जनता जागरूक नहीं है? / गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल'
विक्रमादित्य ने वेताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर लादा और चल पड़ा। वेताल ने कहा-‘राजा तुम बहुत बुद्धिमान् हो। व्यर्थ में बात नहीं करते। जब भी बोलते हो सार्थक बोलते हो। मैं तुम्हें देश के आज के हालात पर एक कहानी सुनाता हूँ।
विक्रमादित्य ने हुँकार भरी।
वेताल बोला- ‘देश भ्रष्टाचार के गर्त में जा रहा है। भ्रष्टाचार की परत दर परत खुल रही हैं। बोफोर्स सौदा, चारा घोटाला, मंत्रियों द्वारा अपने पारिवारिक सदस्यों के नाम जमीनों की खरीद फरोख्त, राम मंदिर-बाबरी मस्जिद की वोट बैंकिंग राजनीति, संसद–विधानसभा में कुश्तम-पैजार, न्यायाधीशों पर उठती उँगलियाँ, महँगाई-जनसंख्या पर नियंत्रण खोती सरकार, धराशायी हरित क्रांति, बापू के मायूस तीन बंदर, आरक्षण की बंदरबाँट, विदेशी कंपनियों द्वारा भारतीय बाजार हड़पने के नये नये प्रलोभन, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, हिंदी भाषा-हिंदी साहित्यकारों का दर्द, दिन पे दिन बढ़ती जा रही आपराधिक प्रवृत्तियाँ, स्टिंग ऑपरेशंस, विदेशी बैंकों में भारतीयों की जमा करोड़ों की अघोषित दौलत, कबूतर बाजी, आतंकवाद, बम कांड, पुलिस की मजबूरी, बढ़ता गुण्डाराज, ऐसा है हमारा देश । आखिर इसका कारण क्या है राजा? यदि तुमने इसका सही जवाब नहीं दिया तो तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे।'
विक्रमादित्य ने जवाब दिया- ‘जनता जागरूक नहीं है!!’ राजा कह कर चुप हो गये। थोड़ी देर शांति छाई रही।
वेताल ने अट्टहास किया और बोला- ‘राजा तुम बहुत चतुर हो। एक ही बात में सबका जवाब दे दिया। मैं च--ला--।‘ विक्रमादित्य सम्हलते उसके पहले ही वेताल छूट भागा और पेड़ पर लटक गया।