जटायु के कटे पंख, खण्ड-11 / मृदुला शुक्ला

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इंटर की परीक्षा, रिजल्ट और बीए में एडमीशन सब कुछ हो गया। बीए में एडमीशन लेते समय पापा से सुवास की थोड़ी बहस हुई, वे चाहते थे कि सुवास इंजीनियरिंग का फार्म भरे, फर्स्ट डिवीजन में भी अच्छे मार्क्स आए थे आइ.एस.सी में भी। लेकिन सुवास ने न तो बी.एस.सी में नाम लिखाया न ही इंजीनियरिंग में जाने में रुचि दिखाई. आखिर वर्मा जी ने भी हामी भर दी। दो की जगह चार बच्चे अब ट्यूशन पढ़ रहे थे, लेकिन उसी दो घंटे में सुवास उन्हें पढ़ाने जाता था। इससे उसे थोड़ी ताजगी मिलती और पैसों के लिए भी आत्मनिर्भरता बनी रहती थी।

एक दिन सुवास निश्चिंत-सा लेटा था, तभी वर्मा जी ने बताया कि "दूबे जी बहुत आग्रह कर रहे थे। साल भर से बात टालता जा रहा हूँ, थोड़ा समय निकाल कर उनकी बेटी को भी पढ़ा दिया करो।"

सुवास अनमना-सा पड़ा रहा, आखिर अपने मन को समझाया और दुर्गा पूजा की छुट्टियों में ही उसे पढ़ाने गया। सुवास जब पहुँचा दूबे जी की पत्नी सामने बैठी सब्जी काट रही थी। उसे देखकर बोली, बहुत दिनों से तुम्हारा इंतजार कर रहे थे। मेहरबानी कर निशा को पढ़ा दो तो मैट्रिक पास कर जाए. हमें कोई नौकरी-चाकरी तो करानी नहीं है। हमारे यहाँ तो बउआ इतना खेत जमीन है और कोई भोगने वाला नहीं। सोलह कमरे का घर है। दालान ही इतना बड़ा, उतना उ$ॅंचा गेट—सुवास ने टोका, "चाची निशा को बुला दीजिए तो हम पढ़ाना शुरू कर दें।" हाँ-हाँ बैठो बैठो, वह भी होगा। अरे निसबा देखो तुम्हारे मास्टर साहब आए हैं, इनको चाय पिलाओ. "

"चाची कम से कम मुझे मास्टर साहब नहीं कहें और मेरे लिए चाय भी नहीं बनवाएँ, मैं चाय नहीं पीता, यह उस दिन भी बताया था।" झिझकते हुए सुवास ने कहा।

तब तक निशा चाय लेकर आ चुकी थी। पतली, छरहरी, गेहुआं रंग, बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें और मुसकुराते ओठ। सुवास ने नजर नहीं उठाई थी फिर भी देख लिया था। झुकी आँखों से उसने कप-प्लेट आगे बढ़ाया। आज नया कप प्लेट था और देने का तरीका भी शालीन। बात बढ़ाने की बजाय उसने बिना उधर देखे कप पकड़ लिया। सहमी, शरमाई निशा पीठ पलटते ही बहनों के साथ खिलखिलाती हुई कमरे में घुस गई. सुवास को उ$ब हो रही थी। निशा की माँ का प्रवचन खतम नहीं हो रहा था। सुवास ने चाय पी नहीं थी इसलिए उसे नहीं पता चाय कैसी थी, पर निशा की माँ ने मुँह बनाकर बताया, "का रे निशा, कतना चीनी दे दिया चाय में, मुँह एकदम चटचटा गया।" फिर बोलना शुरू किया, "जानते हो हमरा घर में इतना चीनी खर्चा होता है कि बोरा में चीनी आता है, दूबे जी कहते हैं बच्चा लोग का घर है तो करो खर्चा। हमलोग खाते पीते घर के ...," सुवास ने फिर दूबे जी की पत्नी को अपने घर की प्रशंसा में तल्लीन देखा था तो कहा"

"कल से पढ़ाने आ जाउ$ंगा, आज एक जगह काम से जाना है।"

