भै गेलोॅ छै। जेकरा जान के फिकिर नें छै, ऊ फुसका-फुसकी करै, मतरकि हेकरा सें होय्ये जाय छै की? कै बार लोगें थानौ में जाय केॅ कहनें छै, पर थानावाला यहेॅ कहलेॅ छै, वन-विभाग में शिकायत करै लेॅ। शीशम के जत्तेॅ गाछ काटलोॅ गेलोॅ छै, वहाँ-वहाँ सफेदा के पौधा लगाय देलोॅ गेलोॅ छै, धारा-पाँती में। सफेदा यानी धरती वास्तें जहर। हम्में ऐत्है, एकरोॅ विरोध करनें छेलियै, मतरकि वहाँ पर कहाँ सें आवी केॅ बसी गेलोॅ पचासो घोॅर विरोध करै पर जुटी ऐलै। कहेॅ लागलै, " सरकार लगवैलेॅ छै आरो हमरासिनी केॅ जोगै लेॅ यहाँ बसैलोॅ गेलोॅ छै, हम्में ई पौधा नें उखाड़ेॅ देभौं।
सबकेॅ पता छै, सफेदा के ई गाछ कौनें लगवैनें छै आरो कैन्हें? ई पचास घोॅर केकरोॅ बसवैलोॅ छेकै आरो कैन्हें? पर कोय नें बोली रहलोॅ छै। आबेॅ हमरासिनी दस आदमी बोली केॅ की करौं। नें बोलै छियै तेॅ दू कारनें। एक तेॅ आखिर ई बेघर जैतै कहाँ, दुसरोॅ कि विरोध करला पर यही बातोॅ के लाभ उठाय में कुछ लोग चुकतै नें। चाहै वाला तेॅ चाहिए रहलोॅ छै कि बात के बतंगड़ हुएॅ।
सोचै छियै, तेॅ लागै छै जेना माथोॅ फटी जैतै। एकेक नस ऐंठेॅ लागै छै। आखिर आपनोॅ लाभ वास्तें आदमी पूरा समाज केॅ कैन्हें स्वाहा करै पेॅ तुली गेलोॅ छै। तोरा याद होतौं, एक दिन यहेॅ गामोॅ में सब लोगें कसम खैनें छेलै-आरो कहीं लगतै तेॅ लगतै, रुपसा में सफेदा रोॅ गाछ नें लगावेॅ देवै, नैं लगैवै। जे सफेदा सें मिट्टी के उर्वरा शक्ति मरलोॅ जाय रहलोॅ छै, पानी के सतह सुखतें जाय रहलोॅ छै। है सबनें जानी रहलोॅ छै कि जहाँ ई खाड़ोॅ छै, वहाँ आसपास के खेतिहर जमीन बांझ होलोॅ जाय रहलोॅ छै। है देश के बड़का-बड़का खेतिहर के अनुभव छेकै। खेत के उपरी मिट्टी तेॅ रेतीला होय्ये जाय छै, साथे-साथ रासायनिक तत्व में परिवर्तन ऐला सें सौ फूट के बाद के जमीनो खेती लायक नें रही जाय छै। जीवन के जे आधार छेकै-पानी आरो मिट्टी, दोनों केॅ खराब करै छै ई सफेदा। दुख तेॅ यही छै कि आय देश के छोॅ-सात लाख हेक्टर जमीनोॅ पर अस्सी-पचासी प्रतिशत वृक्ष यही सफेदे के छेकै। हमरोॅ हिन्दुस्तानी है विदेशी गाछ के जहर सें भिज्ञ रहतौं एकरोॅ खूबसूरती पर मरी रहलोॅ छै।
तोरा याद होतौं, उन्नीस सौ तिरासी में बंगलोर सें तीस किलोमीटर दूर होसकोटे तालुका में जबेॅ कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधिश चंद्रशेखर आरो प्रो0 बी0 बी0 कृष्णमूर्ति साथें सुन्दरलाल बहुगुणा पर्यावरण-निरीक्षण में गेलोॅ छेलै, तेॅ की कहनें छेलै कि "सफेदा गाछ सें संभावित खतरा के बारे में हमरोॅ मनोॅ में कोय शंका नें छै, यै लेली सफेदा के गाछ उखाड़ी केॅ वै जग्घा में कोय दुसरोॅ उपयोगी गाछ लगैलोॅ जाय तेॅ अच्छा।"
कर्नाटके में की होलोॅ छेलै। वहाँकरोॅ रैयत-संघ के सदस्यें चिकमगलूर जिला के सरकारी जमीन आरो नर्सरी में लगैलोॅ सफेदा के लम्बा-लम्बा गाछ आरो पौधा केॅ उखाड़ी फेंकी देनें छेलै। ई संघे सरकार केॅ चेतावनी छेलै कि सफेदा के गाछ लगैवोॅ तुरत बंद करलोॅ जाय। आय वही गाछ आपनोॅ गाँमोॅ में लगैलोॅ गेलोॅ छै, दस हजार गाछ लगाय के योजना छै।
