जटायु के कटे पंख, खण्ड-21 / मृदुला शुक्ला

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स्कूल में टिफिन का समय था। सारी शिक्षिकाएँ टिफिन डब्बे के साथ बातों में व्यस्त थीं। चित्रा ने बगल में बैठी चिन्ता को कहीं खोये हुए गंभीर मुद्रा में देखा तो चिकोटी काटी, "आज अपना चिन्ता नाम सार्थक करने पर क्यों तुली हो, ठीक से खा भी नहीं रही।"

चिन्ता ने धीरे से बताया कि उसकी बहन आई है। चित्रा ने थोड़ा उत्साहित होते हुए कहा, "अनु आई है, पिछले साल ही न शादी हुई है।"

चिन्ता ने उदासी से धीरे से कहना शुरू किया-पापा ने अपने रिटायरमेंट के पैसों से बड़ी धूमधाम शादी की थी। बहुत कुछ दिया था। सबकुछ अच्छा ही चल रहा था। लेकिन अब उसका पति नौकरी छोड़ बैठ गया था। अब बिजनेस करेगा इसलिए पैसे चाहिए, इसी वजह से दोनों के बीच तनाव और अनबन रहती है। "

चित्रा की आवाज तेज हो गई, "क्या कहती है अपने बिजनेस के लिए तुम्हारी बहन को तंग करता है, अरे ऐसा कैसे कर सकते हैं वे।"

"हम क्या कर सकते हैं, सबकुछ सहना होता है, पापा समझाने की कोशिश कर रहे हैं, आखिर बहन का क्या होगा।"

"चिन्ता तुमलोग एकबार झुक गए तो हमेशा ऐसा ही होगा। प्रतिवाद करो।"

चिन्ता ने इनकार में सिर हिला दिया। सीमा ने चित्रा को समझाया, "चित्रा ये बातें इतनी आसानी से नहीं कही जा सकती। एक परिवार टूटता है इससे और शादी को बचाने के लिए माँ-बाप के सामने मजबूरी होती है।"

चित्रा का मन भारी हो गया। भला ये भी कोई रिवाज है शादी न हुई व्यापार हो गया। वर्षा के लिए लड़के देखने की जहाँ भी बात होती है, सुवास की माँ पिताजी पहले ही सहमे हुए होते हैं। सोचते हैं किसी अच्छी जगह रिश्ता हो तो वे लोग भी दहेज देने के लिए पूरी कोशिश करेंगे। लेकिन उसके बाद भी क्या गारण्टी है दहेज का लालच उसे सुखी रहने दे। उसने अपनी शंका व्यक्त की तो सीमा ने कहा, "सभी ऐसे नहीं होते, पहले से ही ऐसा नहीं सोचो।"

"यह तो मैं भी मानती हूँ कि सभी ऐसे नहीं होते लेकिन जो होते हैं उन्हीं को देखकर समाज अपनी चाल बदल लेता है और मैं सच में सुवास की बहन के लिए चिन्तित हो जाती हूँ।" चित्रा एकदम गंभीर हो उठी।

सीमा ने तब तक अपने डिब्बे से दो मिठाई निकाल कर उसकी ओर बढ़ाया-"खाकर बता कैसी है? मैं ने बनाई है।"

" सच! तूने बनाई है, तुझे इतना समय मिल जाता है? चित्रा ने मिठाई कुतरते हुए कहा।

चिंता कहीं खोई-सी उसी तरह बैठी रही। सीमा ने उसे हिलाया, "चिंता क्या सोच रही हो, सब ठीक हो जाएगा, पति-पत्नी में नोंक झोंक होती रहती है और समाधान तो सभी बातों का होता है। चलो मिठाई खाओ."

चिन्ता आँखें पोंछ मुस्कुरा दी, "सच बताओ इतनी अच्छी मिठाई बनाई, समय कैसे निकाला?"