सप्ताह भर में सुवास को पता चल गया कि पढ़ाई में निशा सामान्य से भी कम थी। सातवीं में उसकी पढ़ाई छुड़ा दी गई थी, आने जाने की असुविधा के नाम पर। शादी की बात उठाने पर मैट्रिक पास लड़की की फर्माइश से दूबे जी का ध्यान उसे पढ़ाने की ओर गया था। घर में निशा हर समय चुप-सी दबी सहमी-सी रहती या शायद माँ उसे घरेलू काम का इतना बोझ लाद देती कि पढ़ने के समय बिल्कुल थकी-सी होती और उसकी आँखें झपकने लगतीं। सुवास एक यंत्रा की तरह वहाँ पढ़ाता रहता, निशा किताबों पर झुकी होती। जितनी देर वह पढ़ाता दूबेजी की पत्नी वहीं पास में निगरानी के लिए बैठी रहती। सुवास को शुरू में बड़ा असहज लगता, लेकिन उसे यहाँ की मानसिकता का पता था।

उस दिन भी दूबे जी की पत्नी, सब्जी वाले से अपने गाँव, जिसे वह देस कहती थी, मैं उगने वाली सब्जियों का पूरा ब्योरा दे रही थी, जो किसी के न खाने से यों हीं सड़ जाया करती थी। सुवास ने गणित के फार्मूले को बताना शुरू किया, निशा सिर्फ़ हूँ, हाँ करती जा रही थी। सुवास को पता था कि उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था फिर भी वह उ$ँची आवाज में लगातार बोलता जा रहा था, जिससे वहाँ बैठी दूबे जी की पत्नी की बातचीत में बाधा पहुँच रही थी, इससे वह उठकर बाहर जाकर बात करने लगी। सुवास ने निश्चिंतता की साँस ली थी। अगले दिन से दूबे जी की पत्नी ने वहाँ बैठना बंद कर दिया और सुवास का ध्यान निशा की पढ़ाई की ओर गया।

एक दिन फिर से दूबे जी की पत्नी ने सुवास के लिए चाय भिजवा दी। सुवास ने लौटा दिया तो दूबे जी की पत्नी को बात करने का मौका मिल गया, "इस कोल्डफील्ड में चाय नहीं पीयोगे तो कोयला पत्थर कैसे हजम करोगे।"

सुवास असमंजस में पड़ा सोचता रहा कि यहाँ के लोग हर खाने पीने की चीज के साथ कोयला पत्थर हजम करने की बात क्यों करते हैं। सिंह चाचा के शराब पीने पर उनकी वकालत करने वाला भी यही कह रहा था। इसी तर्क पर ये हर ग़लत सही काम करने की भी आजादी चाहते थे।

यह सही था कि घर में बादल और वर्षा भी चाय पीने के लिए लड़ पड़ते थे। लेकिन नाना की सख्त हिदायत कि चाय बच्चों की भूख खत्म कर देती है और अतुल मामा को चाय की आदत के लिए पड़ती डाँट उसे हमेशा याद रहती और वह अभी भी चाय पसंद नहीं कर पाया।

दूबे जी को भी खिलाने पिलाने का बहुत शौक था और वही एकमात्रा बाहर से आने वाला व्यक्ति था। इसलिए वे अक्सर जिद करते। एक दिन शाम को वह बताने गया कि दो तीन दिन नहीं आ पायेगा। तभी दूबे जी उसे लिट्टी खिलाने पर अड़ गए. वह नम्रता से मना करता रहा। दूबे जी की पत्नी कैसे चुप रह सकती थीं। बोली, "खालो बेटा हमरे देस का चीज है, बहुत अच्छा लगता है।"

दूबे जी की पत्नी गोरे रंग और भरे बदन की महिला थी। गले में सोने की मोटी-सी चेन और माथे पर चौड़ी सिंदूर की रेखा जो मौसी की तरह न होकर नारंगी रंग की होती थी। उनके भरे पूरे होने की कहानी बताती थी। निरंतर बोलने और सुपाड़ी चबाते रहने की उनकी आदत थी। सुवास ने एक बार उन्हें देखा और लिट्टी खाने लगा। उसके गले में लिट्टी अटक रही थी, जिसे पानी के साथ गटक कर वह उस दिन वहाँ से छूट पाया।