हमरा मालूम छै कि है सफेदा गाछोॅ के पक्षोॅ में समर्थनो उठी रहलोॅ छै-यही लेॅ नी कि यै में पानी पटाय के ज़रूरत नें पड़तै, पानी के एकरा ज़रूरतो नें छै आरो बड़ोॅ होय के पैसो कम नें देतै, पर हिनका सिनी केॅ है मालूमे नें छै कि यही सफेदा गाछ जबेॅ आपनोॅ जड़ोॅ सें जहरीला रासायनिक तत्व छोड़तै आरो हजारो-हजार हेक्टर जमीन बांझ हुएॅ लागतै; जबेॅ यैं जमीन के भीतरी स्रोतो केॅ सुखाय देतै आरो कुँआ-नदी सुखेॅ लागतै, जबेॅ यहीं हजार-हजार गाछ आपनोॅ पत्ती गिराय केॅ यहाँ के माँटी पर घासो-फूस उगै सें रोकी देतै आरो मवेशी के चारा नें मिलेॅ लागतै, तबेॅ यही गाँव के सुख-शांति हरदम्मे वास्तें खतम होय जैतै। तबेॅ ई सफेदौ केॅ खत्म करना मुश्किल होतै, कैन्हें कि तब ताँय ई सब गाछोॅ के जोॅड़ जमीनोॅ के नीचें-नीचें दूर-दूर ताँय फैली गेलोॅ होतै आरो एकरा तबेॅ जड़ोॅ सें उखाड़ी फेंकना हजार-हजार आदमी वास्तें भी मुश्किल होय जैतै।
एक तेॅ चानन हेन्हें केॅ सुखी गेलोॅ छै। दस साल बाद दसो हाथ नीचें चुआँड़ी खोदलों पर पानी नें मिलतै। ई सब बातोॅ केॅ लै केॅ लागै छै-एक बहुत बड़ोॅ आन्दोलन चलाय के ज़रूरत पड़तै। है खाली रुपस्है तक सीमित नें रहेॅॅ, डड़पा, कटियामोॅ, महराणा, रजौन, खिड्डी, सब गाँव केॅ यै में समेटै लेॅ लागेॅ। एक-एक बूढ़ोॅ आरो जुआन केॅ समझावै लेॅ लागतै आरो आन्दोलन वास्तें तैयार करै लेॅ लागतै...आयकल तेॅ नें, दस रोजोॅ के बाद हम्में मंडल काका, अंसारी काका, पांडे दा सें मिली केॅ सफेदा-विरोधी-अभियान ज़रूरे चलैवै आरो यै जग्घोॅ में बोॅर-पीपल-नीमी के कल्पवृक्ष लगवाय के अभियान चलवैवै, ताकि कल गाँव के मवेशियो केॅ चारा के अभाव में बेचै लेॅ नें लागै। कोय नैं सोची रहलोॅ छै कि कल ताँय यहेॅ रुपसा एत्तेॅ खुशहाल कैन्हें छेलै। केकरौ एक दूसरा सें जलन नें छेलै। सबकेॅ खाय जुकुर छेलै। सब सुखी-सम्पन्न छेलै। कैन्हें? कैन्हें कि कल के रुपसा तपोवन नाँखि छेलै। जलावन के लकड़ी बाहर जाय छेलै, जड़ी-बुटी गाड़ी में लदी केॅ बाहर जाय छेलै। हौ सखुआ पत्ता के थाली। शहर के पैसा यहाँ गाड़ी पर लदी केॅ आवै छेलै। सब सुखी-सम्पन्न-पत्ता विनवैय्या सें लैकेॅ पता ढोलवैय्या ताँय। आय जंगल-तपोवन खतम भै गेलोॅ छै, तेॅ पैसो खतम भै गेलै। लोगें आर्थिक ज़रूरत पूरा करै वास्तें पंजाब भागी रहलोॅ छै आरो दिल्ली, मजदूरी करै लेॅ। घोॅर छोड़ी केॅ वहाँ सड़कोॅ पर, खोली में सुती रहलोॅ छै। परिवार के शांति छुटी गेलोॅ छै। दू पैसा जुगार नें आदमी केॅ केन्होॅ टुअर बनाय देलेॅ छै। कल जबेॅ यहाँ वही जंगल के छाँव होतै तेॅ की लोग हेन्हैं परदेशी होतै। कल्लर, घोल्टन, ढीबा, सोमन, कदरा, आरो नें जानौं कत्तेॅ आदमीं गाँव छोड़ी देनें छै। कैन्हें? जंगल हमरोॅ जीवन छेकै, एक सुन्नर जीवन के आधार-मंत्रा आरो फेनू सें ई मंत्रा गाँव-गाँव के कानोॅ में फूँकना छै। ई यहू लेॅ कि जबेॅ कल कोय सवासिन, यै आकि कोय गाँमोॅ के दुलहिन बनी केॅ जैतै या ऐतै, तेॅ आखिर ओकरोॅ वास्तें रास्ते के किनारी-किनारी छाँव के व्यवस्थो तेॅ करना छै। छाँव तेॅ नीमिये-बोॅरे आरो पीपले रँ कल्पवृक्ष सें होतै, है सफेदा सें तेॅ माथोॅ भरी नैं बचेॅ पारेॅ, सौंसे देह छाँह सें की ढकतै?
दीपा, वसन्त आवी गेलोॅ छै, आरो वसन्त के अनुभवो हुएॅ पारी रहलोॅ छै की? केना केॅ होतै? यही गाँमोॅ में कभियो गाछे-गाछ छेलै-शीशम, सागवान, सेउड़ा, आम, जामुन, पीपल, कोन-कोन रँ गाछ नें ठामे-ठाम। आबेॅ वहाँ घोॅर छै, या तेॅ परती। बसन्त उतरतै तेॅ आखिर कथी पर? ऊ दिखै तेॅ कहाँ? हमरोॅ किंछा छै, फेनू सें यै गामोॅ में हजारो-हजार बसन्त एक साथ उतारै के. यै लेली सरकारी सहयोग आरो कानूनी सलाह लेली हम्में होली बादे पटना जाय रहलोॅ छियै।
बाद के बात बाद के चिट्ठी में।
तोरोॅ विधाता