जटायु के कटे पंख, खण्ड-2 / मृदुला शुक्ला
सुवास मुँह फुलाए खड़ा था। नानी उसे तरह-तरह से समझा रही थी। स्कूल की पढ़ाई छूटने से दिक्कत को बता रही थी। ढेरों प्रलोभन देकर भी वह सुवास को नहीं मना पा रही थी। अंदर कमरे में नीरू अपने सामानों को समेट नैहर जाने की तैयारी कर रही थी। आखिर उससे रहा नहीं गया, उसने सामानों को एकओर सरकाया और कमरे से बाहर आई. सुवास को हाथ पकड़कर कमरे के अंदर लाकर समझाने लगी, "बेटे मैं, बहुत जल्द तुम्हें बुलवा लूंगी। मैं अभी डाक्टर के पास जा रही हूँ ना, तुम तो मेरे राजा बेटा हो। यहाँ किसी को तंग नहीं करना।"
अपने हाथ छुड़ाता हुआ सुवास मचलने लगा, "मैं नहीं हूँ किसी का राजा बेटा।" धीरे-धीरे वह सिसकने लगा, "मुझे कोई प्यार नहीं करता, सब चले जाओ." नानी ने आगे बढ़कर बाल सहलाए, "मैं हूँ ना तेरे लिए. मामी को जाने दे बेटा, वहाँ बच्चे नहीं जाते।" सुवास ने रूंधे हुए गले से कहा, "जब आकाश और विकास भैया जा सकते हैं तो मैं क्यों नहीं जा सकता।" नेहा ने बाहर से जवाब दिया, "वह उनके नाना का घर है तो वे जा रहे हैं।"
सास ने कड़ी नजर से देखा तो वह अंदर कमरे में चली गई. सुवास का विलखना देख नीरू का मन भी भारी हो गया। सच ही बिन माँ का बेटा कैसे रहेगा यहाँ। कितने दिन बीत गए जैसे कल की ही बात हो जब इस नन्हीं-सी जान को सास की गोद से अपनी गोद में लेकर अस्पताल से लौटी थी। सास अस्पताल में ही रह गई थी अपनी बेटी के निष्प्राण शरीर के पास। कैसा दिन था जब सुबह की लाली के साथ सुवास के जन्म की खुशी में लोग डा।टिरकी के नर्सिंग होम के बाहर हँसी ठहाके लगा रहे थे कि डाक्टर नर्सों के भागते दौड़ते कदमों से कुछ अनहोनी की आशंका से नीरू का मन बैठा जा रहा था। दो घंटे की लगातार कोशिश के बाद डाक्टर ने आकर मनहूस खबर दी। नन्हा सुवास नानी की गोद में निश्चिंत पड़ा था और नानी का शरीर शिथिल-सा होता जा रहा था। तभी नीरू ने सास को संभाला और बच्चे को कलेजे से लगाकर फफक पड़ीं। बाहर आकर पति से बोली, "अम्मा जी को संभालिए मैं 'बाबू' को डाक्टर के पास ले जा रही हूँ।"
फिर सुवास कैसे बचा, कितने दिन अस्पताल में रहा, रूई के फाहे से
मुँह में दूध टपकाकर उसे कैसे पाला, यह सब नीरू ही जानती थी। दस दिन बाद भी वह सुवास के साथ कमरे में ही रही, जबकि बाहर ननद का श्राद्ध कर्म चल रहा था। सिर्फ़ सुवास ही नहीं उस समय नीरू ने पूरे परिवार को, आघात के समय खड़ा करने में अपनी पूरी जान लगा दी। वह भूल गई थी कि उसके भी दो बच्चे हैं और उनको भी भूख प्यास लगती होगी। आकाश तो फिर भी थोड़ा बड़ा था अपने चाचा-चाची के पास भी ज़रूरतें बता सकता था, लेकिन विकास तो उस समय छोटा ही था। उसे अपने पास ही लिए वह सुवास को एक पल भी नहीं छोड़ती थी। सुवास भी हिलमिल गया था। कहीं भी जाती तो दोनों बेटों के साथ उसे भी ले जाती।