वर्मा जी ने पूछ लिया कि "दूबे जी की बेटी कुछ पढ़ लिख रही है या यों हीं" उन्होंने बात मौसी से पूछी थी लेकिन अपनी सर्ट पहनते-पहनते सुवास थोड़ा चोंक गया था। उस दिन उसने निशा से उसकी पढ़ाई के विषय में जानकारी लेने के लिए थोड़े से सवाल पूछे। निशा एकदम से शुरू हो गई-सच कहें सर, हमें इंगलिस में अंडा मिलता था, समाज और हिन्दी तो आज भी समझ लेते हैं, लेकिन गणित और साइंस कौन भगवान बनाया कि कुछ भी समझ नहीं सकते। माई कहती हैं एक बार में मैट्रिक पास कर लो। ये हो सकता है भला। "निशा ने एकदम सच्चाई के साथ उसकी आंखों में देखते हुए पूछा। तब तक उसकी छोटी बहन रिंकी बोल पड़ी," तू तो सात जनम में भी पास नहीं कर सकती। "चुप रिंकिया, नहीं तो देंगे एक थप्पड़ कि रोती हुई भागेगी। हम एक बार में बोर्ड पास करने की बात कर रहे हैं और इ कोनो शादी है कि सात जनम तक कोई कोशिश करेगा।"

उस समय दूबे जी की पत्नी, स्नान पूजा में व्यस्त थी, छोटी बहन गीता और भाई स्कूल गए थे। इन दोनों बहनों की मौज हो गई थी। सुवास एकटक अपनी उस नई छात्रा को देख रहा था, जो पहले से मान बैठी थी कि पहली बार पास होना नामुमकिन है और बार-बार कोशिश करने की ज़रूरत क्या है? उससे ज़्यादा ज़रूरी तो शादी है। ऐसे सवाल जवाब से उसका कभी पाला नहीं पड़ा था। थोड़े आश्चर्य, थोड़ी हँसी, थोड़ी दुविधा से सुवास देख रहा था। निशा ने उन आँखों में पता नहीं क्या देखा कि झट से कान पर हाथ रखकर बोली, "सर ई बात माई को मत बताइयेगा हमको तुरंत दादी के पास गाँव भिजवा देगी।"

सुवास ने किताबें बंद करते हुए कहा, "मुझे किसी से कुछ कहने की ज़रूरत नहीं, लेकिन जब पढ़ने के लिए दिल में जज्बा न हो तो मेरे यहाँ आने का कोई मतलब नहीं है।"

"नहीं नहीं सर आप ज़रूर आइयेगा, पीछे से बारह वर्षीया रिंकी ने निशा की बात काटते हुए कहा-हाँ ताकि दू घंटा घर का छोड़कर यहाँ पढ़ने का नाटक कर सके."

"रिंकी अब तो सच में मार खायेगी" निशा ने धमकाया।

सुवास ने रिंकी की ओर देखा और कहा, "जाओ तुम भी पढ़ने बैठो और सोच विचार कर बोला करो।" सुवास की भारी आवाज से रिंकी जीभ काट कर अंदर के कमरे में चली गई.

सुवास के सामने एकदम घरेलू और सामान्य बुद्धि की इस लड़की के अंदर पढ़ाई के प्रति ललक जगाना एक चुनौती थी। उसने इसी से निशा को समझाना शुरू किया, "आप हौसला रखें तो मंजिल ज़रूर मिलेगी।"

निशा बड़ी उत्सुकता से भर कर सुवास को देख रही थी। सुवास को लगा के कुछ पूछना चाहती है। उसने पूछा, "अब क्या बात है?"

निशा ने हैरानी से पूछा कि "सर आप मुस्लिम हैं"

फिर जल्दी-जल्दी कहा, "नहीं सर बात ये है कि आप जज्बा, नामुमकिन हौसला इ सब बोलते हैं ना इसी से।"

वह उठकर खड़ा हो गया। इस लड़की के अधकचरे ज्ञान से टकराने की हिम्मत नहीं बची थी उसके पास। निशा को लगा सर नाराज हो गए. आँखों में आँसू भरकर बोली, "गलती हो गई सर, अब हम कुछ नहीं पूछेंगे।"

सुवास ने सिर्फ़ कहा, "समय हो गया अब कल पढ़ने को तैयार रहना।" ' भागा के विद्यार्थियों को पढ़ाकर जब वह लौटा तो सोच रहा था कि निशा वैसी बिल्कुल नहीं है जैसा उसने पहले देखा था। चंचल है, जीवन से भरी हुई है और सबसे अच्छी बात कि बन्दिशों, पाबंदियों के बीच भी खुश रहना जानती है। लेकिन इसे दुनिया के विषय में कुछ भी पता नहीं, पढ़ाई से कोई प्रेम नहीं। जैसे भी हो अपनी इस छात्रा को परीक्षा पास कराना ही होगा।

चार दिन बाद सुवास ने बहुत मेहनत से उसे ग्रामर की कुछ आसान-सी बातें बर्ताइं, रटने के लिए अंग्रेज़ी के कुछ शब्दों के अर्थ दे दिए. वह उसकी साइंस की किताब उठाकर देख रहा था क्योंकि नया कोर्स लागू हो गया था। काफी समय बाद जब सुवास को लगा कि उसे कल के लिए समझा कर उठा जाए तो देखा निशा अपनी कापी को देख कुछ सोच रही थी। सुवास ने पूछा, "क्या हुआ, सब याद हो गए?"