"समय निकालना पड़ता है मैडम"

"पति के नखरे झेलने के बाद समय मिलता है। मैं तो घर स्कूल के बीच चकरघिन्नी बन जाती हूँ।" चित्रा ने कहा।

"अभी नई-नई गृहस्थी का जुआ कंधे पर पड़ा है ना, फिर सब आ जाएगा।"

"अच्छा पतिदेव भी तो मदद करते होंगे काम में।" सीमा से चित्रा ने सवाल किया तो उसने भी उलटकर पूछा, "अच्छा तू ही बता सुवास घर के कामों में मदद करता है?"

चित्रा जोरों से हँस पड़ी, "अभी सीख रहे हैं, तीन साल की ट्रेनिंग में एकदम फर्स्ट हो जाएँगे।"

सीमा ने गंभीर मुद्रा में कहा, "ईश्वर करे ऐसा ही हो।" तीनों सहेलियां जोरों से हँस पड़ीं। बाकी शिक्षिकाएँ थोड़ा चोंककर पूछने लगीं-"क्या बात हो गई भई, हमें भी बताना।"

सीमा ने चुहल की कि चित्रा बता रही थी, "पति नामक प्राणी कैसे होते हैं इसे बताना बड़ा कठिन है।"

"अरे मैं ने कब कहा" चित्रा ने मुस्कुराते हुए अपना मुँह खोला। तब तक सीमा ने बगलवाली के टिफिन डिब्बे से दहीबड़ा उठाकर कहा-मैंने इसे समझा दिया कि ठीक इस दही बड़े की तरह खट्टे, मीठे, तीखे सब एक साथ। स्टाफरूम हँसी में डूब गया और चिन्ता भी थोड़ी देर को बहन की चिन्ता से मुक्त हो गई.

शाम को चित्रा नाश्ता बनाते हुए अपने आप मुस्कुरा उठीं, उसे दिन में सीमा द्वारा की गई चुहलबाजी याद आ गई. सुवास ने बाहर से देखा तो पूछा, "क्या बात है आज भी चेतन की चिट्ठी आई है क्या?"

चित्रा चंचलता से मुस्कुराई, "नहीं इस बार पतिदेव की परिभाषा सीखकर आई हूँ।"

सुवास मुस्कुरा उठा, "बहुत जल्दी प्रगति कर रही हो, किस से सीख रही हो मतलब गुरुआइन कौन है?"

"और कौन होगी हमारी नई नवेली सीमा सिंह-आज कह रही थी पति तो एकदम दहीबड़े की तरह होते हैं-खट्टे, मीठे, तीखे, सच क्या-क्या बोलती रहती है यह लड़की भी।" सुवास जोरों से हँस पड़ा, "विवाह के बाद जीता जागता मनुष्य दहीबड़ा बन जाता है। बताओ यही तुमलोगों की सोच है।"

चित्रा नाश्ता सुवास के आगे करते हुए कहा, "अरे भई मैंने थोड़े ही कहा है। लेकिन सोचती हूँ तो लगता है ग़लत भी नहीं है। शादी के बाद, अब तक तुम कितनी बाद मुझसे लड़ चुके हो, बता सकते हो।"

"अब उसे भी बंद करा दोगी क्या? फिर ज़िन्दगी में बचेगा क्या?" सुवास ने हंसते हुए नाश्ता करना शुरु कर दिया। चित्रा ने उसके केशो को बिखरा कर आँखें दिखाई तो दोनों हँस पड़े।

रात को खाना खाकर दोनों सड़क पर टहलने निकले तो वहीं वरुण मिल गया। बातचीत के क्रम में सुवास ने वरुण को हँसते हुए कहा, "हमारा स्कूल आज कल गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। लेडिज स्टाफ रूम की नई खबर हम पतियों पर है कि विवाह के बाद । । । । तब तक वरुण ने रोकते हुए कहा-हाँ सुवास बताना भूल गया था, कल रविवार है, बाबु जी ने घर बुलाया है शाम तक लौट आउ$ंगा।"

"क्यों कोई खास बात?" थोड़ा गंभीर होकर सुवास ने पूछा।

"हाँ स्नेहा के लिए लड़का देखना है।"

चित्रा ने चौकते हुए कहा, "क्या अभी ही उसकी शादी कर देंगे?"

