जटायु के कटे पंख, खण्ड-22 / मृदुला शुक्ला
"मैडम, मैडम इधर देखिए ना, माँ की तबीयत कैसी हो रही है" स्नेहा ने घबराते हुए आकर चित्रा से कहा। चित्रा ने गैस पर से कढ़ाई उतार कर नीचे रखी और झपटती हुई बगल में वरुण के घर चली गई. वरुण की पत्नी को उल्टी हो रही थी, कमजोर तो पहले से थी ही, इसी से आँखें बंद कर निढाल हो गई थी। चित्रा ने उसे कंधे का सहारा दिया और कुल्ला करा कर बिस्तर तक ले आई. उसने स्नेहा से कहा जाकर सुवास सर को बुला लाए.
सुवास कुछ सामान लाने पास की दुकान पर गया था, स्नेहा की बात सुनकर आया तो स्थिति को देखते हुए सामने में रहने वाले स्वामी नाथन को बताया कि वरुण की पत्नी की तबीयत ज़्यादा खराब है हॉस्पीटल फोन करके एम्बुलेंस मंगवा दें। एम्बुलेंस आई तो चित्रा और सुवास वरुण के बच्चों को समझाकर चले गए. नीचे क्वार्टर में रहने वाले शिक्षक बच्चों के साथ रह गए.
वरुण उस समय भाई को ज्वाइन करवाने राँची गया हुआ था। हास्पीटल में डाक्टर ने कुछ जाँच वगैरह के लिए रोक लिया। उल्टी रुक गई थी, लेकिन कमजोरी के कारण स्लाइन चढ़ रहा था। चित्रा रात में रुक गई, सुवास लौट आया। सुवास को अकेले उस घर में बड़ा अजीब-सा लग रहा था। वह एक रात पहले भी ठीक से नहीं सो पाया था। दूसरी रात वरुण की पत्नी और चित्रा के विषय में सोचता ही रहा। सुबह-सुबह वह चाय बनाकर हास्पीटल पहुँच गया था। उसने चित्रा को बताया कि रात में औरेलिया वरुण के घर रह गई थी। चित्रा को घर भेजकर वह उसी जगह बैठा रहा। स्कूल पास में ही था। चित्रा की आँखें नींद से भरी-भरी थीं। थकान से देह टूट रही थी। लेकिन घर के काम के साथ वरुण के बच्चों का नाश्ता बनाना ज़रूरी था। बच्चे माँ के लिए घबराए हुए थे। वैसे तो स्नेहा खाना बना लेती थी लेकिन आज तो सिर्फ़ रो रही थी। सुवास ने रिपोर्ट डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि 'अलसर' है, आपरेशन से ही ठीक होगा। तत्काल इंजेक्शन और दवाई से राहत मिल गई थी। चार बजे तक वरुण भी आ गया था। सुवास ने स्कूल में ही चित्रा का लाया टिफिन किया था और स्कूल हास्पीटल के बीच दौड़ता रहा था। शाम को डाक्टर ने हास्पीटल से छुट्टी दे दी। वरुण के वापस लौटने और उसकी पत्नी के घर आ जाने से चित्रा और सुवास थोड़े निश्चिंत हुए. फिर भी उसके घर से अपने घर तक आते-आते रात के आठ बज गए थे। सुवास ने रसोई में जाकर देखा कि चित्रा ने दिन का खाना नहीं खाया था। वह बहुत कमजोर और बुझी बुझी-सी लग रही थी। सुवास ने समीप जाकर चित्रा के सिर पर हाथ रखा, "तबीयत तो ठीक है ना?"
"हाँ ठीक तो है, लेकिन वरुण की पत्नी को उलटी करते देख मेरा मन भी कैसा-कैसा हो गया है। खाने का जी नहीं करता, लगता है उलटी हो जाएगी।"
"देखो चित्रा थकान से ऐसा लगता है, लेकिन भूखी नहीं रहो, थोड़ा दूध ही पी लो।" सुवास ने थोड़ा चिन्तित होते हुए कहा।
"कुछ नहीं है, कल ठीक हो जाउँगी।"
"कल आराम कर लेना, स्कूल से छुट्टी ले लेना"
"नहीं ऐसी क्या बात है, परसो शनिवार है, फिर आराम हो ही जाएगा।"
वरुण की पत्नी की तबीयत खराब होने के कारण चित्रा दोनों घरों में भागदौड़ कर रही थी। खाना-पीना भी अव्यवस्थित हो गया था। सुवास थोड़ा परेशान था क्योंकि चित्रा माँ बनने वाली थी। सुबह चित्रा बिस्तर से उठी नहीं तो सुवास स्वयं चाय लेकर जगाने चला आया। चित्रा बोली, "जी एकदम अच्छा नहीं लग रहा, उठा ही नहीं जा रहा है।"
सुवास स्कूल जाने से पहले चित्रा को लेकर हास्पीटल ही चला गया। डाक्टर ने देखा तो बताया, "प्रेशर लो हो गया है, वजन भी कम है, रेस्ट की ज़रूरत है।" सुवास ने तीन दिन बाद फिर डाक्टर से सलाह ली। डाक्टर ने इस बार कहा कि तीन महीने हो गए हैं, बच्चे की ग्रोथ उतनी नहीं है, थोड़ा ध्यान देना होगा।
चित्रा ने शाम को सुवास को चिन्तित देखा तो डाक्टर से बात करने शाम को खुद ही चली गई. आने पर सुवास का गुस्सा झेलना पड़ा, "तुम अकेली क्यों गई थी, कहीं गिर जाती तो? तुम जानती हो अभी बहुत सावधानी की ज़रूरत पड़ती है।"
चित्रा ने मुस्कुराते हुए सुवास के गुस्से को ठंडा करना चाहा, "मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ और अपना ध्यान भी रख रही हूँ। डाक्टर ने सिर्फ़ ज़्यादा स्ट्रेस लेने से मना किया है।"
सुवास ने थोड़ा हलका महसूस करते हुए कहा, "आज तुम्हें पहले की तरह देखकर मन को सुकुन हुआ है। लेकिन अब तुम अकेली घर का काम नहीं करोगी।"
"हाँ-हाँ, तुम्हारी चले तो यही करो, लेकिन यह होगा नहीं। अभी बाज़ार से कुछ सामान ले आओ."