"उधर दूसरी तरफ हमने गाना लिखा था, आपने इस तरफ इतनी काट पीट कर दी कि गाना पढ़ा नहीं जाता" निशा के गाने के प्रति चिंता देख सुवास भन्ना गया।

तुम कोई गाना सिखाने वाला मास्टर रख लो और माई से कहो मुझे बख्श दें, छोड़ दें। उर्दू के शब्द निकलते देख सुवास अचानक सचेत हो गया।

निशा फिर चिंहुक कर उठी, "अरे नहीं-नहीं सर माफ करें, मुझसे गलती हो गई. असल में हमें गाना बहुत अच्छा लगता है। सातवीं में पढ़ते थे तो स्कूल में गाती थी। माई बस छठ मइया का गीत गाने कहती है, हम फ़िल्म का गाना गाते हैं तो बहुत गुस्साती है। अब नहीं लिखेंगे गाना। अब बस इंगलिस और गणित पढ़ेंगे।"

उस दिन आते-आते आठ बज गये थे। नाश्ता का समय निकल गया था। बादल ने कहा, "भैया दूबे चाचा के यहाँ लगता है नाश्ता ज़्यादा कर लेते हो, कितनी देर हो गई."

सुवास सोचने लगा सच में ही इतनी देर हो गई, पर आज पता क्यों नहीं चला।

आजकल सुवास अपनी पढ़ाई और ट्यूशन में बहुत व्यस्त हो गया था। वर्षा इसी से अपने भैया से रूठी रहती। सुवास ने सोचा आज नन्ही बहन के लिए टाफी लेता चले, उसी दुकान से उसने उसके लिए हेयर बैंड भी खरीद लिया, तितली और फूलों वाला।

घर आकर देखा तो वर्षा अपनी पढ़ाई में लगी थी। सुवास ने टाफी और हेयर बैंड उसकी बगल में रखकर पूछा कि "आज कल बड़ी पढ़ाई हो रही है।"

वर्षा ने मुँह फुलाते हुए कहा, "आपको तो दूसरों को पढ़ाने में मन लगता है, मुझे कौन पढ़ाएगा?"

सुवास ने धीरे से उसके बालों को सहलाया, "अच्छा तुझे सचमुच पढ़ना है तो आ पढ़ा देता हूँ।"

"नहीं भैया, मुझे कल ही 'फैमली' पर प्रोजेक्ट जमा करना है, वह बना दो नहीं तो मिस बहुत डाँटेगी।"

सुवास ने मुस्कुराहट को छिपाते हुए कहा, "तू बड़ी चालाक है, आधा काम बादल से कराती है, आधा मुझसे। अच्छा ला, स्केचपेन और रंगीन पेपर, गोंद सभी।"

सुवास ने मनोयोग से उसका प्रोजेक्ट तैयार कर दिया तो वर्षा मुँह पर हाथ धरे हँस रही थी"भैया मैंने आपको छका दिया। कल से तो दिवाली और छठ की छुट्टी है। बादल ने कहा-यह हमेशा यही करती है। सुवास भी वर्षा की खुशी देख बस उसकी निश्छलता पर हँस रहा था। वर्षा बोली," अरे भैया भी हँस रहे हैं। "

दिवाली आई तो इस बार सुवास ने भी घरौंदे बनाए और दीए सजाने में मदद की थी। बादल और मौसी यह सब देखकर हैरान थे। वर्माजी का इस तरफ ध्यान ही नहीं था।

समय मिलने पर इधर सुवास ने फिर से टहलना शुरू कर दिया था और टहलते हुए दामोदर नदी के छोर तक पहुँच जाता था। कच्ची पगडंडी थी, घनी झाड़ियां और पलाश के पेड़। दामोदर का पानी देख उसे गंगा का किनारा याद आता। पानी तो बस पानी था, हरहराता हुआ, ठंडक पहुँचाता, सबों की परछाई समेटता। सुवास को अब दामोदर से लगाव हो गया था।

