जटायु, खण्ड-28 / अमरेन्द्र
फागुनी पूर्णिमा। धरती पेॅ टह-टह इंजोरिया बरकलोॅ दूधोॅ रँ छिरियाय गेलोॅ छेलै। एकदम दगदग चाँदनी। फेनू नद्दी कछारी के शीशम वन सें बुली केॅ ऐलोॅ पुरवैया हवा। जुआन तेॅ जुआन, बूढ़ोॅ-पुरानो ताँय के कहलोॅ नैं जाय। माथा सें लै केॅ गोड़ोॅ ताँय रँगोॅ के धार सें रँगलोॅ। सब चलता-फिरता रँगाघारी रँ लागी रहलोॅ छै।
आय होली छेकै। कोय एतवार आरो शनिच्चर नें कि हफ्ते बाद घुरी-घुरी ऐतै। पूरे साल बाद आवै छै...ओकरौ में एक्के दिन, बासी फगुआ के की सेल। सब्भे आपनोॅ-आपनोॅ घरोॅ सें निकली गेलोॅ छै...होली छेकै नी, आयकोॅ हेनोॅ शुभ दिन में की मैल-मुटाव। दुश्मनो एक दूसरा के देहोॅ पेॅ दू बूँद रँग दै केॅ शुभ मानै छै। फेनू जोॅन गाँमोॅ में हजारो बरस सें सब्भैं एक्के ऐंगन के लोग नाँखि होली मनैतेॅ ऐलोॅ छै, आय ऊ रेवाज हठाते केना टूटी जैतै। ई हुएॅ नें पारेॅ। धेनू कापरी, सोराजी चौधरी, काली दत्त, असरेस मंडल, भैरो चौधरी बुली-बुली केॅ गाँव के बूढ़ोॅ-पुरानोॅ सें मिललोॅ छै, गोड़ोॅ पर अबीर राखी केॅ प्रणाम करनें छै। ई बातोॅ केॅ आबेॅ जे कुछ लिएॅ। कहै के तेॅ बहुत्ते यहू कही रहलोॅ छै कि मुखिया-चुनाव में शनिच्चर के जीत स्थिर करै वास्ते है सब नाटक चली रहलोॅ छै।
मतरकि शनिचर आय आपनोॅ सब्भे दोस्त केॅ बुलाय केॅ साफ-साफ कही देनें छै, "देख परफुल्ल, मुखिया बनै लेली हमरा सें गोड़पड़िया नें होतौ। आय दू महिना सें जे रँ भालू-बन्दर रँ टोलावाला सिनी हमरा नचाय रहलोॅ छै, ऊ आय भोरे सें खतम...कोय नें जीत चाहै छै, सब हमरोॅ टका के भुखलोॅ...एक टोला के एक आदमी सें मिलौ, तेॅ दूसरा कहतौं-आय ऊ आदमी के साथें मिली केॅ सब गुड़-गोबर करी देल्हौ...दोसरा साथें मिलौ तेॅ तेसरोॅ कहतौं-अरे ओकरोॅ हस्तिये की छै, चन्नर माँझी केॅ पकड़ोॅ पूरे एक सौ वोट ओकरोॅ हाथोॅ में छै...चन्नर मरड़ केॅ पकड़ोॅ तेॅ दूसरोॅ-तीसरोॅ टोला नाराज...गन्हौरी मेठ कहै छै-" जीत हेने नें होय छै, सब टोला केॅ पूछै लेॅ लागत्हौं, हम्में सबकेॅ कही केॅ राखलेॅ छेलियै आरो तोहें चन्नर माँझी सें मिली केॅ आपनोॅ गोड़ काटी लेलेॅ छौं। आबेॅ तोहें आपनोॅ जानौ"...हमरा मालूम छै, ई गन्हौरी मेठ हेनो कैन्हें बोली रहलोॅ छै, टोला वाला केॅ पटियावै के नामोॅ पर हमरा सें हजार टका लेलेॅ छेलै, सब पीवी-खाय लेलेॅ छै, आरू हमरा सें बोली रहलोॅ छै कि 'आबेॅ तोहें आपनोॅ जानोॅ।' ई चुनावें हमरा सें सुअरी के गू ताँय माथा में चन्दन रँ लगवैनें छै। आबेॅ जे होतै से होतै, हम्में गोड़पड़िया नें करलेॅ फुरेॅ सकौं...