जटायु, खण्ड-29 / अमरेन्द्र

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पाँच साल बाद मीरा बहुदी के नाम दीपा रोॅ चिट्ठी

बहू दी

अन्धड़, बतास-विन्डोवो आरू प्रलय केॅ झेलतें-झेलतें मनार केन्होॅ शिल होय गेलोॅ छै-जड़ो तक में कटियो टा जान नें छै, जेकरोॅ रोआँ-रोआँ तक के रस सूखी गेलोॅ छै-बस होन्हे कुछ र्ह पाँच सालो में बनी केॅ रही गेलोॅ छी। बस तोरासिनी के स्मृतिये हमरोॅ पास पापहरणी-सीताकुण्ड आरू आकाश गंगा नाखी बची गेलोॅ छै, नें तेॅ आरू की।

होली के बादे हमरा गंगा दा के चिट्ठी मिललोॅ छेलै। होली के रात गाँमोॅ पर बज्जड़ खसी गेलोॅ छेलै। जेना पाइप लगाय केॅ कोय देहोॅ सें खून खीची लेलेॅ रहेॅ, एकदम सुन्न होय गेलोॅ छेलै हमरोॅ हाथ, गोड़, माथोॅ...जंगल-पानी सें उजड़ला के बादो मनार खाड़ौ छै नी, बस ओन्है केॅ खाड़ो छी, नें कोय शीतल बतास के झोंका, नें कोय चिड़िया चुनमुन के गीत-ठीक मनारोॅ पर खड़ा कलयुग के मूरत, जेकरा पर सब ऐतें-जैतें लोग पत्थर फेंकतेॅ रहेॅ-होन्हैं केॅ हम्में। हमरा आपनोॅ चिन्ता नें, सोचै छियै तेॅ गामोॅ बारे में-कहाँ होतै सोराजी, शनिच्चर दा, कहाँ होतै गोपी का, कहाँ होतै आरो मिसिर का। वकील काकां समझैलेॅ छेलै तेॅ ग़लत नें समझैलेॅ छेलै। हम्मूं जानै छियै कि गछकट्टी में नौ साल तांय के सजा हुएॅ पारेॅ। यै में खाली अपराधिये केॅ नें, अपराधी केॅ साथ दै वालाहौ केॅ ओन्हें सजा छै-क्रिमिनल कॉन्सपेरेसी कानून रोॅ अधीन दोनों केॅ एक्के सजा। वहू में खून! सीधे आई0 पी0 सी0 तीन सौ दू के मामला-आजीवन जेल नें तेॅ फाँसी. अच्छा करलकै कि वकील का के कहला पर हुनकासिनी गाँव छोड़ी देलेॅ छेलै, मतरकि आभी तांय की हुनका सिनी गामोॅ सें बाहर छोॅत? गंगा दा के चिट्ठी सें जे कुच्छू मालूम होलै, ओकरा सें यहेॅ पता चललै कि पुलिस दिन-रात गामोॅ में रौन करतें रहेॅ छै-रात-बेरात कखनियो केकरो घरोॅ के छान-बीन करेॅ लागै छै। घरोॅ में एकाध बूढ़ी जोॅर-जनानी छोड़ी केॅ सब हिन्नें-हुन्नें नुकैलेॅ फुरै छै। केन्होॅ भांय-भांय करतेॅ होतै गाँव, ऊ स्थिति देखी केॅ तेॅ ठिक्के नानी हदासे सें मरी जैतियै, अच्छे करलकै कि गंगा दा नें रातो-रात आपनोॅ गाड़ी पर बैठाय केॅ नानी केॅ बड़का मामा कन छोड़ी ऐलोॅ छेलै। पुलिस नें शंका में कि शनिच्चर दा, ढीवा दा आरू परफुल दा हमरे घरोॅ में नुकैलेॅ छै, घरोॅ के सब्भे द्वार-खिड़की तोड़ी-उखाड़ी केॅ राखी देनें छै, उत्तरवारी भीतो तोड़ी देनें छै, ताकि ऐंगन उदामोॅ होय जाय आरू ऐंगन छिपै के अड्डा नें बनेॅ पारेॅ, यहू चिट्ठिये सें जानलां। की-की गामोॅ में होय गेलै। चिट्ठिये सें जानलियै कि स्थिति यहाँ तांय आवी गेलोॅ छै कि गाँव के सीमाना पर कहूँ सें कोय चोरबत्ती के रोशनी दिखाय छै तेॅ पुलिस के आशंका सें जोॅर-जनानी आपनोॅ-आपनोॅ मरद केॅ पिछवारी दिश सें बँसबिट्टी आरू बिहियारी दिश भगाय दै छै। पुलिस के की, शंकाहौ पर पकड़ी केॅ जेल भेजी दिएॅ पारेॅ। फेनू दौड़ौ पैसा-पोटली लै केॅ साल-दू-साल। जानलियै कि गामोॅ में लोगें शनिच्चर दा, जोगी दा, खुशी दा के बारे में कुच्छू बोलै लेॅ नें चाहै छै। लाख पुछलौ पर कोय केकरौ कुच्छू नें बतावै छै-गोबध लागी गेलोॅ रहेॅ सबकेॅ। की समय छेलै, की समय होय गलोॅ छै। ई बात खाली हमर्है नें, गाँव में हेनोॅ के छै, जेकरा ई विश्वास नें होतै कि शनिच्चर दा, गोपी का आरनी के ई घटना में केन्हौ केॅ हाथ नें हुएॅ पारेॅ, आबेॅ इखनी जान बचाय लेॅ जत्तेॅ चुप होय जाय, मजकि बहू दी, है चुप्पी गाँव के शांति के कारण नें बनेॅ पारेॅ। डर आरो भय सें जबेॅ आदमी शांत होय छै, तबेॅ समाज आरू टोला के अशांति सौगुना बढ़ी जाय छै, ई लोग कैन्हें भूली गेलोॅ छै।