छठ के दिन दूबे जी ने सुवास को भी अपने साथ घाट पर चलने के लिए कहा। झेंपते हुए सुवास, बादल और वर्षा के साथ ही, दूबे परिवार के संग दामोदर नदी के घाट पर गया था वहाँ उसने भी अर्घ्य दिया। निशा ने सुंदर-सा आसमानी रंग का सलवार सूट पहना था और कानों में माँ की बालियां डाली थीं। उसी ने लोटे में दूध भरकर सुवास को दिया और समझाया कि "सर सूप के उ$पर से इस तरह अर्घ्य दिया जाता है।"

सुवास जब से भागलपुर से आया था, इन सब चीजों से अपने को दूर रखता। घर में मौसी छठ नहीं करती थी। वर्षा पहली बार छठ घाट पर आई थी इसी से बादल के साथ वह भी बहुत खुश थी। सुवास ने घर आकर वर्षा को छेड़ा था, "आज वर्षा बहुत खुश है क्या बात है।" वर्षा बोल उठी, "भैया हम तो ऐसे ही थे, आप आजकल बहुत खुश दीखते हैं।" सुवास सकपका गया क्या सचमुच ऐसा बदल गया है वह।

दोपहर से सुवास ढीला-सा पड़ा था। दरअसल दोरस मौसम का असर था। थोड़ी ठंड भी महसूस हो रही थी। सुवास उस दिन निशा को पढ़ाने नहीं जाना चाहता था, पर आदतन, समय होने पर कमीज और उसके उ$पर स्वेटर डाल पढ़ाने चला गया। मंगलवार का दिन था। दूबे जी की पत्नी प्रत्येक मंगलवार शाम हनुमान मंदिर में लड्डू चढ़ाने जाती थी। उस दिन भी वहीं गई हुई थी। सभी भाई बहन पहले वहीं पढ़ रहे थे और निशा रसोई में थी। उसके जाने पर वे लोग अंदर पढ़ने चले गए. निशा अपनी किताबों के साथ आकर बैठी तो सुवास ने थोड़ा बहुत उसका ट्रांसलेशन देखा और हिन्दी पर्यायवाची शब्दों को रटने दिया।

सुवास का सिर दर्द से फटा जा रहा था, जुकाम के कारण नाक और आँखें लाल हो गई थीं फिर भी कोशिश कर रहा था कि कुछ पढ़ा दे। रिंकी बीच-बीच में आकर दीदी से कुछ पूछने आ जाती थी। निशा ने अचानक उठकर कहा, "आज मेरा मन पढ़ने का नहीं है सर। ऐसे तो आप चाय नहीं पीते परंतु आज अदरक वाली चाय बनाकर लाती हूँ, आपका सिरदर्द गायब हो जाएगा।"

सुवास ने लाचारी में सिर झुका दिया। निशा के हाथों की चाय सचमुच अच्छी थी और सुवास को सरदी में राहत महसूस हुई. उसने अपने को समेटते हुए कहा कि अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे और हो सकता है कल वह नहीं आ पाए.

तब तक दूबे जी की पत्नी मंदिर से आ गई थी। उन्होंने चाय के जूठे कप-प्लेट देख हँसते हुए कहा, "अरे आज तो मास्टर साहब ने चाय पी ली, गजब हो गया।"

सुवास बिकुल झेंप गया कि क्या सोचती होगी चाची भी।

हड़बड़ाते हुए बोला कि "आज तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है चाची, इसलिए जल्दी जा रहा हूँ।"

"ठीक है बचवा जाओ, आराम करो" कहकर दूबे जी की पत्नी अंदर गई. सुवास दरवाजे तक पहुँचा ही था कि निशा ने पीछे से आवाज दी, "सर आपका पेन छूट गया है।" जब तक वह पाकेट टटोलता, निशा ने विक्स की छोटी-सी डिबिया उसकी मुट्ठी में सबसे छिपाकर रख दी। अकबकाया-सा सुवास पाकेट में हाथ डाल वहाँ से चल दिया।

उस रात उसने खाना के लिए मना कर दिया। चादर ओढ़कर उसने विक्स लेकर अपने सिर और आँखों के उ$पर लगाया। आराम मिला तो एक सुखद एहसास हुआ। वह सोचने लगा कि निशा एक सामान्य बुद्धि की छात्रा ही नहीं, एक संवेदनशील लड़की भी है, जो बिना बताए उसकी तकलीफ और ज़रूरतें जान सकती है।