"बाबुजी का कहना है घर परिवार अच्छा है-, लड़का इंजीनियरिंग पढ़ रहा है। इसी उम्र में शादी ठीक होगी।"

"नहीं वरुण जी, स्नेहा अभी छोटी है, बी.ए पास करने दीजिए अभी तो थोड़ा सीख समझ रही है।"

"मैडम आप कह तो सही रही हैं, लेकिन बाबुजी और गाँव वालों को कौन समझायेगा?"

चित्रा एकदम भड़क उठी, "आप पिता हैं उसके. कुछ भी कीजिए अपनी बेटी के प्रति आपका भी फर्ज है।"

वरुण लाचारी के साथ खड़ा रहा। सुवास ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे एक ओर लेता गया। फिर धीरे से समझाने की कोशिश की, "वरुण आप पिताजी को विवाह के लिए ना नहीं कर सकते लेकिन लड़का तो नापसंद कर सकते हैं। इसको इसी तरह टालिए. ना हो तो कल काम का बहाना बनाकर जाना स्थगित कर दीजिए और पिताजी को भी बात आगे बढ़ाने से रोक दें।"

वरुण असमंजस की स्थिति में ही धीरे-धीरे घर की ओर बढ़ता रहा।

चित्रा का मन छोटा हो गया। सुवास ने घर आकर समझाया, "चित्रा मैंने उनलोगों का गाँव देखा है, जहाँ डाइन कहकर औरतों को जला दिया जाता है, पत्नी दिन में पति से बात नहीं कर सकती, औरतों का कोई महत्त्व ही नहीं है। तुम इतने लोगों को नहीं बदल सकती। मैंने भी कोशिश की थी, लेकिन मेरी वजह से वरुण का परिवार परेशानी में फँस गया था।"

अगले दिन वरुण नहीं गया और सुबह-सुबह आवाज लगाते हुए पहुँचा, "कहाँ हें सुवास जी चलिए चाय पिलाइये और चित्रा मैडम को कहिए बिस्किट वगैरह निकालेगी।"

चित्रा को जानकर अच्छा लगा कि वरुण की पत्नी ने जो अब तक इस मामले में चुप थी, चित्रा के कहने के बाद बेटी की शादी अभी नहीं करने के लिए वरुण पर दबाव डाला और वरुण ने भी अपना विचार बदल दिया।

सुवास अपनी बहन की शादी को लेकर काफी परेशान था। बादल के पत्रों से पता चलता था कि बाबुजी अपनी नौकरी के रहते ही वर्षा की शादी करना चाहते हैं। जब से सुवास की शादी हुई, बाबुजी के गुस्से के कारण वह जीतपुर नहीं गया था। लेकिन वे अपने को कितना अकेला समझ रहे होंगे, यह सोच उसे आंदोलित कर देती थी। चित्रा जब तब जीतपुर की बात छेड़ देती थी, सुवास को लगता था कि शायद वह भी एक परिवार का सम्मान पाना चाहती थी। पत्नी बनकर उसके घर जाना चाहती थी, लेकिन खुलकर कुछ कहती नहीं थी। बसंत की रात थी, थोड़ी-थोड़ी कुनमुनी, लेकिन सुवास को नींद नहीं आ रही थी इसलिए बालकोनी में जाकर खड़ा हो गया। चित्रा दिन भर के काम से थक कर गहरी नींद सोई थी। सुवास सामने घर के नीम के पेड़ को देखता रहा और अपने स्वयं के चुने बनवास के विषय में सोचता रहा।