आय सें सब खेल बन्द। ई मुखिया चुनाव नें शनिच्चर चौधरी के शान केॅ धूल में लेटाय देनें छै। कल ताँय जेकरोॅ छाया हमरोॅ दुआरी ताँय नें पहुँचेॅ पारै छैलै, ओकरोॅ दुआरी पर शनिच्चर हाथ जोड़ी केॅ खाड़ोॅ रहेॅ ...बंद कर है नाटक। ई परफुलवां कैथ बुद्धि लगाय छैं-जों विधतवा कोय्यो काम सें भागलपुर गेलोॅ, तेॅ आबी केॅ समझैतौ कि समझै नें छैं शनिच्चर, ई विधाता भागलपुर लाला श्याम लाल, अनिल शंकर झा आरू अश्विनी सिंह सें गुटरू गूँ करै लेॅ गेलोॅ छै, के नें जानै छै-कैथोॅ के घुरची, बाभन के पेंच आरू राजपूतोॅ के शान, तीनो मिलेॅ तेॅ लिएॅ जम्मोॅ के जान...हट्ट, दिन-रात के है शिकायत आरू उटका-पैंची सें हम्में ऊबी गेलोॅ छियै। बंद कर आबेॅ है सब नौंटकी। हम्में सोची लेलेॅ छियै कि जेना टाड्ढी के मुखिया मरड़ रुपसा के दशहरा-समारोह असकल्ले संभारी लै छै, वहेॅ रँ अबकी होली-समारोह असकल्ले शनिचरा सम्भालतै। ई होली-समारोह में जे-जे है मनोॅ सें आबेॅ पारौ, आबौ, नें तेॅ शनिचरा असकल्ले जोगीरा गैतै सुनी ले, हों।"
शनिचरो सब तरह निश्चिन्त होय केॅ दुर्गा थानोॅ में आपनोॅ मंडली साथें जुटी गेलोॅ छै। परफुलवा, विपिन, ढीवा, खखरी, राम लोचने नें बनारसी, रवि, अकवाली भी समय पर आवी गेलोॅ छेलै। योगी, खुशीलाल, विधाता केॅ नें ऐतेॅ देखी केॅ ढीवां नें शनिचरा सें ज़रा आँख नचाय केॅ बोललै "आभी तांय परदेशिया नै ऐलोॅ छै।"
शनिचरा केॅ ओकरोॅ भाव-भंगिमा समझै में देर नें लागलोॅ छेलै, "देख ढीवा, आइंदा सें जों कभियो विधाता के परदेशिया कहलैं, तेॅ तोहें ई देशोॅ में दिखाय नें पड़वे। जानवो करै छैं आपनोॅ देश के माँटी आरू संस्कृति के बारे में। आरू जेकरा संस्कृति के, भूगोल के अगलका अक्षर 'भू' तक के भी ज्ञान नें रहेॅ, ओकरोॅ बुद्धि तेॅ गोल होवे नी करतै, तबेॅ हेनोॅ गोलबुद्धि के कृतियो गेले समझैं। हमरा खूब मालूम छै कि विधाता बारें में कुछु मिली केॅ है प्रचार करी रहलोॅ छै कि ऊ परदेशी छेकै, मध्यप्रदेश सें ओकरोॅ पूर्वज ऐलोॅ छै। रुपसा में हजार-डेढ़ हजार बरस पहिनें एकरोॅ पूर्वज आवी केॅ बसलोॅ छेलै। तेॅ हेनोॅ के जात छै यहाँ, जेकरोॅ नाभिकमल यहैं सें निकललै-कान्यकुब्ज कन्नौजे सें ऐलै, राजपूत राजस्थाने सें ऐलै आरू शक्-ब्राह्मण तेॅ भारतो सें बाहर शकद्वीप सें ऐलै। हौ भैरो चौधरी का रहेॅ कि किसोरा जी चौधरी का, चाहेॅ शनिचर चौधरी रहेॅ कि रवि चक्रवर्ती, के छेकै यहाँ करोॅ? खानदान के खतियान उठाय केॅ देखी लैं; केकरो बारे में कुच्छू बात नें उठै छै-फेनू आय विधाता परदेशी केना भै गेलै। हँकाय केॅ कहै छियौ ढीवा, काँच रस्ता पर फेकै छैं, तोरा नें गड़ौ तेॅ नें गड़ोॅ-तोरोॅ घरोॅ-टोला के लोग ओकरा सें नें बचेॅ पारतौ। आरू जखनी तोरोॅ कारनामा के पता गाँव वाला केॅ चलतौ, मछली-कबूतर रँ नोची केॅ राखी देतौ। तोर्हौ मालूम होतौ कि तोरोॅ परबाबा सौ सवा साल पहिलें सिंध सें भागी केॅ यहाँ बसलोॅ छेलौ। सुधरें, आरो की कहवौ...