सुवास की समझ में नहीं आता कि चित्रा कभी एकदम स्वस्थ और कभी इतनी पीली, मुरझाई-सी क्यों लगती है? उसके मन में अपने घर का इतिहास डर पैदा करने लगता। कहीं चित्रा को भी इसी तकलीफ को झेलने में तो कुछ नहीं हो जाएगा। हालांकि वह इसे अपने मन से निकालने की कोशिश करता फिर भी छोटी-छोटी बातों में उसका भय बाहर निकल जाता।
स्कूल में अचानक सुवास की तेज-तेज आवाजें सुनकर सुधांशु भागा-भागा आफिस की ओर गया। सुवास की छुट्टी का अप्लीकेशन टेबल पर पड़ा था। उसी के विषय में बड़ा बाबू से बहस हो रही थी। क्लर्क कह रहा था कि "प्रिंसपल ने किसी की छुट्टी का आवेदन पत्रा लेने से मना किया है क्योंकि परीक्षा होने वाली है और सुवास को तो प्रश्नपत्रा लेने भी जाना है।"
आवाज सुनकर मिश्राजी, थॉमस, वरुण भी पहुँच गए. सब लोग समाधान खोज ही रहे थे। सुवास आमतौर पर उत्तेजित नहीं होता। लेकिन इस समय वह बहुत गुस्से में था, "मि। सेनगुप्ता आप अपनी नसीहत अपने बॉस को सुनाएँ, मेरे लिए छुट्टी लेना ज़रूरी है तो ज़रूरी है, मुझे पत्नी को लेकर अल्ट्रासाउण्ड कराने बोकारो जाना है। चित्रा अभी तीन दिन नहीं आएगी और मैं आज जा रहा हूँ, आपकी जो मर्जी हो कर लीजिए. मानवता नाम की चीज भी होती है या नहीं?"
सुधांशु ने धीरे से सेनगुप्ता से पूछा, "दादा क्या आप भी ऐसा सोचते हैं कि नौकरी का मतलब इन्सान बीमारी और इलाज के लिए भी छुट्टी नहीं ले सकता।"
"अरे बाबा मैं कब मना करता हूँ पर परीक्षा भी तो होना है, प्रश्नपत्रा लाने का काम परीक्षा विभाग का है और यह ड्यूटी सुवास की है।"
"मैं भी परीक्षा विभाग में ही हूँ, यह ठीक है कि मैं आन्तरिक व्यवस्था देखता हूँ, लेकिन मैं दोनों कार्य संभाल लूंगा। मैं प्रश्नपत्रा लाने राँची जाने को तैयार हूँ, क्या अब सुवास को छुट्टी मिल सकती है?"
वरुण तब तक सुवास को बाहर ले आया था। सुधांशु ने आकर कहा, "सुवास जी मन ठंडा करो। चित्रा को लेकर जाना है, इस अवस्था में उसे क्या संभालोगे, कुछ विशेष बात तो नहीं?"
सुवास की आँखें भीग र्गइं, उसने सुधांशु का हाथ पकड़ कर थैंक्स कहा। वरुण ने बताया कि चित्रा की हालत इधर ठीक नहीं रह रही है। डाक्टर ने अल्ट्रासाउण्ड के लिए कह दिया है इसी से सुवास चिन्तित है।
मिश्राजी ने सुवास के कंधे पर हाथ रख कहा, "सब मंगलमय होगा आप खुश होकर निकलिए."
