जटायु, खण्ड-26 / अमरेन्द्र

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"शनिच्चर, तोहें समझै के कोशिश कर। ई चुनाव छेकै आरो चुनाव प्रधानमंत्राी के रहेॅ कि मुख्यमंत्राी के रहेॅ कि मुखिया के, धन गलैला बिना जीत के पानी की बाहर निकलैवाला छै?"

"से बात तेॅ हम्मू समझी रहलोॅ छियै। मतरकि..."

"मतरकि-जतरकि कुच्छू नें। परसू होली छेकै। सब खाय-पीवी केॅ अचेत रहतै आरो परसुवे राती आपनोॅ काम फिनिस।"

"नैं-नैं काका। तोरा सिनी समझै नें छौ। है रँ के काम सें गाँव में बड़का कुकांड भै जैतै। तोर्हौ सिनी है गाँव में रहेॅ लायक नें रही जैवौ आरो हम्में तेॅ नहिये...तोरा सिनी है समझै कैन्हें नी छौ कि एक-एक ग़लत बात हमरे बात मानलोॅ जाय छै, तबेॅ एत्तेॅ बड़ोॅ बात भै जैतै आरो लोगें है केना नें मानतै कि यै में शनिचरे के हाथ नें छेलै। नें-नें, हम्में तेॅ यै कामोॅ में हामी नें भरेॅ पारौं।"

"तोहें मुरखोॅ रँ बतियाय रहलोॅ छैं शनिच्चर। अरे आठ-दस गाछ कटतै, कोनो सौंसे जंगल थोड़े काटलोॅ जैतै। फेनू एत्तेॅ बड़ोॅ जंगल के बीचोॅ सें आठ-दस गाछ निकलिये जाय छै, तेॅ की पता चलतै। देवत्हौं नें जानेॅ पारतै, हों।"

"देवता नें जानै तेॅ नें जानेॅ। मतरकि ई बात विधाता सें छुपलोॅ नें रहेॅ पारेॅ। तोरा नें मालूम छौं, आयकल ओकरोॅ दिमागोॅ में गाछोॅ के जिन ढुकलोॅ होलोॅ छै। आरू ऊ जिन के प्रभाव में खुशीलाल, कमरुद्दीन, अनिरुद्ध, लतांत, गंगा, सब-के-सब छै। एक्को केॅ जरियो टा भनक मिललै कि काका"

"तहूँ एकदम भोला छैं शनिच्चर। भनक मिलतै केना। कोय होश में रहतै तबेॅ नी। कल होली छेकै। साल भरी यै सिनी उपास करी लै तेॅ करी लेॅ, होली में केकरोॅ जीहा नें चटपटाय छै। विधातौ कल कोनो भट्टिये आगू होरी गैतें मिलेॅ पारेॅ। आरो अबकी भट्टी सें भूत नैं, जिन निकलतै, जिन।"

"मतलब नें समझलियौं काका।"

"अरे यै में मतलब की समझना छै शनिच्चर। अबकी ई गामोॅ के सब भट्टी समाज-सुधार के नाम पर हमरा सिनी बंद करवाय देलेॅ छियै। चोरी-चोरका दारू बनाय वाला के करेजे कत्तेॅ। बुबुआ डरौन सें हड़कम्प...से गाँव सें बाहरवाला कलालिये सें अबकी यहाँ दारू पहुँचतै। दारू हेनोॅ कि पूछोॅ नें। आधोॅ गिलास कंठ सें उतरतें-उतरतें निसाँव माथा पर...कनेलियां कहलेॅ छै, चिंता करै के कोय काम नें छै, ज़रा टा इस्प्रीट के मात्रा बढ़ाय देना छै, ओकरै में तेॅ सब मगरमच्छ पानी के भीतर जाय केॅ बैठी रहतै, तबेॅ की? मगरमच्छ पानी के भीतर रहतै और एत्तेॅ दिनोॅ सें पियासला के दू-चार घैलोॅ पानी मिली जैतै। अरे चू-चार घैलोॅ सें चुआँड़ी सूखेॅ पारेॅ, नद्दी नें। फेनू चुआँड़ियो तेॅ संघरी जाय छै।"

"समझै में नें आवी रहलोॅ छै काका, तोरा सिनी आखिर करी की रहलोॅ छौ।"

"एकदम डरै वाला बात नें छै। आरो सबसें बड़ोॅ बात, जों है मौका हाथोॅ सें गेलौ शनिच्चर, तेॅ नें हाथोॅ में तीस-चालीस हजार टाका आवैवाला छौ, नें तेॅ तोहें मुखिया होय वाला छैं...आय तक सब करलोॅ-धरलोॅ गूड़-गोबर समझें।"

"आरो विधाता जे परसू हर साले नाँखि गाँव भरी में घूमतेॅ रहतै से?"

"ऊ अबकी नें होतै शनिच्चर। सब व्यवस्था करी लेलोॅ गेलोॅ छै। कल भोर होत्हैं तोरा सिनी सब विधाता के पास पहुँची जैवैं। बस कहना छै-आय होली हेनोॅ दिनोॅ में मूँ फुलौव्वल नें। आय सें होनै होतै जे विधाता गाँव के उन्नत लेली चाहै छै। हमरा मालूम छै, विधाता आपना पर अविश्वास करी लै, शनिच्चर पर नें। बस की छै, कल भोरे सें होरी के जे ढोल-झाल चढ़तै ऊ रातो-रात नें उतरेॅ देना छै। हमरौ सिनी वहीं बैठलोॅ रहवै...तबेॅ केकरौ की, विधाताहौ के मनोॅ में कोय शंका केना हुएॅ पारतै...सब आदमी केॅ फिट करी लेलोॅ गेलोॅ छै। हिन्नें ढोल-झाल के आकाश भेदी आवाज होतेॅ रहतै आरो हुन्नें आरी के चर्र-चों, चर्र-चों। जेना ठनका के बीचोॅ में मैना के आवाज। की गाछ कटै के, की बैलगाड़ी चलै के. सबके आवाज खतम। पूरे सौ आदमी फिट छै। विधाता के बात छोड़ें शनिच्चर, कटैवाला गाछो तक केॅ पता नें चलतै कि ऊ कटी रहलोॅ छै, हों।"

"तोरा सिनी केॅ जे करना छौं, करोॅ, मतरकि है जानी लेॅ, ई कामोॅ में हम्में कहूँ सें नें छियौं, कल कोय रँ के बात उठत्हौं, तेॅ तोहें सिनी जानियौ।"

"ठीक छै" कही केॅ सोराजी चौधरी आरू गोपी घोष खुश होतें एक दिश चली देनें छेलै।