बिना विधाता के घोॅर की। आखिर करवो की करतियै दादी, काकी, काका आरनी, जानलियै सब्भे गामोॅ केॅ छोड़ी बाँका में रहेॅ लागलोॅ छै-डीह-डाबर सबटा के मोह-माह छोड़ी केॅ। अच्छा करी रहलोॅ छै जे कमरुद्दीन दा, रवि दा, एकबाली आरो शिवचरण काका-सब मिली केॅ शनिच्चर दा आरू खखरी दा केॅ निर्दोष सिद्ध करै लेली कानूनी दाँव-पेंच के सहारा लै रहलोॅ छै-दिन केॅ दिन नें समझी रहलोॅ छै, आरू नें रात केॅ रात। जमानत मिलियो गेलोॅ होतै, तेॅ केस खतम होय में, पाँच-दस बरस लगिये जैतै। जे न्याय के स्थिति छै, तबेॅ वकील काका साथ छै तेॅ गाँव भरी केॅ भरोसा छै-कोय शंको नें होना चाहियोॅ। जों दू-चार मनोॅ के टुटला सें हजार-लाख टुटलोॅ मोॅन जुटी जाय तेॅ दीपा केॅ विधि रोॅ सबसें बड़ोॅ विपद भी स्वीकार छै। होना केॅ आबेॅ एकरा सें बढ़ी केॅ आरू विपद विधि के पास की होतै, हमरा दै लेॅ। एक-न-एक-दिन गाँव के सुख तेॅ लौटवे करतै सब लौटी ऐतै-शनिच्चर दा, गापी का, चौधरी का...मतरकि हमरोॅ विधाताहौ घुरी ऐतै की? गामोॅ में पछियारी टोला के एकदम किनारी में बसली बेलडीहा वाली काकी के वहेॅ गीत आयकल रही-रही मनोॅ में गूँजेॅ लागै छै,

सभै के बिहाउल हो बाबा, मगहा-मुंगेर
हमरा बिहाउल गंगा पार हे
सावन-भदौवा के उमड़ल नदिया
कओन विधि उतरव पार हे
सिकिया जे चीरी-चीरी बेढ़वा बनैवै
ओही रे बेड़बा उतरव गंगा पार हे
टूटी गेलै बड़वा छिलकी गेलै बान्हन
डूवी रे मरलां बीच धार हे।

हम्में पार नैं उतरेॅ पारलौं, हान्हन टूटी गेलै आरो हम्में बीच धार में डूबी गेलां। विधाता नें छै तेॅ लागै छै कि हम्में धरती रोॅ सबसें बड़ोॅ अपशकुन बनी केॅ खाड़ोॅ छी। सपना गजूरै के पहिलैं यै में भाँगटोॅ लागी गेलै, मजकि हम्में दोष केकरा दिएॅ पारौं। जत्तेॅ समय, ओतन्हैं विधाताहौ। शनिच्चर नें रोकी रहलोॅ छेलै, तेॅ विधाता केॅ रुकी जाना चाहियोॅ...आखिर एक गाछ कटतें-न-कटतें सौंसे गाँव लै केॅ शनिच्चर पहुँचिये तेॅ गेलोॅ छेलै, मतरकि एकरा सें की, तब तांय एक गाछ भले न कटलोॅ रहेॅ, सौंसें गाँव के भाग्य ज़रूरे कटी चुकलोॅ छेलै...भाग्य नें कटी गेलोॅ होतियै तेॅ हेने गाँव में भाँय-भाँय होतियै। कभी-कभी सोचै छियै कि विधाता के अधूरा सपना पूरा करै लेली हमरा गाँव लौटी जाना चाहियोॅ, मजकि जे खूद्दे भोरकोॅ सपना रँ बिखरी गेलोॅ छै, ऊ केकरो सपना केॅ की सड़ियैतै। हमरोॅ सौंसे जिनगी जेना एक बड़का भांगटोॅ, चाँदनी रात में जेना प्रेत-छाया, भुताहा हवेली में जेना कोय जनानी के कपसवोॅ।