सुवास घर लौटकर आया तो चित्रा तैयार थी। उसने चाहा कि कोई टैक्सी मिल जाए, लेकिन मिल नहीं पाया तो डिलक्स बस से ही चित्रा को लेकर बोकारो गया। डाक्टर ने देखने के उपरान्त कुछ हिदायतें दीं, एनेमिक होने की वजह से थोड़ी प्रोबलेम थी, जिस पर ध्यान देने को कहा। सोनोग्राफी में भी कोई बड़ी प्रोब्लेम नहीं थी। लेकिन अच्छा भोजन और आराम की ज़रूरत थी, जिससे सब कुछ नार्मल रहे।
लौटते समय रास्ते में झारखंड आंदोलनकारियों की भीड़ आ गई थी। ड्रायवर ने समझाने की कोशिश की, लेकिन भीड़ मान ही नहीं रही थी। एक लड़के ने बस की खिड़की पर डंडा पीटना शुरू किया, दूसरे लड़के ने बस से पेट्रोल निकालना शुरू कर दिया। ड्राइवर ने ऐसी जुगत लगाई कि पेट्रोल 'रिजर्व' में चला गया। भीड़ जैसे ही आगे निकली, ड्रायवर ने बस तेजी से भगाई. सुवास चित्रा की चिन्ता कर रहा था। बीस किलोमीटर चलने पर दूसरा झुंड लाठी डंडों के साथ खड़ा था। इस बार ड्रायवर की चालाकी काम नहीं आई क्योंकि उनलोगों ने बस की हवा ही निकाल दी थी। सुवास कुछ समझ नहीं पा रहा था कि चित्रा के सुरक्षित घर पहुँचाने के लिए वह क्या करे। लोग बस छोड़कर इधर-उधर निकल गए. घर अभी भी सात किलोमीटर दूर था। चित्रा अपनी तकलीफ बता नहीं रही थी, लेकिन इस अवस्था में वह पैदल चल भी नहीं सकती थी, आसपास कहीं रूकने योग्य जगह भी नहीं थी। एक पेड़ की टेक लेकर वह बैठ गई थी। तीन घण्टे बाद जब आंदोलन का उग्र रूप मद्धिम पड़ा तब बीच-बीच में जाती गाड़ियों को रोकना चाहा। लेकिन गाड़ी वाले को भी जल्दी थी और किसी गाड़ी में जगह नहीं थी। अन्त में एक परिवार की प्राइवेट गाड़ी जा रही थी उसी ने इस विपत्ति में उनलोगों को उबारा। सात बजे शाम को जब सुवास चित्रा को लेकर अपने घर पहुँचा तो चित्रा एकदम निढाल थी। वह भाग-भाग कर नारियल पानी और जूस पिलाता रहा।
आधी रात को जब चित्रा सामान्य हुई तो उसने सुवास को चिन्तित देख कहा, "ईश्वर ही रास्ता दिखाता है, हमें तो लगता था कि आज पेड़ के नीचे ही रात गुजारनी होगी, लेकिन देखो हम लोग अपने घर पर हैं।"
"चित्रा मैं सोच रहा था कि ऐसी विकट परिस्थिति में सिर्फ़ हमलोग ही तो नहीं पड़े होंगे। कितने लाचार, मेहनतकश, कितने रोगी इस झारखंड बंद से त्रास्त हुए होंगे। ये कौन-सा रास्ता है, मोटरसाइकिलें जलाकर, बसों के शीशे तोड़कर, स्कूल, अस्पताल बंद कर ये क्या कहना चाहते हैं।"
"कुछ तो उनकी भी तकलीफें होगी, जिस वजह से वे सड़क पर उतर आये। मैं मानती हूँ कि उनका रास्ता सही नहीं हो सकता है, लेकिन बरसों से उन्हें वंचित रखकर जो ठगा जा रहा है क्या वह सही है?"
"मैं भी सोचता हूँ कि झारखंड के भोले भाले लोगों को विकास से दूर रखा गया, लेकिन ये अपने दुश्मन को भी नहीं पहचान रहे हैं और ना तो इनके लेागों ने इनकी शिक्षा, इनके रहन-सहन को उ$पर उठाने की ज़रूरत समझी है। क्षेत्राीयता का जहर भरकर उत्तेजना उत्पन्न कर जमीन का टुकड़ा तो मिल जाएगा परन्तु जिस उत्तरदायित्व का पाठ उनको पढ़ना है, क्या वह भी ज़रूरी नहीं है।"
चित्रा ने तकिए से टिकते हुए कहा, "जिम्मेवारियां ही हें जो मुश्किलों में चलना सिखाती हें। मुख्यधारा से हटकर तो ये कुछ भी नहीं सीख सकते।"
"चित्रा हमारा राज्य दो भागों में बँट जाएगा, इसकी पीड़ा तो होगी ही। उत्तर और दक्षिणी बिहार एक दूसरे के पूरक थे। कच्चा माल के धनी दक्षिणी बिहार को उत्तरी बिहार के मजदूरों ने भी सँवारा है। कोयले के खदान में उतरने वाले सिंह चाचा या तिवारी चाचा अपनी जान की बाजी लगाकर जाते थे, यह मैं भूल नहीं सकता।"
चित्रा को नींद आने लगी थी। उसने जम्हाई लेते हुए कहा, "अच्छा अब झारखंड बिहार बँटवारे की चिन्ता छोड़ो और सो जाओ."