नीच आदमी जातोॅ सें नें, विचारोॅ सें होय छै...पाँच रोज पहिनें जबेॅ हम्में विधाता सें मिललियै तेॅ हमरा आपनोॅ भूल समझै में आवी गेलै। हमरा आबेॅ एकर्हे दुख छौ कि तोरा सिनी मिली केॅ हमरोॅ दिमाग केॅ दिमाग नें रहेॅ देलैं। ढीवा भाग मनावैं कि विधाता रँ लोग रुपसा केॅ मिललोॅ छौ। जों हेनें लोग ई देश के एक-एक गाँव केॅ मिली जाय, तेॅ तोरोॅ रँ लोग देश-देश में नै दिखावै।"
"बहुत बोली रहलोॅ छैं शनिच्चर" ढीवा के मूँ तपलोॅ खपड़ी रँ लाल हुएॅ लागलोॅ छै। जे स्थिति केॅ भाँपतेॅ हुएॅ ही रवि चक्रवर्ती नें बीच-बचाव करतें कहलेॅ छेलै, " जानै छियौ, दबैवाला दोनों में सें कोय नें छै, आखिर ढीब्हौं तेॅ शनिचरे के माप के दूध पीवी केॅ बड़ोॅ होलोॅ छै, जेना कि विधता, कहो जी-सा रा, रा, कहो जी सारा, रा, रा, रा, रा, रा, रा...रवि चक्रवर्ती के शुरू होना छेलै कि खखरीं ढोलक पर एक ताल दै केॅ कहलकै,
ओ नाथ जी हल्ला-गुल्ला बन्द करो, सुनोॅ हमारी बानी जी
नें तेॅ भरो शनिच्चर का पानी जी-
सब्भे नें एक्के सुरोॅ में बोललोॅ छेलै, "सत्य है जी' शनिचरो के चेहरा कुच्छू-कुच्छू नरम पड़ी गेलोॅ छेलै। सब टोला के सब्भे युवक जुटलोॅ छै। बूढ़ोेॅ-पुरानोॅ यै मंडली में भाग नें लै छै। पछियारी टोला के धुरखेली बाबा के वासा पर बूढ़ोॅ-बुजुर्ग के मंडली होली के दिन जमै छै। धुरखेली बाबा कहै छै," ई छौड़ा सिनी के कोय ठिकानोॅ नें, गीत गैतें-गैतें वैमें हेनोॅ-हेनोॅ गाली वाला बात जोड़ी दै छै जेना लाज-शरम एकदम घोटी केॅ पीवी गेलोॅ रहेॅ। काका-मामा केॅ नें करै तेॅ नें करेॅ, बाब्हौ तक के लाज नें करै छै...
ठिक्के में धुरखेली बाबा कहै छै, " एकदम्मे लाज-बीज नें। होली के दिन तेॅ सब बेशरम होय जाय छै-बुढ़वोसिनी। मतरकि बड़ोॅ के सम्मुख बूढ़ोॅ के बात चली जाय छै, छौड़ा सिनी लुग मुश्किल छै। पछियारी टोला में भीमसिंह नें ढोलक पर थाप देलकै-धिन्नक धिन, धिन्नक धिन, धिन्नक धिन...
कि हुन्नेें दुर्गा-थानोॅ में शनिचराहौं ढोलक पर आपनोॅ हाथ फेरना शुरू करलकै-
धिन्नक धिन, धिन्नक धिन, धिन राम लिखो...
समिरौ आज गणेश ठाकुर पोथी में पहिलें लिखौ
राम लिखौं लक्ष्मण लिखौ-लिखौ सिया एक बार
ठाकुर पोथी में पहलें लिखौ...