हम्में रेगिस्तान के ई देश में कत्तेॅ असकल्ली होय गेलोॅ छी-प्रोफेसर साहब आरू दीदी सब छात्रा-छात्रा सिनी साथें हमरोॅ तबीयत ठीक होत्हैं लौटी गेलोॅ छेलै। लाख कहलो पर हम्में महीना भरी बाद ही लौटै के बहाना करी देलेॅ छेलियै, चिट्ठी के सब्भे बात छुपाय लेलेॅ छेलियै। की करतियै देश लौटी केॅ। कै दाफी मोॅन होलोॅ छै कि यहीं सें राते-रात देश के सीमानी लाँघी केॅ परदेश में चल्लोॅ जाँव, जहाँ सें ई अपराध लेली शुरू होय छै-कैद रोॅ अनन्त यातना...की करियै, कहाँ जइयै, डूबी मरियै? कोय झील में, कोय बाबड़ी में, कोय कुइयाँ में? की करियै? हम्मू जानै छियै कि आयकोॅ दुनियाँ में नारी पचास साल पहिलोॅ नाँखि नें रही गेलोॅ छै कि पुरुष बिना औरत जीयै नें पारेॅ, यहू नै कि बिना पुरुष के औरत के पैठो नें छै, तहियो मोॅन तेॅ अभियो होन्हे छै, जेहनोॅ पचास-हजार साल पहिनें छेलै। ओकरोॅ दुनियाँ में एत्तेॅ उथल-पुथल के बादो कोय नया उथल-पुथल नें होलै-तभिये तेॅ हमरोॅ मोॅन विधाता लेली एतना बेकल होय जाय छै। बहु दी, होना केॅ तोरा सें ई बात तेॅ छिपलोॅ नें छेलौं, छिपलोॅ रहौ नें पारै छेलै, तहियो तोरा सें हम्में ई बात छिपैैलेॅ राखलियौं कि हम्में विधाता केॅ कत्तेॅ मनोॅ सें चाहै छियै। हम्में विधाता माय सें यै लेली बातो मनवाय लेलेॅ छियै, है बात गेठी में खोसी ला। "

आरो तभीये हम्में जानलेॅ छेलियै कि हम्में के छेकियै, विधाता हमरोॅ के लागेॅ लागलोॅ छै। बस यही लेॅ आपनेॅ केॅ एत्तेॅ निबल पावै छियै, सब तरह सें मजबूत होला के बादो। आय हम्में जोॅन रेगिस्तानी इलाका में आपनोॅ पचासो साथी साथें काम करी रहलोॅ छियै, ऊ रेगिस्तान में खेजड़ी के दसो हजार गाछ लहलहावेॅ लागलोॅ छै-खेजड़ी यानी रेगिस्तान लेली कल्पवृक्ष-जेकरोॅ छाल-दवाय बनी जाय छै, फरी-गरीबोॅ लेली तियौन, पत्ता-मवेशी लेली चारा, टहनी-जलावन, जेकरोॅ छाया ही पंथी वास्तें स्वर्गधाम नें बनै छै, ई छाया नीचें तेॅ खेतो होन्हे खूब हरियावै छै। मजकि हमरोॅ जिनगी के है पसरलोॅ रेगिस्तान में की आबेॅ कभियो कोय कल्पवृक्ष उगेॅ पारतै? हम्में केकरोॅ लेली कल्पवृक्ष नें बनेॅ पारलियै।

हमरा याद छै, तोहें हमरा देखी-देखी कैन्हें बरवक्ते ई गीत गावी उठै छेलौ,

बाबा के ऐंगना अलरी-झलरी
छै चानन घन गाछ हे-
ताही तर अहे बाबा पलंग बिछावल
बही गेल पुरबा बतास हे-

आय वहेॅ गीत ई खेजड़ी वनोॅ के बीच जेना हठाते गुंजेॅ लागै छै। निंदवासलोॅ हम्में चिहाय केॅ चारो दिश देखै छियै, काँही तेॅ कोय नें छै, बस लागै छै-खेजड़ी-वन के चारो दिशोॅ सें उठी-उठी केॅ खाली गीत हमरा लुग आवी रहलोॅ छै,

बही गेलै पुरबा, बही गेल पछिया
बही गेल रंग बतास हे-
आइ रे, माइ रे टोला-परोसन
बाबा के देहू जगाय हे।

हम्में जानै छियै कि आबेॅ हमरोॅ वास्तें कोय नें जागतै। पाँच साल में पचासो ठियाँ आवी-जाय चुकलोॅ छियै, बिना कुच्छू केकर्हौ कोय खबर देलेॅॅ-लेलेॅ। आबेॅ केकरहौ नें जगैय्यौ बहू दी, कैन्हें कि अबकी दाफी, यही राती हम्में चली जैवौं वीजू वन-खाको जंगल, देखना छै कि हमरोॅ जिनगियो सें ऊ की ज़्यादा भयावह छै, ज़्यादा दारुण।

तोरोॅ ननद

रूपा