तभी तो इस बार उसके मायके जाते समय सुवास ने तूफान मचा रखा था। वह रोया, चीखा, चिल्लाया और फिर चुप हो गया। उसे चुप देखकर नीरू के जाने के बाद नानी ने समझाया "मामी को तंग नहीं करना चाहिए. वह तुम्हें इतना मानती है और तुमने जाते समय विकास को ही धक्का दे दिया था, मामी को कितना बुरा लगता होगा।"
सुवास फिर चुप बना बैठा रहा। न खेलने गया न खाना खाया। नानी ने सोते समय फिर सुवास को प्यार से सहलाते हुए कहा, "बेटा इतना गुस्सा अच्छा नहीं। सब तुम्हें इतना प्यार करते हैं फिर भी-सुवास बोल उठा," मामी विकास को ज़्यादा प्यार करती है, वह गिर गया और रोया तो मामी उसे चुप कराने अंदर ले गई, उसे टाफी दिया, प्यार किया। मैं भी तो रो रहा था। "
नानी ने कहा, "अरे बाबू तू तो कुछ समझता नहीं, विकास की वह माँ है। वह उसे दवाई नहीं लगायेगी, चुप नहीं करायेगी तो कौन कराएगा। लेकिन तुम्हें भी तो मानती है ना।"
"विकास क्यों नहीं रह सकता था यहाँ, मामी को छोड़कर।"
"फिर वही बात अरे माँ के साथ बेटा तो जाएगा ही ना।" नानी थोड़ा झुंझला गई.
"तो ठीक है मेरी माँ कहाँ है, मैं भी माँ के पास ही रहूँगा। मैं मामी के पास क्यों रहूँ।"
नानी ने किसी तरह अपने को संभाला और बेटी को याद करते हुए धीरे से कहा, "तेरी माँ और बाबुजी झरिया में है।"
"नहीं-नहीं वह मौसी है, वह छोटकू की माँ है, नहीं तो वह मेरे साथ रहती।" "वह तुम्हारी भी माँ है बेटा" नानी ने रुलाई रोकते हुए कहा।
"तुम कुछ नहीं जानती, दाई नानी ने मुझे बता दिया है। मैं जब मौसी कहता था तब तो उस बार तुमने कुछ नहीं कहा था। बताओ न मेरी माँ कहाँ है, क्यों नहीं मुझे अपने पास रखती।"
सुवास जिद करने लगा। नानी का आँचल पकड़कर खींचने लगा, बाल खोल दिए. ऐसे समय में नीरू की कमी नानी को बहुत खल गई, वही संभालती थी, जिद करने पर। कभी अतुल भी उसे जबरदस्ती उठाकर कंधे पर बिठा लेता और नुक्कड़ तक चल देता, जब तक उसका हाथ पैर पटकना बंद नहीं हो जाता। लेकिन अतुल भी गहरी नींद में बाहर के कमरे में सो रहा था। नानी बिफर पड़ी, "मर गई तुम्हारी माँ, ऐसा ही अनोखा था तो रोक लेता माँ को मरने से। इतना कहते-कहते नानी हिचक-हिचककर रोने लगी। आँचल से मुंह ढँककर बुदबुदाने लगी," हाय रे सुनयना कैसी दुश्मन निकली कैसे संभालूं इसको, किस परीक्षा में डाल दिया रे। " सुवास बिल्कुल अवाक नानी को देखता रहा। फिर नानी से चिपककर सुबकते-सुबकते सो गया।
