जटायु, खण्ड-3 / अमरेन्द्र
"गोड़ लागै छिहौं, वसन्त का।"
"के विधाता बेटा? आवोॅ-आवोॅ। आबेॅ तेॅ तोर्हौ सिनी हमरा भुलाय देनें छौ।"
"है नैं कहोॅ काका। जों हेने बात होतियै, तेॅ आय तोरोॅ दुआरी पर आवै के ज़रूरते नें होतियै। काका, जन्मडीह सें कत्तो आदमी उखड़ी जाय, ओकरोॅ लेली आदमी के सीना में जे ममता, श्रद्धा होय छै, ऊ स्थान शहर में बनलोॅ नया हवेलियो नैं लिएॅ पारेॅ।"
"से तेॅ छेवे करै बेटा ...अरे वहाँ नें, यहाँ बैठोॅ। हों, आबेॅ सुनावोॅ गामोॅ के सब हाल-चाल, ठीक छौं नी?"
" सब ठिक्के छै काका, मतरकि तोरा है रँ निश्चिन्त देखी हमरा अचरज भै रहलोॅ छै। की तोरा मालूम नें छौं कि आय मिटिंग छेकै, विद्यापीठ के सब्भे व्यवस्था रोॅ मुतल्लिक।
"से तेॅ मालूम छै।"
"तेॅ तोरा मिटिंग में जाना छौं काका। तोरे निर्णय मिटिंग में आखरी निर्णय होतै। है सबनें मानी लेलेॅ छै।"
"अरे नैं बेटा नें, हमरा वहाँ कथी लेॅ लै जैवा। आबेॅ गामोॅ में हौ बातो नें रहलै कि बाप-दादा केकरो रहेॅ, ऊ सब्भे के बाप-दादा होय छेलै आरो केकरोॅ मजाल कि बाप-दादा के बात उठी जाय। पंचायत सें कम नैं होय छेलै गाँव के एक बूढ़ोॅ। आबेॅ तेॅ पंचायतो के बात के मानै छै। हमरा छोड़िये दा बेटा। आभी ताँय जोॅन इज्जत केॅ बचैनें ऐलोॅ छी, ओकरा है आखरी दिनोॅ में कथी लेॅ फटै लेॅ देवै। बेटा कुल आरो कपड़ा जे बचाय केॅ चलै छै, वहेॅ मनुक्ख छेकै।"
"काका, तोहें एत्तेॅ सिनी बात सोची लेल्हौ केना। वहाँ हेनोॅ कुछुवे नैं होतै।"
"की होतै आरो की होय रहलोॅ छै, है सब के तोरा ओतना खबर नें छौं बेटा। कुछु दिनों सें गाँव में जे खेल चली रहलोॅ छै, तोहें की ऊ नें जानी रहलोॅ छौ। इखनिये सें दुर्गापूजा के तैयारी लै केॅ पूबारी टोला के कहना छै, जे रँ हर साल होय छै-मेला में कीर्त्तन आरनी के सिवा आरो कुछ नैं होतै। ज्यादा-सें-ज्यादा, खरच करी केॅ रजौनोॅ सें चमरखानी जी केॅ बुलैलोॅ जैतै, झाँकी दिखाय लेॅ आरो कुछुवो नें। पर पछियारी टोलोॅ के मिजाज तेॅ पूबारी सें एकदम अलगे छै। एक दिन बहियारी सें लौटी रहलोॅ छेलियै, तेॅ परफुलवा मिली गेलै। पूछलियै," की परफुल, दुर्गापूजा-मेला लै केॅ पछियारी टोलां की सोचलेॅ छै? तेॅ जानलौ, परफुलवा की बोललकै? बोललै, "पछियारी टोला के छवारिक दल तेॅ एक्के मोॅन छै-अबकी मेला में नाँचै गावै वाली आवेॅ। राम-लीला में रंगीला के राम आरो हनुमान वाला पाट देखतें-देखतें गाँव ओकताय गेलोॅ छै, आबेॅ सब रसलील्है देखै लेॅ चाहै छै, सें अबकी तेॅ मेला में रासेलीला होतै, यही हमरा सिनी के निर्णय छेकै।"