धिन्नक धिन, धिन्नक धिन, धिन्नक धिन
पछियारी टोला के भीम सिंह के जोड़ नवयुवक पार्टी में खाली विधाता आरू शनिचरें दिएॅ पारेॅ। नें तेॅ केकरोॅ मजाल कि भीमसिंह के सामना में कोय ठहरी जाय। एक होली सें जादा नें चलै छै ढोलक-भीमसिंह के चटकन छेकै, कोय दूसरा के नें आरू फेनू भीमो के लड़ाय तेॅ भोरम भोर।
बेरी-बेरी बरजौं पियवा सँवरका
के तिरय जानूँ ताक तिना तिन
धिनक धिन, धिन्नक धिन
ढोलक पर भीमसिंह के थाप आरो वै थोपो पर चमरू पासवाल के कंठ के जोड़ नें छै।
पर है के टाड्ढी दिशो सें आवी रहलोॅ छै?
अरे मसुद्दी मिया छेकै, की रँ झुमलोॅ गैलेॅ आवी रहलोॅ छै
चैत बैशाख मासे सुतलां ऐंगनमा
पियवा पापी मारै छै रे नजरिया
हम्में तोरा पूछियौ मालिन के बेटिया
कैसें-कैसें जोड़लें रे पीरितया
मसूद्दी मियां के साथोॅ में लागलोॅ बमभोला बंगाली मुँहोॅ सें आवाज निकलै छै
धिन, धिन, धिन, धिन तिका
धिन, धिन, धिन, धिन तिका
मसुद्दी मियां बमभोला केॅ नें छोड़ेॅ पारेॅ।
बानर वास्तें तेॅ बनरनिये नी पद्मनी। हा, हा, हा, हा, बुरा नें मानोॅ होली छै
ई बमभोला केॅ नी देखोॅ, ठेपी भर पीलेॅ न पीलेॅ होतै, की रँ मस्त छै।
खोटा वास्तें भूते हेलाव। हा, हा, हा, हा, हा, बुरा नें मानोॅ होली छै
मसूद्दी मियां आरू बमभोला बंगाली केॅ समझै में देर नें लागलै, "छौड़ा सिनी भांग-गांजा चढ़ाय केॅ बैठलोॅ होतै, गीत-नाद की करतै। खाली होहारी ..." मसुद्दी मियां आँख झोली केॅ देखै छै।
बनारीस मंडल ने बमबोला बंगाली दिश हाथ उठाय केॅ गाना शुरूवे करलेॅ छेलै कि धीरेनो के कण्ठ गनगनाय उठलै,
कहौ जी सारा, रा, रा
हिरिया के बेटी किरिया बैठल दुकान पर
गला में शोभै शिकरी, मोती छै कान पर
एक नजर जे चल गेलै पनमा दुकान पर
मसूदी काका मरी गेलै किरिया के जान पर
फिर बोल-बोल कि सारा, रा, रा
कि रामलोचनौं नहला पर दहला छोड़तें कहलकै,
हुक्का बरै गुड़गुड़ चिलम के मजा ले
छोटी रानी गिर गेलै उठाय केॅ चुम्मा ले
फिर बोल-बोल कि सारा, रा, रा
मसूद्दी मियां केॅ होली के यहेॅ सब अच्छा नें लागै छै। बूढ़ोॅ-पुरानोॅ के लाज-लिहाज नें। लाज-लिहाज तेॅ छै, मजकि मसुद्दी मियाँ केॅ देखत्हैं गाँव के छौड़ा सिनी में एकदम्में उमंग भरी जाय। ई बुढ़ारी में तेसरोॅ बीहा करनें छै। पूछला पर कहै छै, "जबेॅ ताँय लहू, तबेॅ ताँय बहू" ...है रँ होहारी देखी केॅ मसुद्दी मियां एकबार घूमी केॅ कहै छै, " तेॅ यहाँ की करी रहलोॅ छैं, आपनोॅ-आपनोॅ ससुराल भागें, फेनू गाछियाय केॅ चूमेॅ...होरी की गैतै, खाली होहारी, अभी होली गावै छेलै आरू अभी जोगीरा-होरी हो...
होहारी में मसुद्दी मियाँ के आवाज एकदम दबी केॅ रही जाय छै आरू ऊ बमभोला बंगाली साथें पछियारी बासा दिश चली दै छै, गैनें-गैनें-चैत बैशाख मासे सुतलां ऐंगनमा...