सुबह मुँह धोते-धोते उसने कनखी से नानी की ओर देखा। नानी बिल्कुल मुँह अंधेरे उठती थी और नित्य क्रिया कर बगान से फूल तोड़ने जाती थी। जब नीरू होती तो उसे जबरन बिस्तर पर लिटाकर रखती थी। नानी के साथ सोने से वह भी साथ ही उठ बैठा। घर में सब सोए थे। नानी की फूलों की साजी पकड़ वह नानी के पीछे-पीछे चला। अचानक उसने धीरे से पूछा-नानी यह सुनयना कौन है? नानी ने अचकचा कर पीछे सुवास को देखा। पाँच साल से लोगों ने सुनयना का नाम लेना छोड़ दिया था। क्योंकि अचानक दर्द की एक लहर सभी को सुन्न कर देती। कभी-कभी कोई बाहर से आता तो बहुत दिन होने से धीरे से पूछता यह बड़की का बेटा है, आपके पास रहता है। उस समय नानी या परिवार का कोई सदस्य चुपके से हुंकार भरकर बात बदल देता। सुवास अब तक बड़की अपनी मामी को ही समझता था। कल रात उसे एक रहस्य का पता चला सुनयना नाम की कोई औरत है जिसने नानी को बहुत दुख दिया। नानी के चेहरे पर उभरती पीड़ा की लकीरों से सुवास फिर सहम गया-नानी तुम मत रोना। मैं अब बड़ा हो गया हूँ, मैं माँ के पास जाने की जिद नहीं करूंगा, रहे वह आकाश और विकास भैया के साथ। लेकिन सुनयना को मैं ज़रूर डाँटूंगा कि नानी को क्यों रुलाती है?
थलकमल की उस डाली से फूल तोड़ते-तोड़ते नानी की टांगें काँपने लगी, वह वहीं बैठ गई. चारो तरफ चोर नजरों से देखा कि कोई सुन तो नहीं रहा। कुछ समय बाद स्थिर होकर सुवास की साजी में फूल डालकर कहा, "अभी अपराजिता और अड़हुल भी तोड़ना है, भगवान को सजाना भी है।"
दोनों प्राणी उस सुबह में फूल तोड़ने में व्यस्त थे, तभी सुवास ने धीरे से फिर पूछा, "बोल ना नानी, सुनयना कहाँ है? मैं बात करूंगा।" नानी ने पलटकर पथराई नजर से उसे देखा। भोरकौआ तारा डूबने को था, उसी तारे पर अंगुली उठा दी, "वही है सुनयना, तेरी माँ।"
जबतक सुवास फूल की डलिया रख अपनी छोटी-सी गरदन को उठा आसमान की ओर देख रहा था, तभी पेड़ की छाँह में तारा छिप गया। सुवास के मुँह से निकला, "नानी वह तो डूब गया।"
हताश, सुवास मुँह खोले आसमान की ओर देख रहा था बिना कुछ समझे।
नानी की आँखों से लगातार बहते आँसू को देख उसे लगा कि उससे फिर कुछ गलती हो गई, वह आगे बढ़कर नानी के आँसू पोछने लगा, "नानी अब कभी नहीं पूछूँगा, अब माँ की बात भी नहीं करूंगा। मैं जान गया मेरी माँ तारा थी, चमकने वाली तारा और अब तो डूब भी गई. मैं तुम्हारे ही पास रहूँगा नानी"
वह हिचक-हिचककर रोने लगा। नानी ने अब अपने को संभाला। ये क्या हो गया। नीरू ने इतने दिन तक जिस बालमन को ठेस नहीं लगने दी थी। अपने दुख के आगे उसने बच्चे को बिना माँ के होने का दर्द दे दिया।
नानी ने अपनी बाँहों में घेरकर सुवास को चूमना शुरू कर दिया, "चल देर हो रही, स्कूल के लिये देर हो रही है।"
सुवास ने गरदन हिलाकर हामी भर दी। उस दिन से सुवास एकदम शांत हो गया। न मामी के लिए जिद करता ना ही माँ की चरचा करता।