"बोलै लेॅ दौ काका, हम्में शनिचर सें ई बात कहभै। आरो शनिचर कही देतै तेॅ केकरोॅ मजाल छै-कोय मेला-ठेला में पतुरिया नाँच कराय लेॅ।"
"यहेॅ तेॅ दुख छै बेटा कि है सब शनिचर केॅ मालूम नै छै, हेनोॅ नै छै। आय गाँव भरी में कत्तेॅ लोग छै, जे पीयै-खाय वाला नैं रही गेलोॅ छै। पीयै वालां दिन-रात एक करी देलेॅ छै। कभी दुर्गाथान तेॅ कभी आमोॅ बगीचा में, कभी बाँधोॅ पर, तेॅ कभी बहियारी में। हम्मीं आँख नीचा करी केॅ निकली जाय छी। जानै छियै-ऊ सबके आँख नीचा नैं होय वाला छै। देखियौ, हम्में तेॅ देखै लेॅ नें रहवौं मजकि एक जुग बीततें-नें-बीततें यहेॅ गाँवों में घरे-घर पीछू दारू के एक-एक भट्टी भेतै, हों एक-एक भट्टी. नैं भट्टी बन्द होतै, नें पीयै वाला। आखिर भट्टी पीछू दस-दस टाका के दू हिस्सा शनिचरा दलोॅ केॅ मिलै छै। गाँव केॅं गाँव बनाय लेॅ पहलें तेॅ यहेॅ ज़रूरी छै कि भट्टी बंद हुएॅ। आरो तोंहें की समझै छौ, शनिचरा ई चाहतै। हरगिज नैं।"
हम्में तेॅ मानै छियै काका कि परिस्थिति-परिवेश आदमी केॅ ज़रूर प्रभावित करै छै, मतरकि सामर्थवान व्यक्ति परिस्थितियो केॅ बिना प्रभावित करलेॅ नें रहै छै। ...ई जे गामोॅ में श्रीज्ञान विद्यापीठ खोलै के बात सोचनें छियै, ओकरोॅ पीछू हमरोॅ बहुत बड़ोॅ संकल्प छै। गाछ-बिरिछ के नीचें, टटिया-मड़ैया के नीचें विद्यापीठ-ई गाँव के आग यही पानी सें खतम होतै। काका, आरो जहाँ ताँय लत के बात छै, ऊ कत्तो खराब रहेॅ, अभ्यास सें की नें छुटै छै। हमरौ दारू पीयै के हिस्को छेलै। छोड़ाय वाला भी तोहीं छेकौ कक्का। तबेॅ तोहें हार कहाँ मानलेॅ छेलौ। "
"की याद दिलाय देलौ बेटा" वसन्त कां हँसतें कहलकै-"तबेॅ यहेॅ बमबम पीछू सें हमरा सुनाय-सुनाय कहै-विधतवा मुनी-समाजोॅ के चक्कर में पीवोॅ-खैवोॅ छोड़ी देलकै। यहेॅ तेॅ देखना छै कि बाघे कहिया तांय माँस खैवोॅ छोड़ै छै। ई मुनी-समाजे एक दिन गाँव बर्बाद करी केॅ राखतै। आय एक साथी गेलै, कल दुसरोॅ जैतै, परसू तेसरोॅ। आदत की छुटतै, हों, मुनी के नामोॅ पर चोरका-चोरेकी पीतै, आरो की"
काका ऊ मिटिंग में तोरा ज़रूरे चलना छौं। " विधाता हँसतें कहलकै।
"आबेॅ तोहें कहै छौ बेटा तेॅ जैवै, ज़रूरे जैवै। कहिया छेकै मिटिंग आरो कैंठा होतै?"
"यहे एतवार केॅ छेकै, पाँच रोजोॅ के बाद। नकुल बाबा के दुआरी पर वाहीं सब लोग जुटतै। दू-तीन रोज के भीतरे टाड्ढी, मदरिया, डुमरामा, खिड्डी सब गाँमोॅ के प्रमुख आदमी केॅ एकरोॅ खबर करी ऐवै। तेॅ जाय छियौं काका, महराणो पहुँचना छै, होना केॅ सूचना पहले पहुँचाय ऐलोॅ छियै।"
"जा बेटा, सारथी सब्भे नैं बनेॅ पारेॅ। जे पांचजन्य फूँकै-वही कुशल सारथी।"